Friday, February 23, 2024

असम में हिंदी भाषियों को बार बार संघर्ष क्यों करना पड़ता हैं

 

असम में हिंदी भाषियों को बार बार संघर्ष क्यों करना पड़ता हैं

यह प्रश्न हर बार की तरह इस बार भी पूछा जा रहा है कि असम में सामुदायिक हिंसा इतनी आसानी से क्यों भड़क जाती है l क्यों वर्षों से रह रहे विभिन्न भाषा-भाषी लोगों के बीच रिश्तों के तार इतने कमजोर है कि जरा सी चिंगारी उनके बीच आग पैदा कर देती है और लोग एक दुसरे के जान के दुश्मन बन जाते हैं l इस बार मामला कार्बी आंगलोंग का है, जहाँ स्थानीय कार्बी जनजाति और हिंदी भाषियों के बीच इस समय तनाव चल रहा हैं l हिंदी भाषी संगठन अपनी सुरक्षा की मांग तो कर ही रहे है, साथ ही वें चाहते है कि सभी भाषा-भाषी के लोग आपस में मिल कर रहे और असम में शांति बनी रहे l कार्बी आंगलोंग में बड़ी संख्या में बिहारी समुदाय के लोगों के अलावा, बंगला भाषी और नेपाली समुदाय, बोडो जाति और असमिया भाषी लोग पिछले 100 वर्षों से रहते है, और कार्बी आंगलोंग को अपना घर बना लिया हैं l कुछ असामाजिक तत्वों ने दोनों समुदायों के बीच तनाव बढाने के उद्देश्य से एक स्थानीय युवक की उस समय पिटाई कर दी, जब कुछ स्थानीय लोग शांतिपूर्वक प्रदर्शन करके लौट रहे थे l मामला इतना गंभीर था कि हिंदी भाषी समुदाय के लोग और स्थानीय लोगों के बीच जबरदस्त तनाव बन गया है l उल्लेखनीय है कि कार्बी आंगलोंग में रहने वाले जनजाति के लोगों की सुरक्षा के लिए पहले से ही स्वायत परिषद् का गठन बहुत पहले कर चुकी हैं l असम के मध्य में स्थित इस जिले को मिनी इंडिया भी कहे तो गलत नहीं होगा, क्योंकि यहाँ पर हर जाति और समुदाय के लोग वर्षों से बड़े प्रेम भाव से रहते आये हैं l एक ऐसा सामाजिक तानाबाना बना हुवा है, जिसमे हर जाति और समुदाय का एक रोल है l फिर प्रश्न यह उठता है कि बार बार हिंदी भाषियों को क्यों टारगेट बनाया जाता हैं l कार्बी आंगलोंग प्राक्रतिक सुंदरता से भरपूर है l अगर उस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाय, तब इलाके के लोगों की आय में निश्चित रूप से वृद्धि हो सकती हैं l    

देश की स्वतंत्रता के पश्चातपूर्वोत्तर की कई जनजातियों, जैसे नागामिज़ो बोडो आदि ने अपनी सांस्कृतिक पहचान के आधार पर अलग राज्यों के साथ-साथ पूर्ण स्वतंत्रता की मांग करना शुरू कर दी थी l यहाँ गौर तलब है कि जब सन 1960 में जब राज्य सरकार ने असमिया भाषा को आधिकारिक भाषा घोषित कर दिया थातब बराक घाटी में आंदोलन शुरू हुवा था, समूचे असम में बड़े पैमाने पर हिंदी भाषियों पर अत्याचार हुए थे l कार्बी आंगलोंग में भी व्यापक हिंसा हुई थी l राज्य की विभिन्न जनजातियां और भाषाओं को बोलने वाले लोग खुद को अलग-थलग महसूस करने लगे थे। इससे आम लोग और स्थानीय विद्रोही समूह आंदोलित हो उठे थे l पूर्वोत्तर में नागा विद्राह की आज आज तक नहीं बुझी है l पूर्वोत्तर में नागालैंड और मेघालय राज्यों का गठन क्रमशः 1963 और 1971 में हुआ था। मेघालय के गठन के बादकार्बी आंगलोंग जिले को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया थालेकिन असम से अधिक स्वतंत्रता के वादे के बाद जिले ने मेघालय में शामिल होने से इनकार कर दिया और असम के साथ रहने की ठानी l हालांकि, बाद में असम राज्य सरकार इस जिले को अधिक स्वायत्तता देने के लिए भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत कार्बी आंगलोंग जिला परिषद् बना और बाद में इसे एक स्वायत परिषद् बना कर कार्बी लोगों को अधिक स्वायतता देने की कौशिश की थी l पर विभिन्न दल संगठनों के खड़े होने से अगले कुछ दशकों में तक राज्य में उग्रवाद और आंदोलन का एक नया दौर शुरू हो गया। कार्बी आंगलोंग में हिंसा और हड़ताल का दौर शुरू हो गया था l  

