Sunday, August 27, 2017

खुशियाँ चल कर नहीं आती, लेनी पड़ती है

इस दुनिया में तनाव में कोई रहना नहीं चाहता l इन्सान अपनी जिंदगी को भरपूर जीने के लिए तरह तरह के उपाय करता है l तनाव को कम करने के लिए योग करता है, घुमने जाता है और इश्वर की भक्ति भी करता है l सामाजिक तानेबाने में सम्पूर्ण रूप से जड़ित एक व्यक्ति ख़ुशी ढूंढने की भरपूर चेष्टा करता है l नांच-गाने और तमाम तरह के मनोरंजन के साधन खोजता है l असम में बिहू और पूजा तनाव कम करने और खुशियाँ मानाने के तो त्यौहार है l सभी जाति और समुदाय के लिए त्यौहार खुशियाँ लाने वालें आयोजन ही तो है, जो मनोवैज्ञानिक तरीकों से मनुष्य को प्रकृति और अन्य मनुष्य से जोड़ता है l दुनिया के अमीर से अमीर व्यक्ति भी खुशियाँ मानाने के लिए त्यौहार और उत्सवों का सहारा लेतें है l असम में इस समय बाढ़ की विभीषिका ने लाखों लोगों को दुखी कर रखा है l ब्रह्मपुत्र और इसकी सहायक नदियाँ पुरे उफान पर है l हजारों लोग बेघर हो गएँ है l इस समय लोगों के दुःख के साथ शामिल होने का समय है l जिन खर्चों को बचाया जा सकता है, उनको बाढ़ पीड़ितों के सहायतार्थ खर्च किया जाना चाहिये l ख़ुशी की बात यह है कि कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं ने बाढ़ रहत का कार्य शुरू भी कर दिया है l उन्हें इसी कार्य में ख़ुशी जो मिलती है l खुशियों को कैसे हासिल करतें है, इसके अलग अलग उपाय हो सकते है l गुवाहाटी निवासी पवन की ख़ुशी हासिल करने की एक छोटी सी कहानी आपके साथ साँझा कर रहा हूँ l केथोलिक स्कूल में शिक्षा और संस्कारी परिवार में परिवरिश पाने वाले पवन एक आम व्यवसाई है, और मेहनत करके अपना परिवार पाल रहे है l व्यवसाय करने की धुन में उन्होंने कभी भी दूसरी तरफ मुहं उठा कर नहीं देखा l अचानक एक दिन जब वे अपने दफ्तर जा रहे थे, तब उन्होंने एक मानसिक रूप से पीड़ित महिला को देखा, जो फुटपाथ के किनारे बैठ कर अपने बाल नौच रही थी l वह बीमार और भूखी लग रही थी l इस दृश्य ने पवन को अंदर से झिंझोर दिया और उसने यह निर्णय लिया कि वह इस तरह के मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों की सहायता करेगा l इच्छा शक्ति के आगे सब कुछ संभव है l पवन ने चार दोस्तों के साथ बातचीत की और यह तय हुवा कि गुवाहाटी की सड़कों पर रहने वालें मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के लिए वे जितना हो सके करेंगे l चूँकि ऐसे लोगों को चिकित्सा की जरुरत होती है, इस अभियान में कुछ डाक्टरों को और आश्रमों को भी जोड़ना जरुरी था, जहाँ ऐसे लोगों को रखा जा सके l चीजें इतनी आसान नहीं थी, पर पवन अपने अभियान के लिए अन्य लोगों से विचार करता रहा l प्रसिद्द मनोचिक्त्सक डा. जयंत दास बताते है कि मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्तियों को गहन चिकित्सा की जरुरत होती है, उन्हें कड़ी देखभाल की जरुरत होती है l ऐसे लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती करने की भी जरुरत होती है l पवन और उसके साथियों ने जालुकबाड़ी स्थित आश्रय नामक एक आश्रम की खोज की, जो मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को रखतें है, जिनकी एक शर्त थी कि बीमार व्यक्ति की चिकित्सा वैगरह पहले करवाई जाय और फिर वे किसी व्यक्ति को आश्रय दे सकते है l अभियान के लिए यह एक बड़ा झटका था l  

