Sunday, August 28, 2016

एक गतिशील और क्रियाशील व्यक्ति-कपूर चंद जैन
रवि अजितसरिया

कुछ लोगों में असाधारण प्रतिभा होती है, जिसके बल पर वे खुद तो भीड़ से अलग दिखाई देते ही है, साथ ही समूचा समाज उन प्रतिभाशाली व्यक्तियों के गहन ज्ञान से लाभान्वित हो जाता है l गुवाहाटी के मारवाड़ी समाज में एक ऐसे ही व्यक्ति है, कपूर चंद जैन, जिनका व्यक्तित्व इतना बड़ा और विशाल है कि उन्होंने जातिवादी संकीर्णता से उपर उठ कर, विभिन्न समाजों में अपनी पहचान बनाई है l असम में वास करने वालें, विभिन्न भाषा-भाषी लोगों में वे अच्छे-खासे लोकप्रिय है l अध्यात्म, साहित्य और समाज सेवा, मानो उनके लिए ही बनी हो l कपूर चंद जैन एक तपस्वी नहीं है, पर उनका अचार-व्यवहार, लोभ और मोह से दूर है, जिससे वे एक तपस्वी की भांति समाज में विराज कर रहें है l मायिक शक्तियों से दूर l श्री कपूर चंद जैन उन लोगों में है, जिन्होंने अपने सादे जीवन और उच्च विचार के सूत्र को अध्यात्म और व्यवहार, दोनों क्षेत्रों में भली-भांति उपयोग करकें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे चारों पुरषार्थ को हर संभव अपने जीवन में उतारने की चेष्टा की है l उनका जन्म असम के कामरूप जिले के पलासबाड़ी नगर में हुवा था, जो असमिया धर्म-संस्कृति का एक केंद्र माना जाता है l यही से, उन्होंने असमिया भाषा में अपनी प्राम्भिक शिक्षा ग्रहण की थी l एक साहित्यकार, बहुभाषाविद, समाजसेवी, ग्रन्थज्ञाता, और धर्म विद्वान, कपूर चंद पाटनी ने असमिया भाषा को अपनी मातृ भाषा के बाद, सबसे अधिक प्यार किया, जिसमें उन्होंने, एक हिंदी भाषी होते हुए भी अपने छात्र काल में, कॉटन कॉलेज का अध्यन के दौरान, सर्वोच्च्य अंक प्राप्त किया l उनकी मृदु वाणी से हर समय लोग उनसे प्रभावित रहतें है l उनकी विषय पर सटीक और बेबाक टिपण्णी, इस बात की और भी इंगित करती है कि उनको विषय पर कितनी पकड़ है l धर्म और कर्म के उपर, एक विद्वान् की भाँती, उन्होंने कई दफा लीक से हट कर, भरी सभा में उन आम धारणाओं के विरुद्ध जा कर, ऐसें व्याख्यान भी दिए है, जिस पर समाज में विरोधाभास हो, जिस पर टिपण्णी करने से कोई भी बचता है l धर्म के प्रति उनकी गहरी आस्था होने के कारण, उन्होंने प्रपंचों और पाखंडों से अपने आप को हमेशा दूर रखा है l कई दफा उनको इस कारण अपने ही समाज के लोगों से आलोचना भी सुनानी करनी पड़ी थी l धर्म की वास्तविकता और मर्म को पहचानते हुए उन्होंने धर्म और मनुष्य के आचरण पर कई लेख और पुस्तकें भी लिखी है l  
अनेकों धर्म संस्थाओं से जुड़े रहने के कारण, उन्होंने हमेशा से ही सामाजिकता में विश्वास किया है l एक शिक्षाविध होने की वजह से उन्होंने जैन स्कूल के कार्यों को भली-भांति अंजाम दे कर स्कूल को एक उन्नत दर्जे की स्कूल के रूप में विकसित किया है l जैन पंचायत की कार्यकारिणी के सक्रीय सदस्य होने के साथ, उन्होंने जैन विद्यालय के महामंत्री के पद भी जिम्मेवारी बखूभी संभाल रखी है l घनिष्ठ रूप से असम साहित्य सभा से सम्बद्ध हो कर इन्होने ना सिर्फ अपनी एक अलग पहचान बनाई है, बल्कि असमिया समाज में मारवाड़ियों के मान भी बढाया है l असम साहित्य सभा के केन्द्रीय कमिटी में भी वे सदस्य रहें है l उन्होंने कई सभाओं और अधिवेशनों में सभा सञ्चालन का कार्य भी किया है l वर्ष 2017 में होने वाले असम साहित्य सभा के शताब्दी समारोह के लिए बनी हुई स्वागत समिती के वे उपाध्यक्ष