Saturday, September 24, 2016

सौ साल जीने का मूलमंत्र किसके पास है?
रवि अजितसरिया

कहते है कि हर मनुष्य के जीने की उम्र सौ वर्ष तय की हुई है, पर उसके रहन-सहन और खान-पान के तरीकों की वजह से उसके जीवन की लम्बाई अपने आप कम-ज्यादा हो जाती है l इस धारणा की वजह से अब तो यह देखा जा रहा है कि मनुष्य एक रोगमुक्त जीवन कितने दिनों तक जीता है, चाहे वह छोटा हो या बड़ा l क्या किसी के पास सौ साल जीने का मन्त्र है l शायद नहीं l यह बात जरुर है कि मनुष्य को रोगमुक्त रखने के लिए, भारतीय मनीषियों के पास तमाम तरह के उपाय और साधन प्राचीन काल में भी मौजूद थे, और कहते है, अब भी है l पर आज के आधुनिक युग में इन उपायों को करने में इतनी व्यावहारिक परेशानियाँ है कि मनुष्य गंभीर साधना करने में कतराता है l वह हलके-फुलके कई उपायों का सहारा करके, एक अच्छा जीवन जीने की चेष्टा करता है l इसमें सुबह की सैर, प्राणायाम, योगासन और संतुलित आहार, ज्यादातर लोगों की दिनचर्या बन गयी है l विभिन्न तरह के रोगों के उपचार के लिए कई तरह की पद्धतियों का सहारा लेतें है लोग, जिसमे घरेलु उपच्चार भी शामिल है l कई तरह के विरोधाभास भी है l विज्ञान की अनेक शाखाएं है जो व्यवहारिक और उपयोगी है l आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, एलोपेथ, यूनानी, तिब्बती और बहुत ही ऐसी चिकित्सा पद्धतियाँ है, जो अपने अपने स्तर पर मनुष्य के इलाज के लिए प्रस्तुत है l इन सभी पद्धतियों से हम सभी एक ना एक बार जरुर गुजर चुकें है l सबकी अपनी-अपनी पसंद और चयन है l जिसके जो पद्दति वाली दवा असर कर रही है, वह उसको अपना रहा है l पर सौ साल का मूलमंत्र किसी के पास नहीं है l एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए व्यायाम, योगासन और प्राणायाम की एक प्राचीन व्यवस्था आज भी कायम है, कसरत और स्ट्रेच तरीकों को अपना कर करोड़ों लोगों ने अपने जीवन को उर्जावान और क्रियावान बनाये रखा है l उनके पास भी सौ वर्षों तक जीने का मूलमंत्र नहीं है l पर एक स्वस्थ जीवन जीने के उपाय है, चाहे वें सौ वर्ष वर्ष पुरे   ना हो, पर जितने वर्ष भी जीये, स्वस्थ,निरोग और हर्ष के साथ जीये l यह बात सभी जानते है कि मनुष्य अपने परिवार के प्रति कर्तब्य निभाते-निभाते असंतुलित आहार, अर्धनिंद्रा और कुछ व्यसनों को पाल लेता है, जिसकी वजह से उसकी दिनचर्या, स्वस्थ कारणों से बिगड़ने लगती है l पचास तक आते-आते बीमारियाँ घर करने लगती है l अक्सर आम लोगों की जीवनशैली और खानपान के बारे में इस तरह से टिपण्णी की जाती है कि आधुनिक ज़माने में लोगों की जीवनशैली कुछ इस तरह की हो गई है कि बिमारियों का खुला आमंत्रण है l तनाव जीवन के रोजमर्रा का हिस्सा बन गया है l कम उम्र में ही गंभीर बीमारियाँ चली आने लगती है l इस तरह की बातें विशेषज्ञों द्वारा सेमिनारों और सभाओं में कही जाती है l ऐसे में, सोचने वाली बात है कि कौन सी जीवनशैली सबसे उत्तम और स्वास्थकर हो सकती है l जीवन की तमाम जरुरर्तों को पूरा करने के लिए लोग अपने आप को मशगुल रखतें है l  

वे भी उसी तरह से सोतें-उठतें, खातें-पीतें है, जो सामान्यतः एक आम इंसान को अपने जीवन यापन के लिए करना चाहिये l फिर जीवन के एक पड़ाव पर आ कर मनुष्य शारीरिक दुर्बलता क्यों महसूस करने लगता है l अगर गौर से देखे, तब पाएंगे कि जिस प्रचुरता में फल एवं सब्जियां, बाजारवाद के प्रभाव से आराम से मिलने लगी है, पर यह भी देखा जा रहा है कि इस उपलब्धता के लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है l प्रद्योगिकी ने सब कुछ बदल कर रख दिया है l भारी मात्रा में रसायनों के उपयोग से फलों एवं सब्जियों की गुणवत्ता में फर्क दिखाई देने लगा है l हर सब्जी और फल हाइब्रिड नस्ल की मिलने लगी है l अब यह कहा नहीं जा सकता है कि कौन सा खाद्य पदार्थ पौष्टिक है और कौन सा हानिकारक है l जो देखते है, उसे मान लेतें है l आयुर्वेद जैसी पद्दति पर लोगों का भरोसा पहले से अधिक हो चला है, पर अब यह पद्दति महंगी और बाजारवाद का एक हिस्सा बन गयी है l हर कोई आयुर्वेदिक उत्पाद बनाने में लग गया है l हर कोई जीवन शैली पर प्रवचन देने लग गया है l कई तरह की पेचीदगियां हमारे सामने आ खड़ी हुई है l बाजारवाद एक चुनौती बनती जा रही है, एक आम भारतीय किसी बड़े मकड़ जाल में फंसता चला जा रहा है l मोटापा, मधुमेह और रक्त-चाप किसी भी आम भारतीय के जीवन का एक हिस्सा बन चुके है l टीवी खोलते ही एक नए पंडित आयुर्वेद और प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा दिए गए फोर्मुले पर आधारित दवाइयों का प्रचार करते हुए दिखाई देतें है l नियम और संयम की बातें, अक्सर मुनियों के प्रवचन का हिस्सा रहती है, पर उनकों व्यावहारिक रूप से अपनाने में आधुनिक युग के मानव को अनेक कठिनाइयाँ होती है l भारतीय जीवनशैली उन मानवीय विचारों पर आधारित है, जिसको अपना कर कोई भी एक सादा और सुंदर जीवन जी सकता है l अधकचरे  विकास और उसकी विपरीत परिणामों से हो सकता है कि भारतीय लोगों में बीमारियाँ जल्द चली आती हो, पर एक आम भारतीय अपने जीवन को स्वस्थ बनाने के लिय आज जुट गया है l उसने खुद ही एक लम्बा जीवन जीने का मन्त्र खोज लिया है l
पकिस्तान के साथ युद्ध नहीं होने के कुछ बड़े कारण
रवि अजितसरिया

