Friday, July 21, 2017

ये जिंदगी ना मिलेगी दुबारा
रवि अजितसरिया

अपने अंतर्मन से प्रेरित हो कर इस दुनिया में लोगों ने अपनी कठिन जिंदगी को हमेशा से ही सरल और मीनिंगफुल बनाने की कौशिश की हैं, चाहे वह ध्यान, अध्यात्म और भगवत पूजा के द्वारा हो या फिर दुनिया की तमाम उपलब्ध वस्तुओं को उपभोग करके हो l पर इंसान ने हमेशा से ही बदलाव के द्वारा एक खुबसूरत जिंदगी जीने की और रुख किया है l इस समय सबसे बड़ी और कठिन तपस्या इंसान की, स्वस्थ रहना है l स्वास्थ के लिए जब पूरी दुनिया में अरबों-खरबों रुपये खर्च हो रहें है, ऐसे में उसका लाभ धीरे-धीरे मानव जाति को मिलने की और अग्रसर है l तमाम द्वन्द्वों के बीच मुट्ठी भर सुख की प्राप्ति की चाह कर कोई कर रहा है l पर कहाँ रहता है, यह सुख, कैसा है इसका चहरा, कौन बताता है, सुख की दिशा l कई सारे प्रश्न हमारे दिमाग में कौध जातें है, जिनके जबाब हमें नहीं मिलतें l अत्यधिक धन होना, किसी बड़े सुख की अनुभूति नहीं भी दे सकता है, जबकि एक छोटा क्षण हमें इतना सुख दे सकता है कि जीवन की गति ही बदल जाये l जीवन जीने की कला सिखाने वाले गुरु रविशंकर, जिन्हें लोग श्री श्री के नाम से जानते है, श्री श्री रविशंकर को मानवातावदी और आध्यात्मिक गुरु के तौर पर वैश्विक स्तर पर पहचाना जाता है। मानव मूल्यों को बढ़ाकर, हिंसा और तनाव मुक्त समाज स्थापित करने से संबंधित इनके दृष्टिकोण ने सैकड़ों लोगों को अपने उत्तरदायित्वों को बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है। निश्चित रूप से यह विश्व की बेहतरी के लिए एक बड़ा कदम साबित हुआ। इस संसार में समृद्धि और सुख में हमेशा से एक द्वंद्व रहा है l समृद्धि के लिए सुख या फिर सुख के लिए समृद्धि, यह प्रश्न लाख टेक का है l वैभव का प्रदर्शन करके बड़ी-बड़ी शादियाँ आयोजित होती है, उसमे भी जो रीति-कर्म होतें है, वे बिलकुल वैसे ही होतें है, जैसे कि एक साधारण शादी में होतें है l अब रोटी-कपड़ा-मकान से जीवन नहीं चलता, बल्कि उन तमाम जरूरतों को जुटाते हुए जीवन को जीने की एक कला है, जिसको हर मनुष्य आज ढूँढ़ रहा है l कुछ लोग जो जीवन भर सेक संघर्ष भरा जीवन जी रहें होतें है, उनके लिए मात्र समृद्धि ही सुखी होने की निशानी है l आसुओं से कुश्ती लड़ कर कुछ लोग, एक नई जिंदगी जीने के लिए जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर लेतें है l खिड़की के झरोखे से दिखाई देने वाला एक छोटा सा दृश्य भी, उन्हें एक नए जीवन की और ले जाने में सक्षम है l ‘लाइफ ऑफ़ पाई’ नामक पुस्तक के लेखक यान मार्टल है, जिन्हें मेन-बुकर पुरूस्कार भी मिला था l सन 2012 में उनकी पुस्तक पर बनी फिल्म जीवन, साहस और उत्तरजीविता(सर्वाइवल) पर आधारित है l ढेर सारी परेशानियों के बीच कहानी का मुख्य पात्र पाई जीने की चाह लिए, बच जाता है l इस रोचक कहानी के विपरीत हर किसी के जीवन में ऐसे कई ऐसे मौके आते है, जब मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़ते है, जिसको झेलना हर किसी के बूते की बात नहीं है l पर जैसा कि महात्मा बुद्ध कहते है कि आनंद का पहले सूत्र है, दुःख की स्वीकृति, उसके मनोभाव को समझना, उसके अस्तित्व के अनुभव से संसार के यथार्थ को समझना l मनुष्य जब सपन देखता है कि एक दिन जब वह सभी बिमारियों पर विजय प्राप्त कर लेगा,  
तब दुनिया में सुख के नए स्त्रोत पैदा होंगे, जिससे सारा का सारा मानव समाज सुखी हो जायेगा l जब दार्शनिक और भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस, पृथ्वी और समस्त मानवजाति के ख़त्म होने की भविष्यवाणी कर रहे थे, तब उनको थोड़ी ही पता था कि यही मानव अपनी कठोर प्रतिबद्धता से हर भविष्यवाणी को उल्टा साबित कर देगा l जब धरती पर इतने संसाधन नहीं थे, तब आबादी भी इतनी नहीं थी, संघर्ष से भारी जिंदगी में इंसान की वास्तविक खूबियों की अपेक्षा होती रही, ऐसे में 21वी सदी मानव जाती के लिए वरदान बन कर आई है l तकनीक और सुचना प्रसारण अपने विकास के चरम पर है l मानव चाँद और अन्य ग्रहों पर घर बनाने की और अग्रसर है l न्याय संगत और विचार आधारित धरातल की सृजनशीलता ने मानवजाति के कद तो अब बहुत बड़ा बना दिया है l बोद्ध ग्रंथ ‘मिलिंद प्रश्न’ एक ऐसा ग्रंथ है, जो उपदेशात्मक है, और सत्य से साथ साक्षात्कार करवाता है l इसमें मूल बात यही है कि जिस चीज का प्रवाह पहले से चला आता है, वही चीज पैदा होती है l मानवीय वृतियों का सूक्षमता से समझने से पहले यह समझना जरुरी है कि वे निहित श्रंखलायें क्या है जो एक जीव को मानव बनता है? उसके सोचने और समझने की शक्ति और जिजीविषा जिसके प्रदर्शन से वह एक मानव कहलाता है l