सन 2021 में कार्बी आंगलोंग समझौते पर हस्ताक्षर में, इस जिले को अधिक स्वायत्तता का वादा किया गया है। इस समझौते के बाद, फिलहाल ये उम्मीद की जा रही है कि आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि बनी रहेगी। समझोते के तहत राज्य सर्कार प्रति वर्ष 1000 करोड़ रूपये कार्बी आंगलोंग के विकास के लिए खर्च करेगी, जिससे पांच वर्षों तक जारी रखा जायेगा l संविधान के छठी अनुसूची के तहत सभी भूमि अधिकार स्वायत्त कोउसिल के पास है और कानून व्यवस्था राज्य सरकार के पास है l समस्या उस समय विकत रूप ले लेती है, जब करीब 100 वर्षों से रह रहे 10 हज़ार गैर कार्बी लोगों को सरकारी भूमि से बेदखल किया जा रहा था l उस भूमि पर सैकड़ों कच्चे-पक्के घर, मंदिर, मस्जिद पहले से ही बने हुए हैं l हिंदी भाषी समुदाय के घरों को उजाड़ने के अलावा, वहां पर कई घरों को असामजिक तत्वों ने आग लगा दी और घरों में रह रहे लोगों को वहां से खदेड़ दिया गया l ग्राजिंग भूमि पर बने हुए यह घर जिनकी संख्या करीब 10 हज़ार है, उस भूमि पर स्वायत्त शासित परिषद् का अधिकार जरुर है, पर वर्षों से रह रहे वहां पर लोगों के पास बिजली पानी का कनेक्शन बहुत पहले से हैं l इलाके में 27 मंदिर और एक मस्जिद और कई स्कुल भी हैं l सबसे बड़ी बाटी यह है कि इनमे एक भी अवैध नागरिक नहीं है, जिनको राज्य सरकार चर इलाके से हटाती है l पिछले 90 वर्षों से रह रहे लोग शत प्रतिशत भारतीय नागरिक है और अन्य लोगों की तरह उनके पास भी समान अधिकार मौजूद हैं l  

असम को एक आंदोलन की भूमि अगर कहे, तब कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l भाषा आन्दोलन के पश्चात, यहाँ पर बंगला भाषियों के प्रति नफरत के भाव भी देखे गए थे l हालाँकि असम आंदोलन की पृष्ठ भूमि यही थी कि असम से विदेशी नागरिकों की पहचान करके उनको यहाँ से हटाया जाय l पर छह वर्षों तक चले आन्दोलन के द्वरा भी लाखों बंग भाषी अवैध विदेशी लोगों को यहाँ से भगाया नहीं जा सका l उपर से बड़ी संख्या में रह रहे हिंदी भाषियों पर समय समय पर प्रताड़ना होती रहती हैं l पुरे राज्य में बड़ी संख्या में रह रहे हिंदी भाषियों ने सभी समुदाय के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते कायम किये और शांतिपूर्वक अपना जीवन यापन किया हैं l सच्चाई यह भी है कि व्यापार और अपनी लम्बी कद काठी की वजह से वें आसानी से पहचाने जाते है और अक्सर बाजारों में व्यापार करते हुए दिखाई दे जाते हैं l समय के साथ शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ स्थानीय लोगों ने भी शिक्षा के महत्त्व को समझा है और वें भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु देश की नामी-गिरामी संस्थानों में भेजने लगे और देश की मुख्यधारा में शामिल होने का प्रयास करने लगे हैं l शिक्षा ने सभी को अच्छे बुरे के फर्क को धीरे धीरे समझा दिया है l पर सत्य अभी भी यही है कि यहाँ आन्दोलन के बिना पत्ता भी नहीं हिलता l फिर भी असमिया मुख्यधारा में शामिल रह कर असमिया अस्मिता की रक्षा करने के वचन जिन लोगों ने भी लिया है, वे असम के सच्चे हितेषी है l जो लोग राष्ट्र विरोधी लोगों के साथ बैठ कर मंच पर बड़ी शान से मुछों को ताव देतें है, उनको किस तरह की संज्ञा दी जाए, प्रश्न यह भी है lथोड़े थोड़े दिनों में जातिगत हिंसा होने से राज्य के विकासकार्य में बाधा आनी स्वाभाविक है l