उचित संसाधन जुटाने के लिए आज भी पवन बराबर मानसिक रूप से पीड़ित लोगों के लिए लगे हुए है l शायद उसने अपने जीवन का यही एक उद्देश्य बना लिया है l पवन बतातें है कि मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति जल्दी से किसी पर विश्वास नहीं करतें l उन्हें डर रहता है कि कोई उन्हें पुलिस में कोई ना देदे l इसलिए वे अपरिचित लोगों से खाना लेने में भी डरतें है l अगर ले भी लेतें है तब, खाने में क्या है, यह भी पूछ्तें है l शायद अपने परिजनों से दुत्कार और जीवन के किसी बड़े हादसे की याद उन्हें बार-बार उसी राह पर ले जाती है, जहाँ से वे भागना चाहतें है l घोर मानसिक उत्पीड़न और विद्रोह की वजह से वे घर से भागने पर मजबूर हुए, ऐसे लोगों के लिए सड़क और फ्लाईओवर ही अपना घर है l ऐसे लोगों के लिए आनंद, अनुभूति, ख़ुशी, हंसी के कुछ दुसरे ही मायने है l घृणा और पृथकवादी सोच ने इए व्यक्तियों को सड़क पर पहुचाया है l दुःख की बात है कि ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है l पवन बताते है कि पिछले छह महीने में उन्होंने दस नए चहरे देंखे है, जिन्होंने घर छोड़ दिया है l ऐसे लोगों का जीवन खाली है या भरा हुवा है, यह कहना मुश्किल है l ऐसे लोगों के कुछ कर सकने के लिए पवन ‘सिएसाआर’ करने वाली कंपनियों को खोज रहें है l जब कचरा बीनने वाले बच्चें ऐसे लोगों को चिड़ाते है, और पत्थर मारते है, तब पवन को बहुत दुःख होता है l आज भी पवन ऐसे लोगों के लिए चिंतित है l उन्होंने हाल ही में ऐसे लोगों के आश्रम में स्वतंत्रता दिवस भी मनाया l पवन की उद्देश्य यात्रा की कहानी साँझा करने के पीछे यह भी मकसद है कि जो सम्प्पन समाज है उस पर समाज सेवा की जिम्मेवारी अधिक है, क्योंकि वह इसी समाज से सभी संसाधन लेता है l अमेरिका के कुछ राज्यों में समाज सेवा के जरुरी उपक्रम है, जहाँ छात्रों को सप्ताह के कुछ घंटे समाज सेवा में देने पडतें है l गैर सरकारी एजेंसिया उन्हें इस कार्य में मदद करती है l भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मवारी के तहत हर वर्ष लाखों कंपनिया समाज सेवा करने का दावा तो करती है, पर वास्तविक रूप से यह सेवा असल व्यक्तियों तक कितनी पहुचती है, यह सर्वविदित है l चूँकि कम्पनी नियामक सभी कंपनियों को नियमानुसार सिएसाआर के लिए प्रेरित करता है, पर अभी भी ऐसा लगता है कि यह खर्च उस लेवल का नहीं होता, जितना लाभ बड़ी कम्पनियाँ अर्जित करती है l बहरहाल, खुशियाँ ढूंढने का यह उपाय सबसे अनोखा और न्यारा है l  तनाव कम करने ले लिए भी एनजीओ के जरिये समाजसेवा की जा सकती है l         

