Saturday, June 30, 2018



अनेबल टू स्लीप

कुछ लोग कहते है कि सपने ऐसे देखो कि उनको पूरा करने के लिए एक जद्दोजहेद हो और रातों की नींद हराम हो जाए l इस समय भारत के लोगों के साथ यही हो रहा है l छोटे और मंझले व्यापारियों की नींद इस समय उड़ गयी है l उनको अभी कोई सपने नहीं आ रहें है l डार्विन के सिद्धांत बरबस याद आ जाते है, ‘स्वस्थतम की उत्तरजीविता’ (सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट) l इस समय देश में यही हो रहा है l दबे-कुचले हुए लोगों के लिए अब यहाँ कोई स्थान नहीं रह गया है l चारों और क्षेत्रीयतावाद की तीव्र आंधी चल रही है l व्यापार, वाणिज्य मानों कोई दोहम दर्जे का कार्य है l आम लोगों को रिझाने के लिए व्यापारी को हमेशा से सरे आम गालियाँ दी जाती रही है l पेट्रोल और डॉलर दोनों उपर जा रहें है l सब्जी, फल और रोजमर्रा की चीजों के भाव लगातार बढ़ रहें है l खुदरा दुकानदारों का हाल तो यह है कि वें दिन भर इस बात पर चिंता करतें है कि उनके रिटेल व्यवसाय का भविष्य क्या है l इस समय देश में खुदरा व्यवसाय करीब 600 बिलियन डॉलर का है, जो देश का सकल घरेलु उत्पाद का 10 प्रतिशत है l आर्थिक गुण में भारत ले लोग विश्व में उपर की श्रेणी में है, जो अभी भी अपनी जरुरत की चीजें बाजार की रिटेल दुकानों से खरीदतें है l रिटेल चैन और डिपार्टमेंट स्ट्रोर के आ जाने से भी भारतीय लोगों के स्वभाव में कोई फर्क नहीं पड़ा है l दुनिया के कुछ भागों में, खुदरा व्यापार में अभी भी परिवार-संचालित छोटी दुकानों का वर्चस्व है, लेकिन इस बाज़ार पर अब खुदरा श्रृंखलाओं का तेज़ी से कब्जा होता जा रहा है l पेट्रोल के भाव बढ़ने से खुदरा व्यवसाइयों में खलबली सी मच गयी है, उपर से डॉलर के रेट और रुपया अब तक का सबसे निचले स्तर पर पहुच जाने से कुछ भारतीय कंपनियों ने मौके का फायदा भी उठाना शुरू कर दिया है l उन्होंने अपने उत्पादों के भाव छद्म रूप से बढ़ाने भी शुरू कर दिए है l व्यापार और वाणिज्य को वैश्विक स्तर दिए जाने के पश्चात और भारत में सौ प्रतिशत तक विदेशी रिटेल निवेश के निर्णय के बाद, अब रिटेल दुकानदारों की परेशानियाँ पहले से ज्यादा बढ़ गयी है l उपर से जीएसटी के आने के पश्चात उसके तमाम धाराओं को सफलतापूर्वक अमल में लाना उनके लिए एक चुनौती बनी हुई है l छोटे और मंझले दुकानदारों के उपर मानो संकट सा छ गया है l आज छोटी दुकानों से ग्राहक नदारद है l हालाँकि, जीएसटी के जानकार कह रहें है कि यह संकट अस्थाई है, और समय के साथ एक बार फिर छोटी दुकानों में ग्राहक दिखाई देने लग जायेंगे l पर आर्थिक क्षेत्र के जानकार यह कह रहें है कि बड़े मॉल और शोपिंग कॉम्प्लेक्सों में दी जाने वाली आकर्षक छुट और केश बेक एक बड़ी वजह है ग्राहकों का छोटी दुकानों को छोड़ने की l बात इतनी भी नहीं बिगड़ती, पर जीएसटी के आने के पश्चात छोटे और मंझले दुकानदारों को जीएसटी में समाहित होने में कुछ समय लग गया, जिसका फायदा इन बड़े स्टोरों को मिल गया है l इस समय ग्राहक भी असंजस में है कि किस पर विश्वास करे, क्योंकि एक ही सामान दो अलग अलग जगह पर दो दामों पर मिल रहे है, जिनकी एमआरपी एक ही है l दरअसल में यह एक माल बेचने की कला है, जिसे मॉडर्न ट्रेडकहा जाता है l भारत ने जब बहुविदेशी कंपनियों को भारत में माल बेचने के लिए भारी सुविधा देनी शुरू जब से की है, उनका उत्पादन