इसमें कोई दो राय नहीं है कि वर्षों से रह रहे हिंदी भाषियों ने राज्य के विकास में उतना ही योगदान दिया है, जितना की अन्य लोग दे रहे हैं l उनके योगदान की समीक्षा कभी भी नहीं की गयी l इस समय राज्य सरकार के पास चुनौती यह भी है कि वह कैसे इस मामले का यह न्यायपूर्ण तरीके से समाधान करे, जिससे हिंदी भाषियों को यह विश्वास हो जाय कि जिस राज्य में वें वर्षों से रह रहे है, वह उनके अधिकारों की सुरक्षा तो करेगी ही, साथ ही उनको एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए मार्ग प्रशस्त्र करेगी l इस समय हिंदी भाषी संगठनों ने राज्य सरकार से गुहार लगे है और पीड़ितों की सुरक्षा और मुवावजे की मांग की हैं l     

 

 

Friday, December 29, 2023

असम के लिए नए वर्ष के संकल्प और चुनौतियाँ

 

असम के लिए नए वर्ष के संकल्प और चुनौतियाँ

हमारे जीवन में जो भी घटनाएँ होती है, उनका प्रभाव आने वाले दिनों पर जरुर पड़ता हैं l चाहे बात निजी जीवन की हो, परिवार को हो या फिर समाज, राज्य या राष्ट्र की हो l नया साल 2024 दस्तक दे रहा है, केलेंडर बदलने वाला है l सन 2024, भारत और उसके नागरिकों के लिए बहुत ख़ास होने वाला हैं l आम नागरिकों पर देश में होने वाली घटनाओं का प्रभाव जरुर पड़ता हैं l प्रतिबंधित संगठन उल्फा(वार्ता गुट) के साथ शांति समझोता, निश्चित रूप से असमवासियों के लिए एक बड़ी खबर हैं l 29 दिसम्बर की शाम को हुवा यह समझोता, वर्षों से चल रही वार्ता को एक सुखद अंत की और ले गया है l इस समझते से असम का राजनीतिक और सामाजिक माहोल बदलने वाला है, क्योंकि कुछ वादें असम सरकार ने किये है, कुछ वचन वार्ता गुट ने दिए हैं, जिनका सीधा साधा प्रभाव असम की जनता पर पड़ेगा, उनके सामाजिक जीवन के उन पहलुवों पर पड़ेगा, जिनके लिए और जिनकी वजह से असम में करीब पचास वर्षों से किस ना किसी तरह का आन्दोलन चल रहा हैं l वार्ता पक्ष के उल्फा के सदस्य अब एक आम नागरिक की तरह अपना जीवन कटा सकेंगे और असम के आर्थसामाजिक जीवन में अपना योगदान दे सकेंगे l असम सरकार की यह एक बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी l असम में पिछले 65 वर्षों से रुक रुक आकर हिंसा का एक दौर चलता रहा है l ना जाने कितनी ही बार सेना का ऑपरेशन यहाँ चला है l सन 1990 में एक चुनी हुई सरकार असम गण तक को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था l निश्चित तौर पर इस समझोते का असर नए वर्ष में लोगों पर पड़ने वाला हैं l समझोते का एक पहलु यह भी है कि विभाजित उल्फा(आई) के प्रमुख परेश बरुआ अभी भी म्यांमार-चीन सीमा से अपना अभियान सशस्त्र अभियान चलाये हुए है और किसी भी समझोते के हक़ में नहीं है l पर 45 वर्षों के सशस्त्र आन्दोलन को चलाने वाले ज्यादातर उल्फा सदस्यों के साथ हुए इस इस समझोते से परेश बरुआ पर बातचीत के लिए आगे आने का दबाब जरुर पड़ेगा l यह भी देखना दिलचस्प रहेगा कि वार्ता गुट के सदस्य आने वाले दिनों में असम की राजनीति को कितना प्रभावित करते हैं l इधर असम सरकार के उपर समझोते को लागु करने के लिए जिम्मेवारी रहेगी, जिसे सामाजिक और आर्थिक पैकेज तो शामिल है ही, साथ ही उन सदस्यों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करना होगा, जिन्होंने कई वर्षों तक निर्वासित जीवन बिताया हैं l साथ ही, अभी भी जंगले में रह रहे सैकड़ों अंडरग्राउंड केड़ेरों को बातचीत के लिए दबाब बनाना और उन्हें सुरक्षित रास्ता देना l असम में हिमंत विश्व शर्मा की सरकार आने के पश्चात उन्होंने, शांति के लिए कई दफा उल्फा प्रमुख परेश बरुआ को बातचीत के लिए निमंत्रण दिया है, जिसके सुखद परिणाम भी निकले, जैसे युद्ध विराम की घोषणा, इत्यादि, पर वार्ता गुट के साथ समझोते की मेज पर ले कर आना, एक बड़ा कदम है, जिसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को विश्वास में लेने में सक्षम हुए हैं l जब असम समझोता हुवा था, तब समूचे असम में हर तबके के लोगों में इसलिए ख़ुशी थी कि विकास का एक नया सवेरा होने वाला था l असम के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास का एक वादा था, असम समझोता l असम समझोते को लागु करने के लिए कई दफा समितियां भी बनी हैं l पर इस वक्त 12 वर्षों के गहन विमर्श का बाद यह समझोता संभव हुवा है, जिसमे स्थानीय लोगों के लिए भूमि और राजनीतिक अधिकार दिया जाना शामिल हैं l उपर से केंद्र सरकार ने एक बड़ा वितीय पैकेज की भी घोषणा समझोते के मार्फ़त की है l असम आंदोलन, जिस पृष्ठभूमि में शुरू हुवा था, उसके पीछे एक वजह थी, असम की जनसांख्यिकी में बदलाव, जो इसलिए हुई क्योंकि बड़ी संख्या में बंग भाषी मुसलमानों ने असम की भूमि पर कब्ज़ा कर लिया था l इस समझते में भी असम की संस्कृति की रक्षा का वादा भी शामिल है, जिसके लिए आन्दोलन होते रहें हैं l ‘का’ आन्दोलन भी उसी का एक रूप था l भूमि, भूमिपुत्रों के लिए, चुनाव स्थानीय लोगों के लिए और गावं, शहरों में सरकारी संस्थानों का खुलना, यह कुछ मुख्य बिंदु है, जिन पर दोनों पक्ष एकमत हुए हैं l अब शांति के रास्ते, प्रजातांत्रिक तरीके से मुख्यधारा में शामिल हो कर, उल्फा के सदस्य, असम ले लोगों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल सकेंगे l निश्चित रूप से असम सरकार के लिए 2024  का यह नया वर्ष चुनौती भरा होने वाला है l  

