Friday, July 29, 2016

परिवर्तन के सूक्ष्म आनंद और बढती जिम्मेवारियां
रवि अजितसरिया

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में सामाजिक क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सन 1975 में छात्रों की एक विशाल रैली में कहा था, “भ्रष्टाचार मिटाना, बरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना, कुछ ऐसी चीजें है जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि वे इस व्यस्था की ही उपज है l वे तभी पूरी हो सकती है, जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए l सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए सम्पूर्ण क्रांति आवश्यक है” l इन विचारों की पीठ पर चढ़ कर भारत में ना जाने कितने ही सामाजिक आंदोलनों ने भारत में जन्म लिया और व्यस्वस्था को बदलने में कामयाब हुए l बिहार और उत्तर प्रदेश में आज भी ‘जेपी’ के नाम को लोग भुना रहें है l उनके नाम को सम्मान से लेतें है, सभाओं में जयघोष करवातें है l जेपी और लोहिया के नाम की शपथ लेतें है l असम में भी 1979 से 1985 तक चले असम आन्दोलन एक प्रमुख और सफल छात्र आन्दोलन था, जिसमे बाद में सत्ता आन्दोलनकारियों के हाथ में आ गयी, जब उन्होंने एक राजनैतिक दल बना कर चुनाव लड़ा था l जब नरेन्द्र मोदी सरकार भारत में आई, तब भी लोकनायक आन्दोलन के दौरान प्रयोग हुई राष्ट्रिय कवि रामधारी सिंह दिनकर की विचारोत्तक कविता ‘सिंहासन खली करों कि जनता आती है’ का उपयोग बारम-बार हुवा, जिससे एकाएक जनता में यह विश्वास घर कर गया कि वाकई में देश में सन 1975 जैसा माहोल है l देश की जनता बदलाव चाहती है l चुनाव में लोगों ने सरकार बदल दी और भारी मतों से एक नई भाजपा सरकार शासन में आई lअसम के सन्दर्भ में भी एक परिवर्तन की लहर देखने को मिली l लोकनायक के अनुयाइयों ने सामाजिक त्रासदी और आर्थिक भ्रष्टाचार होने का खूब प्रखर प्रचार किया l नतीजा हमारे सामने है l कहने का तात्पर्य यह है कि सत्ता एक स्थाई वस्तु नहीं है, जिसका सुख हर समय एक ही पार्टी भोगे l बदलाव अवश्यंभावी है l बदलाव के संकेत तब तक नहीं मिलते, जब तक जनता को एक नेता नहीं मिलता, चाहे वो कोई भी समाज हो l लोकनायक एक नेता के रूप में उभरे, जिनमे जनता को विश्वास दिखाई देने लगा था l असम आन्दोलन भी इसलिए ही सफल हुवा था कि लोगों को प्रफुल्ल कुमार महंत, भिर्गु फुकन, अतुल बोरा जैसें नेता दिखाई देने लगे थें l अभी असम में सर्वानन्द सरकार ने अपने दो महीने सात दिन पुरे किये है, कोई निर्णय करना जल्दबाजी होगी l ज्यादातर लोगों का मानना है कि भाजपा के शासन में बदलाव दिखाई देना चाहिये, ना कि सिर्फ घोषणाओं तक ही सीमित रह जाए l निति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि वे प्रयोग करने से नहीं घबराते, उनमे हिम्मत है l केंद्र सरकार में गरीबों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए हिम्मत है l यही बात असम के मुख्यमंत्री भी बार-बार कह रहे है l फैंसी बाज़ार की एक सभा में उन्होंने कहा था कि कर बढ़ाने के उनके निर्णय पर उनको व्यापारियों का साथ चाहिये l  