इन सबके बावजूद, परिश्रम और सृजनता कुछ ऐसे गुण है, जिन्हें मनुष्य नकार नहीं सकता l फिल्म आनंद में बीमार राजेश खन्ना के संवाद थे कि जिंदगी लम्बी नहीं, बड़ी होनी चाहिये, इस बात  को बल देता है कि जीवन में मनुष्य कुछ ऐसा कर जाये कि जीवन में सार्थकता बनी रहें l पेड़ लगाना, उनकी देखभाल, लाइब्रेरी में किताबेंदान, गरीब बच्चों की शिक्षा का दायित्व और अजनबियों की सहायता, कुछ ऐसे छोटें कार्य है, जो एक जन कर के मुस्करा सकता है l पश्चिमीकारण की लहर अब समाज के निचले स्तर पर पहुच रही है, जिससे सामाजिक ढांचा स्वतः ही चकनाचूर होने की कगार पर है l सामाजिक और मानवीय मूल्यों का जबर्दस्त ह्रास होने से अब यह समझना होगा कि व्यक्ति के अविभाज्य गुणों को जीवन के साथ दुबारा कैसे जोड़ा जाए l         

Friday, July 14, 2017

समाजिक कुरीतियाँ रातों रात नहीं मिटती
रवि अजितसरिया

सामाजिक कुरितयों पर अभी एक जबरदस्त चर्चा चल रही है कि मृत्यु भोज का स्वरुप क्या हो ? लेखक और सामाजिक कुरीतियों, फिजूल खर्ची और आडम्बर के विरुद्ध आवाज उठाने वाले कार्यकर्त्ता मदन सिंघल ने इस प्रश्न के साथ कई ऐसे विषयों पर चर्चा की है जिस पर विवेचना आवश्यक ही नहीं बल्कि अत्यंत जरुरी है l हम बात एक कहानी के द्वारा दुसरे विषय से शुरू करतें है l द्वापर युग में एक पूतना नाम की पिशाचिनी हुई थी। भागवत पुराण में वर्णन है कि वह बड़ी भयंकर और विकराल थी, पर बाहर से बड़ा सुन्दर मायावी रूप बनाये फिरती थी। उसका काम था बालकों की हत्या करना, इसी में उसे आनन्द आता था, आखिर पिशाचिनी ही जो ठहरी। अन्त में उसका दमन कृष्ण भगवान ने किया और लोगों के सामने उसके विकराल भयंकर रूप का भंडाफोड़ किया। आज सामाजिक कुरीतियों की अनेक पिशाचिनी चौंसठ मसानियों की तरह खूनी खप्पर भर−भर कर नाच रही हैं। शादी-विवाहों के दिनों बड़ी रौनक और धूम-धाम होती है। बड़े-बड़े पंडाल, पचासों तरह की आइटम, आकर्षक सजावट और तमाम तरह के नाच-गान l पर इस पुरे आयोजन में आये हुए अथितियों का स्वागत कैसे करें, इसका अंदाजा, आयोजक को इस उन्माद में नहीं रहता l इस बात में भी सच्चाई है कि आयोजकों को विवाह कैसे करना है, इसका निर्णय लेने का उसे पूरा हक़ है l पर इसका दुष्प्रभाव समाज पर कैसे पड़ता है, इसका अंदाजा विवाह से पूर्व ही आयोजकों को होना चाहिये l आडम्बरपूर्ण विवाह की नक़ल समाज में होती