नए वर्ष के लिए संकल्प लेने के पहले यह जान लेते है कि वर्ष 2024 कितना महत्वपूर्ण है l आगामी जनवरी माह में पाकिस्तान और बांग्लादेश में आम चुनाव होने वाले हैं l जनवरी में ही राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा है l भारत में संभवतः मई माह में, ब्रिटेन और अमेरिका में साल के अंत में आम चुनाव होने वाले हैं l अमरीका में अब शांतिपूर्वक चुनाव नहीं होते l आरोप और प्रत्यारोप से भरे रहते हैं l  इस बार दुबारा से डोनाल्ड ट्रम्प चुनाव लड़ने क लिए जद्दोजहेद कर रहे है l राम मंदिर के उद्घाटन को पूरी दुनिया के लोग करीब से देखेंगे, क्योंकि धर्म के साथ यह एक राजनीतिक मुद्दा भी बन चूका है l राम मंदिर और 370 हटाने की घोषणा, भारतीय जनता पार्टी बहुत पहले कर चुकी है l अनुछेद 370 अब हट चूका है, राम मंदिर बनने का रास्ता साफ़ हो चूका है, अब सामान नागरिकता संहिता के अपने वादे को पूरा करने ले लिए अब उसकी बारी है l वैसे 370 के हटाने के बाद अब उसके लिए चुनौती है, 2024 में जम्मू कश्मीर में चुनाव करवाना और उसे राज्य का दर्जा देना है l

पूर्वोत्तर और खासकरके असम और नई दिल्ली के बीच सेतु का कार्य करने वाले असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने यहाँ के सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखने के लिए कई कदम उठायें हैं l इस समझोते से एक नई आशा भी जगी हैं l एक सच्चाई यह भी है कि असम में विभिन्न भाषा-भाषी वर्षों से रह रहे है, उन पर इस समझोते का प्रभाव किस तरह से पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा l 2024 के लोक सभा के चुनाव में किस तरह के प्रार्थी आते है, किस समुदाय का प्रतिनिधित्व करते है, यह देखने लायक बात होगी l इस वक्त 2023 के अंतिम दिन, असम की और लोग आशा भरी नजरों से देख रहे हैं l हिंसा छोड़, शांति के रास्ते चल कर यहाँ एक सकारात्मक माहोल बनाना अब यहाँ के लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती हैं l असम के आम लोगों के लिए यह एक सुनहरा अवसर आया है, उन्हें अब असम के विकास में सहयोगी बनना होगा, जिससे असम सरकार का यह कदम सभी के लिए खुशियाँ ले कर आयें l सभी को मेरी और से नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं l      