है l शाकाहार पर उन्होंने दो पुस्तकों का असमिया में अनुवाद करके प्रकाशित की है l उन्होंने असमिया में चार पुस्तकें, अंग्रेजी में दो और बंगला में एक पुस्तक लिखी है l उन्होंने अब तक करीब एक सौ से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखे है, जिनसे सामाजिक चेतना का उदय हुवा l समाज में व्याप्त कुरीति, और अंधविश्वास पर उन्होंने ऐसे कई लेख लिखे, जिसकी वजह से समाज लाभान्वित हुवा है l एक साहसी लेखक का रोल अदा करके उन्होंने, ना सिर्फ अपना एक अलग परिचय दिया है, बल्कि हमेशा से नवीन विचारों का समाज में संचार होने दिया है l जैन शोध और विवेचना के क्षेत्र में श्री कपूर चंद जैन का नाम काफी लोकप्रिय है l उनकी दो पुस्तकें ‘अयिर्काओं की चर्या’ और ‘प्रश्नोतरी दीपिका’ जैन समाधानों और शंकाओं को दूर करने में एक मील का पत्थर साबित हुई है l अपनी वाणी और लेखनी के द्वारा उन्होंने जैन समाज की जो सेवा की है, वह सराहनीय ही नहीं बल्कि अनुकरणीय भी है l वे श्री मारवाड़ी हिंदी पुस्तकालय के ट्रस्टी भी है, जिसकी वजह से पुस्तकालय जैसे ज्ञान के मंदिर में उन्होंने कई ऐसी सभा का सञ्चालन किया, जिसमे हिंदी और असमिया समाज के विद्वान् मौजूद थे l बड़े से बड़े विषय पर उनकी टिप्पणियां, तुनुक और आह्लाद भरी रहने के कारण, जीवन के वैषम्य की दार्शनिक खोज पर उनका हमेशा से रुझान रहा है l संक्रमण काल से गुजर रहे समाज के समक्ष मूल्य आधारिक समाधान रख कर, हमेशा से ही जैन समाज में धर्म और कर्म के बीच के अंतर को समझने में उन्होंने एक बड़ी भुमिक निभाई है l वैचारिक अंतर, धर्म में आडम्बर और दिखावे को लेकर उनके एक सटीक विचार होने की वजह से वे हमेशा से स्वयं से युद्ध करतें है l 
जैन पुराणों पर सटीक जानकारी होने की वजह से ग्रथों के मार्मिक और यथार्थ चित्रण के पहलु को समाज के सामने हमेशा रखा है l  
भक्ति-मूलक ग्रंथों और पुस्तकों के अध्यन और उन पर विवेचन, कपूर चंद जैन की एक जीवन शैली बन गयी है l विषय को परम-तत्व तक पहुचाने में, उस पर विमर्श और तर्क, इनकी खासियत रही है l विस्मित कर देने वालें उनके शब्द, अक्सर लोगों में कोतुहल का कारण बन जाता है l रामायण और महाभारत पर इन्होने कई दफा अपना व्यक्तव्य रखा है l कपूर चंद जैन, जैन परंपरा और व्यवस्था के एक सशक्त प्रहरी के रूप में विद्यमान है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में ढकोसलों और आडम्बरों को विरोध करने का एक बड़ा सशक्त और मार्मिक चित्रण वर्णित किया है l इन सभी से ना सिर्फ जैन समाज लाभान्वित हुआ है, बल्कि उन सामाजिक आयामों पर उनकी सटीक टिप्पणियों से समाज में जर्जर होती कुछ व्यवस्थाओं को हटाने पर भी उचित राय कायम हुई है l उन्होंने असमिया भाषा में स्थानीय अख़बारों में कई दफा लेख भी लिखे है l अंग्रेजी पत्र असम ट्रिब्यून, गुवाहाटी से निकलने वाले हिंदी समाचार पत्रों में आये दिनों, उनके बौद्धिक लेख, अक्सर लोगों के लिए मानसिक खुराक का काम करतें है l जीवन के इस पड़ाव पर पहुचने के पश्चात भी उन्होंने लेखन और सामाजिक कार्यों को जारी रखा है, और एक विशिष्ट उदहारण दिया है l आयु के सामने घुटने नहीं टेकने की उनकी दृढ़ता, कुछ ऐसे भाव है, जिससे शिथिलता और जड़ता उनमे कही भी नजर नहीं आती l स्नेह और सरलता की प्रतिमूर्ति श्री जैन, एक समग्र इंसान है, जिन्होंने भक्ति और शक्ति दोनों क्षेत्रों में अपना परिचय दिया है l  


