Friday, May 24, 2019

मोदी है तो मुमकिन है


मोदी है तो मुमकिन है


नरेंद्र मोदी की शानदार सफलता के पश्चात यह तो तय हो गया है कि वें एक अपने आप में के मजबूत किरदार है, जिसको इस समय भारत के लोग पसंद कर रहें है l भारत के लोग एक मजबूत नेता चाहते है, जिसकी वजह से लोगों ने जाति और क्षेत्रीयता से उपर उठ कर एक अकेले नेता के पक्ष में वोट किया है l उन्होंने सारे ओपिनियन पोल्स को धराशाई करके, 1971 के पश्चात एक अकेले ऐसे नेता बने है, जिनको भारत की जनता ने दुबारा सत्तासीन किया और वह भी पहले से ज्यादा प्रचंड बहुमत से l राजनीतिक पंडितों और वज्ञानिकों के सभी अंदाज और कयास धरे के धरे रह गए l गठबंधन और परिवार राजनीति का प्रभाव नाकामयाब रहा, एक मजबूत विपक्ष की योजना विफल रही, सभी जुमले जिनको विपक्ष ने लपक कर हथियार बनाने की कौशिश की, वें भी धराशाई हो गए l दरअसल में, भारत में हमेशा से ही पिछड़ों और दलितों की राजनीति की जाती रही है l यहाँ कास्ट फैक्टर हमेशा से ही दिल्ली दरबार में हावी रहा है l नरेंद्र मोदी ने इस पुरे प्रसंग को ही बदल कर रख दिया है l उत्तर प्रदेश और बिहार में स्थानीय नेताओं ने जाति आधारित राजीनीति से हमेशा से ही नंबर बनाये थे l उन्होंने दलित और मुसलमानों के बल पर एक मजबूत बेड़ा खड़ा कर के इस बार भी एक सपोर्ट बेस बनाने की चेष्टा की थी, जिसको नरेन्द्र मोदी जैसे सुनामी ने, इस किले को ध्वंश करके यह सन्देश दिया है कि देश में एक मजबूत नेता, उसके विकास और दायित्व के लिए जरुरी है l बिहार में आरजेडी, जो हमेशा से ही पिछड़ो की राजनीति करती है, एक भी सीट नहीं जीत पाई और उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा है l नरेन्द्र मोदी की वाक्पटुता, चरिश्माय-व्यक्तित्व , निर्णयक्षमता, इच्छाशक्ति, राष्ट्रवाद और अनिश्चित उर्चा ने कई उदास लोगों के चहरों को भी प्रफुल्लित कर दिया, और एक करारा तमाचा है उनलोगों पर जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में नरेंद्र मोदी पर कई आरोप लगाये और भारत को चरम हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रणेता बता रहें थे l उन सभी को अब एक हकदार राजनेता नहीं बल्कि एक पात्र नेता के रूप में नरेंद्र मोदी मिले है, जिन्होंने दल, जाति और पार्टी से उपर उठ कर देश हित में कुछ कड़े निर्णय लिए, और दुबारा चुन कर आ गए है l इस तरह से देश में दल गत राजनीति का एक नया प्रारूप सामने आया है कि जो पार्टी कार्य करेगी वह रहेगी, और जो गठबंधन करके जाति आधारित राजनीति करेगी, वह समाप्ति की कगार पर रहेगी(परफॉर्म और पेरिश) l नरेंद्र मोदी ने लीडरशिप के नई परिभाषा गाढ़ी है, जिसमे आम आदमी को आधार बनाया है l उन्होंने जनता के मर्म को समझ कर, उन बिन्दुओं पर कार्य करना शुरू किया, जिसको जनता चाहती है l स्वच्छ भारत अभियान, उज्जवला योजना, जनधन योजना और स्वास्थ योजनायें कुछ एक ऐसी योजनायें थी, जिन पर उन्होंने 2014 में शासन सँभालते ही कार्य करना शुरू कर दिया था l उनकी यह क्षमता का कही भी कोई तोड़ अभी तक तो नहीं है l जब भारत ने पुलवामा हमले का बदला बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक करके ले लिया, तब पुरे भारतवर्ष में आम जनता में प्रधानमंत्री मोदी के साहस और निर्णय क्षमता की तारीफ की थी l भारत पर पहले भी अंतकी हमले हुए थे, पर उस समय की सरकारों ने किसी तरह की कार्यवाई ना कर के, बस