Friday, July 30, 2021

कैसे होगी एक दुसरे की भाषा संस्कृति की रक्षा

 

कैसे होगी एक दुसरे की भाषा संस्कृति की रक्षा

पिछले दिनों असम में तीन चार बड़ी बड़ी बातें और घटनाये हो गयी, जिस पर देश और दुनिया की नजरें बनी रही l सबसे पहले राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत का एक ग्रंथ विमोचन सभा में एनआरसी और नागरिकता संसोधन कानून पर विस्तार से बोलना, फिर गृह मंत्री का गुवाहाटी की एक सभा में पूर्वोत्तर की विकास यात्रा और ख़त्म होता पूर्वोत्तर के लोगों में आक्रोश, पर एक लम्बा भाषण देना l फिर तीसरी बड़ी घटना सिलचर-मिजोरम बॉर्डर पर घटी, जिसमे असम पुलिस के छह जवान मिजोरम की तरफ से हुई गोलीबारी में मारे गए l तीनों बड़ी बात थी, असम के लिए l कहने को तो पूर्वोत्तर देश में विकास यात्रा अटल बिहारी बाजपेयी के समय से ही शुरू हो गयी थी, जब उन्होंने स्वर्ण चतुर्भुज योजना की शुरुवात की थी, पर असम कार्य तब शरू हुवा, जब केंद्र को ऐसा लगा कि पूर्वोत्तर के 25 सांसद एक ही पार्टी से चुन कर आ जाय, तब यह एक अतिरिक्त लाभ होगा l योजना को पूरा करने के लिए, दिल्ली से लगभग हर 15 दिनों में कोई ना कोई मंत्री, अधिकारी या संसदीय टीम पूर्वोत्तर आने लगी l जैसा की अनुमान था, भारतीय जनता पार्टी को बहुत फायदा मिला, पूर्वोत्तर में विकास का कार्य शुरू हो गया था l सड़क, बिजली और आधारभूत संरचना में के नया उछाल दिखाई पड़ने लगा l स्वास्थ्य सेवाओं ने एक नई इबारत लिख दी l आवागमन इतना सुलभ हो गया कि देश के किस इभी कौने से पूर्वोत्तर के लिए सीधी फ्लाइट मिल रही है l पर इन सभी के बीच आंदोलनों और नारों में कभी भी कमी नहीं आई l समय समय पर सड़कों को जाम करके आंदोलन किसी ना किसी मुद्दे को ले कर होते ही गए l पूर्वोत्तर में वास करने वाली जनजातियों के लिए जिस स्थान पर वें रहती है, वही उसका देश हैं l इस सच्चाई के कई कारण है-एक, उनकी एक अलग संस्कृति और जैव विविधता है l दूसरा, प्रकृति के नजदीक होने की वजह से उनका खान-पान में पृथकता और एक सामूहिक लोकजीवन है l उनकी यह शैली हर किसी को रास नहीं आती l इसलिए जब भी पूर्वोत्तर में आंदोलन होते है, वें तीखे और रक्त रंजित बन जाते हैं l सिलचर में भी कुछ ऐसा ही हुवा है l सीमा विवाद इतना बढ़ा कि गोलियां चल गयी l विश्वास नहीं होता कि घटना के दो दिन पहले देश के गृह मंत्री पूर्वोत्तर के सभी मुख्यमंत्री से शिल्लोंग में बैठक कर रहे थें l उस बैठक में सभी नेताओं ने आपसी समझ से सीमा विवाद को सुलझाने का वायदा भी किया था, पर हुवा उसका उल्टा l मिजोरम से सीमा विवाद का मुद्दा दशकों पुराना हैं l