Sunday, August 21, 2016

हाशिये पर खड़ें लोगों की सुध कौन लेगा ?
रवि अजितसरिया
एतिहासिक लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री 15 अगस्त को कह रहे थे कि भारत के अंतिम व्यक्ति तक पहुचना उनकी सरकार के धेय्य रहा है l यानी जितनी भी योजना बनाई जाये, उनका लाभ बिना किसी भेद-भाव के सभी को मिले, देश के अंतिम व्यक्ति तक l इतने बड़े देश में विविधता इतनी है कि देश व्यक्ति, समाज और वर्ग में बंट सा गया है l एक गरीब भारत और एक आमिर l दोनों में कही भी सामंजस्य नहीं है l इसी देश में एक नागरिक एक लाख रुपये महीने कमाता है तो दूसरा एक सौ रुपये l है, ना विविधता l सिर्फ भाषा, बोली, तीज-त्यौहार और सस्कृति में विविधता ही नहीं बल्कि सम्पति, आय और खर्च में भी भारी विविधता, हमें इस भारत देश में दिखाई देती है l अब सिर्फ गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के लिए योजनायें बनाई जाती है l देश ऐसे ही चलता है l समाजशास्त्रियों का मानना है कि हाशिये पर खड़ा व्यक्ति इस कदर टूट चूका होता है कि वह अपनी बौद्धिक क्षमताओं का बराबर इस्तेमाल करने में असमर्थ हो जाता है, और अपेक्षा भरी नजरों से सरकार की तरफ देखने  लगता है l इस समय संक्रमण काल से गुजर रहा देश, कुछ नए और पुरानों सपनें के साथ जी रहा है l हालाँकि राजनीति के आगे सभी नतमस्तक है, फिर भी कुछ ऐसे गूढ़ रहस्य है, जिस पर देश टिका हुवा है l समाज में वर्षों से बने हुए तानेबाने को बाजारवाद ने तहस-नहस कर दिया है, फिर भी समाज नाम की इकाई देश में टिकी हुई है l हर समाज में सामाजिक संस्थाओं के बड़ा जाल बिछा रहता है, जो समाज के अस्तित्व और अस्मिता को अक्षुण्ण रखने का दावा करती है l इन सामाजिक संस्थाओं के उद्देश्यों की और देंखे, तब पाएंगे कि ज्यादातर सामाजिक संस्था कुछ निहित उद्देश्यों के तहत कार्य कर रही है l कुछ धार्मिक, कुछ व्यावसायिक, कुछ अध्यात्मिक तो कुछ सामाजिक l इन सभी में एक चीज आम रहती है, और वह है, सामाजिकता l समाज की संस्थाओं ने भी समय के साथ अपना रूप और रंग बदला है l पुरानी संस्थाएं, अपना स्वरुप खोने लगी है l कार्य संस्कृति में भयंकर बदलाव देखने को मिल रहें है l जिन उद्देश्यों की खातिर उन संस्थाओं का निर्माण किया गया था, वे गौण हो गए, और सुविधावाद संस्था पर हावी होता चला गया l कुछ संस्थाओं का तो उद्देश्य महज अख़बारों की सुर्खियाँ ही बटोरने का रह गया है l कुछ महिलाओं की सस्थाएं ऐसी है, जो महिलाओं के अधिकारों की तो बात करती है पर जब उनके कार्यों की समीक्षा करतें है तब पातें है कि कुछ विशेष दिनों पर वे सिर्फ किसी स्कूल या अनाथ आश्रमों में फल और खिचड़ी बांटती दिखाई देती है l समाज के अंतिम व्यक्ति तक ये सामजिक संस्था कभी पहुचती है कि नहीं, इस बात की समीक्षा होनी जरुरी है l अमीर और धनाढ्य वर्ग की हितों को साधने के लिए कुछ बड़ी संस्थाएं समाज ने अनायास की कार्य करने लगी है l 