कश्मीर में आंतकवादी बुरहान वानी के मरने के बाद, पिछले 70 दिनों से जम्मु कश्मीर में हालात बद से बद्दतर हो गए है l रविवार को उरी ब्रिगेड पर हुवे फिदायीन हमले से स्थिति और अधिक बिगड़ी ही है l देश भर में पाकिस्तान समर्थित लस्कर ए तैबा के इस कायरतापूर्ण हमले का प्रतिवाद जोरो से हो रहा है l लोगों के गुस्सा सातवे आसमान पर है l यह आवाज उठ रही है कि भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध में उतर जाना चाहिये, और पीओके स्थित उनके सभी आंतकवादी ट्रेनिंग कैम्पों को ध्वस्त कर देना चाहिये l मीडिया लगातार देश भर के लोगों की संवेदना और आक्रोश के पिक्चर लगातार दिखा रहा है l हालाँकि, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने बयान दिया है कि ईंट का जबाब पत्थर से दिया जाएगा, पर इस बात के आसार बहुत ही कम है कि भारत इस समय पाकिस्तान से कोई सीधा युद्ध करेगा l इसके सीधे कारणों को अगर हम देंखे, तब पाएंगे कि भारत इस समय पश्चिम एशिया में एक बड़ी शक्ति बन कर उभर रहा है l आर्थिक और सामरिक, दोनों दृष्टि से l सीधे युद्ध करने से भारत में जो बड़ी संख्या में निवेश आ रहा है, उस पर प्रतिकूल असर पड़ेगा l निवेशकों के भरोसा टूट सकता है l भारत कभी भी यह नहीं चाहेगा l कश्मीर मुद्दे को अंतराष्ट्रीय रूप से एक बार फिर बड़े स्तर पर बल मिलने की सम्भावना बन जाएगी, जो पाकिस्तान उरी ब्रिगेड पर हमला करने से पहले से चाहता था l होशियारपुर और पठानकोट के हमले के पश्चात पकिस्तान के पास अंतराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर मुद्दे को उठाने के लिए कोई वजह नहीं थी, पर जैसे ही बुरहान वानी की मृत्यु हुई, और कश्मीर में उसका बड़ा प्रतिवाद शुरू हो गया, उसने चारो तरफ से भारत पर निशाना साधना शुरू कर दिया, जिससे भारत जल्दबाजी में सेन्य कार्यवाई शुरू कर दे l सामरिक संयम के पक्षधरों का कहना है कि युद्ध से उसकी छवि को तो नुक्सान पहुचेगा, साथ ही, आर्थिक रूप से उसको भारी नुकसान होने की आकांशा है l अमेरिका और ब्रिटेन ने हमेशा से ही भारत और पाकिस्तान को नसीहत दी है कि दोनों को तनाव कम करने की दिशा में काम करना चाहिये, इसलिए अगर युद्ध हुवा, तब विश्व भर में भारत पर युद्ध ख़त्म करने का दबाब अधिक रहेगा, और पाकिस्तान यह भी चाहेगे कि भारत को एक आक्रामक राज्य घोषित हो, जो हमेशा आंतकवादी हमले के बाद पाकिस्तान को ही दोषी मानता है l चूँकि दोनों ही देश परिमाणु बम संपन्न देश है, इसलिए स्थित अधिक भयावय होने इस आशा है l साथ ही भारत का परिमाणु बम उपयोग पहले नहीं करने का करार भी इस और रुकावट बन सकता है l इसके अलावा, युद्ध के खर्चे को लेकर भी सामरिक मामले के विशषजज्ञों का मानना है कि भारत में अभी स्वास्थ और आधारभूत विकास के लिए बड़े पैमाने पर पूंजी लगनी है l अगर युद्ध हुवा, तब बहुत पैसा युद्ध में चला जाएग, जो इस समय भारत के लिए भरी पड़ेगा l  