Saturday, July 2, 2022

पांच वर्षों का जीएसटी कानून, कितना सफल

 

पांच वर्षों का जीएसटी कानून, कितना सफल

अगर मोटे तोर पर कहा जाय कि जीएसटी कानून देश के लिए कितना उपयोगकारी सिद्ध हुवा है, तब एक सुर में सभी यह कहेंगे कि 1 जुलाई सन 2017 के बाद से देश में एतिहासिक रूप से परोक्ष कर सुधारों में एक बड़ा कदम सरकार ने उठाया है l विक्री कर के क्षेत्र में ‘एक देश एक कर’ का प्रावधान रखते हुए सरकार ने आर्थिक सुधारों, देश के लोगों को अतरिक्त कर के बोझ से निकालने, कर ढांचे का सरलीकरण करना और देश को तकनिकी रूप से सबल बनने के उद्देश्य से पांच वर्षों पहले जीएसटी कानून को लागु किया था l ख़ुशी की बात यह है कि वर्ष 2022-23 के इन शुरुवाती दिनों से ही राजस्व में बेहताशा बृद्धि देखने को मिल रही है l जीएसटी के प्रावधानों के अनुपालन के लिए अब व्यापारियों औरे उद्योगपतियों की सोच में एक बड़ा बदलाव आया है, जिसके लिए अब यह कानून एक ‘व्यापार सुधार कानून और ‘व्यापार सुधार व्यवस्था’ का रूप ले चूका हैं l जीएसटी रजिस्ट्रेशन अब एक स्टेटस और सफलता सिंबल बन गया हैं l जिन व्यापारियों ने जीएसटी के तहत रजिस्ट्रेशन करवाया है, उनके लिए सोने पे सुहागा उस समय बन, जब खरीदारों को इनपुट लेने के लिए जीएसटी बिल की जरुरत आन पड़ी थी l जिन व्यापारियों ने नए कर ढांचे के दरम्यान अपने आप को ढाल लिया, उनके लिए व्यस्था में अंतर्गत अगर तिथियों के अनुपालन का दबाद है,तो उनके पास इनपुट क्रेडिट लेने के लिए प्रावधान भी हैं l ऐसा माना जा रहा है कि यह एक मानव रहित ऑटोमेटेड कर प्रणाली है, और सिस्टम द्वारा संचालित है, जिसमे डाटा एंट्री किये जाने पर अपने आप से आंकड़े निकल कर आते हैं l इस सुविधा का फायदा लाखों रजिस्टर्ड होल्डर बड़े मजे से निभा रहे हैं l एस अभी कहा जा रहा है कि व्यापारियों द्वारा अगर जीएसटी बिल दिया जाता है, तब उसका स्टेटस अचानक से बढ़ जाता हैं l जीएसटी कानून ने पिछले पांच वर्षों में देश के व्यापार जगत में एक नया परिवर्तन ला दिया हैं, जिससे देश के माल धुलाई तो तेजी से बढ़ी ही है, साथ ही में व्यापार की मात्रा और परिमाण भी बढ़ गया हैं l ‘एक देश एक कर’ के नारे को तो धरातल पर  उतारने के लिए सरकार की यह चेष्टा सफल हुई हैं l एक जटिल व्यवस्था को लोगों के समझाने में जितनी मेहमत सरकार को करनी पड़ी, उसके परिणाम आज आ रहे हैं l उल्लेखनीय है कि जून महीने के जीएसटी कलेक्शन 1लाख40 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा का हुवा हैं l जीएसटी कानून भले ही आम उपभोक्ता को नहीं छेड़ता, पर जब 17 केंद्रीय और राज्य करों और 13 उप कानूनों को रद्द करके एक जीएसटी कानून में सम्मिलित किया गया है, इसका सीधा असर आम अपभोक्ता पर जरुर पड़ रहा हैं l उपर से एक कर ने व्यापारियों को मुक्त रूप से देश भर में माल बेचने की आजादी भी प्रदान कर दी हैं l जीएसटी कानून लाने के पीछे सबसे बड़ा कारण था, समानता का फार्मूला और अति आवशयक वस्तुओं पर जीएसटी के प्रावधानों को नहीं लगाना l इन दोनों बिन्दुवों पर सरकार ने अभी तक स्थिति कायम राखी हैं पर बड़ी बात यह है कि नए करों से क्या महंगाई बढ़ नहीं गयी l यह अलग बात है कि यह शिकायत भी है कि कुछ व्यापारी कर तो उठा लेते है, फिर रिटर्न भरने में देरी करते है, जिसके फलस्वरूप सामने वाले व्यापारी को इनपुट क्रेडिट नहीं मिल पता l इनमे से कुछ धूर्त व्यापारी कारोबार करके छु मंतर भी हो गए थे, जिनका पता आज तक नहीं चला l कुछ व्यापारी  सेल का रिटर्न ही नहीं डालते, और कुछ समय पर रिटर्न दाखिल नहीं करते, जिसका खामियाजा दुसरे व्यापारी भुगतते हैं l उपर से जीएसटी के अनुपालना के लिए अभी भी व्यापरियों के लिए सरकार के लिए कोई प्रोत्साहन सौगात नहीं हैं l