इसका प्रमाण हमें तब मिला, जब विकसित हो रहे समाज ने, समाज उत्थान में, संस्थाओं के रोल को एक सिरे से नकार दिया है l समाज में बड़ी होती पूंजीवाद की जड़ों ने समाज के ताने-बाने को लगभग नष्ट दिया है l इस बड़े बदलाव की वजह है, समाज में शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार l ऐसा प्रतीत होता है कि आज के नवयुवकों के लिए ये संस्थाएं मनोरंजन और परिचय बढ़ाने मात्र के लिए बन गयी है l कुछ के लिए यह रुतबे की जगह है l ऐसें लोगों के लिए, संस्था के उद्देश्य और समाज के प्रति संस्था की जबाबदेही कुछ मायने नहीं रखतें l अगर ऐसा नहीं होता तब इन वर्षों में धड़ा-धड़ नई सामाजिक संस्थाएं नहीं खुलती, जो पहले से बनी हुई संस्थाओं से अधिक कार्य करने का दावा करती है l एक विकसित समाज के लिए क्या जरुरी है, इसका फैसला समाज के लोगों को करने का अधिकार है l जिन महत उद्देश्य की खातिर उन मुश्किल दिनों में भी हमारें लोगों ने सामाजिक संस्थओं का निर्माण किया था, वे उद्देश्य मानव सापेक्ष और वसुधैव कुटुम्बकम के फोर्मुले पर आधारित थे l एक विलक्षण, परोपकारी, उद्यमी और साहसी कौम के लिए संगठन और उसकी विचारधारा उस समय भी महत्वपूर्ण थी और आज भी है l फर्क यह रह गया है कि नयें आने वालें लोगों ने अपने काम करने के तरीकों में इस तरह से बदलाव कर लिए है कि उन सिद्धांतों और तत्वों की और किसी का ध्यान ही नहीं है l बस एक अंधी दौड़ में शामिल हो गएँ है, जिससे संस्थओं के उद्देश्यों को भारी क्षति पहुची है l यह भी तय है कि समाज जीवन के निर्वाह करने के तरीकों को जानने के स्त्रोत आज भी तजा किये जा सकतें है, जिसमे गरीब और अमीर, दोनों के लिए सम्मान हो, गरिमा हो और संवेदनशीलता हो l 

Friday, August 19, 2016

देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुचना है
रवि अजितसरिया
15 अगुस्त को जब प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से बोल रहे थे, तब उन्होंने ‘लास्टमेन डिलीवरी’ की बात कई बार दोहराई l उनका आशय यह था कि सरकार की नीतियाँ, योजनायें और लाभ, देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुचे l देश में अंतिम व्यक्ति के लिए चिंता व्यक्त करना, ‘गुड गवर्नेंस’ की तरफ इशारा करता है, जिसके लिए प्रजातंत्र में एक चुनी हुई सरकार का प्रथम दायित्व होता है l प्रधानमंत्री मोदी भी यही कह रहें है, कि सरकार अपनी योजनाओं के जरिये, देश के उस अंतिम व्यक्ति तक पहुचना है l आइये, देखते है कि आम आदमी तक योजना कैसे पहुचती है l प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे रहने वालें लोगों का लिए ‘जीरो बैलेंस’ अकाउंट की ही बात करतें है l स्वतंत्रता के पश्चात यह एक ऐसी योजना है, जिसमे यह प्रावधान है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का  सरकारी बैंक में एक बचत खता खुलवाना है और वह भी उन प्रावधानों के पालन करे बिना, जो आमतोर पर एक आम आदमी पर खता खुलवाते समय लागु होतें है l इस योजना के तहत सरकार उन खाताधारियों को उचित समय पर एक मुश्त ऋण दे कर उनको अपने से जोड़ेगी, जिससे आम आदमी सरकार के साथ जुड़ाव महसूस करने लगेगा l 15 अगस्त की लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि देश में 22 करोड़ गरीब लोगों ने इस योजना का लाभ हुआ है, और विभिन्न योजना के मद में मिलने वाली राशि, लोगों के खतों में सीधे पहुच रही है l इसमें कोई शक नहीं कि देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुचने में यह एक लम्बी छलांग थी, पर अभी आम लोगों तक पहुचने में सरकार को बहुत समय लगेगा l इस पूरी योजना में एक अच्छा मकसद यह था कि गरीब भी देश की मुख्यधारा में शामिल हो जाएँ, और उनको सरकारी लाभ मिलने में कोई परेशानी ना हो l सरकारी बैंकों के काम काज से माध्यम वर्ग पहले से ही परेशान है, उपर से 22 करोड़ नयें खतों ने बैंकों की परेशानियां बढ़ा दी है, जिसका खामियाजा आम खाताधारक भोग रहा है l बेंकों पर अनावश्यक दबाब बढ़ने से, आम खाताधारकों को दी जाने वाली सुविधाओं पर ब्रेक सा लग गया है l निम्न-माध्यम वर्ग और निम्न वर्गों के लिए जनधन योजना अभी तक वरदान साबित नहीं हुई है, क्योंकि विदेश में पड़े काले धन को लेकर जो भ्रांतियां सरकार के गठन को लेकर फैलाई गयी थी, उससे आम आदमी के मन यह आश जग गयी थी कि काला धन आ जाने से जन धन योजना के तहत खुलने वालें खातों में प्रधानमंत्री मोदी सीधे पांच-पांच लाख जमा करवा देंगे, जिससे आम आदमी की जिंदगी खुशहाल हो जाएगी l पर ऐसा कुछ नहीं हुवा, और आम आदमी अपने आप की ठगा-ठगा सा महसूस करने लगा है l जिस गति से यें खातें खोले गयें, उस हिसाब से इन खतों में लेन-देन भी नहीं हो रहा है l संवेदनशीलता के मामले में स्वतंत्र भारत की अब तक की सरकारों की तरह यह सरकार पिछड़ गई है l जारी..2
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लोगों को जितनी पर्रेशानियाँ खातें खुलवाने में हुई, उस हिसाब से अब सरकार को, उन खतों में, जैसा की योजना में पहले तय किया गया था, कम से कम पांच हज़ार का ओवरड्राफ्ट देने की घोषणा कर देनी चाहिये l नहीं तो यह योजना भी अन्य सरकारी योजना की तरह बेकार और फिसड्डी साबित होगी l इस बात को हमें यूँ लेना चाहिये कि गरीबी रेखा के नीचे रहेने वाले लोगों के पास राशन कार्ड तो है, पर रसोई गैस नहीं है, जिससे उनको इस समय कोई सब्सिडी नहीं मिल रही है l एक बार, प्रधानमंत्री उज्वला योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे रह रही गृहणियों को रसोई गैस मिलने लगेगी, उनके सामाजिक स्तर में बहुत बड़ा जम्प आ जायेगा,जिससे देश भर में गरीबी रेखा से ऊपर रहेने वालें लोगों के जीवन में एक नया संचार दिखाई देने लगेगा l रसोई गैस के होने से एक गरीब भी अपने आप को सशक्त और समाज का एक अभिन्न अंग मानाने लगेगा l ऐसा भी मना जा रहा है कि जनधन योजना योजना उन लोगों को तो संबल प्रदान करेगी ही, साथ ही उनकी एक पहचान भी बनेगी l देश में पहचान की समस्या को लेकर कई परिवार उन सरकरी योजनाओं का लाभ नहीं ले सकते, जिनमे अत्यधिक दस्तावेजीकरण रहता है l आधार उस समस्या का एक सटीक जबाब है l उपर से जनधन योजना के अंतर्गत खोले जाने वाले खतों को परफॉरमेंस के आधार पर अधिक ओवरड्राफ्ट मिलने की भी संभावना है l गरीबों के रहन-सहन और उनके रोजगार को लेकर अब तक जितनी भी योजनायें चलाई गई, उससे भारत में नतो गरीब कम नहीं हुए, अपितु, लोगों की आशाएं सरकार से बहुत बढ़ गयी है l यह बात भी तय है कि प्रधानमंत्री मोदी पिछली सरकार की तरह लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा करके अपनी प्रसंशा नहीं लेना चाहते है l इस कारण, उनके काम के प्रति समर्पण के स्वभाव से देश में राज-काज करने के तरीकों में गुणवत्ता की दृष्टि से सुधार देखा जा रहा है l दुसरे राज्य भी उनका अनुसरण कर रहें है l उन्होंने देश में करीब 2 करोड़ शौचालय बनवा कर आम आदमी को रहत देने की कौशिश की है l पर उनके रख रखाव को लेकर अभी तक कोई जबाबदेही तय नहीं की गयी है l  

