Wednesday, February 10, 2021

पूर्वोत्तर के कई छोटे कस्बों और शहरों में लोगों को अपने बच्चों के लिए उपयुक्त जीवन साथी ढूंढने में क्यों असुविधा हो रही हैं

 


यद्यपि समाज सुधार के कई कार्यक्रम और परिचर्चाएं मारवाड़ी समाज की प्रतिनिधि संस्थाएं विगत कई वर्षों से पृथक पृथक करती आई है, पर पिछली 26 जनवरी को मोरानहाट के समस्त मारवाड़ी समाज ने एक ही छत के नीचे समाज के एक ज्वलंत समस्या को सभी के समक्ष चर्चा के लिए रखा l विषय था, ‘छोटे गावों और कस्बों के बच्चों के विवाह संबंधों में आ रही कठिनाइया’ l मोरानहाट के उत्साही युवा विमल अगरवाल के प्रयास से मोरानहाट की श्री राधाकृष्ण विवाह भवन समिति. मारवाड़ी सम्मलेन, मारवाड़ी महिला सम्मलेन और मारवाड़ी युवा मंच के तत्वाधान में एक बड़ी परिचर्चा गणतंत्र दिवस के दिन संपन्न हुई l यहाँ सबसे बड़ी बात यह हुई कि समस्त मोरानहाट के समाज एक साथ खुल कर इस समस्या पर विवेचना कर रहे थें l विगत में मारवाड़ी युवा मंच और मारवाड़ी सम्मलेन ने अपने समाज सुधार कार्यक्रम के तहत ऐसी परिचर्चाएं आयोजित की गयी थी, पर समाज के सभी घटकों को एक छत पर लाना दुस्कर कार्य साबित हुवा और प्रयास असफल होते गए l मारवाड़ी युवा मंच को समाज सुधार कार्यक्रम सन 1991 में एक आंशिक सफल कार्यक्रम के रूप में देखा जाता है, जब समाज कि इस प्रतिनिधि संस्था ने समाज में लड्डू नहीं बांटने का एक अभियान चलाया था l उस कार्यक्रम कि एक जबदस्त प्रक्रिया देखने को मिली थी l समाज का एक वर्ग इस का जबर्दस्त विरोध कर रहा था l बहुत ज्यादा विरोध होने के पश्चात मारवाड़ी युवा मंच ने इस कार्यक्रम को स्थगित कर दिया था l पर ज्यों ज्यों दवा डी, त्यों त्यों मर्ज बढ़ता गया वाली कहावत मारवाड़ी समाज पर सिद्ध होती चली गयी l समाज में जो अघोषित तंत्र था, वह टूट कर चरमरा गया l बच्चों के संबंधों को करवाने के लिए कोई भी मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं होना, इस बात का गवाह है कि स्थिति कितनी गंभीर हो गयी हैं l आज हालात यह हो गए है कि गावों और छोटे शहरों के बच्चों के विवाह होने मुश्किल हो गए है l कारणों को अगर ढूंढने जाए, तब पाएंगे कि एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पढ़ी लिखी लड़कियों पर पड़ चूका है कि छोटे शहरों में सविधाओं का आभाव हैं l