लोगों को दिलासा देती रही, पर प्रधानमंत्री मोदी में पुलवामा हमले का बखूबी बदला लिया और पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करवा कर एक मजबूत नेता की छवि बनाई है l पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के लोकतांत्रिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है l नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले तीसरे प्रधानमंत्री बन गए हैं l 2014 में हुए आम चुनाव में भाजपा ने लोकसभा की कुल 543 सीटों में से 282 सीटों पर जीत हासिल की थी l देश में आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू करीब तीन चौथाई सीटें जीते थे l इसके बाद 1957 और 1962 में हुए आम चुनाव में भी उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी l चूंकि देश में आजादी के बाद 1951में पहली बार आम चुनाव हुए थे l उस चुनाव में कांग्रेस ने 489 सीटों में से 364 सीटों पर जीत हासिल की थी और उस समय पार्टी के पक्ष में करीब 45 फीसदी मत पड़े थे l
1962 के आम चुनाव में भी नेहरू ने लोकसभा की कुल 494 सीटों में से 361 सीटों पर शानदार विजय हासिल की l आजाद भारत के 20 साल के राजनीतिक इतिहास में आखिरकार कांग्रेस पार्टी का जलवा बेरंग होना शुरू हुआ और वह छह राज्यों में विधानसभा चुनाव हार गई l इन छह राज्यों में से तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस सबसे पहले हारी थी l लेकिन 1967 में इंदिरा गांधी लोकसभा की कुल 520 सीटों में से 283 सीटें जीतने में कामयाब रहीं l आम चुनाव में इंदिरा गांधी की यह पहली जीत थी l इसी दौर में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ' का नारा दिया जिसने भारतीय मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर असर किया l इसी का नतीजा रहा कि इंदिरा गांधी 1971 के आम चुनाव में 352 सीटें जीत गईं l 2010 और 2014 के दौर की बात करें, जब संप्रग सरकार विभिन्न मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही थी l  देशभर में विकास के वादे के साथ नरेन्द्र मोदी 2014में 282 सीटों पर जीत के साथ अपना पहला आम चुनाव पूर्ण बहुमत के साथ जीतने में सफल रहे l अभी 2019 में प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का कड़ा विरोध होने के वावजूद भी भाजपा ने अकेले 303 सीटें जीत कर एक इतिहास रच दिया l उसका कुल वोट शेयर रहा 42 प्रतिशत l वही एनडीए ने कुल 350 सीटें अपने खाते में ले ली है l  
भारतीय लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष ने हमेशा से ही एक मजबूत भूमिका निभाई है l इस दफा भी 2014 की तरह एनडीए ने 65 फीसदी सीटें जीत कर विपक्ष की भूमिका को सिमित कर दिया है l पर जैसा की नरेंद्र मोदी ने अपने धन्यवाद भाषण में कहा है कि ‘हमें सभी को एक साथ ले कर एक साथ मिल कर चलना होगा’, ये वाक्य ब्रह्म वाक्य साबित होने वाले है l उन्होंने कहा कि वोट किसी भी देश के लिए लोगों का आदेश हो सकता है, पर एक देश सभी को ले कर ही चल सकता है  l निश्चित रूप से उनका इशारा उन कार्यकर्ताओं पर है, जो गाए-बगाहे, अहंकार और अति राष्ट्रवाद का प्रदर्शन करतें है l भारतीय राजनीति में यह एक सुअवसर है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ एक आम सहमती के तहत कार्य करे, जिससे पुरे सिस्टम को सुनयोजित करके स्लो पड़ने लगी इकोनोमी को दुबारा ट्रैक पर लाया जा सके l      

