खुशियाँ चल कर नहीं आती, लेनी पड़ती है
इस दुनिया में तनाव में कोई
रहना नहीं चाहता l इन्सान अपनी जिंदगी को भरपूर जीने के लिए तरह तरह के उपाय करता
है l तनाव को कम करने के लिए योग करता है, घुमने जाता है और इश्वर की भक्ति भी
करता है l सामाजिक तानेबाने में सम्पूर्ण रूप से जड़ित एक व्यक्ति ख़ुशी ढूंढने की
भरपूर चेष्टा करता है l नांच-गाने और तमाम तरह के मनोरंजन के साधन खोजता है l असम
में बिहू और पूजा तनाव कम करने और खुशियाँ मानाने के तो त्यौहार है l सभी जाति और
समुदाय के लिए त्यौहार खुशियाँ लाने वालें आयोजन ही तो है, जो मनोवैज्ञानिक तरीकों
से मनुष्य को प्रकृति और अन्य मनुष्य से जोड़ता है l दुनिया के अमीर से अमीर
व्यक्ति भी खुशियाँ मानाने के लिए त्यौहार और उत्सवों का सहारा लेतें है l असम में
इस समय बाढ़ की विभीषिका ने लाखों लोगों को दुखी कर रखा है l ब्रह्मपुत्र और इसकी
सहायक नदियाँ पुरे उफान पर है l हजारों लोग बेघर हो गएँ है l इस समय लोगों के दुःख
के साथ शामिल होने का समय है l जिन खर्चों को बचाया जा सकता है, उनको बाढ़ पीड़ितों
के सहायतार्थ खर्च किया जाना चाहिये l ख़ुशी की बात यह है कि कुछ स्वयं सेवी
संस्थाओं ने बाढ़ रहत का कार्य शुरू भी कर दिया है l उन्हें इसी कार्य में ख़ुशी जो
मिलती है l खुशियों को कैसे हासिल करतें है, इसके अलग अलग उपाय हो सकते है l
गुवाहाटी निवासी पवन की ख़ुशी हासिल करने की एक छोटी सी कहानी आपके साथ साँझा कर
रहा हूँ l केथोलिक स्कूल में शिक्षा और संस्कारी परिवार में परिवरिश पाने वाले पवन
एक आम व्यवसाई है, और मेहनत करके अपना परिवार पाल रहे है l व्यवसाय करने की धुन
में उन्होंने कभी भी दूसरी तरफ मुहं उठा कर नहीं देखा l अचानक एक दिन जब वे अपने
दफ्तर जा रहे थे, तब उन्होंने एक मानसिक रूप से पीड़ित महिला को देखा, जो फुटपाथ के
किनारे बैठ कर अपने बाल नौच रही थी l वह बीमार और भूखी लग रही थी l इस दृश्य ने
पवन को अंदर से झिंझोर दिया और उसने यह निर्णय लिया कि वह इस तरह के मानसिक रूप से
विक्षिप्त लोगों की सहायता करेगा l इच्छा शक्ति के आगे सब कुछ संभव है l पवन ने
चार दोस्तों के साथ बातचीत की और यह तय हुवा कि गुवाहाटी की सड़कों पर रहने वालें
मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए वे जितना हो सके करेंगे l चूँकि ऐसे लोगों
को चिकित्सा की जरुरत होती है, इस अभियान में कुछ डाक्टरों को और आश्रमों को भी
जोड़ना जरुरी था, जहाँ ऐसे लोगों को रखा जा सके l चीजें इतनी आसान नहीं थी, पर पवन
अपने अभियान के लिए अन्य लोगों से विचार करता रहा l प्रसिद्द मनोचिक्त्सक डा. जयंत दास बताते है कि मानसिक रूप
से पीड़ित व्यक्तियों को गहन चिकित्सा की जरुरत होती है, उन्हें कड़ी देखभाल की
जरुरत होती है l ऐसे लोगों को
हॉस्पिटल में भर्ती करने की भी जरुरत होती है l पवन और उसके साथियों ने जालुकबाड़ी स्थित आश्रय नामक एक आश्रम की खोज की, जो
मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को रखतें है, जिनकी एक शर्त थी कि बीमार व्यक्ति
की चिकित्सा वैगरह पहले करवाई जाय और फिर वे किसी व्यक्ति को आश्रय दे सकते है l
अभियान के लिए यह एक बड़ा झटका था l
उचित संसाधन जुटाने के लिए
आज भी पवन बराबर मानसिक रूप से पीड़ित लोगों के लिए लगे हुए है l शायद उसने अपने
जीवन का यही एक उद्देश्य बना लिया है l पवन बतातें है कि मानसिक रूप से पीड़ित
व्यक्ति जल्दी से किसी पर विश्वास नहीं करतें l उन्हें डर रहता है कि कोई उन्हें
पुलिस में कोई ना देदे l इसलिए वे अपरिचित लोगों से खाना लेने में भी डरतें है l अगर
ले भी लेतें है तब, खाने में क्या है, यह भी पूछ्तें है l शायद अपने परिजनों से
दुत्कार और जीवन के किसी बड़े हादसे की याद उन्हें बार-बार उसी राह पर ले जाती है,
जहाँ से वे भागना चाहतें है l घोर मानसिक उत्पीड़न और विद्रोह की वजह से वे घर से
भागने पर मजबूर हुए, ऐसे लोगों के लिए सड़क और फ्लाईओवर ही अपना घर है l ऐसे लोगों
के लिए आनंद, अनुभूति, ख़ुशी, हंसी के कुछ दुसरे ही मायने है l घृणा और पृथकवादी
सोच ने इए व्यक्तियों को सड़क पर पहुचाया है l दुःख की बात है कि ऐसे लोगों की
संख्या लगातार बढ़ रही है l पवन बताते है कि पिछले छह महीने में उन्होंने दस नए चहरे
देंखे है, जिन्होंने घर छोड़ दिया है l ऐसे लोगों का जीवन खाली है या भरा हुवा है,
यह कहना मुश्किल है l ऐसे लोगों के कुछ कर सकने के लिए पवन ‘सिएसाआर’ करने वाली
कंपनियों को खोज रहें है l जब कचरा बीनने वाले बच्चें ऐसे लोगों को चिड़ाते है, और
पत्थर मारते है, तब पवन को बहुत दुःख होता है l आज भी पवन ऐसे लोगों के लिए चिंतित
है l उन्होंने हाल ही में ऐसे लोगों के आश्रम में स्वतंत्रता दिवस भी मनाया l पवन
की उद्देश्य यात्रा की कहानी साँझा करने के पीछे यह भी मकसद है कि जो सम्प्पन समाज
है उस पर समाज सेवा की जिम्मेवारी अधिक है, क्योंकि वह इसी समाज से सभी संसाधन
लेता है l अमेरिका के कुछ राज्यों में समाज सेवा के जरुरी उपक्रम है, जहाँ छात्रों
को सप्ताह के कुछ घंटे समाज सेवा में देने पडतें है l गैर सरकारी एजेंसिया उन्हें
इस कार्य में मदद करती है l भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मवारी के तहत हर वर्ष
लाखों कंपनिया समाज सेवा करने का दावा तो करती है, पर वास्तविक रूप से यह सेवा असल
व्यक्तियों तक कितनी पहुचती है, यह सर्वविदित है l चूँकि कम्पनी नियामक सभी
कंपनियों को नियमानुसार सिएसाआर के लिए प्रेरित करता है, पर अभी भी ऐसा लगता है कि यह खर्च उस
लेवल का नहीं होता, जितना लाभ बड़ी कम्पनियाँ अर्जित करती है l बहरहाल, खुशियाँ
ढूंढने का यह उपाय सबसे अनोखा और न्यारा है l
तनाव कम करने ले लिए भी एनजीओ के जरिये समाजसेवा की जा सकती है l