Friday, August 27, 2021

कुछ डर, कुछ शंका और एक बड़ी प्रतिस्पर्धा से मध्यम वर्ग जुंझ रहा है

 

कुछ डर, कुछ शंका और एक बड़ी प्रतिस्पर्धा से मध्यम वर्ग जुंझ रहा है 

देश में दो चीजें अभी मुख्य रूप से लोगों के दिलो-दिमाग पर छाई हुई है l एक, बच्चों का भविष्य और दूसरा, जीएसटी l कोरोना काल के आने और अधिक समय तक टिके रहने के पश्चात देश में अचानक कुकुरमुते की तरह ऑनलाइन पढाई करवाने वालों की बाढ़ सी आ गयी है l कोई कह रहा है समझ कर पढ़ेगा तो समझेगा, तो कोई कह रहा है, पढाई में पार्टनर बना लेने से बोझ कम होगा l पर ऑनलाइन पढाई करवाने के नए महंगे एप्प रोजाना लांच हो रहे है l इस नयी प्रणाली से बच्चों के माता-पिता पर मानसिक और आर्थिक बोझ बढ़ गया है l बच्चा कौन से संकाय में जाएगा, इसका निर्णय कक्षा 8 से ही ले लिया जाता है, और फिर शुरू होता है, स्कूल के बाद अलग से ट्युशन l कोई भी कल्पना कर सकता है कि 8 से 10 घंटे तक स्कूल में बिताने के पश्चात बच्चे की हालत क्या होती होगी और फिर स्कूल के पश्चात ट्युशन l कोरोना काल के पश्चात शिक्षा के नए संसथान खुल गए है, जो बढ़िया ऑनलाइन पढाई करवाने का दावा कर रहे है l पर जब स्कूल पूरी तरह से खुल जायेंगे, तब किस तरह का परिवेश होगा स्कूलों में होगा, यह अभी कोई नहीं कह सकता l चीन में हाल ही में निजी शिक्षा कंपनियों को नॉन प्रोफिटिंग कंपनी बनाने का निर्देश दिया गया है, जिसे स्टॉक मार्किट में लिस्टिंग भी नहीं किया जा सकेगा l भारत में अभी स्थिति यह है कि अभिभावक यह सोचते है कि स्कूलों में शिक्षक जो पढ़ाते है, उससे नंबर अधिक नहीं आ सकते, प्राइवेट ट्युशन ही एक विकल्प है l कई छात्र दो से अधिक ट्युशन भी करते है l ‘कोटा फैक्ट्री फेनोमेनन’ देश भर में पहले से ही फैला हुवा है l बच्चों पर दबाब अधिक है l 99 नंबर पाने की जद्दोजहेद में, उनका बचपन कही खो सा गया है l उपर से ऑनलाइन पढाई करने का ख्वाब कम्पनियाँ जो दिखा रही है, वें माता-पिता पर भारी पड़ रहे हैं l कोरोना की वजह से दुनिया भर में स्कूल बंद होने से 1.5 अरब से अधिक बच्चे और युवा प्रभावित हुए हैं। इनमें से कई छात्र अब कक्षाएं ले रहे हैं और साथ ही ऑनलाइन रूप से सोसिएल वेबसाइट पर भी अधिक सर्च कर रहे हैं । वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर अधिक समय बिताने से बच्चे ऑनलाइन यौन शोषण और फेक साइटों की चपेट में आ रहे हैं l दोस्तों के साथ मेल-मिलाप कम होने से और आमने सामने के संपर्क में कमी आने से बच्चों और युवा ज्यादा समय मोबाइल और कम्प्यूटर पर देना शुरू कर दिया है l इस समय स्कूलों के यह जरुरी हो जाता है कि घर से सीखने वाले बच्चों के लिए नई जरूरतों को प्रतिबिंबित करने के लिए वर्तमान सुरक्षा नीतियों को अपडेट करें, अच्छे ऑनलाइन व्यवहारों को बढ़ावा देना, उनकी निगरानी करना और यह सुनिश्चित करना कि बच्चों की स्कूल-आधारित परामर्श सेवाओं तक निरंतर पहुंच है। माता-पिता यह सुनिश्चित करें कि बच्चों के उपकरणों में नवीनतम सॉफ़्टवेयर अपडेट और एंटीवायरस प्रोग्राम हैं l वें बच्चों के साथ खुले संवाद करें कि वे कैसे और किसके साथ ऑनलाइन संवाद कर रहे हैं l  इंटरनेट का उपयोग कैसे, कब और कहाँ किया जा सकता है, इसके लिए नियम स्थापित करने के लिए बच्चों के साथ काम करना l इन्टरनेट संवाद के समय जो अनावश्यक संवाद उभर के आता है, उनसे कैसे बचे, इसकी शिक्षा और निगरानी अभिभावकों को रखना होगा, ताकि बच्चे संकट के संकेतों के प्रति सतर्क रहें जो उनकी ऑनलाइन गतिविधि के संबंध में उभर सकते हैं l   