है, जिसका दुष्परिणाम भविष्य में समाज भोगता है l समाज शास्त्री इसे उन्माद की संज्ञा देतें है l हम ऐसे उन्माद को अर्थव्यवस्था के लिए इसलिए घातक कहते है क्योंकि सामर्थ नहीं होने के वावजूद भी व्यक्ति अपनी हसियत से अधिक खर्च करता है और फिर महाजनों को चुकाने में अपनी पूरी जिंदगी कटा देता है l लोक-लाज का डर, रिश्ते-नातेदारों में नीचा दिखने का डर, जग हंसाई, कई तरह के डर मनुष्य को कमजोर और भीरु बना देता है, जिससे कुरीतिया लौकी की बेल की तरह फैलती चली जाती है l धर्म और लोक-परम्पराओं को मानने वाला समाज हर ख़ुशी और गम के मौके पर यथा शक्ति आयोजन करता है, जो शास्त्र सम्मत भी होता है l पर जब, ऐसे आयोजन बोझ लगने लगे, तब वह मानव जाति के लिए अभिशाप बन जाते है l विवाह में होने वाले अपव्यय, मृत्यु पर होने वाले खर्चे इतने अधिक हो गए है कि अगर ना किये गए, तब उन पर गरीब या कंजूस होने का लांछन लगने का डर हो जाता है l ये आयोजन इतने खर्चीले बन गएँ है कि आम आदमी के बल-बूते के बाहर हो चले है l अब यह बात आयोजनकर्ता को खुद को तय करनी होगी कि वह किस तरह का आयोजन उसे करना है l इसमें लोक-लाज की बात कही भी नहीं आनी चाहिये l समाज में अघोषित सामाजिक तंत्र के ध्वंश होने से, वे आयोजन, जो माध्यम वर्ग पर प्रभाव डालते है, उन पर किसी किस्म की कोई निगरानी प्राय समाप्त हो गयी है l ज्यू-ज्यू दावा दी, मर्ज बढ़ता ही गया वाली तर्ज पर, अब फिजूलखर्ची और आडम्बर ने सभी घेराबंदी को तोड़ दिया है और उन्मुक्त हो कर विकराल रूप धारण कर चुकी है l आडम्बर और दिखावे में किसी के भी कुछ भी हाथ नहीं आता, बस क्षणिक आनंद, जो चंद घंटे बाद समाप्त हो जाता है l जो व्यक्ति ऐसे आयोजन करके अपने-आप को राजा से कम नहीं समझता, अन्य के सामने बड़ा बनाने की कौशिश करता है, वही व्यक्ति एक या दो दिनों बाद सामान्य व्यक्ति की तरह ही समाज में वास करता है l हिन्दू समाज में कुरितयों अब सर दर्द बन गयी है l इसमें व्यापक सुधार की आवश्यकता है l समय समय पर प्रगतिशील लगों ने इस बात को सार्वजनिक स्तर पर उठाया भी है, पर कोई ठोस नतीजा निकल कर नहीं आता l दुःख की बात है कि फिजूल खर्ची और आडम्बर में धार्मिक आडम्बर भी शामिल हो गया है l धार्मिक आयोजनों में राजनैतिक व्यक्तियों को बुलाया जाना, इस बात का सूचक है कि किसी निहित स्वार्थ से ऐसे आयोजन किये जा रहे है l
एक सुझाव