संघ के मुखिया मोहन भागवत ने अभी कुछ दिनो पहले यह कह कर कोहराम मचा दिया था कि सभी भारतीय लोगों का डीएनए एक ही हैं l गुवाहाटी की सभा में उन्होंने कहा था कि भारतीय लोगों को धर्म निरपेक्षता, समाजवाद और प्रजातंत्र किसी से सीखने की जरुरत नहीं है, यह उनकी परंपरा हैं l एनआरसी और नागरिकता संसोधन कानून पर उन्होंने एक बड़ी बात रखी कि हर देश का एक सिटीजन डाटा होता है, जिसके बल पर वह अपनी नीतियों का निर्धारण करता हैं l असम और पूर्वोत्तर के संदर्भ में उन्होंने कहा कि विभाजन में पाकिस्तान मुसलमानों को आधा पंजाब और आधा बंगाल मिल गया, पर असम की एक इंच भूमि भी उनको नहीं मिली, जिसका आभास उनको था, और इसलिए बड़ी संख्या में शरणार्थी असम में सन 47 के पश्चात आते गए l सन 30 बाद मुसलमानों ने बढाई अपनी जनसँख्या वाली टिपण्णी भी इस ओर इशारा करती है कि दो संतानों वाली नीति की घोषणा, एनआरसी और नागरिकता संसोधन कानून, सभी पर सरकार एक साथ कार्य कर रही है l असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा के अनुसार नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) सताए गए लोगों को विस्थापित करने का कानून हैं l उनके अनुसार इस कानून को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है, जिसे ख़त्म जरुरी है l असम के लोगों की भाषा संस्कृति को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा l जब हिमंत यह कहते है कि हम अपनी सभ्यता, धर्म और पहचान की रक्षा करनी होगी, तब एकाएक देश के गृह मंत्री अमित शाह और उनके बयान में एकरूपता नजर आ रही है l हाल की एक सभा में अमित शाह ने कहा था कि पुर्वोत्त्तर के लोगों की भाषा संस्कृति की रक्षा केंद्र करेगा l  

अब बात करते है असम समझोते की धारा छह पर l कुछ बुद्दिजीवी यह मानना है कि असम समझोते की धारा छह को लागु करने के उद्देश्य से अगर नए कानून लाये गए है, जिसमे भाषा संस्कृति को संरक्षित करने के उद्देश्य से नए कानून लाने का प्रावधान है, तब असम में रहनी वाली गैर असमिया जनसँख्या द्वितीय श्रेणी की नागरिक बन जाएगी, खासकरके, वें लोग, जो सन 1950 के बाद असम आये है l भूमि खरीद, राजनीतिक हिस्सेदारी और रोजगार में भारी समस्या उत्पन्न हो सकती है l ‘असमिया कौन’ की परिभाषा बनने के पश्चात, मूल निवासी और गैर मूल जैसे शब्दों का क़ानूनीकरण किया जायेगा, जिससे पात्रता और अपात्रता निर्धारित की जाएगी l अनुछेद 370 के हटने के पश्चात,कुछ लोगों के लिए इस तरह का विचार काफी हास्यापद भी लगता है l

पूर्वोत्तर में एक मिश्रित समाज हमेशा से विराज करता आया है l अलग अलग जातियां और जनजातियाँ अलग अलग समय में असम में प्रवजन कर के आयी थी l कुछ 800 वर्षों पहले आये, कुछ 600 तो कुछ 400, पर प्रवजन रुका नहीं l पूरी दुनिया में प्रवजन को लेकर हमेशा से ही दो तरह की मान्यताएं है, जिस पर शासन कानून बनाता है l एक आर्थिक आभास, जिससे मानवीय व्यवहार संचालित होता है, दूसरा नोकरशाही का यह विश्वास कि उनके द्वारा अगर कारगार नियम बनाये गए, तब प्रवजन को रोका जा सकता है l इस तरह से दोनों मान्यताएं, इस ओर कदम बढाती है कि प्रवजन हुए लोगों के प्रवेश और निवास को संचालित करने में कोई भी सरकार कभी भी सफल हो सकती है l पर वास्तविक स्थिति इससे बिलकुल अलग है l आर्थिक कारण एक बड़ा कारण है, जिसकी वजह से प्रवजन होता है l असम और पूर्वोत्तर में रहने वाले विभिन्न भाषा-भाषियों ने इसे अपने घर बना लिया है l उनकी कई पढियाँ यहाँ मर-खप गयी l कुछ के पास दस्तावेज है, तो बहुतों के पास नहीं भी है l अमेरिका और मेक्सिको जैसी स्थिति यहाँ कभी भी नहीं रही l यहाँ के सहज सरक स्थानीय लोगों ने आगे बढ़ कर हिंदी पट्टी के लोगों को गले से लगाया है l यही असम के सामाजिक तानाबाना है, जो कभी  टूट नहीं सकता l