Sunday, August 20, 2017

एक अजब शक्ति है यहाँ के लोगों में
रवि अजितसरिया

बदलाव एक अवश्यंभावी भाव है, जो मनुष्य के अंदर हर पल उमड़-उमड़ कर आतें है l करोडो वर्षों से बदलाव के चलते विश्व की बड़ी बड़ी सभ्यताओं का अंत हुवा है और एक सभ्यता के अंत के पश्चात नई सभ्यता ने जन्म लिया है, और इसी तरह से दुनिया चल रही है l विकसित देश के लोग अब उपभोक्तावादी संस्कृति से उब कर कुछ नया करना चाहतें है l विकास अपने चरमबिन्दु पर जब पहुच जाता है, तब मनुष्य के मानव मूल्यों का र्हास होने लगता है, जो एक मात्र कारण बनती है, सभ्यताओं के समाप्त होने का l इतिहास गवाह है कि जब-जब सभ्यताएं समाप्त हुई है, नए आचार-विचार और संस्कृति के साथ, उसी स्थान पर एक नयी सभ्यता ने जन्म ले लिया है l सभ्यताओं के समाप्त होने का एक अन्य कारण यह भी है कि वहां के वासिंदे अपने मूल स्वाभाव के विपरीत आचरण करने लागतें है l पाखंड और भौतिक विचारों का जब खुलें रूप से प्रदर्शन होने लगता है, तब यह तय है कि उस संस्कृति का अंत होने वाला है l जब जनता वास्तविक सामाजिक स्थितियों को नजरअंदाज करके, अपने मूल स्वरुप को खोने लगती है, तब खोखले पाखंड और भ्रम मनुष्य के चिंतन में हावी होने लगता है और वह उसी को अपने मूल विचार मानाने लगता है l अभी भारत के लोग उपभोग्तावादी संस्कृति का अनुसरण कर रहे है l देश में बड़े-बड़े शहरों में मॉल खुलने लगें है, जिनमे एक ही स्थान पर सभी वस्तु उपलब्ध रहती है l इसके विपरीत छोटे शहरों में भी एक अपनी दुनिया है l पर जब वें बड़े शहरों की चकाचौंध को देखतें है, तब एकाएक उनका मन भी इसी तरह के शहर की कल्पना करने लगता है l भौतिक युग जो ठहरा l वे भी अपने निकटतम कस्बों और शहरों में जा कर खरीददारी करतें है l जैसे पूर्वोत्तर की फैंसी बाज़ार मंडी l फैंसी बाज़ार, पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी मंडी l हमेशा भीड़-भाड़, भरपूर व्यावसायिक गतिविधियाँ, लोगों का हमेशा आवागमन l किसी भी बड़े शहर के चरित्र अनुरूप यहाँ भी पूर्वोत्तर के अलग-अलग जगहों से क्षुद्र व्यवसाइयों का जमावड़ा लग जाता है, जो पुरे दिन चलता है l ऐसे व्यवसाई हाथों में बड़े-बड़े झोले लेकर चलतें है और फिर दिन भर खरीददारी करके वापस अपने गंतब्य स्थान को लौट जातें है l उपभोक्तावादी संस्कृति के पनपने से अब गुवाहाटी के आस पास के गावों के लोगों की भी नई-नई चीजों की मांग बढ़ गई है, जिसकी वजह से गावों की छोटी दुकानों में भी अब कई तरह की चीजें उपलब्ध रहने लगी है l समय के साथ उपभोक्ताओं का खरीदादारी के स्वाद बदलने से अब दुकानदारों को भी मार्किट मे नई आने वाली चीजों को विक्रय के लिए उपलब्ध करवाना पड़ता है l तभी जा कर एक