Friday, December 27, 2019

आखिर देश में कोई समझ क्यों नहीं सका कि एनआरसी क्या है ?


आखिर देश में कोई समझ क्यों नहीं सका कि एनआरसी क्या है ?
पूर्वोत्तर के साथ साथ इस वक्त पुरे देश में नागरिकता संसोधन कानून का विरोध चल रहा है l असम की परिस्थिति थोड़ी भिन्न है l पुरे देश में एनआरसी को नागरिकता संसोधन कानून के साथ मिलाया जा रहा है l यह कहा जा रहा है कि एनआरसी को देश की संसद ने पास कर दिया है l पर सच्चाई बिलकुल विपरीत है l अगर गौर से देखे ता पाएंगे कि असम में एनआरसी पर मुसलमानों का कही भी इसका विरोध नहीं है l जबकि देश भर में आरोप यह है कि यह कानून मुसलमानों के साथ भेदभाव कर रहा है l देश की नामी-गिरामी कॉलेजों के स्टूडेंट्स इस कानून के विर्दोह में निकल आये है l हद तो तब हो गयी, जब, सैकड़ों की तादाद में बुद्धिजीवियों ने भी विरोध में अपने वक्तब्य दिए है l बड़ी असमंजस की स्थिति बन गयी है l कौन किसकी माने, यह समझ में नहीं आ रहा है l पर इस बात को समझना होगा की असम में एनआरसी समाप्त हो गयी है, और एक आवाज तक नहीं आई l एनआरसी में किसी के साथ भेदभाव के लिए कोई स्थान यहाँ पर असम में किसी ने महसूस नहीं किया है l सभी ने इसका समर्थन किया और पूरी तन्मयता से इसमें भाग लिया l नतीजे चाहे कुछ भी निकले होंगे, पर इस सच्चाई से नाकारा नहीं जा सकता कि लोगों ने बड़ी तकलीफें सह कर एनआरसी के सत्यापन को झेला है l कईयों ने अपने कार्यालय से छुट्टी ली, कईयों ने अपने मूल स्थानों पर जा कर दस्तावेज जुटाने की चेष्टा की, कुछ लोगों ने अपने पुराने स्कूल जा कर रोल शीट तक लाने की चेष्टा की, ताकि सत्यापन के समय उसको दिखाया जा सके l इस पूरी कायावाद में दो वर्ष लग गए, और फिर एनआरसी प्रकाशित हो गयी l कुछ लोगों के नाम छुट गए, और उनको दुबारा से फोरेनेर्स ट्रिब्यूनल के समक्ष दुबारा से अपना पक्ष रखना होगा l पर कहने का मतलब यह है कि लोगों ने बहुत बड़ा सहयोग किया एनआरसी के अधिकारियों के साथ, और असम में एनआरसी का काम शांतिपूर्वक समाप्त हो गया l किसी भी दंगे और आगजनी की घटना नहीं हुई l इसके विपरीत देश में एनआरसी अभी लागु भी नहीं हुई है कि लोगों ने समझा की एनआरसी संसद में पारित हो गयी है, और निकल पड़े है विरोध में l दंगे में सैकड़ों लोगों की जान गयी, पर इस बात को कोई समझ नहीं पाया कि एनआरसी क्या है l असम में बहिरागत, अनासमिया जैसे शब्द यहाँ की फिजा में बराबर उछलेतें है l जातिसूचक शब्दों का उपयोग यहाँ अक्सर होता है, जिससे यहाँ पर रहने वाले अनासमिया लोग यह सोचने पर मजबूर हो जातें है कि कही वे भारत में तो नहीं रहतें l पर यह एक वैश्विक फेनेमेना है, नस्लीय भेदभाव की सूची में विकसित देश अमेरिका सबसे उपर है l भारत में तो हर बीस कोस पर एक अलग बोली है, और 500 किलोमीटर पर एक अलग भाषा l पौशाक, रहन-सहन और खान-पान भी अलग है l फिर भी यह देश एक है l देश का कानून सबके लिए बराबर है l यह हमरे लिए सौभाग्य की बात है कि हम एक ऐसे देश में जन्मे है, जहाँ अभी भी कानून का सहारा है l मानवता अभी भी लोगों में जिन्दा है l जिनके नाम एन आर सी में शामिल हो गए है, कम से कम अब वे असम के नागरिक है l वे अब बहिरागत नहीं है l ऐसे लाखों की संख्या में हिंदी भाषियों के नाम एनआरसी में शामिल हो गए है, जिन्होंने वर्षों पहले अपनी मूल निवास भूमि को पीछे छोड़ दिया था l ऐसे हजारों लोगों को अभी भी अदालतों के चक्कर लगाने पड़ेगें, जो अपने मूल निवास भूमि से दस्तावेज लाने में असफल रहें l ऐसे हजारों की संख्या में असम के मूल निवासी भी एनआरसी में कतिपय कारणों से शामिल नहीं हो सके है l पर इतना होने के बावजूद, यहाँ किसी प्रकार की हिंसा और विरोध नहीं हुवा था l इस भ्रम तो तोड़ने के लिए अब सरकार को लोगों के बीच जा कर उन्हें एनआरसी का मतलब समझाना होगा l
लोकतंत्र में दबाब की राजनीति का बड़ा महत्व है, चाहे वह सामने आ कर हो या फिर नेप्पथ्य में हो कर की जाए l ऐसे दबाब समूह होते है, जो सत्ता को निर्णय बदलने में बाध्य कर देतें है l जब भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तब, कुछ ऐसा नहीं हुवा कि अंग्रेज रातो-रात दिल्ली छोड़ कर चले गए l सामने से दबाब के लिए स्वतंत्रता आन्दोलन और पीछे से राजनैतिक तरीके से दबाब डाला गया, जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का निर्णय लिया l जब असम आन्दोलन हुवा, तब वह छह वर्ष चला, खूब प्रदर्शन और हड़तालें हुई, पर दबाब की राजनीति भी खूब चली l तब जा कर एक समझोता हुवा, जिसे हम असम समझोता के नाम से जानते है l दबाव समूह ऐसे हित समूह होतें है, जो सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करके कुछ विशेष हितों को सुरक्षित करने के लिये काम करते हैं। वे किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं करते तथा अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं, परंतु ये बड़े शक्तिशाली समूह होते हैं, जो निर्णय को प्रभावित करने की क्षमता रखतें है । लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिये और सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य को प्राप्त करने में दबाव समूह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दबाव समूहों के माध्यम से नीति-निर्माताओं को यह पता चलता है कि कैसे कुछ विशेष मुद्दों पर जनता क्या अनुभव करती है। तमाम आलोचनाओं के बावजूद भी दबाव समूहों का अस्तित्व लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये अनिवार्य है। दबाव समूह राष्ट्रीय और विशेष हितों को बढ़ावा देते हैं तथा नागरिकों एवं सरकार के बीच संवाद का एक ज़रिया बनते हैं। असम समझोते की धरा 6 को लेकर असम में रहने वाले इत्तर भाषा-भाषियों में काफी संशय है l उन्हें लग रहा है कि कही धारा 6 उनके संविधान द्वारा प्रदत लोकतान्त्रिक अधिकारों को नहीं छीन ले l इस समय राज्य में हिंदी भाषियों की संस्थाओं को एक मजबूत दबाब समूह बनना होगा, जो बाहर से और अंदर से, दोनों, और से केंद्र पर दबाब बना सके l