मोरानहाट की इस सभा में टाउन के तमाम बड़े-छोटे संस्थाओं के पधाधिकारी, कार्यकर्त्ता और आमजन उपस्थित थे, जिन्होंने सिर्फ समस्या पर विवेचना ही नहीं की, बल्कि उनके समाधान की और भी एक कदम चल कर आगे आये हैं l वस्तुतः यह परिचर्चा तीन चार बड़े बिन्दुवों पर समाहित की गयी l एक, छोटे टाउन और शहरों और कस्बों में लड़कियों का शादी जाने से इनकार l दूसरा, समाज में ख़तम होती मध्यस्थ की भूमिका और उसकी जरुरत क्यों l तीसरा, कुछ लोगों द्वारा बच्चों के बारे में भ्रम फैलाना और चोथा, मोरन टाउन की बहु बेटियों को मोरन टाउन का ब्रांड अम्बेसडर बनने के लिए प्रेरित करना l अब रही बात शिक्षित लड़कियों का छोटे शहरों और कस्बों में जाने से इनकार करना, यह एक आम समस्या बन चुकी है, जिस पर इसलिए विवेचना हो रही है, क्योंकि पानी सर पर से गुजर चूका है l  बच्चों ने हाल ही में नए सपने बुन लिए है, उनके अभिभावकों ने भी तमाम तरह के नए उपक्रमों को अपने अंदर घर कर लिया है l ऐसे में गावों, कस्बों और शहरों का नम्बर कैसे आएगा l रही बात मध्यस्थ की तो, यह एक बीती बात हो चुकी है l एकल परिवार के गठन होने के पश्चात बच्चों ने बेहतर शिक्षा और नए परिवेश में रहना सीख लिया है l उन्होंने अपने लिए भविष्य की कल्पना भी कर ली है l ऐसे में उनका खुद का निर्णय ही सर्वोपरी माना जायेगा, जिससे अभिभावकों को भी ख़ुशी होती है l मध्यस्थों की भूमिका इसलिए जरुरी है, क्योंकि दोनों पक्षों में कोई अनावश्यक विचार ना बने, और शादी ख़ुशी से संपन्न हो जाए l

इस समय ज्यादातर भारतीय लोगों की मेहनत से कमाई हुई गाढ़ी कमाई अपने बच्चों की शादियों पर हो रही हैं l चाहे लड़का हो या लड़की, शादियाँ अब एक महंगा इवेंट बन गयी हैं l मानो एक अदद इंसान के जीवन का उद्देश्य अपने बच्चों की धूमधाम से शादी करना ही हो गया हो l एक एक पैसा जोड़-जोड़ कर रखना, जिसे शादी के लिए बस खर्च करना हैं l कोई अगर पूछे कि कैसे, शादी तो सात फेरे की रस्म है, कही भी आयोजित की जा सकती हैं l इसका जबाब सीधा और सपाट नहीं हैं l यह कहा जा रहा हैं कि शादी सिर्फ फेरे की रस्म मात्र नहीं है, यह एक इच्छा और आकांशा पूरी करने का अवसर है, जिसे अभिभावक इस समय पूरी करके, अपने बच्चों को प्यार का तोहफा देतें हैं l जीवन भर की कमाई एक ही रात में महंगे रिसेप्शन पर खर्च करके बेशक वह अपनी पीठ खुद ही थपथपा लेता है, पर दिल के किसी कौने में उसे इस बात का भी मलाल रहता हैं कि उसने क्यों इतना खर्च किया l शायद सामाजिक प्रतिष्ठा की वजह से, या फिर भेड़ चाल में, नहीं तो कैसे होती उसके बच्चे की शादी l इतना तो जरुरी है, भाई.. l यह कितना जरुरी है, इसके मापदंड क्या हैं l कौन तय करेगा ?  सामर्थ नहीं होते हुए भी खर्च करने की इच्छा करना और बाहरी सुन्दरता और दिखावा मानो जीवन का एक ध्येय बन गया हैं l बड़ी बात यह होनी चाहिये कि बड़े और आकर्षक मंडप को सामाजिक मॉडल नहीं बनने देना है l नहीं तो माध्यम वर्ग इसी कुंठा में आ जायेगा कि उसने बच्चों की शादी में वह इस तरह के मंडप क्यों नहीं बनवा सकता l अभ्भावाकों नको अब अपने बच्चों के रिश्ते ढूंढने में दिक्कत आ रही हैं l महँगी शादियों के चक्कर में जो पड़ गया हैं समाज l पूर्वोत्तर के कई छोटे कस्बों और शहरों में लोगों को अपने बच्चों के लिए उपयुक्त जीवन साथी ढूंढने में असुविधा हो रही हैं l उनका कहना हैं कि नई जीवन शैली से प्रभावित बच्चे, अपने लिए जीवनसाथी का चयन करने में पहले से ज्यादा समय ले रहें हैं l शायद एकल परिवार का यह भी एक साईड इफ़ेक्ट हो कि बच्चें अपने निर्णय लेने में खुद ही सक्षम हो गए हैं l पर ज्यादा उम्र होने पर भी शादी नहीं होने, पर वें डिप्रेशन का शिकार भी हो रहें हैं l