उपभोक्ता खरीदारी करके खुश होतें है l दरअसल में भारतीय उपभोक्ताओं के पास खरीदने के लिए बहुत ज्यादा चीजे नहीं होती, जिन्हें वें रोजाना सेल्फ में ढूंढ़ते है, पर वे अपने आप को परखने की कौशिश ज्यादा करतें है कि वे भी पश्चिम की तरह पेकेट फ़ूड खाए, ठंडा पिए और विंडो शौपिंग करें l देखा-देखी करने की आदत हम भारतियों में कूट कूट कर भरी पड़ी है l एक ऐसी सभ्यता का अनुसरण, जिसे भारतीयों ने कभी देखा नहीं l हां, अंग्रेजी फिल्मों ने लोग जरुर देख लेतें है  
कि कोई अपने दिनोंदिन जरुरत वाली चीजे किसी मॉल से खरीद रहा होता है l बस एक आम भारतीय भी उस चरित्र जैसा बनाने का प्रयास करने लग जाता है l टोपी पहन कर मॉल में जाना और सेल्फ से खुद से सामान बास्केट में डालना और फिर कतार में खड़े हो कर बिल बनवाना l यह पूरी तरह से पश्चिम की कोपी है l यह अलग बात है कि इसमें कुछ अच्छी चीजें भी है, जिनको हमने बुरी के साथ आत्मसात कर लिया है l अर्थ मानो जीवन का सबसे महतवपूर्ण हिस्सा बन गया है l जीवन मूल्य, संस्कृति और प्रेरणा देने वाला हमारा इतिहास l अब इन सब चीजों से भारतियों को कोई मतलब नहीं l उपभोक्तावादी संस्कृति, जिसकी बेल पर चढ़ कर हम अपने आप को ज्यादा मोर्डेन दिखलाने की चेष्टा कर रहें है, वह भारत के कौने-कौने में उग आई है l अब इससे बचा नहीं जा सकता l अनंत संभावनाओं वाला देश भारत एक उपभोक्ता देश है l विश्व के अति विकसित राष्ट्रों की उपभोक्ता सामान बनाने वाली कंपनियों ने यहाँ भारत में निवेश करके यहाँ भी उन उत्पादों का निर्माण शुरू कर दिया है, जिससे विदेशी लोग उब चुकें है l मसलन कोका-कोला से पश्चिमी देशों के लोग उब चुकें है l अब यह उत्पाद सिर्फ विकासशील देशों में बिकता है l विदेश भ्रमण करने वालें लोगों को भली भांति पता है कि अमेरिका में एक कोक की कितनी कीमत है, करीब दो डॉलर l फिर भी यह उत्पाद भारत में धरल्ले से बिकता है l उस उत्पाद के विज्ञापन देख कर बच्चे बड़े खुश होतें है l भारत देश को विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का खिताब बताया गया है l यह ख़िताब देने वाली वे ही एजेंसियां है, जो उन्ही देशों में ऑपरेट करती है, जहाँ से ये तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता सामान बिकते है l बड़ा भारी गड़बड़झाला है l मजे की बात यह है कि सिर्फ सामानों तक यह संस्कृति सिमित रहती, तब कोई बात नहीं थी, इसने हमारे विचारों और तहजीब तक को रौंद डाला है l शिक्षा, स्वास्थ मिडिया, समाज, सभी l मानो वाइरस घुस गया है l हमारी शादी विवाह भी अब इस संस्कृति की आंच से अछूते नहीं रहें है l शादियाँ अब महँगी होने लगी है, क्योंकि उसमे आधुनिकता का तड़का जो लग गया है l