आइये, अब जीएसटी की तरफ रुख करते है l देश में इस बात पर हमेशा से जोर दिया जा रहा है कि थोक, मंझले और फुटकर व्यापरियों को कर कैसे संग्रह में भागीदार बनाया जाय l इस बात को ध्यान में रखते हुए ही जीएसटी प्रणाली को लागु किया गे l जीएसटी एक आने के पश्चात सरकार के राजस्व में बृद्धि हुई है, पर जीएसटी की कड़ी धाराओं को निभाते-निभाते मंझले और थोक व्यपारियों को खासी दिक्कते आ रही हैं l जीएसटी एक बड़ी कर प्रणाली है l इस समय देश में करीब 14 करोड़ थोक, मंझले और फुटकर व्यापारी, जिनमे सुपर मार्किट, रेहड़ी और पटरी वाले भी शामिल है l वें एक दुसरे से खरीदकर देश के राजस्व की बढ़ोतरी में अपना योगदान देते हैं l कुछ अर्थशास्त्रियो के अनुसार जीएसटी के लागू होने के पश्चात मुदास्फीति में बढ़ोतरी हुई है l इस बढ़ोतरी के अनुमान के पीछे दो तर्क हो सकते है l पहली वजह ये के जीएसटी के सारे नियमों के अनुपालन करने से कुछ कंपनियों के लागत में इजाफा हो सकता हैं l इस तरह से लागत बढ़ने का मुख्य कारण यह है कि भारत में बहुत ही बड़ी संख्या में कंपनियां, खासकर छोटी एवं मंझली श्रेणी इकाइयाँ, जो देश भर में फैली हुई है, अपने इलाके में थोक व्यपारियों को माल बेचती थी, उनको अब जीएसटी के तहत कड़ा अनुपालन करना पड़ रहा है, जिससे उनकी लागत बढ़ रही है, और वें इस लागत को आगे बढ़ा कर थोक व्यपारियों पर डाल रहें हैं l थोक व्यापारी यह भार मंझले व्यापारी और फिर यह चैन लम्भी हो रही है l जीएसटी के अंतर्गत इनपुट टैक्स क्रेडिट या आईटीसी प्रावधान का लाभ उठाने के लिए ये आवश्यक है कि निर्माता या व्यापारी सिर्फ उन्हीं  निर्माता या व्यापारी से सामान या सेवा खरीदे जो जीएसटी में रजिस्टर्ड है एवं सारे कर नियमित रूप से चुकाते हैं l इस प्रावधान की वजह से इस बात की गहरी संभवना हैं कि अब तक जो निर्माता एवं व्यापारी नियमों का पालन नहीं कर रहे थे एवं कर भी नहीं चुका रहे थे उन्हें अब दोनों ही चीजें करनी पड़ेगी, और इससे कुल लागत बढ़ने की संभवना है l पर बड़ा सालवाल यह उठता है कि बेचने वाला व्यापारी अगर अपना कर नहीं देता है, तब क्रय करने वाला व्यापारी इसका खामियाजा क्यों भुगते l क्यों उसे इनपुट क्रेडिट का लाभ नहीं मिल सकता  l अभी कई वास्तविक समस्याएं है, जिनका समाधान सरकार को खोजने हैं l  

इधर, बड़ी रिटेल कंपनियां, ऑनलाइन ढेरों रियायत दे कर ग्राहकों को अपनी और आकर्षित कर रही है, जिससे खुदरा व्यवसाय को कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है l

 

Friday, August 20, 2021

हम बहनों के लिए मेरे भैया, आता है एक दिन साल में..

 

हम बहनों के लिए मेरे भैया, आता है एक दिन साल में..