फिर, भारत मुस्लिम आंतकवादियों के लिए एक प्रजनन क्षेत्र बना हुवा है, कश्मीर के साथ पुरे नार्थ-ईस्ट में मौल्वादियों और सिमी जैसे दल सक्रीय होने के चलते, भारत में कभी भी स्थाई शांति कभी भी नहीं रही l युद्ध के होने से देश में कट्टरवाद के समर्थकों को पनपने का एक मौका हाथ लग जायेगा l यह भी मानना है कि अगर भारतीय सेना पीओके में घुस कर आंतकवादियों के ठिकानों को नष्ट करेगी, तब पाकिस्तान के जबाब देने पर बॉर्डर पर रहेने वालें सिविलियन्स का जान माल का भारी नुकसान हो सकता है एक संभावना यह भी है कि भारत पाकिस्तान को कूटनीति के द्वारा परास्त करे l उसको एक आंतकवाद संरक्षित देश घोषित करवाने  के लिए भारत प्रयास करेगा, जिससे पाकिस्तान को सभी अंतराष्ट्रीय मदद मिलनी बंद हो जाएगी l भारत ने पाकिस्तान को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा जो दिया है, उसको भी वापस ले सकता है l एक आर्थिक रूप से टूटे पकिस्तान किस तरह से आगे आंतकवादियों को आर्थिक मदद कर सकेगा, यह सभी तो पता है l पर यह बात दीगर है कि सन 2008 में जब मुंबई पर हमला हुवा था, तब भी तीनों सेना के चीफों ने किसी भी मिलिट्री ऑपरेशन के लिए हरी झंडी नहीं दिखाई थी, बल्कि कूटनीति के जरिये पाकिस्तान को अलग-थलग की योजना बनाई थी l आज भारत दुबारा से उसी योजना पर काम कर रहा है l हालाँकि भारतीय फोज ने पकिस्तान को चेतावनी भरे लहजे में जब चाहे सेन्य कार्यवाही करने के लिए नोटिस दे दिया है, पर जानकार मानते है कि भारत एक बार फिर किसी भी सीधी कार्यवाही से बचेगा l राष्ट्रिय रक्षा सलाहकार अजीत डोवाल का मानना है कि पकिस्तान के पास भी वही परिमाणु ताकत है, जो भारत के पास है, इसलिए सीधे हमला करना और उसमे जितना उतना आसान नहीं रहेगा l ऐसे में भारत क्या कर सकता है l भारत सिन्धु नदी के करार को समाप्त कर सकता है, व्यापार में दी जाने वाली रियायतों को समाप्त कर सकता है , नवम्बर में होने वाले सार्क सम्मलेन का बहिष्कार कर सकता है l कूटनीति के द्वारा भारत सभी मित्र देशों से इस हमले की निंदा करने के लिए कहलवा सकता है, जो वह फिलहाल कर रहा है l कश्मीर को लेकर भारत आज अधिक चिंतीत है l अगर सीधा युद्ध हुवा, तब भारत की आतंरिक सुरक्षा की समस्या पहले से अधिक बढ़ जाएगी, खासकरके कश्मीर में l भारत के रक्षा मामले में अजीत डोवाल का कद को देखते हुए तीनों सेना के चीफ आज के दिन एक सहायक के रोले पर आ गएँ है, जहा एक और विदेश सचिव एस जयशंकर है और दूसरी तरफ रक्षा सलहाकार अजीत डोवाल है l इधर अमेरिका ने पाकिस्तान को दुबारा से यही नसीहत दी है कि वह भारत से बातचीत करे और दोनों तरफ का तनाव कम हो l पर पकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार सभा में कश्मीर का मुद्दा दुबारा से उठाया और कहा कि अब तक पिछले दौ महीने में 70 लोगों की जाने जा चुकी है, जो मानव अधिकारों के खुलम-खुल्ला उलंघन है l नवाज शरीफ ने राजनाथ सिंह के उस बयान की तीखी आलोचना की है जिसमे उन्होंने रविवार को पाकिस्तान को एक आंतकवादी राष्ट्र कह दिया था l         