Saturday, May 18, 2019

बड़ा कुनबा, बड़ा बोझ, कैसा होगा 2019 का चित्र ?


बड़ा कुनबा, बड़ा बोझ, कैसा होगा 2019 का चित्र ?

सातवें और आखिरी चरण में 19 मई को आठ राज्यों की 59 सीटों पर मतदान होगा। 19 मई को जिन जगहों पर मतदान होगा, उसमें पंजाब और उत्तर प्रदेश की 13-13 सीटें, बिहार और मध्य प्रदेश की आठ-आठ, झारखंड की तीन, पश्चिम बंगाल की नौ, हिमाचल प्रदेश की चार और चंडीगढ़ की एक सीट शामिल हैं। इधर परिणाम का दिन नजदीक आने से राजनीतिक पार्टियाँ अपनी रणनीति बनाने में लग गयी हैं l सोनिया गाँधी ने गैर भाजपाराजनीतिक दलों की एक बैठक 23 मई को बुलाई हैं l इसके साथ ही, राजनीतिक पंडितों और विश्लेषकों में भी अजीब सी खलबली मच गयी हैं l किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा हैं l कुछ लोग गठबंधन को बढ़त मिलते हुए देख रहें है, कुछ लोग हंग पार्लियामेंट बता रहें हैं तो कुछ मोदी सरकार की पुनः वापसी कह रहें हैं l ज्यादातर पंडितों का यह मानना हैं कि अगली सरकार मोदी सरकार होने वाली है, जिसको संयुक्त विपक्ष से भारी विरोध का सामना करना पड़ सकता हैं l 273 का जादुई आंकड़े जुटाने में भाजपा अध्यक्ष अमीत शाह का एक बड़ा रोल देख रहे है, कुछ विश्लेषक l हर एक के मन में एक ही प्रश्न हैं कि किसकी सरकार आएगी ? दरअसल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रसिद्धि इतनी बड़ी हैं कि लोग उन्हें किसी भी कीमत पर वापस देखना चाहते हैं l खासकरके राष्ट्रिय सुरक्षा के मामले में उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक करवा कर भारत के लोगों का दिल जीत लिया हैं l उपर से बालाकोट में आंतकवादियों के अड्डे नष्ट होने से भारत में लोगों ने बड़े रूप में इसका स्वागत किया हैं l इसके बावजूद राजनीति में ऊंट कौन सा करवट बैठता है, यह कोई नहीं कह सकता l सनद रहे कि सन 2004 में अटल बिहारी बाजपेयी सरकार भी चुनाव हर गयी थी, जबकि उनकी प्रसिद्धि चरम पर थी l भाजपाका शाइन इंडिया का नारा भी मतदाताओं को लुभाने में सफल नहीं हुवा था l वही कांग्रेस के दस वर्षों तक शासन करने के बावजूद भी, 2014 में मोदी लहर में, कांग्रेस के लगभग सारे बड़े दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा था l इस सूची में कपिल सिब्बल, अजय माकन, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित, कृष्णा तीरथ, सलमान खुर्शीद, पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदम्बर, गुलाम नबी आजाद, सचिन पायलट, मीरा कुमार, सुशील कुमार शिंदे, नवीन जिंदल और क्रिकेटर अजहरुद्दीन के नाम प्रमुख थे l ऐसे कई राज्य हैं, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, पंजाब, जम्मू कश्मीर और दिल्ली जहां भाजपाका प्रदर्शन सन 2014 के चुनाव में अच्छा रहा l इन राज्यों में भाजपा ने या तो क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन किया और जहां क्षेत्रीय पार्टियां बंटी हुई थी तो भाजपाविरोधी वोट भी बंट गया और उसका फ़ायदा भाजपाको मिला l भाजपा की 2014 में लहर की बात करे और नतीजों की और देंखे तो पाएंगे कि भाजपा ने 42 लोकसभा सीटों पर तीन लाख वोटों से भी ज़्यादा के अंतर से जीत हासिल की थी और 75 लोकसभा सीटों पर दो लाख से ज़्यादा के अंतर से, 38 लोकसभा सीटों पर डेढ लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी और 52 लोकसभा सीटों पर 1 लाख से ज़्यादा वोटों के अंतर से l इस दफा इन राज्यों में विपक्ष ने एकजुटता दिखाई हैं और एक साथ मिल कर चुनाव लड़ रहा हैं l ये सही हैं कि विपक्षी पार्टियों का गठबंधन भाजपा को कई राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र में बैकफ़ुट पर ला सकता हैं l पर हिंदी पट्टी के एक राज्य बिहार में विपक्ष का गठबंधन एनडीए का नुक़सान नहीं कर सकता l अगर 2014 के नतीजों की तरफ देंखे, तो पायेंगे कि राजस्थान (25 सीटें), दिल्ली (7 सीटें), उत्तराखंड (5 