हिन्दू नागरिकता वाया असम आन्दोलन से एम्स की मांग तक
रवि अजितसरिया
जब 1980 में आसू का विदेशी बहिष्कार
आन्दोलन तीव्रता पर था, हर युवा के मन में असमिया मातृभूमि के प्रति कुछ कर गुजर
जाने को तम्मना हो उठी थी l चारों और ‘जय आई असम’(जय असमिया माता) के नारें
गुंजायमान हो रहें थें l सदिया से धुबड़ी तक असहयोग आन्दोलन चल रहें थे l उस समय
ज्योति प्रसाद अगरवाला के वीर रस के गीत आन्दोलनकारी गातें थें l प्रेस और अभिव्यक्ति
की आज़ादी छीन ली गयी थी l रोजाना छात्र जिला कलेक्ट्रेट के समक्ष अपनी गिरफ्तारी
देते थें, आन्दोलनकारियों के लिए अस्थाई जेल बनाई जाती थी, जो आमतोर पर किसी स्कूल
या कोलेज में हुवा करती थी l l क्या नजारा था वह, जैसा भारतीय की स्वाधीनता के लिए
लड़ी लड़ाई जैसा l असम की जनसांख्यिकी और संस्कृति में, बड़ी संख्या में पूर्वी
पाकिस्तान से प्रवजन करके लोग आने से, बड़े बदलाव देखने को मिले रहें थें l यह
आन्दोलन उसी के विरोध में था l किसे पता था कि अहिंसक और शांतिपूर्वक चलने वाला
आन्दोलन कब हिंसक रूप ले लेगा, और लोग मरने लगेंगे l पहला जातीय शहीद खर्गेश्वर
तालुकदार, जिसके सीने में चाकू से वार किया गया था, पुरे जोश के साथ अहिंसक और
शांतिपूर्वक चलने वाली जुलुस में शामिल था, वह उसी स्थान पर ढेर हो गया था l असमिया
भूमि उसके रक्त से लाल हो गयी थी l आन्दोलन असमिया अस्मिता और पुनर्जागरण के लिए
जो था l हर कोई मरने-मारने के लिए तत्पर था l 1979 से 1985 के बीच चले इस आन्दोलन
के छह वर्षों के कार्यकाल में 855 लोग मारे गएँ l हिंसा की जब बात आती है तब यहाँ
कहते चलें कि छह वर्षों तक चलें इस ज्यादातर शांतिपूर्वक ढंग से चले इस आन्दोलन की
यही खूबी थी कि आन्दोलनकारियों की नजर अपने लक्ष्य पर थी, ना कि माहोल ख़राब करना
था, जैसा की अभी होता है,(रोहा का एम्स आन्दोलन) जिसमे सुरक्षा बालों पर जम कर पत्थरबाजी
होती है, और फिर लोग मारे जातें है l पूरी दुनिया इस अहिंसक आन्दोलन को देख रही थी
l असहयोग आन्दोलन, प्रशासन को झुकाने एक ऐसा साधन है, जिसमे सरकारी कार्यालयों में
लोगो तो रहतें है पर कार्य नहीं होता l इसी को आसू ने एक हथियार बनाया, जिसको आम
लोगों से भारी समर्थन मिला था l 15 अगस्त 1985 के एक नया सवेरा हुवा, और असम समझोते
पर दस्तखत हुए, जिसमे यह तय था कि असमिया लोगों की पहचान बनायें रखने के लिए
संविधान में व्यापक बदलाव किया जायेगा l समझोते में एक और अहम् प्रस्ताव था, और वह
था विदेशी नागरिकों की पहचान और बहिष्कार, जिसका भार दिया गया, असम आन्दोलन के
आलोक में बनी क्षेत्रीय सरकार को l इस कार्य में कितनी प्रगति हुई, यह सभी जानतें
है l आज समझोते के 31 वर्ष होने को है, अब मोदी सरकार बांग्लादेश से आयें हुए
हिन्दू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए कैबिनेट में निर्णय ले चुकी है l
यह भी कहा जा रहा है कि
अमित शाह, असम में चुनाव प्रचार के दौरान किया गया अपना वादा पूरा कर रहे है l उल्लेखनीय
है कि असम में भाजपा की सहयोगी पार्टी अगप है, जो अपने क्षेत्रीयता के चस्पे से
हटना नहीं चाहेगी l अगप नेता और राज्य के मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत ने शुरू
से ही गठबंधन के होने से अपनी असहमति जताई थी, उपर से तेल क्षेत्र को निजी
कंपनियों को बेचें जाने को लेकर उन्होंने तीखी टिपण्णी की थी और 12 तेल कुओं को
असम सरकार को सँभालने के लिए देने की वकालत की थी l रोहा में अखिल भारतीय
आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) की स्थापना को लेकर भी महंत ने सीधे प्रधानमंत्री को
लिखा है कि एम्स की स्थापना रोहा में ही की जाएँ l सिर्फ महंत ने ही नहीं उनकी
पार्टी अगप और कांग्रेस ने भी प्रधानमंत्री से एम्स के रोहा में ही स्थापित करने
की गुहार लगाई है l इधर मादी सरकार अपने निर्णय अनुसार यह कह रही है कि बांग्लादेश
में अल्पसंख्यक हिंदों पर हो रहें अत्याचार की वजह से वे भारत आने को तैयार है,
जिसका संज्ञान मादी सरकार ले रही है l ऐसे नागरिकों के लिए मोदी सरकार भारत के
द्वार खोल रही है l इस निर्णय के उपर अभी अगप ने अधिकारिक रूप से कोई टिपण्णी तो
नहीं की है, पर अगप नेता प्रफुल्ल कुमार महंत ने केंद्र से निवेदन किया है कि बड़ी
संख्या में हिन्दू असम की और रुख करेंगे, जिसके लिए असम तैयार नहीं है l उन्होंने
हिन्दू विस्थापितों को देश में अन्य राज्यों में संस्थापन देने के लिए केंद्र
सरकार से आग्रह किया है, और यह भी कहा है कि असम की भूमि, राजनैतिक पार्टियों के
निहित स्वार्थ को पूरा करने के लिए नहीं है l
अब सवाल यह है कि मोदी
सरकार किस तरह से इस निर्णय को लागु करेगी, जब अगप में सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है,
जो असम में उसकी सहयोगी पार्टी है l परिवर्तन के नारे के साथ आने वाली भाजपा सरकार
के समक्ष कई अहम् मुद्दे है-राज्य का राजस्व बढ़ाना, कृषि उत्पादन बृद्धि करना और
भ्रष्टाचार नियंत्रण करना, ऐसे में वह केंद्र के नागरिकता प्रदान वाले मुद्दे पर अपने
सहयोगियों से कैसे तालमेल करेगी, यह एक देखने लायक बात होगी l
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