‘लास्टमेन डिलीवरी’ दो ऐसे अर्थनैतिक शब्द है, जिन पर सभी सरकारी योजनायें टिकी रहती है l सभी योजनाओं का धेय्य भी यही रहता है कि अंतिम व्यक्ति तक योजना का लाभ पहुचे l प्रधानमंत्री के लिए इस समय एक परीक्षा की घड़ी भी है, क्योंकि तमाम तरह के झंझावातों के बीच प्रधानमंत्री वे सभी प्रयोग कर रहे है, जो एक लोकतंत्र में जरुरी है l इस समय देश में मुद्रास्मृति की दरों को कंट्रोल करने में वे लगे हुए है l       

Wednesday, August 17, 2016

देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुचना है

रवि अजितसरिया
15 अगुस्त को जब प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से बोल रहे थे, तब उन्होंने ‘लास्टमेन डिलीवरी’ की बात कई बार दोहराई l उनका आशय यह था कि सरकार की नीतियाँ, योजनायें और लाभ, देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुचे l देश में अंतिम व्यक्ति के लिए चिंता व्यक्त करना, ‘गुड गवर्नेंस’ की तरफ इशारा करता है, जिसके लिए प्रजातंत्र में एक चुनी हुई सरकार का प्रथम दायित्व होता है l प्रधानमंत्री मोदी भी यही कह रहें है, कि सरकार अपनी योजनाओं के जरिये, देश के उस अंतिम व्यक्ति तक पहुचना है l आइये, देखते है कि आम आदमी तक योजना कैसे पहुचती है l प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे रहने वालें लोगों का लिए ‘जीरो बैलेंस’ अकाउंट की ही बात करतें है l स्वतंत्रता के पश्चात यह एक ऐसी योजना है, जिसमे यह प्रावधान है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का  सरकारी बैंक में एक बचत खता खुलवाना है और वह भी उन प्रावधानों के पालन करे बिना, जो आमतोर पर एक आम आदमी पर खता खुलवाते समय लागु होतें है l इस योजना के तहत सरकार उन खाताधारियों को उचित समय पर एक मुश्त ऋण दे कर उनको अपने से जोड़ेगी, जिससे आम आदमी सरकार के साथ जुड़ाव महसूस करने लगेगा l 15 अगस्त की लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने घोषणा की थी कि देश में 22 करोड़ गरीब लोगों ने इस योजना का लाभ हुआ है, और विभिन्न योजना के मद में मिलने वाली राशि, लोगों के खतों में सीधे पहुच रही है l इसमें कोई शक नहीं कि देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुचने में यह एक लम्बी छलांग थी, पर अभी आम लोगों तक पहुचने में सरकार को बहुत समय लगेगा l इस पूरी योजना में एक अच्छा मकसद यह था कि गरीब भी देश की मुख्यधारा में शामिल हो जाएँ, और उनको सरकारी लाभ मिलने में कोई परेशानी ना हो l सरकारी बैंकों के काम काज से माध्यम वर्ग पहले से ही परेशान है, उपर से 22 करोड़ नयें खतों ने बैंकों की परेशानियां बढ़ा दी है, जिसका खामियाजा आम खाताधारक भोग रहा है l बेंकों पर अनावश्यक दबाब बढ़ने से, आम खाताधारकों को दी जाने वाली सुविधाओं पर ब्रेक सा लग गया है l निम्न-माध्यम वर्ग और निम्न वर्गों के लिए जनधन योजना अभी तक वरदान साबित नहीं हुई है, क्योंकि विदेश में पड़े काले धन को लेकर जो भ्रांतियां सरकार के गठन को लेकर फैलाई गयी थी, उससे आम आदमी के मन यह आश जग गयी थी कि काला धन आ जाने से जन धन योजना के तहत खुलने वालें खातों में प्रधानमंत्री मोदी सीधे पांच-पांच लाख जमा करवा देंगे, जिससे आम आदमी की जिंदगी खुशहाल हो जाएगी l पर ऐसा कुछ नहीं हुवा, और आम आदमी अपने आप की ठगा-ठगा सा महसूस करने लगा है l जिस गति से यें खातें खोले गयें, उस हिसाब से इन खतों में लेन-देन भी नहीं हो रहा है l संवेदनशीलता के मामले में स्वतंत्र भारत की अब तक की सरकारों की तरह यह सरकार पिछड़ गई है l  
लोगों को जितनी पर्रेशानियाँ खातें खुलवाने में हुई, उस हिसाब से अब सरकार को, उन खतों में, जैसा की योजना में पहले तय किया गया था, कम से कम पांच हज़ार का ओवरड्राफ्ट देने की घोषणा कर देनी चाहिये l नहीं तो यह योजना भी अन्य सरकारी योजना की तरह बेकार और फिसड्डी साबित होगी l इस बात को हमें यूँ लेना चाहिये कि गरीबी रेखा के नीचे रहेने वाले लोगों के पास राशन कार्ड तो है, पर रसोई गैस नहीं है, जिससे उनको इस समय कोई सब्सिडी नहीं मिल रही है l एक बार, प्रधानमंत्री उज्वला योजना के तहत गरीबी रेखा के नीचे रह रही गृहणियों को रसोई गैस मिलने लगेगी, उनके सामाजिक स्तर में बहुत बड़ा जम्प आ जायेगा,जिससे देश भर में गरीबी रेखा से ऊपर रहेने वालें लोगों के जीवन में एक नया संचार दिखाई देने लगेगा l रसोई गैस के होने से एक गरीब भी अपने आप को सशक्त और समाज का एक अभिन्न अंग मानाने लगेगा l ऐसा भी मना जा रहा है कि जनधन योजना योजना उन लोगों को तो संबल प्रदान करेगी ही, साथ ही उनकी एक पहचान भी बनेगी l देश में पहचान की समस्या को लेकर कई परिवार उन सरकरी योजनाओं का लाभ नहीं ले सकते, जिनमे अत्यधिक दस्तावेजीकरण रहता है l आधार उस समस्या का एक सटीक जबाब है l उपर से जनधन योजना के अंतर्गत खोले जाने वाले खतों को परफॉरमेंस के आधार पर अधिक ओवरड्राफ्ट मिलने की भी संभावना है l गरीबों के रहन-सहन और उनके रोजगार को लेकर अब तक जितनी भी योजनायें चलाई गई, उससे भारत में नतो गरीब कम नहीं हुए, अपितु, लोगों की आशाएं सरकार से बहुत बढ़ गयी है l यह बात भी तय है कि प्रधानमंत्री मोदी पिछली सरकार की तरह लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा करके अपनी प्रसंशा नहीं लेना चाहते है l इस कारण, उनके काम के प्रति समर्पण के स्वभाव से देश में राज-काज करने के तरीकों में गुणवत्ता की दृष्टि से सुधार देखा जा रहा है l दुसरे राज्य भी उनका अनुसरण कर रहें है l उन्होंने देश में करीब 2 करोड़ शौचालय बनवा कर आम आदमी को रहत देने की कौशिश की है l पर उनके रख रखाव को लेकर अभी तक कोई जबाबदेही तय नहीं की गयी है l  

‘लास्टमेन डिलीवरी’ दो ऐसे अर्थनैतिक शब्द है, जिन पर सभी सरकारी योजनायें टिकी रहती है l सभी योजनाओं का धेय्य भी यही रहता है कि अंतिम व्यक्ति तक योजना का लाभ पहुचे l प्रधानमंत्री के लिए इस समय एक परीक्षा की घड़ी भी है, क्योंकि तमाम तरह के झंझावातों के बीच प्रधानमंत्री वे सभी प्रयोग कर रहे है, जो एक लोकतंत्र में जरुरी है l इस समय देश में मुद्रास्मृति की दरों को कंट्रोल करने में वे लगे हुए है l       