भारत के चारों कौनों में होने लगा है l इस समय देश में करीब 15 करोड़ खुदरा व्यवसाई है, जो देश में परम्परगत बाजार, हाट, चौक और कसबे पर अपनी दूकान चलातें है l इनमे वे भी शामिल है, जो रिटेल चैन की दुकाने चलातें है l दुकानदारी में मंदी आने के कारण ढूंढने से पता चलता है कि देश में व्यतिगत रूप से देशवासी परेशान सा दिख रहा है l वास्तविक स्थितियां देश में बिलकुल अलग है l भाषण में बोले गए वाक्य सुनने में मजेदार लग रहें है, पर उनको हकीकत की धरातल पर तोलते है, तब देह में अजीब सी सरसराहट होने लगती है, सांस फूलने लगती  है और रातों की नींद उड़ने लगती है l यह सच है कि देश में संवाद बढ़ा है, सरकार और लोगों में नजदीकियां भी आई है, पर अभी भी देश की एक बड़ी जनसंख्याँ उस लाभ से वंचित है, जिसका जिक्र हमारे देश के नेता गाये-बगाहे करतें रहतें है l इस सच्चाई से कोई नकार नहीं सकता कि देश की अर्थ-व्यवस्था के विकास में खुदरा व्यवसाइयों ने बहुत बड़ा योगसान दिया है l खुदरा व्यवसाइयों के हाथ मजबूत करने से यह तय है कि देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी l और अंत में,
इस समय देश एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है, जहाँ उसके समक्ष कई चुनौतियाँ है, जिनमे आर्थिक, सामाजिक और राजनेतिक, सभी है l जहाँ, जीएसटी को सफलतापूर्वक लागु करवाना अभी भी एक बड़ी चुनौती है, वहीँ, सामाजिक स्तर पर भी देश के गुणों को भी बचाए हुए रखना है l देश के कई नेता जो हाशिये पर चले गए थे, अपनी राजनेतिक भूमिका अभी भी तक तलाश रहें है, वे आम जनता को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रहें है l 

Friday, June 22, 2018


यह एक इंस्टेंट कॉफ़ी का जमाना है
तेजी से बदलते दौर में, विचारों का बदलना भी एक स्वाभाविक सी प्रक्रिया है l संस्कारों और रीति रिवाजों में कल-चक्र का प्रभाव हमें साफ़ दिखाई दे रहा है l फिर भी रचनाधर्मिता हमारे जीवन से निकली नहीं है l कुछ नया करने के लिए हम आतुर है l जीवन के प्रति लम्हे को अब हम दर्ज करना चाहतें है, जैसे अभी की जिंदगी ही बस सबसे अधिक अच्छी और सुंदर है, जिसे जितना जी  लो, उतना ही अच्छा है l एक फेसबुक पेज की तरह l जिस पर पोस्ट डालो, और फिर लाईक,कोमेंट्स और रिप्लाई l स्टेट्स अपडेट करो और फिर ढेरों लाईकस l इस तरह से जीवन में नए उपक्रम घर कर गए है , जिनके साथ रहना हमें पसंद आने लगा है l अब रोटी-कपड़ा-मकान से जीवन नहीं चलता, बल्कि उन तमाम जरूरतों को जुटाते हुए जीवन को जीने की एक कला है, जिसको हर मनुष्य आज ढूँढ़ रहा है l कुछ लोग जो जीवन भर संघर्ष भरा जीवन जी रहें होतें है, उनके लिए मात्र समृद्धि ही सुखी होने की निशानी है l आसुओं से कुश्ती लड़ कर कुछ लोग, एक नई जिंदगी जीने के लिए जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर लेतें है l खिड़की के झरोखे से दिखाई देने वाला एक छोटा सा दृश्य भी, उन्हें एक नए जीवन की और ले जाने में सक्षम है l परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही हो सकते हैं। किसी भी समाज, देश, व विश्व में कोर्इ भी सकारात्मक परिवर्तन जो प्रकृति और मानव दोनों को बेहतरी की ओर ले जाता है वही वास्तव में विकास है। अगर हम विश्व के इतिहास में नजर डालें तो पता चलता है कि विकास शब्द का बोलबाला विशेष रूप से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सुनार्इ दिया जाने लगा। इसी समय से विकसित व विकासशील देशों के बीच के अन्तर भी उजागर हुए और शुरू हुर्इ विकास की अन्धाधुन्ध दौड़। सामाजिक वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, नीति नियोजकों द्वारा विकास शब्द का प्रयोग किया जाने लगा।   