देश के अंतिम व्यक्ति तक
पहुचना है
रवि अजितसरिया
15 अगुस्त को जब
प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से बोल रहे थे, तब उन्होंने ‘लास्टमेन डिलीवरी’
की बात कई बार दोहराई l उनका आशय यह था कि सरकार की नीतियाँ, योजनायें और लाभ, देश
के अंतिम व्यक्ति तक पहुचे l देश में अंतिम व्यक्ति के लिए चिंता व्यक्त करना,
‘गुड गवर्नेंस’ की तरफ इशारा करता है, जिसके लिए प्रजातंत्र में एक चुनी हुई सरकार
का प्रथम दायित्व होता है l प्रधानमंत्री मोदी भी यही कह रहें है, कि सरकार अपनी
योजनाओं के जरिये, देश के उस अंतिम व्यक्ति तक पहुचना है l आइये, देखते है कि आम
आदमी तक योजना कैसे पहुचती है l प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत गरीबी रेखा के
नीचे रहने वालें लोगों का लिए ‘जीरो बैलेंस’ अकाउंट की ही बात करतें है l स्वतंत्रता
के पश्चात यह एक ऐसी योजना है, जिसमे यह प्रावधान है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने
वाले लोगों का सरकारी बैंक में एक बचत खता
खुलवाना है और वह भी उन प्रावधानों के पालन करे बिना, जो आमतोर पर एक आम आदमी पर
खता खुलवाते समय लागु होतें है l इस योजना के तहत सरकार उन खाताधारियों को उचित
समय पर एक मुश्त ऋण दे कर उनको अपने से जोड़ेगी, जिससे आम आदमी सरकार के साथ जुड़ाव
महसूस करने लगेगा l 15 अगस्त की लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने घोषणा की
थी कि देश में 22 करोड़ गरीब लोगों ने इस योजना का लाभ हुआ है, और विभिन्न योजना के
मद में मिलने वाली राशि, लोगों के खतों में सीधे पहुच रही है l इसमें कोई शक नहीं
कि देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुचने में यह एक लम्बी छलांग थी, पर अभी आम लोगों तक
पहुचने में सरकार को बहुत समय लगेगा l इस पूरी योजना में एक अच्छा मकसद यह था कि
गरीब भी देश की मुख्यधारा में शामिल हो जाएँ, और उनको सरकारी लाभ मिलने में कोई
परेशानी ना हो l सरकारी बैंकों के काम काज से माध्यम वर्ग पहले से ही परेशान है,
उपर से 22 करोड़ नयें खतों ने बैंकों की परेशानियां बढ़ा दी है, जिसका खामियाजा आम
खाताधारक भोग रहा है l बेंकों पर अनावश्यक दबाब बढ़ने से, आम खाताधारकों को दी जाने
वाली सुविधाओं पर ब्रेक सा लग गया है l निम्न-माध्यम वर्ग और निम्न वर्गों के लिए
जनधन योजना अभी तक वरदान साबित नहीं हुई है, क्योंकि विदेश में पड़े काले धन को
लेकर जो भ्रांतियां सरकार के गठन को लेकर फैलाई गयी थी, उससे आम आदमी के मन यह आश
जग गयी थी कि काला धन आ जाने से जन धन योजना के तहत खुलने वालें खातों में
प्रधानमंत्री मोदी सीधे पांच-पांच लाख जमा करवा देंगे, जिससे आम आदमी की जिंदगी
खुशहाल हो जाएगी l पर ऐसा कुछ नहीं हुवा, और आम आदमी अपने आप की ठगा-ठगा सा महसूस
करने लगा है l जिस गति से यें खातें खोले गयें, उस हिसाब से इन खतों में लेन-देन भी
नहीं हो रहा है l संवेदनशीलता के मामले में स्वतंत्र भारत की अब तक की सरकारों की
तरह यह सरकार पिछड़ गई है l जारी..2
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लोगों को जितनी
पर्रेशानियाँ खातें खुलवाने में हुई, उस हिसाब से अब सरकार को, उन खतों में, जैसा
की योजना में पहले तय किया गया था, कम से कम पांच हज़ार का ओवरड्राफ्ट देने की
घोषणा कर देनी चाहिये l नहीं तो यह योजना भी अन्य सरकारी योजना की तरह बेकार और
फिसड्डी साबित होगी l इस बात को हमें यूँ लेना चाहिये कि गरीबी रेखा के नीचे रहेने
वाले लोगों के पास राशन कार्ड तो है, पर रसोई गैस नहीं है, जिससे उनको इस समय कोई
सब्सिडी नहीं मिल रही है l एक बार, प्रधानमंत्री उज्वला योजना के तहत गरीबी रेखा
के नीचे रह रही गृहणियों को रसोई गैस मिलने लगेगी, उनके सामाजिक स्तर में बहुत बड़ा
जम्प आ जायेगा,जिससे देश भर में गरीबी रेखा से ऊपर रहेने वालें लोगों के जीवन में
एक नया संचार दिखाई देने लगेगा l रसोई गैस के होने से एक गरीब भी अपने आप को सशक्त
और समाज का एक अभिन्न अंग मानाने लगेगा l ऐसा भी मना जा रहा है कि जनधन योजना
योजना उन लोगों को तो संबल प्रदान करेगी ही, साथ ही उनकी एक पहचान भी बनेगी l देश
में पहचान की समस्या को लेकर कई परिवार उन सरकरी योजनाओं का लाभ नहीं ले सकते,
जिनमे अत्यधिक दस्तावेजीकरण रहता है l आधार उस समस्या का एक सटीक जबाब है l उपर से
जनधन योजना के अंतर्गत खोले जाने वाले खतों को परफॉरमेंस के आधार पर अधिक
ओवरड्राफ्ट मिलने की भी संभावना है l गरीबों के रहन-सहन और उनके रोजगार को लेकर अब
तक जितनी भी योजनायें चलाई गई, उससे भारत में नतो गरीब कम नहीं हुए, अपितु, लोगों
की आशाएं सरकार से बहुत बढ़ गयी है l यह बात भी तय है कि प्रधानमंत्री मोदी पिछली
सरकार की तरह लोक-लुभावन योजनाओं की घोषणा करके अपनी प्रसंशा नहीं लेना चाहते है l
इस कारण, उनके काम के प्रति समर्पण के स्वभाव से देश में राज-काज करने के तरीकों
में गुणवत्ता की दृष्टि से सुधार देखा जा रहा है l दुसरे राज्य भी उनका अनुसरण कर
रहें है l उन्होंने देश में करीब 2 करोड़ शौचालय बनवा कर आम आदमी को रहत देने की
कौशिश की है l पर उनके रख रखाव को लेकर अभी तक कोई जबाबदेही तय नहीं की गयी है l
‘लास्टमेन डिलीवरी’ दो ऐसे
अर्थनैतिक शब्द है, जिन पर सभी सरकारी योजनायें टिकी रहती है l सभी योजनाओं का
धेय्य भी यही रहता है कि अंतिम व्यक्ति तक योजना का लाभ पहुचे l प्रधानमंत्री के
लिए इस समय एक परीक्षा की घड़ी भी है, क्योंकि तमाम तरह के झंझावातों के बीच
प्रधानमंत्री वे सभी प्रयोग कर रहे है, जो एक लोकतंत्र में जरुरी है l इस समय देश
में मुद्रास्मृति की दरों को कंट्रोल करने में वे लगे हुए है l
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