Friday, August 12, 2016

आयरन लेडी शर्मीला ने क्यों समाप्त की भूख हड़ताल
रवि अजितसरिया

‘मैंने 16 वर्षों तक भूख हड़ताल की और कुछ नहीं पाई, मैं अपने विवेक की बंदी थी, और अब मैं अपने आन्दोलन को दूसरा रूप देना चाहती हूँ’ l यह बात इरोम चानू शर्मीला ने उस वक्त कही जब वे अपनी 16 साल पुरानी भूख हडताल तोड़ रही थी l 44 वर्षीय, मणिपुर की नागरिक अधिकार की कार्यकर्ता इरोम  चानू शर्मीला पिछले 16 वर्षों से मणिपुर में सशस्त्र बल(विशेष अधिकार) अधिनियम 1958 के मणिपुर में लगाए जाने के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठी थी l एक दशक से पूर्वोत्तर भारत का मणिपुर राज्य उग्रवाद से प्रभावित है, जिसकी वजह से हुई हिंसा में लगभग 6 हज़ार लोग अब तक मारे गएँ है l उल्लेखनीय है कि शर्मीला ने उस वक्त भूख हड़ताल की घोषणा की, जब सन 2000 में असम रायफल्स के जवानों की गोलीबारी से बस अड्डे पर खड़ें 10 लोग मारे गएँ थे l शर्मीला ने घोषणा की, कि जब तक भारत सरकार मणिपुर में सशस्त्र बल(विशेष अधिकार)अधिनियम 1958 को निरस्त नहीं करती, वह भूखी रहेगी, बाल नहीं बनाएगी और आइना नहीं देखेगी l आज सोलह वर्षों तक कठिन संघर्ष के बाद भी शर्मीला की मांग पूरी नहीं हो सकी है l अब लोकतांतत्रिक तरीकों से शर्मीला दुबारा से अपने आन्दोलन को जारी रखने की बात कर रही है l वे चुनाव लड़ना चाहती है, राज्य की मुख्यमंत्री बनाना चाहती है, शादी करके घर बसना चाहती है, और अपना संघर्ष को जारी रखना चाहती है l मणिपुर की इस लोह महिला का भूख हड़ताल का ज्यादातर समय जेल में ही बिता l जैसे ही वे जेल से छुटती, वह दुबारा भूख हड़ताल पर बैठ जाती, जिसकी वजह से ‘आत्महत्या एक क़ानूनी अपराध’ के मामले में उनको दुबारा से गिरफ्तार कर लिया जाता था l यह सिलसिला पिछले सोलह वर्षों से चल रहा था, जब 26 जुलाई 2016 को उन्होंने भूख हड़ताल समाप्त करने की यह घोषणा की थी l अब वे एक स्वतंत्र नागरिक की भांति जीवन यापन करना चाहेगी l उनके समर्थकों में ख़ुशी भी है और रोष भी है l मणिपुर में अस्थिरता फ़ैलाने वालें तत्वों ने तो उनको धमकी भी दे डाली है, कि वे अपना अनशन समाप्त कर, किसी बाहर के व्यक्ति से शादी नहीं कर सकती l गौरतलब है कि वे अपने गोवा स्थित ब्रिटिश प्रेमी डेसमंड से विवाह करने का निर्णय ले चुकी है l  
इरोम शर्मीला के इस सोलह वर्षों के संघर्ष की गाथा. पूर्वोत्तर में ही नहीं, समूचे विश्व में इसलिए भी फ़ैल गयी, क्योंकि वो भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के नक्शकदम पर चल रही थी, जिन्होंने विशाल अंग्रेजी शासन की नीवं, अपने अहिंसक तरीकों से हिला दी थी l उन्होंने भी कई भूख हड़तालें की और यह सिद्ध कर दिया कि अहिंसा में वह ताकत है जो हिंसा में नहीं l शर्मीला के आन्दोलन भी उसी तर्ज पर था l अगर हम भूख हड़ताल तोड़ने के उनके निर्णय की समीक्षा करते है, तब पातें है कि सबसे पहले, सोलह वर्षों के भूख हड़ताल से, उनका आम लोगों से उनका संपर्क लगभग टूट गया था,  
और यह मुहीम एक राजनैतिक आन्दोलन बन चुकी थी l दूसरा, एक लम्बे संघर्ष की यातनाओं को भोग कर वे थकी-थकी सी लग रही थी, जिसकी वजह से उन्होंने अपने आन्दोलन को दूसरा रूप देने का निर्णय लिया l तीसरा, सरकार में शामिल हो कर वे अपना संघर्ष ज्यादा असरदार तरीके से कर सकती है l मणिपुर राज्य के लोगों असीम प्रतिभा को देखते हुए, यह लग रहा है कि अगर राज्य में स्थाई शांति आ जाएँ, तब विकास की बयार यहाँ से भी बहने लगेगी l इसी भावना के साथ केंद्रीय सरकार ने मणिपुर को विशेष तब्बजो देनी शुरू कर दी है , जिसको लोग हालाँकि एक राजनैतिक कदम बता रहें है , पर राज्य में जिस तरह से विभिन्न गुट आपस में संघर्ष कर रहें है, राज्य में लोगों का जीना मुहाल हो रखा है l

शर्मीला का भूख हड़ताल से उठाना, उन कट्टरपंती सगठनों के लिए एक बड़ा झटका है, जो मणिपुर में पिछले दस वर्षों से विभिन्न कारणों की आड़ में हिंसक सघर्ष कर रहें है l अफस्पा हटाने को लेकर शर्मीला का भूख हड़ताल पर बैठना उनके लिए एक टॉनिक का काम कर रहा था l शर्मीला के भारतीय मुख्यधरा में शामिल होने से उनकी मुहीम को कही ना कही ब्रेक लगने की सम्भावना है l इसलिए उन संगठनों ने शर्मीला को अपना अनशन समाप्त नहीं करने का आदेश तक दे डाला l उपर से अगर शर्मीला चुनाव जीत कर राज्य की मुख्यमंत्री बन जाती है, तब उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती है l शायद यही एक कारण है कि कट्टर्पंती संगठनों ने शर्मीला को विवाह करने से भी रोका है l पर दृढ शर्मीला ने मंगलवार को अनशन समाप्त करके, जमानत के कागजात पर अंगूठा लगा कर भारतीय संविधान और कानून के परिपालन हेतु अपनी सहमती भी प्रदान कर दी है, जो उन कट्टर्पन्तियों के मुहं पर करारा तमाचा है, जिन्होंने शर्मीला को भूख हड़ताल समाप्त करने से रोका रहें थें l हालाँकि भूख हडताल समाप्त करकें, कानून के प्रति निष्ठा व्यक्त करकें वे, मंगलवार को आज़ाद हो गयी थी, पर जिस इलाके में उसके रहने का इन्तेजाम किया गया था, वह के लोगों को अनजाने भय से भयाक्रांत होतें देखा गया, जिससे प्रशासन ने दुबारा शर्मीला को हॉस्पिटल में भरती कर दिया है l पूर्वोत्तर में हिंसा के लिए विभिन्न सगठनों ने भारतीय मुख्यधारा में आ कर अपने अपने राज्यों के विकास में भागिदार बनाने का भी फैसला लिया है l इसमें मिजोरम के पु लालदेंगा का नाम सबसे उपर आता है, जिन्होंने मिज़ो नेशनल फ्रंट बना कर 16 वर्षों तक सशस्त्र आन्दोलन किया और फिर 1987 में राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने l आज मिजोराम एक पूर्ण शाक्षर राज्य है, और विकास की राह पर है, वहा के लोग बेहद उद्यमी एवं साहसी है l इसी तरह से यह भी देखा जा रहा है कि शर्मीला के भारतीय मुख्यधारा में आने से मणिपुर में वर्षों से चल रही अशांति समाप्त हो सकती है l आने वाले दिनों में इसका फैसला हो जायेगा l                 
स्वतंत्रता इरोम शर्मीला की नजरों से
रवि अजितसरिया

मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मीला ने जब 9 अगस्त को अपना 16 वर्षीय पूरा अनशन तोड़ा, तब उन्होंने कहा कि वे इतने दिनों तक अपने विवेक की बंदी थी, और अब वे एक स्वतंत्र नागरिक की तरह जीना चाहती है l अपने आप से अंतर कलह से निकल कर अब वे शादी करना चाहती है और चुनाव लड़, मणिपुर की मुख्यमंत्री बन कर, अफस्पा हटवाना चाहती है l 44 वर्षीय, मणिपुर की नागरिक अधिकार की कार्यकर्ता इरोम चानू शर्मीला पिछले 16 वर्षों से मणिपुर में सशस्त्र बल(विशेष अधिकार) अधिनियम 1958 के मणिपुर में लगाए जाने के विरोध में भूख हड़ताल पर बैठी थी l एक दशक से पूर्वोत्तर भारत का मणिपुर राज्य उग्रवाद से प्रभावित है, जिसकी वजह से हुई हिंसा में लगभग 6 हज़ार लोग अब तक मारे गएँ है l शर्मीला भी अपने आप विवेक से स्वतंत्र हो कर वे सब करना चाहती है जिसके लिए उन्होंने भूख हड़ताल शुरू की थी l एक लोकतांत्रिक तरीके से l स्वतंत्रता के बड़े मायने होतें है l जब अंग्रेजों ने भारत पर शासन शुरू किया था, तब भारतीय शासक आपस में लड़ रहें थे, जिसका फायदा मुगलों ने भी खूब उठाया, और उसके बाद अंग्रेजों ने, और उपयोग किया उस समय को, अपनी सत्ता के विस्तार के लिए l मणिपुर के आज के हालात कुछ उस समय के भारत के जैसे बने हुए है, आपसी कलह, कट्टरवाद, जातिवाद और सत्ता की लड़ाई इतनी चरम तक पहुच गयी है कि राज्य का विकास लगभग रुक सा गया है l नई सामजिक समस्याएं खड़ी हो गयी है l बेरोजगारी, ड्रग्स और गुटबाजी में वहां के युवा इस तरह से फँस गएँ है कि अब लौटना लगभग मुश्किल हो चूका है l लोग आपस में लड़ रहें है l उग्रवादियों के हौसलें बुलंद है, प्रशासन एक मूक दर्शक की भांति है l और यह सब किसके लिए- स्वतंत्रता के लिए l अगर हम मणिपुर के इतिहास को खंगाले, तब पाएँगे कि मणिपुर भूमि एक समृद्ध भारतीय संस्कृति की वाहक थी, जिसका गुणगान इतिहास आज भी कर रहा है l वैष्णव धर्म के प्रचार और विस्तार में मणिपुर के लोगों की एक अहम् भूमिका है l इतनी समृद्ध विरासत को आत्मसात किये होने के बावजूद भी आज मणिपुर में हिंसा ने धर्म पर विजय प्राप्त कर ली है l कुछ 15 से ज्यादा सशस्त्र दल मणिपुर में सक्रिय है, जिसकी वजह से केन्द्रीय सरकार ने वह पर अफस्पा लगा रखा है l कभी कभी कड़े कानून एक ही देश के लोगों को अपनों से ही अलग कर देता है l एक स्वतंत्र देश में एक राज्य इसलिए उग्रवाद से ग्रसित है क्योंकि, उनको लगता है कि उनकों अलग-थलग किया जा रहा है l भारतीय मुख्यधारा में वे कभी भी शामिल नहीं थे l इस तरह के आरोप पूर्वोत्तर के लोगों के मुख से कमोवेस, हर राज्य में सुनाई पड़ जायेंगे l स्वतंत्रता के लिए लगभग हर राज्य में कुछ उग्रवादी संगठन कार्य कर रहें है l नागालैंड और असम के विद्रोहियों के एक धड़े ने भारतीय मुख्यधारा में शामिल होने के लिए बातचीत का रास्ता भी अपनाया है l  
फिर भी स्वतंत्रता के लिए मनुष्य क्या, हर जीव लड़ता है l पिंजरे में बंद जानवर भी आजादी पाने के लिए, अपने नाजुक पंजों को लोहे की कठोर छड़ों पर खुरच-खुरच कर जख्मी कर लेता है l यह तो इंसान है, जिसने आजादी के लिए बड़े-बड़े आन्दोलन कियें है l भौगोलिक और राजनैतिक आज़ादी तो हमने पा ली है l अशिक्षा, संकीर्णता, जातिवाद से आज़ादी कौन देगा l सरकार!, इसी भ्रम में अभी भारत के लोग जी रहें है l जो सांस्कृतिक आजादी हमें प्राप्त हुई थी, उसका आनंद नहीं ले कर, उसको तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहें है l जो बौद्धिक स्तर हमें प्राप्त हुवा था, उससे सिखने के बजाये, उसको नष्ट कर के, एक छद्म विचारधारा लोगों पर थोपी जा रही है l अलग-अलग कुनबे बना कर अध्यात्म, धर्म और शिक्षा का एक आधुनिक संसार गढ़ा जा रहा है, जिससे लोगों के विचारों और कर्मों में भयंकर मतभेद है l इन सभी सामाजिक विफलताओं से हमें आजाद होना होगा l एकल परिवार बनाने के बावजूद यह देखा जा रहा था कि सामाजिक तानाबाना मजबूती से बना रहेगा, पर हुवा उसका उल्टा, वैश्विकरण के प्रभाव ने इस ताने-बाने को भी नष्ट कर के रख दिया है l देश इस समय एक संक्रमण के दौर से गुजर रहा है l   

शर्मीला ने भी अपने महिला होने के बावजूद, एक पितृ सत्तात्मक समाज के वर्चस्व के बीच, लड़ाई लड़ने की आज़ादी पाई l इतिहास गवाह है कि महिलाओं ने बड़े आंदोलनों को दिशा प्रदान करने में भारी मदद की है l असम आन्दोलन इसका एक जीता-जागता उदहारण है l शर्मीला ने भी उन सभी मतभेदों के बीच अपना आन्दोलन शुरू भी किया और अब अंत कर के अपने आन्दोलन को राजनैतिक आज़ादी के दायरे में सीमित करेगी और अपनी सामाजिक विफलता को त्याग कर नए सिरे से अपने विवेक से आज़ादी पा कर, जीवन को नए सिरे में बांधेगी l               