शादी विवाह पर इस चर्चा को करने के पीछे उद्देश्य यह है कि एक नई पहल आजकल के पढ़े-लिखे शिक्षित लोग करना चाहतें है l यह चर्चा इस लिए भी जरुरी है क्योंकि, पानी अब सिर से उपर चला गया है l माध्यम वर्ग अब त्रस्त हो कर बदलाव की उम्मीद कर रहा है l पर समस्या यह है कि कैसे संभव हो पायेगा, यह कार्य l मोरानहाट ने एक चर्चा कर एक नई शुरवात की है l अब देखना है कि इस चर्चा को कौन आगे बढाता है l   

 अभी और विचार मंथन की जरुरत है

पिछले हफ्ते समाज सुधार और शादी विवाह पर लिखे गए विचार को समूचे पूर्वोत्तर से प्रतिक्रिया मिली l विषय था, पूर्वोत्तर के कई छोटे कस्बों और शहरों में लोगों को अपने बच्चों के लिए उपयुक्त जीवन साथी ढूंढने में क्यों असुविधा हो रही हैं l  उपरी असम के छोटे छोटे कस्बें जो स्वर्ण चतुर्भुज राजमार्ग योजना के बाद से मुख्य सड़कों से जुड़ गए थे, वहां से युवाओं ने अपने आप को पूर्वोत्तर के बड़े शहरों से जोड़ा और शिक्षा एवं रोजगार के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है l बहुत से बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से देश के मेट्रो शहरों में चले गए, कई शिक्षा प्राप्त करके जॉब करने लगे, कुछ वही रुक गए l इन बीस वर्षों में शिक्षा, रोजगार और सामाजिक परिवेश की पूरी तश्वीर बदल गयी है l नए युवा, उन युवकों को पढ़ लिख कर सेटल होता देख, ख़ुशी महसूस करने लगे, कि वें भी इसी तरह किसी हॉस्टल या पीजी में रह कर बड़े शहर में शिक्षा करेंगे और फिर जॉब लेकर सेटल हो जायेंगे l नए सपने बुने जाने लगे l इन सपनों में अपना गावं, शहर, लोग और समाज कही छुटने सा लगा है l असम के चारों और फैला हुवा मारवाड़ी समाज के बच्चे अपने पुश्तैनी व्यापार को छोड़, मल्टीनेशनल कंपनियों में ऊचें पदों पर आसीन होने लगे l बहुत से बच्चे विदेश रहने लगे l अभिभावकों को इस बात की चिंता होने लगी कि उनके बाद उनका व्यापार कौन संभालेगा l एक बड़ा सामाजिक बदलाव भी देखने को मिला, वह था, प्रेम विवाह को समाज की स्वीकृति l फिर बहुसमुदाय विवाह भी समाज में होने लगे, जिनके लिए भी कोई आपतियां नहीं हुई l नए सामाजिक विचार को ठोस जमीन मिल रही थी l परिवारों में पहनावें और रहन सहन में भी बड़ा बदलाव देखने को मिला l भाषा संस्कृति हर बात एक कुछ नए मायने बनने लगे l शायद नयी सदी का सबसे नायब तोहफा था, लोगों के लिए जिसमे एकल परिवार के अभिभावकों द्वारा बनाई हुई अपनी दुनिया थी, जिनमे आधुनिक सोच विद्ध्यमान थी, स्वछंदता थी और आत्मविश्वास था l सामाजिक स्तर पर अगर इस नए आधुनिक सोच को तोले तो पाएंगे कि समाज नामक पिंजरे से आगे निकल चुकी है, यह नयी सोच l