समूचा असम इस वक्त बाढ़ की विभीषिका से जूझ रहा है l राज्य के लाखों लोग इससे प्रभावित हुए है l सरकार द्वारा, आने वाले दिनों में बाढ़ राहत के लिए अपील होनी स्वाभाविक है l ऐसे में समाज के सभी घटक के लोग यह निर्णय ले कि वे आने वाले दिनों में किसी भी तरह के आयोजन में फिजूलखर्ची नहीं करेंगे और बाढ़ राहत के लिए एक सम्मिलित राशि का समायोजन करेंगे l क्योंकि बाढ़ राहत भी एक पुण्य और समाजिक जिम्मेवारी है, अगर संभव हो तब उन आयोजनों के खर्च भी बाढ़ राहत में दे, जो धार्मिक उद्देश्य से किया जाने वाला हो l कोई भी अगर बड़ा आयोजन करता है तब वह उतनी ही राशि बाढ़ सहायतार्थ सम्मलित फंड में जमा करेगा l इस सम्मिलित समायोजन से यह फायदा होगा कि एक विशाल फंड जमा हो जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि असम का व्यापारी समाज ने विपत्ति के समय एक विशाल राशि अपने फंड से निकाल कर दी है l अन्यथा, हर वर्ष आने वाली बाढ़ के दौरान अलग अलग संस्थाएं, अपने हिसाब से बाढ़ रहत करती है, जिसकी ना तो सुचना लगती है और ना ही कोई नजर पड़ती है l फिर सरकार का कोई मंत्री या नेता, टिपण्णी कर देता है कि व्यापारी समाज ने कोई भी राहत कार्य नहीं किया है l सामाजिक और प्रतिनिधि संस्थाएं मारवाड़ी युवा मंच और मारवाड़ी सम्मेलन, जिनकी शाखा समूचे पूर्वोत्तर में है, केद्रीय रूप से यह कार्य कर सकती है l असम की व्यापारिक संस्थाएं अपने सदस्यों सी अपील कर सकती है कि वे केन्द्रीय रूप से इस कार्य को सम्पादित करे l  

Friday, July 7, 2017

जीएसटी लागु होने के बाद का दृश्य
रवि अजितसरिया 

एचएसएन कोड बना एक बड़ी समस्या
देश भर में जीएसटी कर प्रणाली को लागु हुए एक सप्ताह हो गया है और व्यापरियों में एचएसएन कोड को लेकर और टेक्स स्लेब की जानकारी के अभाव में, भारी अफरा-तफरी सी मची हुई है l छोटे व्यापारियों को अभी भी नहीं मालूम की कौन सी आइटम कौन से स्लेब में जा रही है l व्यापारी इसके चलते अपना माल नहीं बेच पा रहें है l एचएसएन कोड को लेकर संशय इसलिए भी है क्योंकि एक ही तरह के दिखने वाले माल में अलग अलग एचएसएन कोड है, जिसके चलते कर भी लग-अलग है l एचएसएन कोड यानी सामंजस्य प्रणाली नामकरण(हर्मोनाइज्द सिस्टम नोमेंक्लेचेर) एक बहुउद्देश्य अंतराष्ट्रीय उत्पाद नामकरण प्रणाली है, जिसे विश्व सीमा सगठन ने विकसित किया है, परिभाषित है, जिसमे 5000 से अधिक सामान शामिल है, क़ानूनी और तार्किक पहलुओं को समझने के लिए बनाई गयी है l पूरी प्रणाली में सामानों का वर्गीकरण, सीमा कर के भाव और इनपुट क्रेडिट का पता चलता है, और गैर-दस्तावेजी डाटा इंटरचेंज में सहयोगी है l दुनिया भर में ये कोड निर्यात, आयत और वितरण के लिए इस्तेमाल किये जाते है l ये कोड दो, चार, छह और आठ डिजिट के हो सकतें है l भारत में ये कोड कोई भी जीएसटी इनवॉइस बनाने के समय अंकित करना आवश्यक है l अब एचएसएन कोड की पढाई, व्यापरियों को करनी पड़ेगी, नहीं तो भारी नुकसान होने की संभावनाएं है l अब व्यापरियों को कौन पढ़ायेगा, यह एक लाख टेक का प्रश्न है l ज्यादतर व्यापरियों का कहना है कि सरकार को व्यापरियों पर विश्वास करना होगा, जिसे चीजे आसानी हो जाएगी, और व्यापारी नई प्रणाली में आ कर कारोबार कर सकेंगे l इधर सरकार की तरफ से ऐसा कहा जा रहा है कि ऐसे व्यापारी, जो वर्षों से वेट के दौरान एक सिस्टम के तहत चल रहे थे, उनके लिए जीएसटी एक वरदान बन कर आयी है l यह इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि जीएसटी के तहत पंजीकृत व्यापारी उन सभी सुविधाओं का लाभ उठा सकेंगे, जो उन्हें, पहले नहीं मिल रही थी l मसलन उत्पादन और बिक्री के उपर हो रहे खर्चे पर कोई इनपुट का नहीं मिलना, जो जीएसटी प्रणाली में मिल सकेगी l ठीक ऐसे ही उत्पादन के लिए खरीदी गयी प्लांट एंड मशीनरी और अन्य खर्चे जीएसटी के तहत क्लेम होना, ना सिर्फ उत्पादक को लाभ पहुचायेगा, बल्कि उसे उत्पादन शुल्क से छुट के साथ जीएसटी कर में भी इनपुट दिलाएगा l जीएसटी आने से सिर्फ इंडस्ट्री और कंज्यूमर को फायदा ही नहीं होगा बल्कि मालढुलाई भी 20 फीसदी सस्ती हो जाएगी। जाहिर है, इसका फायदा आम उपभोक्ता से लेकर लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री तक को होगा। यही वजह है कि लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री भी जीएसटी स्वागत कर रही है। अगर जीएसटी पूरी तरह से सफल रहा तो सबसे ज्यादा फायदा इंडस्ट्री को होने वाला है। क्योंकि जीएसटी युग में उन्हें अलग-अलग करीब 18 टैक्स नहीं भरने होंगे। टैक्स भरने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी और टैक्स का बोझ भी काफी कम हो जाएगा। l ये  
सभी कागजी बातें अभी सुंदर लग रही है, पर व्यापरियों पर कितना अतरिक्त बोझ बढ़ जा रहा है, इसका अंदाजा तो व्यापारियों को खुद को ही है l बाज़ार में जीएसटी प्रणाली में शिफ्ट हुए व्यापारियों से पूछने पर पता चला कि वे जल्द से जल्द जीएसटी के तहत अपना कारोबार शुरू करना चाहतें है, जिससे वेट से जीएसटी प्रणाली में शिफ्ट होने के दौरान जो बिक्री का नुकसान व्यापारियों को हुवा, उस नुकसान की भरपाई हो जाये, चाहे इसके लिए अधिक कर भी देना क्यों ना पड़े l
