अनेबल टू स्लीप
कुछ लोग कहते है कि
सपने ऐसे देखो कि उनको पूरा करने के लिए एक जद्दोजहेद हो और रातों की नींद हराम हो
जाए l इस समय भारत के
लोगों के साथ यही हो रहा है l छोटे और मंझले व्यापारियों की नींद इस समय उड़ गयी है l उनको अभी कोई सपने नहीं आ रहें है l डार्विन के सिद्धांत बरबस याद आ जाते है, ‘स्वस्थतम की उत्तरजीविता’ (सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट) l इस समय देश में यही हो रहा है l दबे-कुचले हुए लोगों के लिए अब यहाँ कोई स्थान
नहीं रह गया है l चारों और
क्षेत्रीयतावाद की तीव्र आंधी चल रही है l व्यापार, वाणिज्य मानों कोई
दोहम दर्जे का कार्य है l आम लोगों को रिझाने के लिए व्यापारी को हमेशा से सरे आम गालियाँ दी जाती रही
है l पेट्रोल और डॉलर
दोनों उपर जा रहें है l सब्जी, फल और रोजमर्रा की
चीजों के भाव लगातार बढ़ रहें है l खुदरा दुकानदारों का हाल तो यह है कि वें दिन भर इस बात पर चिंता करतें है कि
उनके रिटेल व्यवसाय का भविष्य क्या है l इस समय देश में खुदरा व्यवसाय करीब 600 बिलियन डॉलर का है, जो देश का सकल घरेलु उत्पाद का 10 प्रतिशत है l आर्थिक गुण में भारत
ले लोग विश्व में उपर की श्रेणी में है, जो अभी भी अपनी जरुरत की चीजें बाजार की रिटेल दुकानों से खरीदतें है l रिटेल चैन और डिपार्टमेंट स्ट्रोर के आ जाने से
भी भारतीय लोगों के स्वभाव में कोई फर्क नहीं पड़ा है l दुनिया के कुछ भागों में, खुदरा व्यापार में अभी भी परिवार-संचालित छोटी
दुकानों का वर्चस्व है, लेकिन इस बाज़ार पर अब खुदरा श्रृंखलाओं का तेज़ी से कब्जा होता जा रहा है l पेट्रोल के भाव बढ़ने से खुदरा व्यवसाइयों में
खलबली सी मच गयी है, उपर से डॉलर के रेट
और रुपया अब तक का सबसे निचले स्तर पर पहुच जाने से कुछ भारतीय कंपनियों ने मौके
का फायदा भी उठाना शुरू कर दिया है l उन्होंने अपने उत्पादों के भाव छद्म रूप से बढ़ाने भी शुरू कर दिए है l व्यापार और वाणिज्य को वैश्विक स्तर दिए जाने के
पश्चात और भारत में सौ प्रतिशत तक विदेशी रिटेल निवेश के निर्णय के बाद, अब रिटेल दुकानदारों की परेशानियाँ पहले से
ज्यादा बढ़ गयी है l उपर से जीएसटी के आने
के पश्चात उसके तमाम धाराओं को सफलतापूर्वक अमल में लाना उनके लिए एक चुनौती बनी
हुई है l छोटे और मंझले
दुकानदारों के उपर मानो संकट सा छ गया है l आज छोटी दुकानों से ग्राहक नदारद है l हालाँकि, जीएसटी के जानकार कह
रहें है कि यह संकट अस्थाई है, और समय के साथ एक बार फिर छोटी दुकानों में ग्राहक दिखाई देने लग जायेंगे l पर आर्थिक क्षेत्र के जानकार यह कह रहें है कि
बड़े मॉल और शोपिंग कॉम्प्लेक्सों में दी जाने वाली आकर्षक छुट और केश बेक एक बड़ी
वजह है ग्राहकों का छोटी दुकानों को छोड़ने की l बात इतनी भी नहीं बिगड़ती, पर जीएसटी के आने के पश्चात छोटे और मंझले
दुकानदारों को जीएसटी में समाहित होने में कुछ समय लग गया, जिसका फायदा इन बड़े स्टोरों को मिल गया है l इस समय ग्राहक भी असंजस में है कि किस पर
विश्वास करे, क्योंकि एक ही सामान
दो अलग अलग जगह पर दो दामों पर मिल रहे है, जिनकी एमआरपी एक ही है l दरअसल में यह एक माल बेचने की कला है, जिसे ‘मॉडर्न ट्रेड’ कहा जाता है l भारत ने जब बहुविदेशी कंपनियों को भारत में माल
बेचने के लिए भारी सुविधा देनी शुरू जब से की है, उनका उत्पादन भारत के चारों कौनों में होने लगा
है l इस समय देश में करीब
15 करोड़ खुदरा व्यवसाई
है, जो देश में परम्परगत
बाजार, हाट, चौक और कसबे पर अपनी दूकान चलातें है l इनमे वे भी शामिल है, जो रिटेल चैन की दुकाने चलातें है l दुकानदारी में मंदी आने के कारण ढूंढने से पता
चलता है कि देश में व्यतिगत रूप से देशवासी परेशान सा दिख रहा है l वास्तविक स्थितियां देश में बिलकुल अलग है l भाषण में बोले गए वाक्य सुनने में मजेदार लग
रहें है, पर उनको हकीकत की
धरातल पर तोलते है, तब देह में अजीब सी
सरसराहट होने लगती है, सांस फूलने लगती है और रातों की नींद
उड़ने लगती है l यह सच है कि देश में
संवाद बढ़ा है, सरकार और लोगों में
नजदीकियां भी आई है, पर अभी भी देश की एक
बड़ी जनसंख्याँ उस लाभ से वंचित है, जिसका जिक्र हमारे देश के नेता गाये-बगाहे करतें रहतें है l इस सच्चाई से कोई नकार नहीं सकता कि देश की
अर्थ-व्यवस्था के विकास में खुदरा व्यवसाइयों ने बहुत बड़ा योगसान दिया है l खुदरा व्यवसाइयों के हाथ मजबूत करने से यह तय है
कि देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी l और अंत में,
इस समय देश एक नाजुक
मोड़ पर खड़ा है, जहाँ उसके समक्ष कई
चुनौतियाँ है, जिनमे आर्थिक, सामाजिक और राजनेतिक, सभी है l जहाँ, जीएसटी को
सफलतापूर्वक लागु करवाना अभी भी एक बड़ी चुनौती है, वहीँ, सामाजिक स्तर पर भी देश के गुणों को भी बचाए हुए रखना है l देश के कई नेता जो हाशिये पर चले गए थे, अपनी राजनेतिक भूमिका अभी भी तक तलाश रहें है, वे आम जनता को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रहें
है l
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