वर्षों पहले मारवाड़ी युवा मंच की एक समीति हुवा करती थी, वधु प्रताड़ना एवं परित्यक्त महिला समीति l इस समीति का मुख्य कार्य था, वैवाहिक संबंधी मामलों को सामाजिक स्तर पर सुलझाना l समिति के पास तलाक, पुनर्विवाह और प्रेम विवाह के मामले आते रहते थे l आजकल युवा मंच के पास इस तरह के मामले नहीं आते l सामजिक स्तर पर विवाह संबंधी मामले सुलझाने के लिए, अब कोई अघोषित तंत्र भी मौजूद नहीं है और ना ही कोई पंचायत के आदेश मानने पर बाध्य है l पर इन सब से वैवाहिक मामलों में कमी तो नहीं आई है l ऐसे सैकड़ों मामले आज भी फैमिली कोर्ट में लंबित पड़े है, जिन पर आने वाले छह महीनों में फैसले होने हैं l इतना ही नहीं, बहुत से मामले बिना सुलझाये हुए भी यूँ ही रुके हुए है, जिनमे पक्षों ने अदालतों में लड़ा हैं l लिखने का आशय यह है कि सभ्य समाज की जरूरतों को बच्चें पूरा कर रहे हैं, पर जब भी बात स्वच्छन्दता की आती है, तब नयी नयी समस्याएं पैदा हो जाती है l एकल परिवार की संरचना भी इन्ही बिन्दुवों पर भी टिकी हुई है l छोटे गावों और कस्बों में बच्चों के रिश्तों के होने में आ रही परेशानियों से हर कोई जुंझ रहा है l कस्बों और छोटे शहरों की अपनी खूबियाँ है, और बड़े शहरों और मेट्रोज की अलग परेशानियाँ है  l मैंने कई परिवारों को देखा है, जो शहरों की चकाचौंद से प्रभावित हो कर एक बार तो शहर में जा बसे, पर खर्चों से तंग आ कर वापस अपने गावों और कस्बों और रुख किया है, और अपना रोजगार दुबारा से शुरू किया हैं l

फ़रवरी माह के अंत में मारवाड़ी युवा मंच का एक अधिवेशन गुवाहाटी में आयोजित हो रहा है l मारवाड़ी युवा मंच समाज सुधार के मामलों में एक अग्रणी संस्था रह चुकी है, जिन्होंने खुले मंच पर इस विषय पर खुल कर चर्चा आयोजित की है l मेरा आयोजकों से निवेदन रहेगा कि पूर्वोत्तर में लोगों को इस गंभीर सामाजिक विषय पर एक अलग सत्र करवा कर, इस समस्या पर विचार मंथन किया जाए, ताकि कुछ भ्रांतियों का अनावरण हो, तो कुछ नए समाधान के विचार भी सामने आ सके l लड़के-लड़की की शादी किस गावं, शहर में हो, यह एक काल्पनिक सवाल हो सकता है, पर शहरों में स्वस्थ्य, शिक्षा कि बेहतर सुविधा होने की वजह से बच्चों को शायद शहर पसंद हो l इस प्रश्न के जबाब में एक सज्जन ने कहा है कि शहर में सविधा भले ही गावों से अच्छी हो, पर खर्चा भी तो गावों से कई गुना हो सकता हैं l उपर से अभी तक का इतिहास है कि पूर्वोत्तर के गावं गावं से कई एक हीरे निकले है, जिन्होंने शिक्षा जगत में घूम मचाई हैं, और आज एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभा रहें हैं l एक उदहारण महाराष्ट्र के बीड जिले से आई है, जहाँ झटपट विवाह आयोजित जाते है, दो शुद्ध शाकाहारी परिवारों के लोग मंदिर में लड़के-लड़की आपस में देख वही पर शादी कर लेतें है l दूसरा, मारवाड़ी शादियाँ दिनोदिन महँगी होती जा रही है, अगर समाज यह निर्णय ले कि आदर्श विवाह पद्दति शुरू कि जाय, तब कई परिवारों के अभिभावक आगे आ सकते है l खर्चे के डर से भी कई बार अभिभावक चुप्पी साध लेते हैं l तीसरा, समुदाय के घटकों के बीच भी शादियाँ हो सकती है, जिसके उदहारण किसी कारण से कम दिखाई देतें हैं l  

शादी विवाह के मामले में सभी विषय एक साथ गुँथे हुए है, इनको समग्र रूप में भी देखना होगा l जरुरत इस बात कि भी है कि सामाजिक संस्थाओं को इस विषय को अपने एजेंडा में रखना होगा, और विचार मंथन कि प्रक्रिया शुरू करनी होगी l क्या निष्कर्ष निकलेगा, यह बाद की बात है l 