अब बात करते है, समस्याओं की, जीएसटी का सरकारी पोर्टल को लेकर कर सलाहकारों और चार्टर्ड अकाउंटेंट वर्ग में भारी रोष हैं l प्रख्यात जीएसटी सलाहकार और चार्टर्ड अकाउंटेंट ओमप्रकाश अगरवाल से जब उनका जीएसटी का पांच साल का अनुभव पूछा गया, तब उन्होंने ग़ालिब के इस शेर से शुरुवात की ‘मरीजे इश्क पर रहमत खुदा की, मर्ज बढ़ता गया, ज्यो-ज्यो दावा की l उनका कहना है कि वर्त्तमान जीएसटी पोर्टल यूजर फ्रेंडली नहीं है, डाटा डालने के लिए सीमित स्थान उपलब्ध करवाए गए हैं l इसके अलावा, शिकायत के लिए हेल्पलाइन डेस्क भी कारगार नहीं हैं l जीएसटी के रिटर्न दाखिल करने की तारीखों पर अगर व्यापारी रिटर्न नहीं भरता, तब सामने वाले व्यापारी को इनपुट क्रेडिट उस महीने में नहीं मिलता l अगर कोई व्यापारी छह महीने तक रिटर्न नहीं देता, तब खरीदने वाले व्यापारी को इनपुट क्रेडिट कभी भी नहीं मिलेगा l जब एक डीलर सरकार के लिए कर वसूली करता है, तब यह उसका दायित्व बन जाता है कि वह वसूला हुवा कर सरकार को दे l पर वही डीलर उस कर का पेमेंट नहीं करता, तब देने वाले व्यापारी कू इनपुट क्रेडिट क्यों नहीं मिलेगा l उनका मानना है कि लगातार हो रहे कानून में बदलाव से समस्या और अधिक उलझ रही हैं l जो अधिकारी कानून बना रहे है उनको विक्रय कर के बार में जानकारी नहीं है, जीएसटी के अंतर्गत, डीलरों की समस्याओं को अनदेखा किया जा रहा हैं l डीलरों के लिए छुट की कोई व्यवस्था नहीं है, जिन्होंने तकनिकी कारणों से रिटर्न दाखिल नहीं किया है, उनपर पेनल्टी और ब्याज लगाया जा रहा हैं l उन्होंने यह भी कहा है कि भारत एक कल्याणकारी देश है, जहा की अधिकांश जनता अभी भी तकनीकी शिक्षा से वंचित है l कोरोना काल में लाखों लोगों से चुक हुई है, जिसका खामियाजा उनको आज भुगतना पड़ रहा हैं l सरकार को डीलरों के उपर लगाये गए व्याज और पेनाल्टी के उपर सहानभूतिपूर्वक विचार करना चाहिये l

भारत में इस समय आम आदमी, खास करके देश के मंझले और खुदरा व्यापरियों के मुश्किल भरें दिन चल रहें है l यह बात हम इसलिए कह रहे है क्योंकि व्यापरियों के माथे पर चिंता की लकीरे साफ़ दिखाई दे रही है l उन्हें चिंता है अपने भविष्य की, जो इस समय उन्हें चुनौती दे रहा है l मंडियों में नदारद ग्राहकों और ऑनलाइन का बढ़ता व्यापार एक बड़ी चिंता व्यापारियों के लिए बन गयी हैं l इसके लिए एक नई जद्दोजहेद शुरू करनी होगी l इधर जीएसटी में हो रहे लगातार हो रहे बदलाव और उससे होने वाले बदलाव से क्या नया बदलने वाला है, इस बात से बेखबर व्यापारी, इस चिंता को लेकर परेशान है कि बाजारों में पसरा सूनापन, अगर इसी तरह से चलता रहा, तब उस किस तरह से अपने आप को बचाना हैं l