कहते है कि अब इसे रोका नहीं जा सकता है l नया जमाना पहले के ज़माने से अच्छा और आराम दायक है l प्रगतिवादी कहतें है कि शिक्षा और स्वास्थ ने भारी प्रगति की है l लोगों को रोजगार और इलाज़ मिला, जिससे एक आम आदमी के लिए रहन-सहन सहज हो गया l मानवसंसाधन के निर्माण  की दिशा में यह एक महवपूर्ण कदम है l रोजगार के सृजन से देश की गरीबी कुछ कम हुई है l प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ी है l ऐसे में इस तरह की अर्थव्यवस्था फिलहाल भारत के लिए लाभदायक है l हमें इसी को पकड़ कर आगे बढ़ना है l महत्वपूर्ण बात यह है कि एक पुरातन सभ्यता के झंडाबरदार होने के नाते, अब यह हमारी जिम्मेवारी है कि हम अपने विचार, संस्कृति और तहजीब को संजोने के लिए उन मूल्यों को जीवित रखे, जिससे हम जिन चीजों से जाने जातें है, वें हमारे यहाँ जीवित रह सके l          

Friday, August 11, 2017

स्वंतत्रता दिवस के बदलते मंजर
रवि अजितसरिया

इस पंद्रह अगस्त को देश सत्तरवा स्वतंत्रता दिवस मनायेगा l स्‍वतंत्रता दिवस समीप आते ही चारों ओर खुशियां फैल जाती है। लोग तरह के आयोजन करने लागतें है l आजादी के इस पर्व पर पुरे देश में जहाँ हर्ष और ख़ुशी का वातावरण रहता है, वही पिछले 30 वर्षों से असम के लिए स्वतंत्रता दिवस महज एक शासकीय जलसा जैसा होता है, जहाँ पूरा सरकारी व्यवस्था पुरे जोश के साथ इस पर्व को मनाती है l राज्‍य स्‍तर पर विशेष स्‍वतंत्रता दिवस कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें झंडातोलन, मार्च पास्‍ट और सांस्‍कृतिक आयोजन शामिल हैं। चूँकि राज्य के मुख्‍यमंत्री इस कार्यक्रम  की अध्‍यक्षता करते हैं, सुरक्षा का जबरदस्त इन्तेजाम होता है जिसकी वजह से इस सरकारी जश्न में आम आदमी की भागीदारी बेहद कम होती है l आम आदमी की भागीदारी नहीं होने की मुख्य वजह है, सरकारी उदासीनता l राज्य सरकार द्वारा लोगों में विश्वास पैदा करने में विफल रहने के कारण एक बंद जैसा माहोल असम में हर वर्ष विराज करता है l सड़क पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट अधिक नहीं होने के कारण लोग एक स्थान से दुसरे स्थान पर नहीं जा सकते l कर्मचारी वर्ग पिछले तीस वर्षों से इस दिन घर पर छुट्टी मनाता आया है l उनके लिए स्वतंत्रता दिवस महज एक छुट्टी का दिवस है l हर वर्ष पूर्वोत्तर के उग्रवादी संगठन, स्वंत्रता दिवस के बहिष्कार की अपील करतें है, और लोगों पर एक मानसिक दबाब डाल कर उन्हें घरों में रहने को मजबूर भी करतें है l इस धमकी भरी अपील की वजह से राज्य भर में स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम सरकारी रूप में ही मनाये जातें रहें है l इन वर्षों में गुवाहाटी के कई इलाकों में स्वतंत्रता दिवस का जश्न पुरे जोश के साथ मनाया जा रहा है l फैंसी बाज़ार जैसे इलाके में जहाँ कभी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सन्नाटा विराजता था, वहां पिछले कई वर्षों से स्वंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस, दोनों के मौकों पर, समूचा इलाका देश भक्ति के गीतों से गूंज उठता है l अब फैंसी बाज़ार में हर वर्ष मारवाड़ी युवा मंच के बेनर के तले यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है l मारवाड़ी युवा मंच के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप जैन, जिनकी अध्यक्षता में पहली बार सन 2002 के दौरान पहली बार खुले में स्वतंत्रता दिवस का कार्यक्रम आयोजित किया गया था, उनको इस बात की ख़ुशी है कि जिस पहल को उन्होंने सन 2002 में शुरू की थी, आज वह सार्थक होती दिखाई दे रही है l उल्लेखीनीय है कि फैंसी बाज़ार में खुले में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर झंडोतोलन और सांस्कृतिक कार्यक्रम करने की शुरुवात करने के श्रेय मारवाड़ी युवा मंच को ही जाता है l अब तक फैंसी बाज़ार, आठगांव, कुमारपाड़ा, इत्यादि इलाकों में वाकायदा स्टेज बना कर सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है और बड़ी संख्या में आम लोग शामिल होतें है lछोटे पैमानों पर शैक्षिक संस्‍थानों, आवास संघों, सांस्‍कृतिक केन्‍द्रों और राजनीतिक संगठनों द्वारा भी स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सन अस्सी और नब्बे के दशक में जब उग्रवादियों की स्वतंत्रता दिवस के बहिष्कार की धमकी आती थी, तब भय और अविश्वास की वजह से लोग इस दिन घरों से बाहर भी नहीं निकलतें थें l  