 समाज सुधार और मारवाड़ी युवा मंच

पूर्वोत्तर भारत में मारवाड़ी युवा मंच हमेशा से ही समाज सुधार का झंडाबरदार रहा है l उसके पांच दर्शनों में समाज सुधार नामक एक दर्शन समाहित हैं l अपने जन्म काल से ही उसने युवाओं की उर्जा को पोषित कर एक सही दिशा की और ले जाने का प्रयास किया है l खास कर के समाज सुधार के क्षेत्र में उसने समाज में कई उल्लेखनीय और सराहनीय कार्य किये है, जिससे समाज को एक दिशा निर्देश मिला है l एक समय जब समाज में दहेज़ प्रथा जोरो से विद्ध्यमान थी, तब मारवाड़ी युवा मंच ने इस प्रथा का सबसे पहले समाज में विरोध किया था और अपने सदस्यों को दहेज़ नहीं लेने की कसमे दिलवाई थी l इसके कई सदस्यों ने आदर्श विवाह भी किये थे l इसी संस्था ने विवाह शादी के मौके पर सड़कों पर होने वाले भोंडे नृत्य रुकवाए थे l इतना ही नहीं, अनावश्यक दिखावे और प्रदर्शन का हमेशा से विरोधी रहा है मारवाड़ी युवा मंच l मारवाड़ी युवा मंच का एक प्रांतीय अधिवेशन आगामी 26 फ़रवरी को गुवाहाटी में शुरू होने जा रहा है, जिसमे एक नए अध्यक्ष का चुनाव और कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की जाएगी l समाज सुधार के विषय समय के साथ पिछली पंक्ति में चले जाने की वजह से इन वर्षों में मारवाड़ी युवा मंच की शाखाओं में विचार गोष्ठियां आयोजित नहीं की जाती, जिससे युवाओं को समाज और समाज से जुड़े विषयों पर सही जानकारी नहीं मिल पाती l मारवाड़ी बच्चों की शादी-विवाह एक महत्वपूर्ण विषय है, जिनसे सभी औत-प्रोत रूप से सभी जुड़े हुए है l जब पूर्वोत्तर के सैकड़ों युवा एक छत के नीचे एकत्र होंगे, तब इस विषय पर चर्चा हो सकती है कि पूर्वोत्तर के कई छोटे कस्बों और शहरों में लोगों को अपने बच्चों के लिए उपयुक्त जीवन साथी ढूंढने में क्यों असुविधा हो रही हैं l जब मोरानहाट में सबसे पहले इस विषय पर चर्चा हो रही थी, तब उन्होंने कुछ ठोस निर्णय लिए थे, जिनमे एक निर्णय था कि मोरानहाट में एक परिणय सेवा सेल बनाया जायेगा, जहाँ पर इस समस्या को प्रचारित किया जायेगा, जिससे शहर और टाउन के बीच की मनोवैज्ञानिक दुरी कम की जा सके l प्राप्त जानकारी अनुसार यह केंद्र बच्चों का बायोडाटा भी संग्रह करेगा और मोरानहाट टाउन की उपलब्धियों के बारे में आने वाले अभिभवकों को अच्छी तरह से बताएगा l मारवाड़ी समाज अभी एक संक्रमण काल से गुजर रहा है, उसकी भाव भंगिमाएं कुछ बदली बदली नजर आ रही है l समाज में नयें रंग इस तरह से भर गएँ है कि उनको अलग करना मुश्किल ही नहीं नामुनकिन हो गया है l समाज, वर्ग, जात और घटक में बांटता हुवा जा रहा है l एक सगज प्रहरी की भांति मारवाड़ी युवा मंच अपने प्रतिनिधि संगठन होने के दायित्वों का पालन करें, यही हमारी अभिलाषा है l एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज के नाम से जाने जाना वाला मारवाड़ी समाज, अब बदलाव के चौरस्ते पर खड़ा है l बदलाव के दिनों में सामाजिक संस्कारों से ले कर मानवीय मूल्यों में भी गिरावट हुई है l ऐसे में सामाजिक संस्थाओं का रोल कुछ ज्यादा ही बनता है l सामाजिक संस्थाएं अपना कार्य पूरी जिम्मेवारी के साथ करें, समाज को एक स्पष्ट सन्देश जरुर दिया जाना चाहिये l सामाजिक संस्थाएं हर गावं शहर में उस अघोषित तंत्र तो दौबारा जीवित करे, जिसने समाज को बांधकर, आंचार-संहिता के साथ चलने के लिए हमेशा से प्रेरित किया था l जिस तंत्र ने जन्म-वरण एवं मरण के समय सामाजिक चेतनाओं को अंगीकार करने में मदद की थी, उस तंत्र की जरुरत दुबारा से समाज में महसूस की जा रही है