इधर व्यापारियों का कहना है कि राज्य के राजस्व को बढ़ाने के लिए जो निर्णय लिए गएँ है, उससे लोगों को कोई अप्पति नहीं है, पर राज्य में इंस्पेक्टर राज के उत्पीड़न से लोग बेहद परेशान है l छोटें-छोटें गावों तक में फुटकर व्यवसाइयों को कागज के नाम पर परेशान किया जा रहा है, जिससे लोगों में आक्रोश है l अच्छे दिनों की बात भी लोग दबी जुबान से कर रहें है l ज्यादातर व्यापारियों का कहना है कि व्यापारियों को दोहम दर्जे के व्यक्ति ना समझा जाएँ, चूँकि, वे सरकार को कर उगाही कर के देतें है, उनको भी सत्ता और सरकार का एक अहम् हिस्सा माना जाना चाहिये l इस बात में दम इसलिए भी है. क्योंकि एक तरह से वे कर उगाही के सिस्टम के एक हिस्सेदार है, जो हर महीने सरकार के खजाने में बढ़ोतरी करतें है l इतना ही नहीं, एनारसी के तैयारी में जिस तरह से नए तथ्य सामने आयें है, हिंदी भाषी संगठनों ने ‘मूल और अमूल’ के मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है l उनको एकाएक लगने लगा है कि एक जप्त योजना के तहत उनका लोकतांत्रिक अधिकार उनसे छिना जा रहा है l इधर सरकार ने बजट में लोक-लुभावन योजनाओं की झड़ी लगा दी गयी है l असम आन्दोलन के शहीदों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने सरकार ने उनके लिए एक मुश्त 5 लाख की सहायता की घोषणा की है l   
अभी राज्य बाढ़ की विभिषिका से जूझ रहा है l इस समय लोगों को सहायता की जरुरत है l ख़ुशी की बात यह है कि राज्य का बजट सत्र में विधयाकों ने एकमत हो कर सदन की कार्यवाही दो दिनों के लिए स्थगित कर के, बाढ़ पीड़ितों की खोज-खबर लेने का निर्णय लिया है l खुद मुख्यमंत्री पुरे असम का दौरा कर रहे है l इस समय राज्य की जनता को आगे आ कर बाढ़ पीड़ितों की सहायता करनी चाहिये, यही समय की मांग है l  



Monday, July 25, 2016

बोल बम का नारा है, बाबा एक सहारा है
भारत युगों-युगों से श्रद्दा एवं आस्था की भूमि रही है l यहाँ संतों और गुरुओं को आज भी उच्च दर्जा प्राप्त है l उनके दिखाएँ गएँ रास्तों पर भारतीय दर्शन शास्त्र टिका हुवा है l भारत ही एक ऐसी भूमि है, जहाँ लोग पत्थर को भी पुजतें है, उसमे भगवान् को खोजने लागतें है l यही उसकी संस्कृति है l इसी कड़ी में लोग भारतीय समय और तिथियों अनुसार अपनी श्रद्धा और आस्था का प्रदर्शन कर एक आत्मीय सुख का अनुभव करतें है l चातुर्मास एक ऐसा समय है जब लोग अपनी आस्था और श्रद्धा का प्रदर्शन पूरी निष्ठा से करतें है l इसी माह में विभिन्न धर्मालम्बी, तप तपस्या,पछतावा और तीर्थ यात्रा करतें है, गुरुओं के सानिध्य का लाभ लेतें है, कांवर चढाते है l श्रावन माह के आगमन के साथ ही वातावरण में ‘बोल-बम’(शिव के नाम) के नारे गूंजने लगतें है l समस्त फिजा मानो एकाकार हो कर शिव की आराधना करने लग गई हो l कन्धों पर कांवर लिए, भगवान् भोले के भक्त लम्बी-लम्बी दुरी तय करतें है, बोल-बम के नारे के साथ l भारत में विद्यमान १२ ज्योर्तिलिंगों की उपासना, यु तो साल भर की जाती है, पर श्रावन माह में शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है l जत्थे के जत्थे तीर्थ यात्री सुल्तानगंज जा कर, कंधे पर कांवर लिए, 105 किलोमीटर का सुल्तानगंज से देवघर का सफ़र पैदल तय करतें है, और भगवान् शंकर पर गंगाजल अर्पित करतें है l गुवाहाटी समेत पूर्वोत्तर के कई भागों से यात्री दल बना कर चलतें है, जिसमे बच्चे, बूढ़े और जवान. सभी रहतें है l कई यात्री तो पिछले तीस-चालीस वर्षों से हर वर्ष सुल्तानगंज जातें है, और पूरी श्रद्धा के साथ कांवर चढाते है l क्या धुप, क्या छांव, यात्री बस चलतें रहतें है l हिन्दू मायता अनुसार, श्रावण मास में भगवान् शंकर की पूजा का एक विशेष महत्व माना गया है l कहते है कि भगवान् परशुराम ने सबसे पहले अपने अराध्य देव शिव के शीश पर श्रावन मास में गंगाजल डाल इस परंपरा की शुरुवात की थी l यह भी कहा जाता है कि मिथिलांचल में मिथिलावासी ‘पाग’ पहन कर भगवान् शिव के उपर जल चढाते है, जिसके पीछे यह मान्यता है कि मिथिलांचल के तरहवी सदी के महाकवि विद्यापति ठाकुर के उपर भगवान् शिव की बड़ी कृपा थी, जिसकी वजह से शिव ने खुद के उगना नाम के चरवाहा का रूप धर कर विद्यापति के यहाँ नौकरी की थी, जिसका आभास महाकवि को हो गया था l तब एक प्रसंग का दौरान भगवान् ने अपनी जटा से, बेसुध महाकवि को जल पिला कर जीवनदान दिया था l चाकर रूपी ‘उगना’ के चले जाने के बाद विद्यापति ने शिव स्तुति में नचारी और महेशवाणी नामक गीतों की रचना की थी l किंवदंती यह भी है कि जब अमृत मंथन के दौरान भगवान् शिव ने विष पान किया था, तब उनके उदर में नकारात्त्मक उर्जा स्थान कर गयी थी l त्रेता युग में, रावण ने कांवर के जरिये, गंगाजल ला कर, भगवान् शिव की इस अग्नि को शांत किया था l तब से हर वर्ष करोड़ों यात्री हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख, सुल्तानगंज से लोग नंगें पैर चल कर, कन्धों पर गंगाजल रख कर भगवान शिव के शीश पर चढाते है l यह संख्या बढ़ कर पुरे देश में 10 करोड़ तक पहुच गयी है l झारखण्ड सरकार ने इस माह को पवित्र श्रावणी माह के रूप में मानते हुए, विशेष व्यवस्था भी करती है, जिससे यात्रियों कोकोई असुविधा ना हो l जब प्रक्रति अपने पुरे योवन पर रहती है, भगवान् के उपर भी हरियाली से पूजन किया जाता है l श्रद्धालु बड़े प्रेम से प्रत्येक सोमवार को बेलपत्र, भांग, धतूरे दूर्वा, आक्ह और लाल कनेर के पुष्प से अभिषेक करके, अपने आप को धन्य मानतें है l इसके अलावा पांच तरह के जो अमृत बताये गए है, जिनसे भगवान् शंकर प्रसन्न होतें है वे है ,दूध, दही, शर्करा, घी और पंचामृत l गुवाहाटी से बारह किलोमीटर दूर स्थित वशिष्ट आश्रम के जल प्रपात से जल भर कर, श्रावन माह में हजारों श्रद्धालु कांवर उठातें है और पानबाज़ार स्थित शुक्रेश्वर महादेव पर अर्पित करतें है l वशिष्ट आश्रम स्थान पर एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिसका निर्माण अहोम राजा राजेश्वर शिंघा ने सन 1764 में करवाया था l गरभंगा सुरक्षित वन क्षेत्र भी यही पर स्थित है, जहाँ हाथियों का डेरा है l यही पर मेघालय की पहाड़ियों पर पांच किलोमीटर की दुरी पर एक गुफा में मुनि वशिष्ट का आश्रम है l