Friday, August 5, 2016

एक लाखवां बच्चा होने के मायनें
रवि अजितसरिया
भारतीय समयानुसार शनिवार की सुबह ब्राज़ील की राजधानी रियो -डी-जनेरियो में 31वें ओलंपिक खेल शुरू हुए l इस खेल में पूरी दुनिया के करीब 10500 खिलाडी विभिन्न खेल स्पर्धाओं में अपने करतब से मैडल जीतेंगे l कौन सा देश कितने मैडल जीतता है , तालिका में कितने नंबर पर है, यह आने वाले दिनों में देखने वाली बात होगी l
ओलंपिक  खेलों में देश कितने मैडल जीतता है, यह भी देखने वली बात होगी l तेज, ऊँचा और मजबूत(फास्टर, हायर और स्ट्रांगर) के उद्देश्य से शुरू हुए ओलंपिक  खेल, दुनिया भर में, खिलाडियों के लिए एक प्रतिष्ठा का स्थान है, जहाँ वे अपने बेहतरीन प्रदर्शन से शोहरत और रुतबा हासिल करतें  है l नहीं तो, मणिपुर की मैरी कोम को कौन जनता था l अपने श्रेष्ट प्रदर्शन से खिलाड़ी यह सिद्ध कर देता है कि देश, स्थान और सुविधाएँ चाहे कैसी भी हो, कुछ करने का जज्बा अगर हो, तब खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करेगा ही l
इसी तरह पिछले दिनों, गुवाहाटी की श्री मारवाड़ी मैटरनिटी हॉस्पिटल में, उसकी प्रतिष्ठा होने के पश्चात, एक लाखवां बच्चे का जन्म हुवा l एक प्रसूति गृह में रोजाना बच्चें जन्मतें रहतें है, इसमें कोई नयी बात नहीं है, पर एक निजी प्रसूति गृह में एक लाख बच्चें जन्म जाए, यह एक बहुत बड़ी बात हैं l श्री मारवाड़ी मैटरनिटी हॉस्पिटल की स्थापना सन 1985 में श्री मारवाड़ी दातव्य औषधालय की एक इकाई के रूप में आठगांव में स्थापित की गयी थी, जो बेहद कम मूल्यों पर माँ और बच्चे, दोनों की देख-रेख कर सकने का बीड़ा उठाये हुवे थी l इस हॉस्पिटल उन सभी मानकों पर खरा उतर रही थी, जो किसी भी वैवाहिक जोड़े को एक स्वस्थ बच्चे का जन्म से पूर्व और जन्म के पश्चात की सभी सुविधा दे रही थी l गर्भ प्रबंधन, प्रसवपूर्व, प्रसव और प्रसवोत्तर सेवा देने में श्री मारवाड़ी मैटरनिटी हॉस्पिटल ने बिना किसी भेद-भाव के अपनी अहम् भूमिका निभाई है l नवजात शिशुओं और बच्चों के स्वस्थ रहने की सेवाओं के लिए इस हॉस्पिटल ने अपनी उल्लेखनीय योगदान दिया है l जिसकी वजह से यह घटना सभी समाज-बंधुओं के लिए एक नयी ख़ुशी ले कर आयी, और उस समय आयी, जब यह संस्था अपनी स्थापना के एक सौ वर्ष मना रही है l इस घटना को स्वास्थ के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है l जब सन 1916 में मारवाड़ी समाज के कुछ उदार ह्रदय लोगों ने श्री मारवाड़ी दातव्य औषधालय की शुरुवात की थी, तब किसे पता था कि कालांतर में इस औषधालय की दो और यूनिटें खुल जाएगी, जो कम खर्चें पर अत्याधुनिक सेवा प्रदान करेगी l मैटरनिटी सेवा के लिए स्थापित इस हॉस्पिटल में आज भी मृत्यु दर को भली-भांति नियंत्रित कर लिया गया है, जिससे इस हॉस्पिटल में 31वर्षों में 1 लाख बच्चे का जन्म होना संभव हुवा है l रियो ओलंपिक  के स्थान के चयन को लेकर भी बड़ी भ्रम की स्थिति थी l ब्राज़ील जैसी अर्थव्यवस्था में ओलंपिक  जैसी खर्चीली स्पर्धा करवाने से देश की आर्थिक स्थिति डगमगा सकती थी l

पर मजबूत इरादा और कुछ कर सकने का जज्बा, उसको ओलंपिक जैसी बड़ी स्पर्धा की मेजबानी करने का अवसर प्रदान करवा दिया l जिस तरह से हॉस्पिटल ने अपने सिमित संसाधन से जच्चा और बच्चा के स्वास्थ प्रबंधन में एक बड़ी भूमिका निभाई है, उसके डॉक्टर, नर्स और प्रबंधन के सभी लोग बधाई के पात्र है l एक मजबूत डॉक्टरों की टीम और पैरामेडिकल स्टाफ का अपने मरीजों के प्रति कर्तव्य, नर्सों की देख-रेख और हॉस्पिटल में पर्याप्त सुविधाओं ने इस हॉस्पिटल को पूर्वोत्तर भारत इस उन स्वास्थ इकाईयों में शुमार कर दिया, जिसके द्वारा सरकार भी अपनी समस्त योजनाओं को लागू करना चाहती थी l सन 2000 में यूरोपियन यूनियन ने हॉस्पिटल की प्रजनन एवं बल-स्वास्थ सेवाओं को देखते हुए उसके के साथ एक करार करने के लिए संपर्क किया गया, जो गुवाहाटी के 8 वार्डों में निःशुल्क सेवा, अपने ‘आउटरीच’ कार्यक्रम के तहत करेगी l राष्ट्रिय ग्रामीण स्वास्थ मिशन के तहत आने वालें हेल्थ कार्यक्रमों को मारवाड़ी मैटरनिटी हॉस्पिटल के तहत किया जाना, यह साबित करता है कि प्रजनन सेवा की एक उत्कृष्ट इकाई, गुवाहाटी में कार्यरत है l यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि श्री मारवाड़ी दातव्य औषधालय समाज के सहयोग से शुरू हुई थी और आज भी एक बड़ी राशि समाज से दान के रूप में इसे प्राप्त होती है l आज श्री मारवाड़ी दातव्य औषधालय अपनी तीनों इकाइयों, मारवाड़ी मैटरनिटी हॉस्पिटल, फैंसी बाज़ार बाह्रय रोगी बिभाग, और मारवाड़ी हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के साथ पूरी तन्मयता से लोगों की सेवा कर रही है l इसके स्थापन के सौ वर्ष पुरे होने पर, समाज के प्रति इसकी जिम्मेवारी पहले से अधिक हो गयी है l चूँकि हॉस्पिटल समाज द्वारा संचालित एक धर्मार्थ संस्था है, एक लाखवें बच्चे के जन्म के साथ ही हॉस्पिटल का समाजसेवा भाव के जज्बे को तो प्रदर्शित करता ही है साथ ही यह भी दर्शाता है कि यह इकाई प्रजनन के क्षेत्र में बेहतरीन सेवा दे रही है l