दरअसल में गावं-कसबे और शहर में शादी की समस्या कुछ और भी हो सकती है l थोड़ा तीखा और सीधा लिखा रहा हूँ l पहला, आजकल शादी विवाह एक महँगी रस्म बनती जा रही है l खासकरके माध्यम वर्गीय परिवारों के लिए तो यह एक जी का जंजाल बन रही है l ना चाहते हुए भी एक अभिभावक अपनी जीवन भर की कमाई एक रात में खर्च कर देता है l बड़े रिसोर्ट और पांच से तीन सितारा होटलों शादियाँ आयोजित होने लगी है l शायद टाउन और कस्बों में यह सब संभव नहीं हो, इसलिए मन की मुराद छोटी जगह पूरी नहीं हो सकती l लड़केवाले ही नहीं, आजकल तो लड़कीवाले भी अपने बच्चे का विवाह आलीशान तरीके से करना चाहते हैं l इससे अभिभावकों और बच्चों, दोनों,  ने देखादेखी यह सोच लिया है कि यह कार्य छोटे शहरों में संभव नहीं l दूसरा, टाउन और कस्बों के पच्चास किलोमीटर की परिधि में क्यां विवाह लायक बच्चें खोजे नहीं जा सकते, जिन्होंने अपने टाउन और कस्बे के माहोल को बेहतर समझा है l ऐसे बच्चों को भला छोटी जगहों से क्यों एतराज होगा ? तीसरा, बड़े शहरों में व्यापार, वाणिज्य एवं रोजगार के नए साधन आसानी से बन जाते है, जिसकी वजह से शहरों की तरफ दौड़ लगाई जा आरही हैं l चौथा, शहरों में एक स्वछंद जिंदगी जी जा सकती, जहाँ पाबंदियां नहीं के बराबर है, स्वरोजगार करते हुए युवा आराम से अपनी जिंदगी जी सकते हैं l छठा, अपने पैरों पर खड़े युवा, अपने जीवन साथी का चुनाव अपनी इच्छा से क्यों नहीं करेगा l समाज और बिरादरी की वह क्यों सुनेगा ? सातवा, प्रोफ्फेसोनल बच्चों शहरों में नौकरियां करतें है और एकल परिवार में रहने के आदि हो जाते हैं l

पूर्वोत्तर के कई छोटे कस्बों और शहरों में लोगों को अपने बच्चों के लिए उपयुक्त जीवन साथी ढूंढने में क्यों असुविधा हो रही हैं ? यह लाख टाकिया प्रश्न है,जिसक कोई स्पष्ट और सटीक जबाब नहीं हो सकता l समय के साथ यह समस्या भी चल कर आई है l समय के साथ ही इसका हल निकलेगा l गावं में होने वाली शादी भी जीवन भर चल सकती है, और शहर में होने वाली शादी किन्ही कारणों से नहीं भी चल सकती l यह तो आपसी सामंजस्य और तालमेल है, जिसकी वजह से रिश्तों में गर्माहट बनी रहती हैं l विषय पर स्थानीय स्तर पर लगातार चर्चा अगर बनी रहे, तब यह बात तो तय है कि किसी के लिए भी किसी गावं, कस्बों और शहर को कमतर बताने में दिक्कत होगी l साथ ही उन मध्यस्थों कि पहचान होगी, जो संबंधों को बनने से पहले ही उजाड़ने में लगे रहते हैं l शादी विवाह की कड़ी को यही समाप्त करता हूँ, इसी आशा के साथ कि सभी विषय पर गहन चिंतन करेंगे l