बच्चें अपने अभिभावकों से पूछ्तें थें कि कब उन्हें स्वतंत्रता दिवस मानाने का मौका मिलेगा l वे भी तिरंगे को लेकर झूमना चाहतें थे l प्रत्यक्षदर्शी बतातें है कि उन दिनों एक हफ्ते पहले से ही सुरक्षा के बड़े इन्तेजाम होने लगतें थे l बम फटने की घटना आम थी l स्वतंत्रता दिवस के दिन लोगो घरों में दुबके रहतें थे l इन 15 वर्षों के के दौरान धीरे धीरे लोगों में सुरक्षा का विश्वास जमने लगा और आज लोगो मुक्त रूप से बड़े पैमाने पर स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम आयोजित करने लगे है l अब लोगों के घरों के उपर तिरंगा लहराता हुवा दिखाई देने लगा है l बच्चे प्लास्टिक और कागज के झंडे लिए झूमते हुए दिखाई देतें है l इतना नहीं ही, लोग अपने चहरे पर तीन रंगों की आकृतियाँ भी गुदवा कर ख़ुशी जाहिर करतें है l तीन रंगों के बेलून, पोशाकें, जुलुस की शक्ल में भारत माता का जयघोष और मोटर साइकिल रेलिया, आज स्वतंत्रता दिवस के पर्व का हिस्सा है l बुलेट मोटर साइकिल रेली हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी गुवाहाटी के स्वतंत्रता दिवस का हिस्सा बनेगी l इस बदलती फिजा का आनंद अब लोग लेने लगें है l वे मुक्त रूपसे उस दिन विचरने लगें है l यह बात अलग है कि शासन की तरफ से स्वतंत्रता दिवस के एक हफ्ते पहले से ही प्रमुख मार्गों पर सुरक्षा के कड़े बदोबस्त किये जाते है, जिससे यह पता लग जाता है कि स्वतंत्रता दिवस आ रहा है, घर पर ही दुबके रहो l इस तरह का मोनोभाव लेकर एक आम आदमी फिर भी स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम को अपने लेवल पर आयोजित करने को आतुर रहता है l यह उसकी देश भक्ति ही तो है, जो उसे धमाकों के सायें में भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रेरित करती है l चूँकि स्वतंत्रता महज भौगोलिक आजादी के नाम नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति, एक देश की अस्मिता से जुडी हुई भावना है, जो उसे निरंतर प्रेरित करती है, आजादी के दिन को मानाने के लिए l सभी यह मानते है कि ये आयोजन और भी पड़े पैमाने पर होने चाहिये, जिससे ऐसा लगने लगे कि यह एक जनता का पर्व है ना कि शासन का l सभी प्रमुख शासकीय भवनों को रोशनी से सजाया जाता है। आम आदमी को भी इस दिन विशेष तौर पर अपने घरों, रास्तों को सजाने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिये l तिरंगा झण्‍डा घरों तथा अन्‍य भवनों पर जब फहराया जाता है, तब किसी का भी सीना चौड़ा हो जाता है और वह अदब से उस झंडे को सलाम करने लग जाता है l स्‍वतंत्रता दिवस, 15 अगस्‍त एक राष्‍ट्रीय अवकाश है, इस दिन का अवकाश प्रत्‍येक नागरिक को बहादुर स्‍वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदान को याद करके मनाना चाहिए। स्‍वतंत्रता दिवस के एक सप्‍ताह पहले से ही विशेष प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा देश भक्ति की भावना को प्रोत्साहित करने क लिए किया जाना चाहिये l यूँ तो सरकार द्वारा रेडियो स्‍टेशनों और टेलीविज़न चैनलों पर इस विषय से संबंधित कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं। शहीदों की कहानियों के बारे में फिल्‍में दिखाई जाती है और राष्‍ट्रीय भावना से संबंधित कहानियां और रिपोर्ट प्रकाशित की जाती हैं, मगर ये कार्यक्रम महज एक औपचारिकता भर बन कर रह गएँ है l जब तक आम लोग इस आजादी के पर्व को  

पुरे दम ख़म और उल्लास से नहीं मनाएंगे, ऐसा नहीं लगेगा कि हम आजादी के सही मायने को समझ पायें है l पिकेटिंग, जुलुस, प्रतिवाद यात्रा में भाग लेने वाले प्रतिभागियों और जेलों में बंद रहने वालें कैदियों द्वारा दिए गए बलिदानों को याद करने का समय है, आज़ादी का यह दिन l हो सकता है कि राजनीति के गलियारे से विचलित करने वाली घोषणाएं, कुछ क्षणों के लिए मन में कड़वाहट ले कर आये, पर हमारी जड़े इतनी मजबूत है कि हमें कोई हिला नहीं सकता, हमें कोई तोड़ नहीं सकता l और बच्चन जी के शब्दों में ‘है अँधेरी रात पर दिवा जलाना कब मना है’ l      

Friday, August 4, 2017

जीएसटी के लागु होने के एक महीने बाद का परिदृश्य
रवि अजितसरिया
                               वीरान पड़ी थोक मंडिया

भारत में इस समय आम आदमी, खास करके देश के मंझले और खुदरा व्यापरियों के मुश्किल भरें दिन चल रहें है l यह बात हम इसलिए कह रहे है क्योंकि व्यापरियों के माथे पर चिंता की लकीरे साफ़ दिखाई दे रही है l उन्हें चिंता है अपने भविष्य की, जो इस समय उन्हें चुनौती दे रहा है l हम बात कर रहे है जीएसटी के एक महीने के बाद के परिदृश्य की, जो भयावह हो कर व्यापारियों की रातों की नींद हराम कर रहा है l लागू होने के एक महीने बाद से अब तक जीएसटी पर सब कुछ साफ़ नहीं है l बाज़ार जाने वाले लोगों को अबतक यह समझ नहीं आ पा रहा है कि इसके लागू होने से क्या सस्ता हुआ है और क्या महंगा l थोक मंडियां वीरान पड़ी हुई हैं l खुदरा विक्रेता अभी जीएसटी का सॉफ्टवेयर लगाने में व्यस्त हैं l खरीदारी करने वाले लोग भी अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं कि जीएसटी के आने से उनके बज़ट पर क्या फर्क़ पड़ा है l जीएसटी लागू होने के एक महीने बाद बाजारों में पहले जैसी अफरातफरी तो नहीं, लेकिन व्यापार अब भी पटरी पर नहीं लौटा है। खासकर फेस्टिव सीजन की सप्लाइ के मद्देनजर हालात खराब बताए जा रहे हैं। रक्षा बंधन, दुर्गा पूजा, दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों के नजदीक आने पर हर वर्ष इस समय बाजारों में गहमा-गहमी बढ़ आती है, जो इस वर्ष दिखाई नहीं दे रही है l इस ख़राब हालात के लिए जीएसटी को जिम्मेवार बताया जा रहा है l सेल्स पिछली सीजन के मुकाबले 50% से भी कम हो गई है और त्योहारी सीजन की सप्लाइ को लेकर चिंता बढ़ रही है। हालांकि अधिकांश रजिस्टर्ड डीलर जीएसटी में माइग्रेट कर चुके हैं, लेकिन रेट, एचएसएन कोड, रिवर्स चार्ज और बिलिंग को लेकर कन्फ्यूजन कायम है। ट्रांसपोर्टेशन में सुधार हुआ है, लेकिन बुकिंग अब भी मई-जून के मुकाबले 30-40 प्रतिशत कम बताई जा रही है। इस पूरी कवायद में एक बात साफ़ है कि आम आदमी भी इस असमंजस में है कि जीएसटी की बात करे, या फिर व्यापारियों के असहजता को समझ कर उनका साथ दे l ग्राहक भी सरकार द्वारा जीएसटी के लागु होने के अत्याधिक विज्ञापन किये जाने से, इस आशा में है कि प्रत्येक वस्तुओं के दाम कम होंगे l व्यापारियों ने जीएसटी में सरकार का साथ दे कर पहले से ही इस नयी प्रणाली को समझने का प्रयास किया है, पर बड़ी बात है कि एक महीने के बाद भी व्यापरियों के पास जीएसटी की पूरी समझ नहीं है l छोटे और माध्यम दर्जे के व्यापारियों का कहना है कि वे मॉल बेचे या जीएसटी को तमिल करने में अपना पूरा वक्त खातों को मेन्टेन करने में लगायें l कुछ व्यापारियों ने पार्ट टाइम अकाउंटेंट भी रख लिए है l पर छोटे व्यापरियों की स्थिति एक तरफ नदी और दूसरी तरफ खाई वाली है l अगर अकाउंटेंट रखते है, तब व्यापार पर भारी दबाब पड़ेगा, और नहीं रखते है, तब पुरे दिन जीएसटी को लेकर माथापच्ची करतें रहो l 