समय के साथ, लोगों की जीवन शैली में ना जाने कितने ही बदलाव देखने को मिल रहें है, पर श्रद्धा और आस्था, पहले से प्रबल हुई है l मंदिरों और मजारों पर पहले से भीड़ अधिक हो रही है, जिसका एक प्रमुख कारण,यह समझा जा रहा है कि आधुनिकता का लबादा ओढ़े हुए मनुष्य, इस जीवन शैली को अपना तो रहा है, पर उसे मानसिक शांति नहीं मिल रही, जिसकी खोज में वह मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारा या चर्च जाता है l चातुर्मास के दौरान गुरु दर्शन के लिए जाता है l अपने अप को सर्व-शक्तिशाली कहलाने वाला मनुष्य, इसी स्थान पर आ कर घुटने टेक देता है l    




Tuesday, July 19, 2016

हिन्दू नागरिकता वाया असम आन्दोलन से एम्स की मांग तक
रवि अजितसरिया

जब 1980 में आसू का विदेशी बहिष्कार आन्दोलन तीव्रता पर था, हर युवा के मन में असमिया मातृभूमि के प्रति कुछ कर गुजर जाने को तम्मना हो उठी थी l चारों और ‘जय आई असम’(जय असमिया माता) के नारें गुंजायमान हो रहें थें l सदिया से धुबड़ी तक असहयोग आन्दोलन चल रहें थे l उस समय ज्योति प्रसाद अगरवाला के वीर रस के गीत आन्दोलनकारी गातें थें l प्रेस और अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन ली गयी थी l रोजाना छात्र जिला कलेक्ट्रेट के समक्ष अपनी गिरफ्तारी देते थें, आन्दोलनकारियों के लिए अस्थाई जेल बनाई जाती थी, जो आमतोर पर किसी स्कूल या कोलेज में हुवा करती थी l l क्या नजारा था वह, जैसा भारतीय की स्वाधीनता के लिए लड़ी लड़ाई जैसा l असम की जनसांख्यिकी और संस्कृति में, बड़ी संख्या में पूर्वी पाकिस्तान से प्रवजन करके लोग आने से, बड़े बदलाव देखने को मिले रहें थें l यह आन्दोलन उसी के विरोध में था l किसे पता था कि अहिंसक और शांतिपूर्वक चलने वाला आन्दोलन कब हिंसक रूप ले लेगा, और लोग मरने लगेंगे l पहला जातीय शहीद खर्गेश्वर तालुकदार, जिसके सीने में चाकू से वार किया गया था, पुरे जोश के साथ अहिंसक और शांतिपूर्वक चलने वाली जुलुस में शामिल था, वह उसी स्थान पर ढेर हो गया था l असमिया भूमि उसके रक्त से लाल हो गयी थी l आन्दोलन असमिया अस्मिता और पुनर्जागरण के लिए जो था l हर कोई मरने-मारने के लिए तत्पर था l 1979 से 1985 के बीच चले इस आन्दोलन के छह वर्षों के कार्यकाल में 855 लोग मारे गएँ l हिंसा की जब बात आती है तब यहाँ कहते चलें कि छह वर्षों तक चलें इस ज्यादातर शांतिपूर्वक ढंग से चले इस आन्दोलन की यही खूबी थी कि आन्दोलनकारियों की नजर अपने लक्ष्य पर थी, ना कि माहोल ख़राब करना था, जैसा की अभी होता है,(रोहा का एम्स आन्दोलन) जिसमे सुरक्षा बालों पर जम कर पत्थरबाजी होती है, और फिर लोग मारे जातें है l पूरी दुनिया इस अहिंसक आन्दोलन को देख रही थी l असहयोग आन्दोलन, प्रशासन को झुकाने एक ऐसा साधन है, जिसमे सरकारी कार्यालयों