Sunday, March 29, 2009

बनती बिगड़ती सामाजिक मान्यताये

समय के साथ जैसे जैसे शिक्षा का व्यापक प्रचार हुवा है, वैसे-वैसे समाज में व्याप्त धारणाये, आचार-संहिता में स्वतः ही बदलाव के भारी संकेत देखने को मिल रहें है। अब किसी भी नयी वस्तु या विचार के लिए समाज में पर्याप्त जगह मौजूद है। तीज-त्यौहार और उत्सवों में लोग रूचि लेने लगे है, बशर्ते वे हमे उमंग दे, आनंद दे। लोक गीतों को एक बार उचित स्थान दिया जाने लगा है। यह एक खुशी की बात है। दुःख की बात यह है कि हमारे परिवारों पर टीवी का बुरा प्रभाव पड़ने लगा है, जिससे हमारी विशाल भारतीय संस्कृति विकृत हो कर हमारे सामने एक नए रूप में पेश हो रही है।

Thursday, March 26, 2009

आम चुनाव में हम

अगले आम चुनाव में हम देशवासियों को बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिये , चाहे वह चुनाव में वोट देने की बात हो या फिर अपने उम्मीदवार खड़े करने की बात हो। हर देशवासी को इस समय , जागरूक हो कर अपना कर्तव्य निभाना चाहिये , ताकी देश का भविष्य सुरक्षित रह सके। अब देश के पढ़े-लिखे लोगो को चुनाव की चर्चा करने में परहेज नही करनी चाहेये। अगर वे ऐसा करते है, तब उन पर पलायनवादी का आरोप लग सकता है। देश के लिए कुछ समय निकलना हर देशवासी का कर्तव्य है। सीमा पार से आने वालें अनुप्रवेश्कारियो का मुकाबला करने वालें हमारे जवानों के होसलों को भी बुलंद करने के लिए हमें आगे आने की जरूरत है। यह भी एक सच्ची देश सेवा है।
जय देश ।
रवि अजितसरिया