कुछ व्यापरियों का कहना है कि जीएसटी के नए पंजीकरण करने के लिए और बैंक अकाउंट की जरुरत रहती है, और उसे खुलवाने के लिए ट्रेड लाइसेंस लेने की आवश्यकता रहती है l जिन व्यापारियों के पास ट्रेड लाइसेंस नहीं थे, उन्होंने जब अपना आवेदन किया, तब उनको एक महीने का समय दिया है l इस टालमटोल रवैये ने व्यापरियों को परेशान कर रखा है, और उनकों घूस दे कर जल्दी लाइसेंस बनवाने को मजबूर भी किया जा रहा है l एक भुगत भोगी व्यापारी जब अपना लाइसेंस नवीनीकरण करवाने निगम दफ्तर पंहुचा, और सात दिनों तक चक्कर लगाने के बावजूद भी उनका लाइसेंस नवीनीकरण नहीं किया गया l यह तो सिर्फ एक बानगी भर है, ऐसे मामले अभी सामने आ रहें है, कि पूरी जीएसटी प्रणाली को ही अपने होने पर शर्म आ जाये l पुरे भारत वर्ष में एक कर प्रणाली लागु करने के वादे के साथ आने वाली सरकार ने जीएसटी को तो लागू कर दिया पर उसके साथ, वर्षों से लकड़ी के घुन की तरह लगे हुए भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए विभिन्न विभागों से इन्स्पक्टोर्राज को ख़त्म करने में असफल रही है, जिसका खामियाजा आज व्यापारी भुगत रहें है l मोदी सरकार आने के पश्चात केंद्र सरकारों के दफ्तरों में वर्क-कल्चर शुरू हो कर तेजी से दिखाई देने लगा है l यह स्थिति असम में क्यों नहीं दिखाई देती l भाजपा सरकार आने के अभी एक वर्ष से ज्यादा हो चुके है, पर अभी भी असम सरकार के कार्यालयों में कर्मचारी पुराने तरीकों से ही कार्यालय चला रहें है l मजे की बात है कि राजस्व उत्पत्ति करने वाले कार्यालयों में भी कार्यों में तेजी दिखाई नहीं दे रही है l ऐसे में एक कर एक प्रणाली की बारीकियों को व्यापारियों को कौन समझाएं l राहत की बात यह रही कि सरकार ने व्यापारियों को दो महीने की रियायत दे दी, वर्ना तो देश भर में उथल-पुतल मच जाती l

इधर खबर यह है कि देश भर में 20 अगस्त तक करीब 71 लाख व्यापारी जीएसटी में माइग्रेट कर चुके होंगे l यह संख्या इस माह के अंत तक 1 करोड़ तक पहुचने की उम्मीद है l कहने को तो जीएसटी में माइग्रेट करना आसान है, पर जब व्यापारी एक बेंक अकाउंट खोलने जाता है, तब उसको ट्रेड लाइसेंस नहीं होने के लिए लौटा दिया जाता है l इसी तरह से, जब व्यापारी ट्रेड लाइसेंस के लिए निगम के दफ्तर जाता है, तब उसका वहां स्वागत नहीं किया जाता है, बल्कि एक गैर-जरुरी आगंतुक की तरह व्यवहार किया जाता है l उसके लिए उस कार्यालय में कोई बैठने तक की भी व्यवस्था नहीं है l वहां से हताश हो कर व्यापारी किसी दलाल की शरण में चला जाता है और अपना काम करवाता है l भारतवर्ष में अभी भी हर सरकारी कार्यालय में एक दलाल चक्र मौजूद रहता है, जो कार्य की सुगमता के आड़े आता है l जीएसटी और शासन द्वारा घोषित की गई अन्य महावाकंक्षी योजनाओं की सफलता के लिए भ्रष्टाचार के इस नेटवर्क को ताड़ना नितांत आवश्यक है l