         

Friday, April 8, 2022

सामाजिक सरोकार एवं बिहू आयोजन वाया मारवाड़ी युवा मंच

 

सामाजिक सरोकार एवं बिहू आयोजन वाया मारवाड़ी युवा मंच  

इस भी वर्ष असम के जातिय उत्सव ‘बिहू को मानाने के लिए असम में वास करने वाले सभी भाषा भाषी तत्पर हो रहे हैं l यह असम के एक जातिय उत्सव है l अगर गौर से देखा जाय तो पाएंगे कि असम में भाषा संस्कृति एक संवेदनशील विषय है, जिसे सभी भाषा-भाषी और धर्म के लोगों को अपनानाने के लिए राज्य के बुद्धिजीवियों ने हमेशा से आह्वान कर रहें हैं l खास करके असम साहित्य सभा ने तो असमिया भाषा को अपनानाने के लिए अभियान तक किया है l इतना ही नहीं राज्य के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने आगे आ कर विषय पर भी टिपण्णी की है l उन्होंने बृहस्पतिवार को एक जन सभा में कहा है कि सभी गैर असमिया भाषी लोग इस बार बिहू में चंदा नहीं दे कर असमिया गमछा पहने और बिहू का उद्यापन पारंपरिक तरीके से कर जिससे एक बृहत्तर असमिया जाति का गठन हो सके l इससे पहले उन्होंने गैर असमिया भाषियों से खुद से बिहू मानाने का आह्वान भी किया था l उनके आह्वान पर असम के विभिन्न शहरों में बिहू का आयोजन मारवाड़ी समुदाय के लोग कर रहे हैं l पूवोत्तर प्रदेशीय मारवाड़ी युवा मंच के अध्यक्ष हिमशिखर खंडेलिया ने बिहू के आयोजन में विशेष रूचि दिखाते हुए गुवाहाटी में बिहू का एक मुख्य आयोजन करने का निर्णय लिया है l मारवाड़ी युवा मंच के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल जैना और गुवाहाटी शाखा के संस्थापक अध्यक्ष सुभाष अग्रवाल इसमें प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं l

मारवाड़ी युवा मंच ने अपने गठन काल से ही मारवाड़ी समाज का प्रतिनिधित्व और असमिया सरोकार को तब्बज्यो दी है l चाहे वह असम आंदोलन हो, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदा सहायता हो या फिर स्वास्थ्य सेवा हो l रक्तदान में तो मारवाड़ी युवा मंच ने कई कीर्तिमान स्थापित किये हैं l मुझे याद है कि जब असम आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों के साथ जुलुस में जाना होता था, तब एक तबके में बड़ा रोष और भय था, क्योंकि पुलिस को आंदोलनकारियों को पकड़ने की पूरी छुट थी l जब 1979 -80 में असम आंदोलन पुरे चरम पर था, विदेशी हटाओ आंदोलन के नाम से पुरे विश्व में विख्यात हो गया था l गांधीवादी सिद्धांत पर चलने वाले आंदोलन की शुरुवात में जब असम आंदोलन शुरू हुवा था, तब उसके नारा था ‘बहिरागत हटाओं’ l युवा मंच ने उस समय एक बड़ी भूमिका निभाते हुए आसू के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत और साधारण सचिव भृगु फुकन से मिल कर इस बात का खुलासा करने को कहा कि गैर असमिया भारतीय नागरिकों पर बहिरागत की परिभाषा क्या लागु होती हैं l इस बात पर आसू नेतृत्व ने सभा की और अगले ही दिन जज फ़ील्ड में एक बड़ी सभा में प्रफुल्ल महंत ने यह घोषणा कर दी कि आंदोलन विदेशी नागरिकों के विरुद्ध है, ना की भारतीय लोगों के विरुद्ध, जो वर्षों से असम में रहते हैं l आंदोलन के नारे को बदल कर विदेशी हटाओं कर दिया गया, जिससे यह बात साफ़ हो गयी थी कि आंदोलन भारतीय लोगों के विरुद्ध नहीं है, बल्कि बंगलादेशी घुसपेतियों के विरुद्ध था l युवा मंच ने सामाजिक सरोकार वाले अपने कर्त्तव्य को ना सिर्फ बखूबी से निभाया बल्कि उससे आसू के साथ उसके संबंध आज भी कायम है l युवा मंच के सदस्यों ने हमेशा आंदोलनकारियों का साथ दिया और आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया l असमिया भाषा संस्कृति को अपनानाने के लिए युवा मंच की सभी शाखाओं के निवेदन किया गया l शाखा स्तर पर कार्यशालाएं और विचार गोष्ठियां आयोजित की गयी कि कैसे मारवाड़ी रहते हुए भी असमिया बना जा सकता है l स्वर्गीय छगनलाल जैन और स्वर्गीय भगवती प्रसाद लडिया का उदहारण देते हुए हमेशा से विचार किया गया l भाषा की अनिवार्यता को समझते हुए मारवाड़ी युवा मंच की सभाओं में असमिया भाषा के विद्वान और बुद्धिजीवियों को बुलाया जाने लगा l ऐसा महसूस किया गया कि असमिया समाज का अभिन्न अंग बनने के लिए कुछ जरुरी बदलाव करने होगे l इसी कड़ी में शादी विवाह के दौरान सडकों पर होने वाले नांच गान को बंद किया गया, जिससे एक अच्छा मेसेज जाय l युवा मंच की एम्बुलेंस सेवा राज्य में सरकारी सेवा के बाद प्रथम सेवा थी, जिसे सामाजिक स्वीकृति प्राप्त हुई l आज इस कड़ी में मारवाड़ी युवा मंच बिहू का आयोजन करके एक प्रतिनिधि संस्था का दायित्व तो निभा रहा है l साथ ही उसने बृहत्तर असमिया समाज के गठन प्रक्रिया में एक लंबी छलांग लगाई है l