में लोगो तो रहतें है पर कार्य नहीं होता l इसी को आसू ने एक हथियार बनाया, जिसको आम लोगों से भारी समर्थन मिला था l 15 अगस्त 1985 के एक नया सवेरा हुवा, और असम समझोते पर दस्तखत हुए, जिसमे यह तय था कि असमिया लोगों की पहचान बनायें रखने के लिए संविधान में व्यापक बदलाव किया जायेगा l समझोते में एक और अहम् प्रस्ताव था, और वह था विदेशी नागरिकों की पहचान और बहिष्कार, जिसका भार दिया गया, असम आन्दोलन के आलोक में बनी क्षेत्रीय सरकार को l इस कार्य में कितनी प्रगति हुई, यह सभी जानतें है l आज समझोते के 31 वर्ष होने को है, अब मोदी सरकार बांग्लादेश से आयें हुए हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए कैबिनेट में निर्णय ले चुकी है l  
यह भी कहा जा रहा है कि अमित शाह, असम में चुनाव प्रचार के दौरान किया गया अपना वादा पूरा कर रहे है l उल्लेखनीय है कि असम में भाजपा की सहयोगी पार्टी अगप है, जो अपने क्षेत्रीयता के चस्पे से हटना नहीं चाहेगी l अगप नेता और राज्य के मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने शुरू से ही गठबंधन के होने से अपनी असहमति जताई थी, उपर से तेल क्षेत्र को निजी कंपनियों को बेचें जाने को लेकर उन्होंने तीखी टिपण्णी की थी और 12 तेल कुओं को असम सरकार को सँभालने के लिए देने की वकालत की थी l रोहा में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) की स्थापना को लेकर भी महंत ने सीधे प्रधानमंत्री को लिखा है कि एम्स की स्थापना रोहा में ही की जाएँ l सिर्फ महंत ने ही नहीं उनकी पार्टी अगप और कांग्रेस ने भी प्रधानमंत्री से एम्स के रोहा में ही स्थापित करने की गुहार लगाई है l इधर मादी सरकार अपने निर्णय अनुसार यह कह रही है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदों पर हो रहें अत्याचार की वजह से वे भारत आने को तैयार है, जिसका संज्ञान मादी सरकार ले रही है l ऐसे नागरिकों के लिए मोदी सरकार भारत के द्वार खोल रही है l इस निर्णय के उपर अभी अगप ने अधिकारिक रूप से कोई टिपण्णी तो नहीं की है, पर अगप नेता प्रफुल्ल कुमार महंत ने केंद्र से निवेदन किया है कि बड़ी संख्या में हिन्दू असम की और रुख करेंगे, जिसके लिए असम तैयार नहीं है l उन्होंने हिन्दू विस्थापितों को देश में अन्य राज्यों में संस्थापन देने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया है, और यह भी कहा है कि असम की भूमि, राजनैतिक पार्टियों के निहित स्वार्थ को पूरा करने के लिए नहीं है l

अब सवाल यह है कि मोदी सरकार किस तरह से इस निर्णय को लागु करेगी, जब अगप में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है, जो असम में उसकी सहयोगी पार्टी है l परिवर्तन के नारे के साथ आने वाली भाजपा सरकार के समक्ष कई अहम् मुद्दे है-राज्य का राजस्व बढ़ाना, कृषि उत्पादन बृद्धि करना और भ्रष्टाचार नियंत्रण करना, ऐसे में वह केंद्र के नागरिकता प्रदान वाले मुद्दे पर अपने सहयोगियों से कैसे तालमेल करेगी, यह एक देखने लायक बात होगी l           
असम में नई सरकार के समक्ष परीक्षा की घड़ी
रवि अजितसरिया
असम में नई सरकार के समक्ष कार्य क्षमता को परखने वाली परीक्षा की घडी है, खास करकें जब राज्य में एक गठबंधन सरकार है l हम यह बात इसलिए कर रहें है क्योंकि अभी दो महीने पहले ही राज्य में भाजपा सरकार ने पहली बार शासन ग्रहण किया है, और उस पर राज्य में परिवर्तन लाने का दारोमदार है l उपर से गठबंधन में रहने वाली पार्टियों को भी खुश रखने की भी उसकी जिम्मेवारी है l परिवर्तन के नारे के साथ राज्य में धमाके से प्रवेश करने वाली भाजपा के समक्ष इसलिए भी चुनौती है क्योंकि उसे राज्यवासियों के लिए एक विकसित असम के सपने को पूरा करना है, भ्रष्टाचार से जर्जर  हो चुके असम को एक सुशासन देना है l यहाँ लोगों का मानना है कि असम एक ऐसा राज्य बने जिस पर प्रत्येक राज्यवासी गौरव हो सके, और वे गर्व के कह सके कि वे असम राज्य के निवासी है l उनका यह भी कहना है कि पुरे भारतवर्ष में पूर्वोत्तर के लोगों को अलग नज़रों से देखा जा रहा है, असम में भाजपा की की एंट्री के साथ, पुरे पूर्वोत्तर के हालात शायद सुधर जाये l इधर राज्य में पिछले दो महीने से लगातार हो रही बारिश से कम से कम छह जिलों में बाढ़ जैसे हालात हो गएँ है, जिससे लाखों लोग प्रभावित हुए है l उनके पुर्नार्वास भी सरकार के लिए चुनौती है l अकेले गुवाहाटी के निचले इलाकों में रहने वालें लोग कृत्रिम बाढ़ से जुंझ रहें है l l बारह तेल क्षेत्रों की नीलामी को लेकर पहले से ही उनके गठबंधन के सहयोगी कमर कस कर खड़ें है l उपर से अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के स्थान के चयन को लेकर रोहा में हो रहे आन्दोलन सरकार के लिए सिर दर्द बन गया है l अभी तक कई राजनैतिक पार्टियाँ आन्दोलन में मरने वाले युवक मंटू देवरी के घर जा कर उसकी पत्नी को सांत्वना के अलावा नगद मुआवजा दे चुकी है l सरकार ने भी परिस्थिति को नियंत्रण में करने के लिए और सहायता करने के उद्देश्य से मंटू देवरी की पत्नी को पांच लाख का मुआवजा और सकारी नौकरी दी है l अब प्रश्न यह नहीं है कि एम्स की स्थापना रोहा में क्यों नहीं बल्कि प्रश्न यह है कि रोहा में इस तरह से हिंसक आन्दोलन के पीछे कौन कौन सी राजनैतिक पार्टियाँ परदे के पीछे से कार्य कर रही है, जिससे सर्वानन्द सरकार की किरकिरी हो सके l यह भी कहा जा रहा है कि कोई तीसरी शक्ति इस सब के पीछे कार्य कर रही है l असम गण परिषद् के नेता और राज्य में दो बार मुख्यमंत्री रह चुके प्रफुल्ल महंत ने रोहा में एम्स बनाने को लेकर अपनी राय दे चुकें है, जिससे राज्य की राजनीति गर्म हो चुकी है l मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी मोर्चा संभाल लिया है, और आन्दोलनकारियों के पक्ष में वक्तव्य देने शुरू कर दिए है l इधर एक समय कोंग्रेस सरकार में एक शकिशाली मंत्री रहे, और वर्तमान भाजपा सरकार में वित्त और शिक्षा मंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कोंग्रेस के खिलाफ बड़ा मोर्चा खोल दिया है और सरकारी फाइलों को प्रेस के सामने रख कर यह जताने की कौशिश की,  