कुछ लोग अपने अपने अंतर्मन से प्रेरित हो कर इस दुनिया में लोगों ने अपनी कठिन जिंदगी को हमेशा से ही सरल और मीनिंगफुल बनाने की कौशिश की हैं, चाहे वह ध्यान, अध्यात्म और भगवत पूजा के द्वारा हो या फिर दुनिया की तमाम उपलब्ध वस्तुओं को उपभोग करके हो l पर इंसान ने हमेशा से ही बदलाव के द्वारा एक खुबसूरत जिंदगी जीने की और रुख किया है l इस समय सबसे बड़ी और कठिन तपस्या इंसान की, स्वस्थ रहना है l स्वास्थ के लिए जब पूरी दुनिया में अरबों-खरबों रुपये खर्च हो रहें है, ऐसे में उसका लाभ धीरे-धीरे मानव जाति को मिलने की और अग्रसर है l तमाम द्वन्द्वों के बीच मुट्ठी भर सुख की प्राप्ति की चाह कर कोई कर रहा है l पर कहाँ रहता है, यह सुख, कैसा है इसका चहरा, कौन बताता है, सुख की दिशा l कई सारे प्रश्न हमारे दिमाग में कौध जातें है, जिनके जबाब हमें नहीं मिलतें l अत्यधिक धन होना, किसी बड़े सुख की अनुभूति नहीं भी दे सकता है, जबकि एक छोटा क्षण हमें इतना सुख दे सकता है कि जीवन की गति ही बदल जाये l शायद इसी क्षण के लिए लोग रुके रहतें हैं l जब धरती पर इतने संसाधन नहीं थे, तब आबादी भी इतनी नहीं थी, संघर्ष से भारी जिंदगी में इंसान की वास्तविक खूबियों की अपेक्षा होती रही, ऐसे में 21वी सदी मानव जाती के लिए वरदान बन कर आई है l तकनीक और सुचना प्रसारण अपने विकास के चरम पर है l मानव चाँद और अन्य ग्रहों पर घर बनाने की और अग्रसर है l न्याय संगत और विचार आधारित धरातल की सृजनशीलता ने मानवजाति के कद तो अब बहुत बड़ा बना दिया है l बोद्ध ग्रंथ मिलिंद प्रश्नएक ऐसा ग्रंथ है, जो उपदेशात्मक है, और सत्य से साथ साक्षात्कार करवाता है l इसमें मूल बात यही है कि जिस चीज का प्रवाह पहले से चला आता है, वही चीज पैदा होती है l मानवीय वृतियों का सूक्षमता से समझने से पहले यह समझना जरुरी है कि वे निहित श्रंखलायें क्या है जो एक जीव को मानव बनता है? उसके सोचने और समझने की शक्ति और जिजीविषा जिसके प्रदर्शन से वह एक मानव कहलाता है l यदि विकास के मूलतत्व को गहरार्इ से समझने का प्रयास किया जाये तो विकास का अर्थ सिर्फ आर्थिक सशक्तता नहीं हैं। यदि पूर्व के ग्रामीण जीवन का अध्ययन किया जाये तो आज के और पूर्व के जीवन की बारीकी को समझने का अवसर मिलेगा।  
दुनिया अब अभिव्यक्ति का एक सुंदर संसार बन गयी है l संवाद के माध्यम इतने प्रबल और मजबूत अवधारणा बना देतें है कि हर कोई उसी के पीछे दौड़ने लगता है l यह दौड़-भाग जीवन का एक हिस्सा बन गयी है l खुद को प्रशंसित करने की इच्छा, दूसरों द्वारा स्वीकृत होने और पीठ थपथपाए जाने की आकांशा अब जीवन का एक कोलाहल बन गयी है l एक आभासी संसार में रहने के लिए हो सकता है कि हम तमाम तरह की अवधारणों का सृजन कर ले, पर वास्तविकता की धरातल पर हमें एक दिन अपने आप को खड़ा रखना ही होगा l जीवनधारा फिल्म के इस सारगर्भित  गाने के बोल को यहाँ उद्धित करता हूँ ...’इसका नाम है जीवनधारा है, इसका कोई नहीं किनारा...हम पानी के कतरे, गहरा सागर ये जग सारा....इसका नाम है, जीवनधारा’ l