Friday, July 20, 2018

मोब लिंचिंग- पाषाण युग की शुरुआत

नीलोत्पल और अभिजित की कारबी पहाड़ी पर भीड़ द्वारा हत्या(मोब लिंचिंग) किये जाने के पश्चात, हम यह तो कह ही सकते है कि हम अभी भी जंगली आचरण कर रहे है l हममे वे तत्व मौजूद है, जिससे विश्व के दुसरे भाग के लोग हमें जंगली करार दे सकते है l शायद सोचने की शक्ति अब समाप्त हो गयी है l यह वही सोचने की शक्ति है, जिससे हम जानवरों में भेद है, नहीं तो हम भी जानवरों की तरह खाने-पीने, सोने और मोज मस्ती वाले जीव होतें l हममे विभिन्न अभिव्यक्तियों के द्वारा संग्रह की गयी जानकारियों के आधार पर वे तर्क है, जिससे हम जानवरों से अलग है l किस पर वार करना है, इसका विवेक हममे है, जिसका लेश मात्र भी भान जानवरों में नहीं पाया जाता है l हम सभ्यता के बीच रहने के आदि है l प्राचीन सभ्यता ने मनुष्य को एक समाज दिया, जिसमे कुछ नियम भी बने l समय के साथ इन नियमों को परिष्कृत कर के हमने अपने लिए एक सुंदर पृथ्वी बनाई, जिसमे मनुष्य शांति से रह सके l मनुष्य के साथ हमने जानवरों के लिए भी उतना ही सुंदर उपवन भी बनाया जिसमे वे भी अपनी नैसर्गिक क्रियाओं के साथ जीवन व्यतीत कर सके l अब यह प्रश्न आता है कि हम समय समय पर जानवरों की भांति आचरण क्यों करने लग जातें है ? एक बड़े और शक्तिशाली जानवर की तरह, जो अपने से छोटे जानवरों को अपने ग्रास का हिस्सा बना डालता है, अपने बच्चों तक तो खा जाता है l इस बावजूद भी हमें संतोष नहीं मिलता l नैतिकता की सभी सीमाओं को लांघ कर खुले में जानवरों की भांति, भीड़ द्वारा किसी की हत्या करना, अफ्रीका के जंगलों में मजबूत जानवरों द्वारा दौड़ा-दौड़ा कर अपने शिकार को थका कर मार डालने की तरह ही है, जिसको हम आये दिन हमारे देश में देख रहें है l महिलाओं का यौन उत्पीड़न इस तरह का पशु कृत्य ही तो है, जिसमे इंसानियत ख़त्म हो जाती है l निर्भया कांड और मंदसौर कांड के पश्चात अब यह कहने की जरुरत नहीं कि मनुष्य शिक्षा, समाज और कानून की पल भर में धज्जिया उड़ा सकता है, और जानवरों की भांति आचरण करने लगता है l इतना ही नहीं, गलत आचरण करने पर भी वह जानवरों की भांति दुबारा वही कृत्य करने लगता है, जो जानवर अक्सर करतें है l फिर जानवर और इंसान में फर्क क्या है ? संस्कार और दर्शन को आत्मसात करने का माद्दा रखने वाला इंसान, समय के साथ विचारों को नए-नए उपक्रमों में लगा कर, उनसे समूचे मानव जाति को फायदा पहुचने का ढोंग भी करता है l संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व हेप्पीनेस रिपोर्ट हाल में ही जारी की है, जिसमे फिनलेंड नाम के छोटे से देश को विश्व का सबसे हेप्प्पी देश घोषित किया हिया l सबसे खुश देश इसलिए है, क्योंकि आय, शिक्षा, स्वास्थ, स्वतंत्रता, विश्वास और अंत में दया-करुणा जैसे मुलभुत गुण उस देश में प्रचुर रूप से पाए जातें है l भारत जो धर्म और अध्यात्म का विधाता कहलाता है, अभी भी अपने नागरिकों को सुखी रहने का मन्त्र नहीं दे पाया l नहीं तो मनुष्य जानवरों जैसा आचरण नहीं करता l मानो मानवीय गुण निर्वासित हो गए हो l असम में डायनी संदेह पर अब तक सैकड़ों लोगों की जाने भीड़ द्वारा ली जा चुकी है l मात्र संदेह और अफवाह के आधार पर किसी की हत्या कैसे की जा सकती है l सरेराह चोर चोर ने नारे कई बार गूंज उठते है, जिसमे रह चलते लोग पकड़े गए चोर को दो चार चपत लगा ही देतें है, चाहे उसको उस चोरी से कोई मतलब नहीं हो l मोब लिंचिंग एक घरेलु युद्ध जैसी स्थिति है, जिसमे क्षुब्द हो कर लोग कानून को पाने हाथ में ले लेते है l इस समय उसी स्थिति से गुजर रहें है l मोरल पुलिसिंग का जन्म भी इसी स्थिति से उत्पन्न हुवा है l अगर रजनी खर्गारिया और रूबी खर्गारिया(शिवसागर के दम्पति जिन्होंने पुत्र द्वारा तिरस्कार होने पर आत्महत्या की) के पुत्र और पुत्रवधु लोगों को सरेआम मिल जाए, तब यह तय है कि लोग उनको सड़क पर ही मार डाले, क्योंकि लोगों में गुस्सा इतना भरा हुवा है कि वे हाथोहाथ ही न्याय करना चाहतें है l फिर भी एक सभी समाज की अपनी व्यवस्था है, अपना कानून है, एक आचार संहिता है, जिसपर समूची मानव जाति टिकी हुई है l कोई भी इसका उलंघन करेगा, वह बागी कहलायेगा l अब यह प्रश्न भी जायज है कि भारत में न्यायिक व्यवस्था इतनी जटिल और लम्बी है कि दोषियों को सज मिलने में वर्षों लग जातें है l लोगों का गुस्सा इतना अधिक है कि वे दोषी को कोर्ट तक पहुचने ही नहीं देना चाहतें l इधर सरकार विकास के नए कीर्तिमान बनाने में लगी हुई है l आम जनता क्या चाहती है, इससे सरकारी तंत्र को कोई मतलब नहीं l कितना विरोधाभास है सरकारी घोषणाओं में और वास्तविकता में l जमीन आसमान का अंतर l फिर भी देश महान है l