सीटें), हिमाचल प्रदेश (4) और गुजरात (26) में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था l यहां किसी और पार्टी को खाता खोलने का मौका नहीं मिला l पर परिस्थितियाँ 2014 से इस बार भिन्न हैं l एक तो विपक्ष संयुक्त रूप से एक साथ मिला हुवा है, ध्रुवीकरण होने से कई क्षेत्रों में भाजपा को नुकसान हो सकता हैं l दूसरा कोंग्रेस भाजपा को रोकने के लिए कुछ भी समझोता करने को तैयार है, उसने प्रधानमंत्री के पद तक को छोड़ने की पेशकश कर दी हैं l तीसरा 2014 के चरम पर पहुच कर भाजपाकुछ नया नहीं कर सकती थी l उसको अपनी स्थिति बरक़रार रखने में पूरा जोर लगा पड़ रहा हैं l 2014 के चुनाव में भजपा के परफॉरमेंस में यदि राज्यवार बात की जाए तो सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की कुल 80 सीटों में से भाजपा को 71, सपा को 5, कांग्रेस को 2 और अपना दल को 2 सीटें मिली थी l यहां से बसपा इस बार अपना खाता भी नहीं खोल पाई l बिहार की 40 सीटों में से भाजपा 22 पर, लोजपा छह पर, राजद चार पर, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी तीन पर कांग्रेस दो पर विजयी रही जबकि जदयू और एनसीपी के हिस्से में दो और एक सीटें आईं थी l राजस्थान (25 सीटें), दिल्ली (7 सीटें), उत्तराखंड (5 सीटें), हिमाचल प्रदेश (4) और गुजरात (26) में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था l यहां किसी और पार्टी को खाता खोलने का मौका नहीं मिला l मध्य प्रदेश में भाजपा को 27 सीटें मिलीं और कांग्रेस दो सीटों पर विजयी रही l महाराष्ट्र में भी भाजपा को खासी बढ़त मिली थी l यहां कुल 48 सीटों में से भाजपा 23 पर, शिवसेना 18 पर, एनसीपी चार पर और कांग्रेस दो पर विजयी रहे, जबकि एक सीट एक स्वाभिमान पक्ष दल के खाते में गई थी l कर्नाटक में भी भाजपा ने अपनी बढ़त बरकार रखी और कुल 28 सीटों में से 17 पर जीत दर्ज की, कांग्रेस के खाते में 9 और जनता दल सेक्युलर के खाते में दो सीटें आईं l केरल की कुल 20 सीटों पर कांग्रेस आठ, माकपा पांच, आईयूएमएल दो, भाकपा एक, केरल कांग्रेस (एम) एक, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी एर और दो सीटें निर्दलीयों के खाते में गई हैं lतमिलनाडु कुल 39 सीटों में एआईडीएमके 37, भाजपा और पीएमके एक-एक सीटों पर जीत दर्ज की l पश्चिम बंगाल की कुल 42 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस 34 पर, कांग्रेस चार पर, भाजपा दो और माकपा 2 पर विजयी रही l ओडिशा कुल 21 सीटों पर बीजद 20 सीटें और भाजपा एक सीट पर कामयाब रही l आंध्र प्रदेश की कुल 42 सीटों पर तेलगुदेशम पार्टी को 16, टीआरएस को 11, वाईएसआर कांग्रेस को नौ, भाजपा को तीन, कांग्रेस को दो और एआईएमआईएम को एक सीट मिली l असम की कुल 14 सीटों में से भाजपा ने सात पर जीत हासिल की जबकि कांग्रेस को तीन एआईयूडीएफ को तीन और एक पर निर्दलीय प्रत्याशी जीता l अरुणाचल प्रदेश में किरण रिजूजू ने एक सीट जीती थी l पंजाब की कुल 13 सीटों में से अकाली दल को चार, कांग्रेस को तीन और भाजपा को दो सीटें मिलीं, आम आदमी पार्टी का खाता पंजाब से खुला जहां इसने चार सीटें जीतीं l हरियाणा की कुल 10 सीटों में सात भाजपा के खाते में आईं जबकि दो पर आईएनएलडी और एक पर कांग्रेस विजयी हुई l केंद्र प्रशासित राज्यों अंडमान निकोबार और चंडीगढ़ की दोनों सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल की थी l
2019 के चुनाव के नतीजे क्या निकलेंगे, इसका पता 23 मई को चल ही जाएगा, पर इस समय, स्थिति यह हैं कि इस सियासत में देश की छोटी से छोटी पार्टियाँ भी राष्ट्रिय राजनीति में अपना भविष्य खोज रही है l किसको क्या हिस्सा मिलेगा, इसकी चर्चा अभी से शुरू हो गयी हैं l हालात यह है कि कुनबा बड़ा होता चला जा रहा हैं, और हिस्सा कम होता दिख रहा है l एक मजबूत सरकार देश को मिले, इसी पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं l