सामाजिक सरोकार एवं बिहू आयोजन वाया मारवाड़ी युवा
मंच
इस भी वर्ष असम के जातिय उत्सव ‘बिहू’ को
मानाने के लिए असम में वास करने वाले सभी भाषा भाषी तत्पर हो रहे हैं l यह
असम के एक जातिय उत्सव है l अगर गौर से देखा जाय तो पाएंगे कि
असम में भाषा संस्कृति एक संवेदनशील विषय है, जिसे सभी भाषा-भाषी और धर्म के लोगों
को अपनानाने के लिए राज्य के बुद्धिजीवियों ने हमेशा से आह्वान कर रहें हैं l खास करके
असम साहित्य सभा ने तो असमिया भाषा को अपनानाने के लिए अभियान तक किया है l इतना
ही नहीं राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने आगे आ कर विषय पर भी टिपण्णी
की है l
उन्होंने बृहस्पतिवार को एक जन सभा में कहा है कि सभी गैर असमिया भाषी लोग इस बार
बिहू में चंदा नहीं दे कर असमिया गमछा पहने और बिहू का उद्यापन पारंपरिक तरीके से
कर जिससे एक बृहत्तर असमिया जाति का गठन हो सके l इससे पहले उन्होंने गैर असमिया
भाषियों से खुद से बिहू मानाने का आह्वान भी किया था l उनके
आह्वान पर असम के विभिन्न शहरों में बिहू का आयोजन मारवाड़ी समुदाय के लोग कर रहे
हैं l
पूवोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी युवा मंच के अध्यक्ष हिमशिखर खंडेलिया ने बिहू के आयोजन
में विशेष रूचि दिखाते हुए गुवाहाटी में बिहू का एक मुख्य आयोजन करने का निर्णय
लिया है l
मारवाड़ी युवा मंच के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल जैना और गुवाहाटी शाखा के
संस्थापक अध्यक्ष सुभाष अग्रवाल इसमें प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं l
मारवाड़ी युवा मंच ने अपने गठन काल से ही मारवाड़ी
समाज का प्रतिनिधित्व और असमिया सरोकार को तब्बज्यो दी है l चाहे
वह असम आंदोलन हो, बाढ़ और
अन्य प्राकृतिक आपदा सहायता हो या फिर स्वास्थ्य सेवा हो l रक्तदान
में तो मारवाड़ी युवा मंच ने कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं l मुझे याद
है कि जब असम आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों के साथ जुलुस में जाना होता था, तब एक
तबके में बड़ा रोष और भय था, क्योंकि पुलिस को आंदोलनकारियों को
पकड़ने की पूरी छुट थी l जब 1979 -80 में असम आंदोलन पुरे चरम पर था,
विदेशी हटाओ आंदोलन के नाम से पुरे विश्व में विख्यात हो गया था l
गांधीवादी सिद्धांत पर चलने वाले आंदोलन की शुरुवात में जब असम आंदोलन शुरू हुवा
था, तब
उसके नारा था ‘बहिरागत हटाओं’ l युवा मंच ने उस समय एक बड़ी भूमिका
निभाते हुए आसू के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत और साधारण सचिव भृगु फुकन से मिल कर
इस बात का खुलासा करने को कहा कि गैर असमिया भारतीय नागरिकों पर बहिरागत की
परिभाषा क्या लागु होती हैं l इस बात पर आसू नेतृत्व ने सभा की और
अगले ही दिन जज फ़ील्ड में एक बड़ी सभा में प्रफुल्ल महंत ने यह घोषणा कर दी कि
आंदोलन विदेशी नागरिकों के विरुद्ध है, ना की भारतीय लोगों के विरुद्ध, जो
वर्षों से असम में रहते हैं l आंदोलन के नारे को बदल कर विदेशी
हटाओं कर दिया गया, जिससे यह बात साफ़ हो गयी थी कि आंदोलन भारतीय
लोगों के विरुद्ध नहीं है, बल्कि बंगलादेशी घुसपेतियों के
विरुद्ध था l युवा
मंच ने सामाजिक सरोकार वाले अपने कर्त्तव्य को ना सिर्फ बखूबी से निभाया बल्कि
उससे आसू के साथ उसके संबंध आज भी कायम है l युवा मंच के सदस्यों ने हमेशा
आंदोलनकारियों का साथ दिया और आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया l असमिया
भाषा संस्कृति को अपनानाने के लिए युवा मंच की सभी शाखाओं के निवेदन किया गया l शाखा
स्तर पर कार्यशालाएं और विचार गोष्ठियां आयोजित की गयी कि कैसे मारवाड़ी रहते हुए
भी असमिया बना जा सकता है l स्वर्गीय छगनलाल जैन और स्वर्गीय
भगवती प्रसाद लडिया का उदहारण देते हुए हमेशा से विचार किया गया l भाषा
की अनिवार्यता को समझते हुए मारवाड़ी युवा मंच की सभाओं में असमिया भाषा के विद्वान
और बुद्धिजीवियों को बुलाया जाने लगा l ऐसा महसूस किया गया कि असमिया समाज
का अभिन्न अंग बनने के लिए कुछ जरुरी बदलाव करने होगे l इसी
कड़ी में शादी विवाह के दौरान सडकों पर होने वाले नांच गान को बंद किया गया, जिससे
एक अच्छा मेसेज जाय l युवा मंच की एम्बुलेंस सेवा राज्य में सरकारी
सेवा के बाद प्रथम सेवा थी, जिसे सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हुई l आज इस
कड़ी में मारवाड़ी युवा मंच बिहू का आयोजन करके एक प्रतिनिधि संस्था का दायित्व तो
निभा रहा है l साथ
ही उसने बृहत्तर असमिया समाज के गठन प्रक्रिया में एक लंबी छलांग लगाई है l
मारवाड़ी युवा मंच द्वारा बिहू के आयोजन से असमिया
समाज में एक सकरात्मक मेसेज तो जायेगा ही, साथ ही मारवाड़ी समाज के लोग
औत-प्रोत रूप से बिहू के उद्यापन से जुड़ जायेंगे l इस बात में भी सच्चाई है कि असम के
गावों में सभी समाज के लोग एक साथ बिहू का उद्यापन करते है और अंतरंग रूप से
असमिया समाज से जुड़े हुए हैं l ऐसे सैकड़ों मारवाड़ी इस समय भी मौजूद
है जो असमिया भाषा में पारंगत है और असमिया साहित्य साधना में कार्यरत हैं l कपूरचंद
जैन, उमेश खंडेलिया,
किशोर जैन, कमल
जैन,
जितेन्द्र जैन जैसे सैकड़ों लोग है, जो असमिया साहित्य को समृद्ध कर रहे
हैं l अब
असम के मुख्यमंत्री ने आह्वान किया है कि मारवाड़ी समुदाय बिहू का आयोजन करे, गमछा
धारण करे, पारंपरिक
असमिया खाद्य का आनंद ले, तब यह जिम्मेवारी मारवाड़ी समुदाय के
लोगों की बनती है कि वें आगे आ कर बिहू स्थली गौहाटी गौशाला में दो दिनों 16 एवं
17 अप्रैल को आयोजित बिहू के विस्तृत के कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले और उसे
सफल बनाये l उल्लेखनीय
है कि दो दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में असमिया परंपरा एवं संस्कृति का पालन
पूरी तरह से किया जाएगा l गौरतलब यह भी है कि मारवाड़ी समाज के
गायक कलाकार, जो वर्षों से असमिया भाषा में गीत गाते है, वें
अपनी प्रतिभा का परिचय इन दो दिनों में देंगे l उनका उत्साहवर्धन भी जरुरी है, जिसे
एक सकारात्मक मेसेज पुरे असम में जाय कि मारवाड़ी समाज भी बिहू का आयोजन भली भांति
कर सकता हैं l साथ
ही असम में उस चर्च अको बी विराम मिल जायेगा कि मारवाड़ी समुदाय चंदा दे कर इतिश्री
कर केता है, उनको
कला संस्कृति से कोई सारोकार नहीं हैं l यहाँ दुबारा युवा मंच के नाम को
दोहराना चाहूँगा कि एक समय ने उसने इस तरह के आयोजन के लिए एक अलग समिति का गठन भी
किया था, जो
असम के विभिन्न शहरों में स्थानीय कलाकारों के साथ मिल कर कई कार्यक्रम आयोजित
किये थे l युवा
मंच के सदस्य उन कार्यक्रमों के सफल आयोजन को भूल नहीं सकते l
दुबारा एक ऐसा ही संयोग बना है, जिसके लिए मारवाड़ी समाज को बढ़-चढ़ कर
आगे आना होगा, जिससे समाज का तो भला होगा ही, साथ में एक बृहत्तर असमिया जाति के
गठन प्रक्रिया में उसका एक अहम् रोल हो l