कहने को तो उपरोक्त शीर्षक हिंदी फिल्म अंजना के एक गाने का मुखड़ा है, पर गाने के मायने इतने अधिक है कि शब्दों में व्याख्या नहीं की जा सकती l गाना संवेदना का एक ज्वार है, जिसे महसूस किया जा सकता हैं l रक्षा बंधन आम जनमानस का त्यौहार है l दिवाली और होली के पश्चात यह एक ऐसा त्यौहार है, जिसमे सभी की भागीदारी रहती है l स्वतंत्रता आंदोलन में दो प्रमुख त्योहारों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी l एक थी गणेश चतुर्थी और दूसरा रक्षा बंधन l भाई-बहन, ननद-भोजी, पंडित-जजमान, हर रिश्तों में रक्षा सूत्र बांधे जाते हैं l पूरा भारतवर्ष रिश्तों के धागों में बंध कर प्रेम, भाईचारे और सामाजिकता को अक्षुण रखने का संदेश रक्षा बंधन त्यौहार के जरिये प्रेषित करता हैं l l समाज में एकबद्धता बनी रहे, इसके लिए रक्षा बंधन जैसे त्यौहार ने कड़ियों को ना सिर्फ जोड़ा है, बल्कि त्यौहार के माध्यम से परिवारों के बीच अटूट संबंध कायम किये है l अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। संकेत भर से यह जताया जा रहा है कि रक्षा सूत्र बांध कर पेड़ों की रक्षा की जाएगी l उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत में यह पर्व अलग नाम एवं अलग-अलग पद्धतियों से मनाया जाता है। उत्तर भारत में 'श्रावणी' नाम से प्रसिद्ध यह पर्व ब्राह्मणों का सर्वोपरि त्योहार है। यजमानों को यज्ञोपवीत एवं रक्षा-सूत्र देकर दक्षिणा प्राप्त की जाती है। महाराष्ट्र में इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिए नारियल अर्पित करने की परंपरा भी है। दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। भारत में प्रजापति ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविध्यालय की बहनों ने हमेशा से ही रक्षा बांधकर सन्देश दिया है कि मन वचन और कर्म से पूर्ण पवित्र व्यवहार की भावना बढे l रक्षाबंधन का उत्सव एक आध्यात्मिक उत्सव है। व्यावहारिक रूप में तो इस पर्व को बहनों के द्वारा भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर बहनों की रक्षा के संकल्प दिलाना होता है। लेकिन उत्सव का आध्यात्मिक संदेश यह है कि रक्षाबंधन से व्यक्ति के जीवन में उमंग उत्साह निरोगी और दीर्घायु बनाने की परमात्मा से कामना की जाती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षा बंधन का संबंध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। भविष्यपुराण के अनुसार इन्द्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र को देवगुरु बृहस्पति ने इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्तिवाचन किया (यह श्लोक रक्षा बंधन का अभीष्ट मंत्र है)-

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- "जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)" भारतीय स्वत्रंता संग्राम में जन जागरण के लिये भी इस पर्व का सहारा लिया गया। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षा बंधन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर, इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग आरंभ किया। 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता "मातृभूमि वंदना" प्रकशित हुई, जिसमें वे लिखते हैं-

"हे प्रभु! मेरे बंगदेश की धरती, नदियाँ, वायु, फूल - सब पावन हों;

है प्रभु! मेरे बंगदेश के, प्रत्येक भाई बहन के उर अन्तःस्थल, अविछन्न, अविभक्त एवं एक हों।"

रक्षा बंधन का संबंध महिलाओं के मान की रक्षा से हैं l देश में महिलाओं को पुरुष के बराबर सम्मान दिए जाने से महिलाएं अब अपनी रक्षा खुद करने में सक्षम हो गयी हैं l देश की महिलाओं के लिए उभरी नई संभावनाओं ने उन्हें एक नए क्षितीज पर ला कर खड़ा कर दिया है l टोकियों ओलंपिक्स इसका जीता जाता उदाहरण है l देश में महिलाओं के शशक्तिकरण के लिए नए द्वार खुल चुके हैं l  देश के कई राज्यों ने रक्षा बंधन के दिन महिलाओं के लिए योजनाओं की झड़ी लगाने का भी निर्णय लिया है l उत्तर प्रदेश में रक्षा बंधन के दिन महिलाओं के लिए कई योजनायें शुरू होने जा रही हैं l रक्षाबंधन के पर्व पर इस बार भी महिलाओं को सरकार ने रोडवेज बसों में निशुल्क बस यात्रा का तोहफा दिया है। रक्षा बंधन के दिन प्रदेश की महिलाओं को प्रदेश के अंदर उत्तराखंड परिवहन निगम द्वारा संचालित रोडवेज बसों के किराये में शत-प्रतिशत की छूट दी जाएगी। इतना ही नहीं कई स्वयंसेवी संगठनों ने लड़कियों के लिए पाठ्य पुस्तकें और कलम-कागज भी भेंट स्वरुप देने की तैयारी की हैं l   

रक्षा बंधन त्यौहार को भाषाई या धार्मिक लघुता में बांधना, उसके महत्त्व को कम करना जैसा है l राष्ट्रिय अस्मिता को पहचान दिलाने वाला यह त्यौहार, बहन के विश्वास एवं भाई का संकल्प का प्रतिरूप हैं l समरसता, एकता और क्षेत्रीय समन्वयता को दीर्घ काल के लिए जीवित रखने और सभी को एकसूत्र में पिरोकर रखने का यह एक उत्तम त्यौहार हैं l देश भर में इस दिन सामूहिक रूप से यह त्यौहार मनाया जाता हैं l परिवार के लोग एक जगह इकठ्ठा हो कर एक साथ एक दुसरे को राखी बांधते हैं l हां, बाजारवाद का कुछ असर इस त्यौहार में भी देखने में आया है l मंहंगी राखियाँ और कीमती गिफ्ट देने की एक आधुनिक परंपरा चल पड़ी है l पर भारत जैसे विशाल देश में हर श्रेणी के लोग रहते है, जो इन सब से उपर उठ कर रक्षा बंधन त्यौहार बड़े प्रेम से मानते हैं l हर तरह की सीमाओं को लांघ कर यह पर्व अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए हैं l