मारवाड़ी युवा मंच द्वारा बिहू के आयोजन से असमिया समाज में एक सकरात्मक मेसेज तो जायेगा ही, साथ ही मारवाड़ी समाज के लोग औत-प्रोत रूप से बिहू के उद्यापन से जुड़ जायेंगे l इस बात में भी सच्चाई है कि असम के गावों में सभी समाज के लोग एक साथ बिहू का उद्यापन करते है और अंतरंग रूप से असमिया समाज से जुड़े हुए हैं l ऐसे सैकड़ों मारवाड़ी इस समय भी मौजूद है जो असमिया भाषा में पारंगत है और असमिया साहित्य साधना में कार्यरत हैं l कपूरचंद जैन, उमेश खंडेलिया, किशोर जैन, कमल जैन, जितेन्द्र जैन जैसे सैकड़ों लोग है, जो असमिया साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं l अब असम के मुख्यमंत्री ने आह्वान किया है कि मारवाड़ी समुदाय बिहू का आयोजन करे, गमछा धारण करे, पारंपरिक असमिया खाद्य का आनंद ले, तब यह जिम्मेवारी मारवाड़ी समुदाय के लोगों की बनती है कि वें आगे आ कर बिहू स्थली गौहाटी गौशाला में दो दिनों 16 एवं 17 अप्रैल को आयोजित बिहू के विस्तृत के कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले और उसे सफल बनाये l उल्लेखनीय है कि दो दिनों तक चलने वाले इस आयोजन में असमिया परंपरा एवं संस्कृति का पालन पूरी तरह से किया जाएगा l गौरतलब यह भी है कि मारवाड़ी समाज के गायक कलाकार, जो वर्षों से असमिया भाषा में गीत गाते है, वें अपनी प्रतिभा का परिचय इन दो दिनों में देंगे l उनका उत्साहवर्धन भी जरुरी है, जिसे एक सकारात्मक मेसेज पुरे असम में जाय कि मारवाड़ी समाज भी बिहू का आयोजन भली भांति कर सकता हैं l साथ ही असम में उस चर्च अको बी विराम मिल जायेगा कि मारवाड़ी समुदाय चंदा दे कर इतिश्री कर केता है, उनको कला संस्कृति से कोई सारोकार नहीं हैं l यहाँ दुबारा युवा मंच के नाम को दोहराना चाहूँगा कि एक समय ने उसने इस तरह के आयोजन के लिए एक अलग समिति का गठन भी किया था, जो असम के विभिन्न शहरों में स्थानीय कलाकारों के साथ मिल कर कई कार्यक्रम आयोजित किये थे l युवा मंच के सदस्य उन कार्यक्रमों के सफल आयोजन को भूल नहीं सकते l दुबारा एक ऐसा ही संयोग बना है, जिसके लिए मारवाड़ी समाज को बढ़-चढ़ कर आगे आना होगा, जिससे समाज का तो भला होगा ही, साथ में एक बृहत्तर असमिया जाति के गठन प्रक्रिया में उसका एक अहम् रोल हो l