कि कोंग्रेस के कार्यकाल में ही चांगसारी में एम्स के स्थापन को मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने ही हरी झंडी दिखा दी थी l
इस तरह से आरोप-प्रत्यारोपों के बीच यह तो तय है कि रोहा में आन्दोलन अब एक राजनैतिक आन्दोलन बना चूका है, जिसका फायदा लेने के लिए राजनैतिक पार्टियाँ और छात्र संगठन लेने को आतुर है l यह भी तय है कि जिस भी क्षेत्र पर एम्स की घोषणा होगी वह क्षेत्र विकसित हो जायेगा, और रोजगार के नए साधन बनेंगे l रोहा के लोगों का मानना है कि चुनाव के पहले सर्वानन्द सरकार ने कहा था कि एम्स रोहा में ही बनेगा l इधर १२ तेल क्षेत्रों की नीलामी को लेकर अगप नेता प्रफुल्ल महंत ने अभी असहमति जताई है और कहा है कि निजी क्षेत्र को तेल कुओं को सोपने से स्थानीय हितों की अनदेखी होगी l असम गण परिषद् का गठन उस समय हुवा था, जब राज्य में आसू आन्दोलन के बाद एक असम समझोता हुवा था l असम गण परिषद् उस समय से ही एक क्षेत्रीय पार्टी मानी जाती है, जो असम के हितों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है l ऐसी एक पार्टी, अगर एक राष्ट्रिय पार्टी के साथ गठबंधन करके उसके निर्णय में सहभागी होती है, तब उसके चस्पे को भरी नुकसान होने की आशंका है l शायद, इसलिए भी, प्रफुल्ल महंत, भाजपा नेता और राज्य सभा सांसद सुब्रमनियम स्वामी का रोल निभा रहे है, जो भाजपा की हिन्दूवादी नीतियों की लगातार मुखालपत कर रहे है l इधर महंत भी भाजपा के सत्ता में आने के पश्चात गठबंधन के धर्म को निभाने के बजाये, लगातार बयानबाजी कर रहें है, जिससे पार्टी की असम के पक्ष में कार्य करने की वचनबद्धता भी बनी रहे और वे खुद चर्चा में रहें l

इधर राज्य में सरकार ने अपनी वित्तीय हालत को सुधारने के लिए एक प्रतिशत कर में बढ़ोतरी कर दी, जिससे यह संभावना बन गयी कि इस बढ़ोतरी से वस्तुओं के भाव बढ़ जायेंगे l उल्लेखनीय है कि नई सरकार के सत्ता सँभालते ही अवेध वसूली और मूल्य वृद्धि ह्रास करने के उद्देश्य से राज्य से चेक गेट हटाने की घोषणा की थी, जिसकी भारी प्रशंसा लोगों ने की थी l अब एक प्रतिशत वेट बढ़ा कर सरकार लोगों के समक्ष मुहं खोलने की हिम्मत नहीं कर रही, पर यह तर्क दे रही है कि आवश्यक सामग्रियों के दाम इस कर बढ़ोतरी से नहीं बढ़ेंगे l पर व्यापारियों ने अभी सरकार के साथ दो-दो हाथ करने की ठान ली है l मूल्य वृद्धि के नाम पर जिस तरह से उनसे पूछ-ताछ की जा रही है, उनसे वे परेशान ही नहीं बल्कि दुखी भी है l राज्य में पहले से मूल्य वृद्धि हुई है, उपर से राज्य में आने वाली बाढ़ से जूझते लोगों के पास इस समय सर्वानन्द सरकार के समक्ष एक आशा भरी नजरों से देखने के अलावा कोई चारा नजर नहीं आ रहा है l इधर राज्य में लगातार हो रही राजस्व की कमी से परेशान राज्य सरकार अपना पहला बजट पेश करने के लिए तैयार है, जिसमे यह सम्भावना व्यक्त की जा रही  है कि वित्त मंत्री राज्य वासियों को योजनाओं का बड़ा तोहफा देने वालें है l