Sunday, September 11, 2016

असम में व्यापार करने की आज़ादी
रवि अजितसरिया


असम में सर्वानन्द सरकार ने सौ दिन पुरे कर लिए है l इस पर ना जाने कितने विश्लेषण हुवे है, ना जाने कितने लेख लिखे जा चुकें है l हिंदी भाषियों के लिए, खासकर, यह सौ दिन काफी मुश्किलें भरे हुए रहें l सौ दिनों की उपलब्धि यह रही कि सरकार ने अपनी वित्तीय हालत को सुधारने के लिए एक प्रतिशत कर में बढ़ोतरी कर दी, जिससे यह संभावना बन गयी हैं कि इस बढ़ोतरी से वस्तुओं के भाव बढ़ जायेंगे l उल्लेखनीय है कि नई सरकार के सत्ता सँभालते ही अवेध वसूली और मूल्य वृद्धि ह्रास करने के उद्देश्य से राज्य से चेक गेट हटाने की घोषणा की थी, जिसकी भारी प्रशंसा लोगों ने की थी l अब एक प्रतिशत एक मद में और आधा प्रतिशत दुसरे मद में वेट बढ़ा कर सरकार लोगों के समक्ष मुहं खोलने की हिम्मत नहीं कर रही, पर यह तर्क दे रही है कि आवश्यक सामग्रियों के दाम इस कर बढ़ोतरी से नहीं बढ़ेंगे l पर व्यापारियों ने अभी सरकार के साथ दो-दो हाथ करने की ठान ली है l मूल्य वृद्धि के नाम पर जिस तरह से उनसे पूछ-ताछ की जा रही है, उनसे वे परेशान ही नहीं बल्कि दुखी भी है l राज्य में पहले से मूल्य वृद्धि हुई है, उपर से राज्य में आने वाली बाढ़ से जूझते लोगों के पास इस समय सर्वानन्द सरकार के समक्ष एक आशा भरी नजरों से देखने के अलावा कोई चारा नजर नहीं आ रहा है l 
असम में फैंसी बाज़ार मतलब है, व्यापारी, चाहे वह कोई भी जात का हो l व्यापार को असम में हमेशा से ही दोयम दर्जें का कार्य माना गया है l मानो व्यापार करना कोई गुनाह है l एक चतुर्थ श्रेणी के सरकारी पद के लिए, असम में लाखों रुपये की रिश्वत दी जाती है, पर पद लेने वाला, उन रुपयों से व्यापार करने से कतराता है, मानो कोई व्यापर कोई बिच्छू हो, जिसको छेड़ने से ही डंक लगता है l जबकि यह सर्विदित है कि किसी भी देश या प्रदेश की मजबूती वहां की आर्थिक मजबूती से आंकी जाती है, वहां की आधारभूत संगरचना, वहां का वातावरण उद्योग और वाणिज्य-व्यापर के लिए अनुकूल हो, तब उस देश को कोई एक समृद्ध देश की संज्ञा दी जाती है l वहां के प्रति नागरिक आय इतनी अधिक हो, तभी उस देश या प्रदेश को एक विकसित इलाका माना जाता है l उस देश या प्रदेश के अर्थ-सामाजिक हालात इतने सुदृढ़ होतें है कि हर नागरिक के पास आय के अच्छे साधन हो, क्रय क्षमता इतनी हो कि राष्ट्र या प्रदेश के विकास में एक अहम् भूमिका निभाएं l असम के क्षेत्र में अगर देखे, तब पाएंगे कि व्यापार और वाणिज्य हिंदी पट्टी से प्रवजन करके आए हुए लोगों के हाथ में मुख्यतः है l यह कार्य वे लोग वर्षों से कर रहें है l १८२८ से भी पहले से, व्यापार और वाणिज्य के कारणों से आए हुए लोगों ने अपना बसेरा यही पर कर लिया है l लाखों लोगों की जन्म भूमि असम ही है l फैंसी बाज़ार इन बसेरों में से एक बड़ा बसेरा है, जिसका नाम यहाँ के राजनेता, छात्र संगठन और अन्य लोगो गाये-बघाये लेतें रहते है l फैंसी बाज़ार का मतलब ही है हिंदी भाषी l  
जबकि फैंसी बाज़ार में हर जाति और सम्प्रदाय के लोग व्यवसाय करतें है, जिसमे, बंगला भाषी, मुसलमान, असमिया गुजराती, बिहारी, पंजाबी, हिंदी भाषियों के साथ मिल कर व्यवसाय करतें है l फैंसी बाज़ार ने हमेशा से ही अपनी एक अलग पहचान बनाई है l उसने दो एक बार सुरक्षा के मुद्दे को छोड़ कर कभी भी किसी जातिगत मांग को लेकर आन्दोलन नहीं किया, जो यह दर्शाता है कि यहाँ रहने वालें लोग शांतिप्रिय लोग है, जिन्हें आम तोर पर राज्य की राजनीति से कोई मतलब नहीं है l यहाँ के लोगो हर वर्ष भारी मात्रा में राजस्व कमा कर सरकारी खजानें में जमा करतें है l इसमें निगम और सम्पति कर, वाणिज्य कर, श्रम कर, इत्यादि शामिल है l  