जीएसटी में समस्याओं को ले कर बात करे, तब पाएंगे कि इस वक्त व्यापारी जुंझ रहा है, एचएसएन कोड को लेकर l सरकार ने हर वस्तुओं का एक कोड निर्धारित किये है, जिसके सामने कर के भाव निर्धारित किये गएँ है l छोटे व्यापारियों को दिक्कत यह है कि उन्हें अपने माल के कोड कौन बताएं l मान लीजिये, उनके अपने सप्लायर उन्हें बेचे गये सामान पर कोड बता भी दे, तब भी पुराने सामानों पर कोड ढूँढना घास में से सुई ढूंढने के बराबर है l बड़े व्यापारिक संगठनों को इस समय व्यापारियों की मदद के लिए आगे आना चाहिये, और एचएसएन कोड के अलावा, इनवॉइस के फॉर्मेट और इनवॉइस काटने के तरीके की बारीकियों के बारे में समझाएं l अभी व्यापारी इस उलझन में है कि पुराने पड़े हुए मेमो और इनवॉइस का क्या करें l इस बाबत भी सरकार ने कोई स्पष्ट निर्देश नहीं दिए है, जिससे तमाम तरह की बातें निकल कर आ रही है l हालाँकि, कुछ छोटे व्यापारियों ने अपने जीएसटी के नम्बरों की स्टाम्प लगा कर अपना व्यापार शुरू कर दिया है, पर असमंजस अभी भी जारी है l जीएसटी के विशेषज्ञ चार्टर्ड अकाउंटेंट ओ पी अगरवाला का कहना है की जीएसटी को लेकर जो बातें सरकार की तरफ से आई, वे सभी ठीक है, जीएसटी कानून एक वृहत और कारगार कानून है, पर जब उन बातों पर वस्तविकता का धरातल पर तोलते है, तब पातें है कि अभी ख़ुशी होने की कोई वजह दिखाई नहीं दे रही है l भारत में अभी भी निरक्षर लोगों की संख्या पढ़े लिखे लोगों से अधिक है l व्यापार के क्षेत्र में तो छोटे-मोटे व्यापरियों की संख्या करोडो में है, जिन्हें जीएसटी की एबीसी भी नहीं मालूम. ऐसे व्यापरियों के लिए समस्या आ सकती है l एक पंजीकृत व्यापारी के बिना कम्पुटर के चलना मुश्किल सा लग रहा है l उन्होंने एक उदहारण देते हुए समझाया कि जीएसटी के तहत सभी खरीद और बिक्री की प्रति-वस्तु डिटेल माह के अंत में दाखिल करनी होगी, जो बिना कम्पुटर के संभव ही नहीं l सरकार को एचएसएन कोड लेन की जल्दीबाजी नहीं करनी चाहिये थी l इससे मामला उलझ सा गया है l उन्होंने आशा की उम्मीद जताते हुए कहा कि अभी लोग एक ट्रेन में चढ़े है, दो चार स्टेशन के बाद ही लोगों को एडजस्ट होने में लग ही जायेगा l तब तक थोड़ा धैर्य रखें l गुवाहाटी के बड़े व्यापारियों ने अपने सिस्टम को जीएसटी व्यवस्था के तहत शिफ्ट भी कर लिया है और धड़ल्ले से माल बेच रहें है l यहाँ एक फायदा व्यापरियों को मिलने वाला है कि व्यापारी एकीकृत प्रणाली के तहत रजिस्टर्ड हो सकेगें, जहाँ उन्हें सर्विसे टेक्स के झंझट से मुक्ति मिलेगी और जीएसटी के तहत दिए गये कर का इनपुट मिल सकेगा l एक अन्य सबसे बड़ा फायदा व्यापारियों को इस वक्त दिखाई दे रहा है, और वो है, विभिन्न प्रकार के कागजों से मुक्ति l  
वेट प्रणाली में सी फॉर्म और अन्य कई तरह के फॉर्म व्यापारियों को दाखिल करने होते थें, जिनसे जीएसटी प्रणाली में मुक्ति मिलेगी l इधर सरकार ने अगले दो महीने तक जीएसटी के प्रावधानों को समझने के लिए व्यापारियों को रिटर्न भरने की छुट दी है, जिससे व्यापारियों ने राहत की सांस ली है l  

हाल ही में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि जीएसटी तमाम अडचनों के बावजूद, 1 जुलाई से उम्मीद से ज्यादा आसानी से लागू हो गया l पिछले दिनों खबर आई थी कि देश में आधे से अधिक लोगों जीएसटी के बारे में जानकारी नहीं है l एक सर्वेक्षण में देश के 3.6 लाख लोगों की राय ली गई, जिसमे यह पता लगा कि तेलुगू भाषी दो राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोगों को जीएसटी के बारे में सबसे अधिक जानकारी है l इन राज्यों की 64 फीसदी आबादी को इस कर के बारे में पता है l जीएसटी के बारे में सबसे कम जानकारी तमिलनाडु के लोगों को है l असम में भी स्थिति बहुत ज्यादा उत्साहजनक नहीं दिखाई पद रही है l फिर भी यह साफ़ दिखाई दे रहा है लोग बहुत जल्द ही जीएसटी प्रणाली में शिफ्ट हो कर व्यापार करना चाहतें है l