Friday, August 30, 2019

चिंता, भय और उत्कंठा वाया एन आर सी


चिंता, भय और उत्कंठा वाया एन आर सी
आख़िरकार असम की 3 करोड़ 30 लाख जनता जो पिछले छह वर्षों से भय ओर चिंता में जी रही थी, कि उनके नाम एन आर सी से कट नहीं जाय, उनकी प्रातिक्षा ख़त्म हुई और असम में बहुप्रतीक्षित एन आर सी शनिवार को प्रकशित हो गयी l इस एन आर सी में करीब 19 लाख 6 हज़ार लोग अपना स्थान पाने में असफल रहें हैं l एन आर सी प्रकाशित होने से एक दिन पहले असम के एक प्रभावशाली मंत्री ने यह कहा कि भारतीय जनता पार्टी इस दस्तावेज को एक राष्ट्रिय दस्तावेज नहीं मानती, क्योंकि यह एक त्रुटी मुक्त दस्तावेज नहीं हैं l हालाँकि, उन्होंने एन आर सी के प्रकाशन का विरोध नहीं किया पर, अचानक भाजपा के यह बदला मिजाज किसी के समझ में नहीं आ रहा हैं l भाजपा के इस स्टेंड से विरोधी पार्टियाँ पसोपेश में हैं कि कौन सा स्टेंड ले, समर्थन का या फिर विरोध का l सभी एक नापा तुला व्यक्तव्य दे रहें हैं l इधर एन आर सी प्रक्रिया शुरू करने के मुख्य नायक आसू ने एन आर सी को लेकर राजनीति नहीं करने का आह्वान किया हैं l आसू ने त्रुटी को लेकर अभी कोई अभी अपना कोई स्टेंड नहीं बनाया हैं, और एक सही एन आर सी आने की आशा की हैं l इधर असम के भूमि-पुत्रों को एक सम्मलित संस्था- असम सम्मलित महासभा ने राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से एन आरसी के प्रकाशन पर रोक लगाने की अपील भी की थी l उसने 25 मार्च 1971, जिसको एन आर सी में शामिल होने का एक बेस इयर माना गया था, का ही विरोध कर डाला हैं l दरअसल असम देश का इकलौता राज्य हैं, जहां एनआरसी बनाया जा रहा हैं l एनआरसी वो प्रक्रिया हैं, जिससे देश में गैर-कानूनी तौर पर रह विदेशी लोगों को खोजने की कोशिश की जाती हैं l असम में आजादी के बाद 1951 में पहली बार नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन बना था l 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, तब पूर्वी बंगाल और असम के रूप में एक नया प्रांत बनाया गया था, तब असम को पूर्वी बंगाल से जोड़ा गया था l जब देश का बंटवारा हुआ तब यह डर सता रहा था, कि कही असम को पूर्वी पाकिस्तान के साथ जोड़कर भारत से अलग ना कर दे l तब उस समय के मुख्यमंत्री रहे गोपीनाथ बोरदोलोई की अगुवाई में असम विद्रोह शुरू हुआ और असम अपनी रक्षा करने में सफल रहा l 1950 में असम देश का राज्य बना l हालात तब ज्यादा खराब हुए जब तब के पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश में भाषा विवाद को लेकर आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया l उस समय पूर्वी पाकिस्तान में परिस्थितियां इतनी हिंसक हो गई कि वहां रहने वाले हिंदू और मुस्लिम दोनों ही तबकों की एक बड़ी आबादी ने भारत का रुख किया और लोगों का असम में प्रवेश जारी रहा l ऐसा माना जाता हैं कि उस समय करीब 10 लाख लोगों ने असम में प्रवेश किया और उन्होंने कभी अपने वतन में वापसी नहीं की हैं l यद्ध्यपी, सन 1950 में एक एन आर सी इस लिए बनाई गयी थी, कि असम में प्रवेश किये हुए लाखों अनुप्रवेश्कारियों की पहचान की जाय और असम के स्थाई नागरिकों को एक अपनी पहचान मिले, पर पूर्व बंगाल से लगातार बंगला भाषी लोगों का प्रवेश असम में लगातार होता रहा, जिससे 1950 में बनी एन आर सी के होने का कोई मतलब नहीं रह गया था l राजनीतिक कारणों से और वोट बेंक की राजनीति के कारण उस राष्ट्रिय दस्तावेज को भी एक ठंडे बस्ते में रख दिया गया l इस बार भाजपा सरकार ने करीब-करीब यह घोषणा कर दी हैं कि उनको एन आरसी से कोई मतलब नहीं हैं और वे अवैध अनुप्रवेशकारियों को निकालने के दुसरे तरीके निकालेंगे l इस एक सीधा साधा मतलब यही होता हैं कि छह वर्षों के कठिन परिश्रम से बनाये गए एक दस्तावेज अभी भी राजनितिक पार्टियों की आशा और आकांशा पर खरा नहीं उतर रहा हैं l पर सत्य यही हैं कि एन आर सी प्रकाशित हो गयी हैं और जिन लोगों ने ड्राफ्ट एन आर सी निकलने के पश्चात कठिन परिश्रम से हियरिंग में भाग लिया उनके लिए अभी खुशियाँ और गम दोनों हैं l जिन लोग के नाम शामिल हुए हैं, वे खुश हैं और जो लोग इसमें स्थान पाने से वंचित रह गए हैं, उनके लिए एक बड़ी और लम्बी क़ानूनी प्रक्रिया शुरू हो गयी हैं, उनके लिए आने वाले दिन मुश्किल भरे भी हो सकते है, जो निश्चित रूप से असम के आर्थ-सामाजिक जीवन में नए परिवर्तन लेकर आएँगी l    

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