नई सरकार आने के पश्चात, मूल्य वृद्धि के नाम पर इस तरह से व्यापारियों का नाम बार-बार आना इस बात के संकेत है कि उन विषयों पर राजनीति करनी आसन है, जिस पर आम नागरिकों का ध्यान हमेशा रहता है l जब भी बड़े नेता फैंसी बाज़ार का रुख करतें है l वे यहाँ के लोगों को तरह तरह के आश्वासन देते है, पर स्थितियों में कोई खास बदलाव नहीं होता है l उस सोच में कोई बदलाव नहीं होता, जो ह्रदय में विद्यमान है l जबकि यह बात सबकों पता है कि फैंसी बाज़ार जैसे बड़े व्यावसायिक इलाकें में नागरिक सुविधाओं का भारी आकाल है l जिस तरह से व्यवसाय करने के लिए सुविधाओं को मुहय्या करवाया जाना चाहिये, वह यहाँ मौजूद नहीं है l फिर विषम परिस्थितियों के होते हुए भी, यहाँ के व्यापारी मजे से व्यापार करतें है, और किसी भी किस्म का प्रतिवाद नहीं करतें l वर्षों से लगी हुई नों एंट्री यह बताती है कि किस तरह से व्यावसायिक वाहनों को यहाँ आने से रोका जाता है, जो व्यापार करने के लिए प्रथम अनिवार्य जरुरत है l इस से सरकार की संकीर्ण मानसिकता और दोहरा रवय्या का पता चल जाता है l पर एक व्यावसयिक इलाके को जो सुख-सुविधाएँ दी जनि चाहिये, वह नहीं दी जाती, बल्कि ऐसी-ऐसी योजनाओं को लागु करने की कवायद की जाती है, जिससे यहाँ का व्यापार को धवंस होना निश्चित है, साथ ही रहवासियों के भारी मुश्किलें आ सकती है l उल्लेखनीय है कि हाल ही में गुवाहाटी नगर निगम ने फैंसी बाज़ार के सौदर्य के लिए एक ऐसी योजना बना कर दी है, जिसका भारी विरोध हो रहा है l प्राचीन फैंसी बाज़ार के अस्तित्व को कोई मिटा नहीं सकता, यह तो तय है l बस यहाँ के व्यापारियों को चाहिये कि स्वयं अपने स्तर को ऊँचा करें और एक उदहारण पेश करें l इतने वर्षों तक हर त्यौहार, पर्व, बाढ़, भूकंप और अन्य मौकों पर फैंसी बाज़ार चंदा देता आया है, क्यों न इस बार स्वयं एक पहल अपनी और से की जाएँ, जिससे एक मिसाल कायम हो l उसे अब स्वयं आगे आ कर फैंसी बाज़ार के विकास के लिए योजना बना कर सरकार को देनी चाहिये, जिससे यहाँ के व्यापारियों को सरकार की तरफ सुख-सुविधाओं के लिए सरकार की तरफ मुहँ नहीं ताकना पड़े l इस पूरी योजना में कामरूप चेंबर, लोगों की सहभागिता भी ले सकती है l (raviajitsariya@gmail.com)
गानों की दुनिया से निकलती हुई जिंदगी
रवि अजितसरिया
‘हँसते-हँसते कट जाये रास्तें, जिंदगी यूँ ही चलती रहें, ख़ुशी मिले या गम, बदलेंगे ना हम, दुनिया चाहे बदलती रहें’ l यह प्रोत्साहित करने वाला हिंदी गीत, है, जो मानव रिश्तों और उसकी बारीकियों को बखूबी बयां करता है l प्रोत्साहित करने वालें गीतों ने हमेशा से ही भारतीय जनमानस पर एक छाप छोड़ी है l  हिंदी गीतों ने मानों लोगों को जिंदगी एक नए सिरे से शुरू करने की दीक्षा दी हो, एक धर्मगुरु की भांति l पंद्रह अगुस्त के दिनों में देश भक्ति गानें, उन्ही फिल्मों से थे, जिसे देख कर आज भी लोग सिनेमा हाल में तालियाँ बजातें है l 1955 में बनी फिल्म ‘सीमा’ का एक प्रेरक गीत ‘तू प्यार का सागर है..’  आज भी जब भरी सभा में गाया जाता है, तब चारों और स्तब्धता छा जाती है l हर कोई गीत में बस रम जाता है l कुछ ऐसे ही प्रेरक गीतों ने भारतीय जनमानस के बीच अपनी छाप छोड़ने में सफल रहें l ‘ए मालिक तेरे बन्दे हम..’’(दो आँखे बढ़ हाथ-1957) ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता..’(अंकुश-1986) ‘हमको मन की शक्ति देना..’(गुड्डी) जैसे गीतों ने भारतीय दर्शकों के मन में जीवन और कर्म के महत्त्व को समझाया और खूब उत्साहित भी किया, जैसे असमिया भाषा, संस्कृति के जनक रूपकुंवर ज्योति प्रसाद के गीतों को आज भी पढ़ा और गया जाता है l भूपेन हजारिका के कालजयी गीतों को अगर हम सुने, तब पाएंगे कि ‘बिस्तिर्ण पारे..”, ‘ मोई अखोमोर मोई भरोतोर..’ ‘एक पत्ती दो अंगुलिया..’ जैसे गीतों ने असमिया जनमानस को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया l हिंदी गीतों के तीन पहलु धुन, शब्द और सजावट ने हमेशा से ही लोगों को संघर्षशील जीवन के घने अंधेरों से निकलने में मदद की है l हिंदी फिल्मों की सफलता के पीछे, यह भी एक कारण है कि उसने दर्शकों को अपने साथ चलने पर मजबूर किया है l हिंदी फिल्मों के एक सौ साल के सफ़र को अगर हम गौर से देंखे, तब पायेंगे के चरित्र फ़िल्में, साठ के दशक से ही खूब चली है, जिसमे नायक का चरित्र पूरी फिल्म के चारों और घूमता है l पौराणिक एवं देशप्रेम, नवनिर्माण और सामाजिक सरोकारों वाली फिल्मों ने हमेशा ही भारतीय लोगों को प्रेरित किया है l ‘श्री 420’, ‘मदर इंडिया’, ‘मंथन’, ‘गॉइड’ और ‘नया दौर’ जैसी फिल्मों ने लोगों के समक्ष समाज का आयना पेश किया, जिसने लोगों को सोचने का वक्त दिया l दुःख और अनेकों झंझावातों से भरा नायक का जीवन, हौसला नहीं खोना और अंत में विजय प्राप्त करना, हिंदी फिल्मों के यह एक खूबी थी l कला के माध्यम से इस तरह विविध शैलियाँ प्रस्तुत करना, हमारी हिंदी फिल्मों की खूबसूरती थी l साठ से अस्सी के दशक में कई फिल्मों ने सिनेमाघरों में सिल्वर जुबली और कुछ ने तो गोल्डन जुबली बनाई l शोले, जय संतोषी माँ, जैसी फ़िल्में रोमांस, कला और डायलोग से भरी थी, जिनको भारतीय दर्शकों ने खूब देखा और आनंद भी लिया l  


फिल्म शोले के तो सिर्फ डायलोग बजेते थे, और सुनाने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी l l लोग कहतें है कि आज से तीस वर्षों पहले तक, फ़िल्में ही मनोरंजन के मात्र एक साधन थी l ‘फर्स्ट डे फर्स्ट शो’ देखने के लिए, लोग सिनेमा हाल में लम्बी-लम्बी कतार लगातें थे l टिकटें ब्लेक होती थी l परदे पर पैसे उछालें जातें थे l और ना जाने, क्या-क्या l दुसरे शब्दों में कह सकते है कि हम भारतीय प्रतिबिम्ब को हिंदी फिल्मों में देखतें थें, जिससे प्रेरित हो कर हम पर्दें पर पैसे उछालतें थे, गला फाड़ कर रोतें भी थे l ‘कुंवारा बाप’ फिल्म देख कर ना जाने कितने ही लोगो सिनेमा होल में ही रो पड़े थे l चरित्र फिल्मों ने तब से ले कर आज तक हमेशा से ही भारतीय लोगों को सिर्फ मनोरंजन ही प्रदान नहीं किया, बल्कि भारतीय लोगों ने उसका अनुसरण भी किया है l कितनी विविधता भरी रहती थी, भारतीय सिनेमा l उन दिनों, बच्चों के अभिभावक उनको फ़िल्में देखने से रोकते थें l मानो फिल्मों से, वे जीवन की उन बारीकियों को समय से पहले समझ जायेंगे, जो उनको बड़े होने पर अपने आप उन्हें समझ आती थी l ‘जुली’ फिल्म के आपतिजनक दृश्यों पर अभिवावक अपनी आँखे बंद कर लेते थे l इतना ही नहीं जुली का प्रसिद्द गाना ’भूल गया सब कुछ, याद नहीं अब कुछ...जुली..इ लव यूँ.. गुदगुदाने की भी मनाई थी, जैसे गाना गाने से कोई संक्रमण हो जायेगा l अब नए लिखे-बनाये जाने वालें गीत-संगीत बाजारवाद की भेंट चढ़ गए है, कल्पना के पंख को व्यावसायिकता ने क़तर दिए है l अब गाने धड़ा-धड़ बिकने चाहिये, कितने दिन बिके, यह जरुरी नहीं l अब हमारे गाने, हमारी संस्कृति, सभ्यता और सामग्रियों के परिचायक नहीं रहे है l गीतकार ऐसे गीत लिख रहें है, जिनमे हिंदी-इंग्लिश और अन्य भाषा एक साथ समाहित रहती है, ना शब्द है, ना ही भाषा और ना ही व्याकरण, बस एक गाना है, जो एक सौ करोड़ क्लब में शामिल होने की चपेट में है l संगीत प्रधान गीतों ने शब्द प्रधान गीतों की जगह ले ली है l कवि और गीतकार शैलेन्द्र के ‘पतिता फिल्म फिल्म में एक गीत दिया –‘जब गम का अँधेरा घिर जाए..समझो कि सवेरा दूर नहीं’ और फिल्म ‘मेरी जंग’ के प्रेरणा से भरे इस प्रेरक गीत ‘जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है..’ को जब हम सुनतें है तब, शायद जीवन के सकारात्मकत पहलु तो समझ कर हम जीवन पथ पर आगे बढ़ जातें है l उनको सुन कर हम प्रेरित हो जाते है l          


Saturday, September 3, 2016

इस तरह के विकास के क्या मायने है ?  
रवि अजितसरिया


यह एक विचारणीय प्रश्न है कि विकास के लिए लोग है या लोगों के लिए विकास है l यानी जो विकास होगा उसका फायदा लोगों को मिलेगा या नहीं l जिस विकास से लोगों को कोई फायदा नहीं, उस विकास के क्या मायने l इसी उपापोह में कभी-कभी कुछ ऐसी योजनायें बना दी जाती है कि देखने में तो काफी रंग बिरंगी लगती है, पर जैसे एक उनुपयोगी योजना के क्रियान्वयन में वे मुश्किलें तो आनी ही है, सो आती है, जिससे आम लोगों की जिंदगी बाधित होने लगती है l हमारे यहाँ विकास के मायने है, चौड़ी सड़कें, रेल या सड़क पुल, ऊँची-ऊँची अट्टालिकाएं, इत्यादि l इससे उपर अगर हम देखें, तब पाएंगे कि राजनीति ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया है l धडा-धड़ घोषणाएं, आनन फानन उन घोषणाओं पर कार्य शुरू करना, चाहे उस योजना पर उचित तैयारिया हुई हो या नहीं l बस करना है l सारे विकास के मापदंड राजनीति के आगे बोने हो जातें है l किस तरह का विकास हमें चाहिये, ब्रिटिश, अमेरिकन या भारतीय l क्या भारतीय राजनेता इतने असंवेदनशील हो गएँ है कि उन्हें घर के आसपास घोर गरीबी और लाचारी दिखाई नहीं पड़ती, और वे चल पडतें है एक कल्पना की दुनिया में जहाँ से वे विकास के नए सपने देखने लागतें है l एक ऐसा मॉडल, जिसमे कम से कम आम भारतीय तो समा नहीं सकता l अगर ऐसा नहीं होता, तब वर्षों से निचली सुवान्सिरी विद्युत प्रकल्प पर कार्य बंद नहीं रहता l एम्स के स्थान को लेकर विवाद नहीं होता l अगर घोषणा के पूर्व आम राय बना ली जाती तब, यह सब नहीं होता l पर हम एक अमेरिकन मॉडल को भारतीय लोगों में समाहित कर देना चाहतें है, जो लोगों का सर्वस्व छीन लेने को आतुर है l अगर लोग ही नहीं रहेंगे, तब विकास किसके लिए l क्या गरीबों के जीने का स्तर भारत में इन वर्षों में अप्रत्याशित रूप से ऊँचा हुवा है ? फिर विकास के क्या मायने l जमीनी स्तर से चीजों को ठीक करने में जुटी सरकार, शायद भारत के सामाजिक ढांचे को समझने में भूल गयी है, जो अभी भी पुरातनपंथी और रुढ़िग्रस्त है l इसकी जड़े हजारों वर्षों पुरानी है l हमर सामाजिक तानाबाना ही कुछ ऐसा है l राजनीति इसका कुछ बिगाड़ नहीं सकती l पर रोजाना अपनी पीठ थपथपाते मंत्रियों और अधिकारीयों की भीड़ हमें टेलीविज़न के परदे पर अक्सर दिखाई दे जाती है, एक उन्नत मानवीय राजनीति के स्थान पर असंवेदनशीलता और आलोचनाओं से घिरी हुई, जहाँ कोई श्रेष्ठता का बोध नहीं है l असंवेदनशीलता की बानगी तो देखिये, जबरदस्त अफ़सोस होगा l पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी फैंसी बाज़ार का एक व्यस्तम रास्ता, हेम बरुआ रोड, हमेशा भीड़-भाड़ से भरा हुवा l इस रास्तें और इससे सटी हुई गलियों में करीब 10 हज़ार थोक एवं फुटकर दुकाने है l सभी इसी रास्ते पर निर्भर l करीब 200 से ज्यादा खोमचे वालें यहाँ पर दूकान लगा कर अपना परिवार चलातें है l  

इस समय लोहिया मार्किट के सामने मुड़ी, आलू चाट का खोमचा लगाने वाले राम लक्ष्मण साह के लिए सबसे मुश्किल भरे दिन है, क्योंकि रास्ते को पिछले तीन महीनों से, एक सोंदर्य योजना के तहत खोद कर रख दिया गया है, जिससे इलाके में ग्राहकों का आने पहले से काफी कम हो गया है l एक धुल भरी सड़क पर खोमचों वालों से अक्सर लोग दूर ही रहतें है l ऐसा समझा जा रहा है कि गंगटोक के एम जी मार्ग से प्रेरित हो कर, अति उत्साह में, राज्य के किसी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी द्वारा बनाई गयी है, यह योजना, जिसका विरोध यहाँ के व्यापारी कर रहें है l कमाल की बात यह है कि इतने बड़े विरोध के बावजूद भी गुवाहाटी नगर निगम इस प्रकल्प तो आगे ले जाने के लिए आतुर है l व्यापारियों का मानना है कि इस रास्ते को अगर यातायात के लिए बंद कर दिया गया, तब इलाके में वर्षों से दुकानदारी कर रहें, दुकानदारों के लिए रोजी रोटी का संकट आ जायेगा l उपर से इलाकें में रहेनें वालें स्थाई वासिंदों के लिए, उनके रहवास में, गंभीर समस्याएं पैदा हो जाएगी l कुछ लोगों का मानना है कि यह एक व्यवसायिक इलाका है, और इसमें इस तरह से सौन्दर्यकरण नहीं किया जा सकता, जिसमे यातायात को पूरी तरह से बंद कर दिया जाये l उपर से यह भी माना जा रहा है कि करीब दस हज़ार वाहन यहाँ से रोजाना गुजरतें है, उन वाहनों को दूसरी और मोड़ा जाएगा, जिसके लिए निगम और यातायात विभाग के पास कोई अलग से योजना नहीं है l महात्मा गाँधी रोड और ए टी रोड जो पहले से अधिक यातायात होने से बाधित है, उस पर अगर रोजाना दस हज़ार वाहन अधिक चलने लगें, तब कोई भी कल्पना कर सकता है कि गुवाहाटी में वाहन ले कर चलना कितना दुस्कर हो जायेगा l जबरदस्त विरोध के मद्देनजर, गुवाहाटी नगर निगम ने हालाँकि, व्यापारियों को अस्वासन तो दे दिया है, कि जब तक उन्हें गुवाहाटी मेट्रोपोलिटन विकास प्राधिकरण और यातायात विभाग से ‘नो ऑब्जेक्ट’ सर्टिफिकेट नहीं मिल जाता है, वे इस प्रकल्प को आगे नहीं बढ़ाएंगे, मगर प्रकल्प को पूरी तरह से बंद करने के लिए सहमती प्रदान नहीं की है l अब बड़ा प्रश्न यह है कि क्या इलाकें के दस हज़ार लोगों का विरोध का कोई मायने नहीं है ? एक चालू रास्ते को बंद करना, ना सिर्फ वह रह रहें हजारों लोगों की रोजी रोटी का प्रश्न को पैदा करेगा ही, साथ ही नगर का विकास पूरी तरह से अवरुद्ध हो जायेगा l l मजे की बात यह है कि इसी फैंसी बाज़ार में दसों सामाजिक संस्था और कई व्यावसायिक संगठन कार्यरत है, मगर उनकी तरफ से विरोध के स्वर यहाँ के लोगों को सुनाई नहीं देते l व्यापारियों में एकता नहीं होने का खामियाजा यहाँ के वासिंदे और व्यापारी आज भुगत रहें है l वे किसके समक्ष गुहार लगाये, कौन उनकी सुनेगा l क्या विकास के यही मापदंड है ? क्या इसी को हम विकास कहेंगे ?         
वैचारिक अभिव्यक्ति या बरबोलापन
रवि अजितसरिया


वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा संविधान हमें देता है l भारत में, किसी भी नागरिक को यह अधिकार है कि वह कुछ भी व्यक्त कर सकता है, जब तक की वह किसी के मान, धर्म और सम्प्रदाय को कोई हानि नहीं पहुचता l हमारे संविधान की 19वीं धारा में भारत के नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी प्रदान की गयी है l किसी भी देश के नागरिकों की स्वतंत्रता की यह एक पहली निशानी है l अभिव्यक्ति की आज़ादी के बिना कोई भी अपने आप को स्वतंत्र नहीं कह सकता l हर नागरिक स्वतंत्र है, कुछ कहने के लिए, उसी तरह से हर नागरिक बंदी भी है उस आज़ादी के अनुशासन से, जहाँ वह, व्यक्ति, समाज और धर्म के मान मर्यादा के विरुद्ध टिपण्णी नहीं कर सकता l ऐसा करने पर उसके इस आचरण के लिए उसे कटघरे में भी खड़ा किया जा सकता है l ठीक ऐसा ही हुवा बम्बइया संगीतकार और आप समर्थक विशाल ददलानी के साथ l उन्होंने अभिव्यक्ति की आज़ादी की हदें पार कर के जैन धर्म गुरु तरुण सागरजी महाराज के विरुद्ध एक भद्दा मजाक किया, जिससे जैन धर्म के अनुयायियों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई l कुछ लोग इस पुरे मामलें को राजनीति से जोड़ कर भी देख रहें है l उनका कहना है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है, जहा सभी लोगों को अपने धर्म को मानाने का पूरा अधिकार है l राज्य भी अपनी निति निर्धारण में धर्म का कही हस्तक्षेप नहीं करता है l उनका यह भी कहना है कि अगर इस तरह धर्म गुरुओं को विधान सभा के पटल पर लाया जायेगा, तब अन्य धर्मों और आस्थाओं को मानाने वालें अनुयायियों की भी मांग उठेगी कि उनके गुरु को भी विधान सभा में प्रवचन के लिए बुलाया जाये l तब फिर भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे पर चोट पहुचेगी l उल्लेखनीय है कि तरुण सागरजी महाराज इससे पहले भी मध्य प्रदेश की विधान सभा में प्रवचन दे चुके है l पर हकीकत यही है कि विशाल ददलानी ने सोसिएल साईट ट्विटर का बेजा इस्तेमाल किया और अभिव्यक्ति की आज़ादी का अतिक्रमण कर, भारत में वास करने वालें 45 लाख जैन धर्मालंबियों के भावनाओं को आहत किया है l हालाँकि जैन गुरु पर विशाल की टिपण्णी से कोई फर्क नहीं पड़ा है, उन्होंने इसे दर किनारे कर दिया है, पर देश भर में विशाल ददलानी के विरुद्ध मामलें दर्ज हो रहें है l एक धर्म गुरु पर इस तरह से कोई टिपण्णी करे, इस बात को भारतीय धर्म परंपरा इजाजत नहीं देती, क्योंकि हर धर्म को मानाने और परिपालन के लिए भारत में पूरी आज़ादी है l इतिहास गवाह है कि भारत में नागा साधुओं और संतों के वास करने की परंपरा है l जैन मुनियों में खास बात यह रहती है कि वें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का आजीवन व्रत रखतें है, वे आजीवन इस पथ पर चल कर जैन दर्शन और शास्त्र के उपर प्रवचन देतें है l ‘कड़वे वचन’ नाम से प्रकाशित उनकी पुस्तक और उनके प्रवचन पूरी दुनिया में इसलिए प्रख्यात है,  
क्योंकि उनके प्रवचन जैन पद्धति और व्यवहार दोने के उपर एक विहंगम दृश्य पेश करतें है l विभिन्न सामाजिक विषयों पर साफ़-साफ बात रखने वालें जैन मुनि जैन दर्शन के उन आयोमों को लोगों के सामने रखते है, जिनसे आम लोगों का संपर्क है l साफगोई के लिए जाने जाने वालें क्रांतिकारी जैन मुनि तरुण सागरजी महाराज ने हरयाणा विधान सभा में धर्म, राजनीति, समाज विज्ञान और दर्शन शास्त्र पर अपनी बात रखी l बेटी बचाओं आन्दोलन ले पक्षधर रहें, तरुण सागरजी महाराज ने अपने एक फोर्मुले के जरिये, समाज से आह्वान किया कि जिन घरों में बेटियां नहीं है, उस घर में लोगो शादियाँ ना करें, संत भिक्षा न ले, और चुनाव नहीं लड़ने दिया जाये l धर्म को राजनीति का अंग बनाने का भी उन्होंने आह्वान किया l उन्होंने विधान सभा में सभी विधायकों के समक्ष कहा कि धर्म का स्थान राजनीति से बहुत ऊँचा है और धर्म राजनीति का पति है, उसके दिखाएँ हुए पथ पर चलता है, इसलिए राजनीति को एक पत्नी की भांति अनुशासन में रहना चाहिये l और एक मुनि एक लिए यह कोई बड़ी बात नहीं हो सकती है कि देश के एक समृद्ध राज्य के सत्ता के केंद्र में प्रवचन के लिए उनको बुलाया जाये, क्योंकि अपरिग्रह के व्रत रखने वालें, मुनि के लिए चाहत और नाम की अभिलाषा लेश मात्र भी नहीं हो सकती l फिर भी देश के राजनेताओं ने इस कार्य के लिए हंगामा मचा दिया और जैन साधू के विरुद्ध अपमानजनक टिपण्णी कर डाली l टिपण्णी करने वाले अपने आप को आस्तिक, नास्तिक या पंथ के समर्थक नहीं कहते, और बैगेर शारीरिक या मानसिक उलझनों से प्रेरित होते हुए एक धर्मनिरपेक्ष भारत की वकालत करतें है l इस समय देश के जैन धर्मालंबियों ने भारत के विभिन्न शहरों में रेलियाँ निकाल कर विशाल ददलानी और तहशीन पूनावाला के विरुद्ध विरोध प्रकट कर रहें है l देश के कई शहरों में उनके विरुद्ध मामलें भी दर्ज किये जा रहें है l

भारतीय संस्कृति में धर्म और उसके मर्म को समझने और समझाने के लिए समय समय पर अनेकों ऋषि मुनियों ने एक अहम् रोल निभाया है l यह सिलसिला आज भी पहले की भांति चल रहा है, जिसके बल पर भारत में धर्म निरपेक्षता का अस्तित्व सम्भव आज के परिपेक्ष्य में संभव हो सका है l एक दुसरे के धर्म के बारे में अपमानजनक टिपण्णी करना, भारतीय संस्कृति के विरुद्ध है l इस बात पर अलग से बहस अवश्य हो सकती है कि भारत जैसे एक धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म गुरुओं को विधान सभाओं में निमंत्रित करना चाहिये या नहीं l