देश की सूरत बदलेगा जीएसटी
रवि अजितसरिया
इस समय देश के व्यापारियों
के समक्ष एक परीक्षा की घड़ी है l क्योंकि ऐसा अनुमान है कि देश भर में एक जुलाई से
एकीकृत कर ढांचा, यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी ) लागु हो जायेगा, जिससे
देश भर में आय कर को छोड़ कर सभी राज्यों के के विक्री कर, सेवा कर, केन्द्रीय उत्पादन शुल्क, चुंगी, इत्यादि, एक
सम्मिलित कर प्रणाली में शामिल हो जायेंगे और देश में दोहरे कर, बहु कर प्रणाली का
अंत हो जायेगा l ऐसा माना जा रहा ही कि जीएसटी के आने से अधिकतर चीजों के भाव कम
हो जायेंगे, पर जब तक वास्तविकता की धरातल पर, इन सभी स्थितियों को परखा नहीं
जाएगा, कुछ भी कहना मुश्किल है l एक अनुमान अनुसार, देश भर में लगभग 30 करोड़ छोटे
और माध्यम दर्जे के व्यापारी है, जो अलग अलग तरह के माल बेच्तें है l इनमे
अधिकतरों के पास कम्प्यूटर और इन्टरनेट जैसी सुविधा नहीं है l नयी प्रणाली में अगर
कोई भी व्यापारी अपने व्यापर के हिसाब से कर प्रणाली में आता है, तब उसको कर
सलाहकारों के पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं रहा गया है, जो छोटें व्यापरियों के
लिए महंगा पड़ेगा l हालाँकि 10 लाख का व्यवसाय करने वालें व्यापारियों को कर
प्रणाली से मुक्त रखा गया है, पचहतर लाख का टर्नओवर करने वाले व्यापारियों के लिए
कम्पोजीशन स्कीम भी लागु करने का प्रावधान है l ज्यादातर व्यापारियों को अभी तक यह
नहीं पता है कि उनके पास जमा पुराना स्टॉक को किस प्रकार नए कर ढांचे में समाहित
किया जायेगा, जिससे ज्यादा कर देने कि सूरत में, उन पर दोहरी मार ना पड़े l पुराने
स्टॉक पर दिया गए कर की वापसी के लिए जीएसटी में पर्याप्त उपाय किये गएँ है, पर
अभी भी इस पूरी कवायद में कर अधिकारियों की क्या भूमिका रहेगी, यह किसी को समझ में
नहीं आ रहा है l इस पशोपेश में देश में बड़े पैमाने पर विरोध भी शुरू हुए है, मसलन
सूरत के कपडा व्यापारियों ने इसलिए विरोध किया हिया क्योंकि टेक्सटाइल पर शुरू से
ही भारत में कर नहीं था, क्योंकि यह घरेलु और माध्यम, दोनों दर्जे के उद्योग है,
जिस पर देश के करोड़ों लोग आश्रित हिया l इनमे वे लोग भी शामिल है, जो इन उद्योगों
के लिए दलाली का काम करतें है, जिन्हें ऑर्डर-बुकिंग एजेंट, आढ़तिया, दलाल या कमीशन
एजेंट कहा जाता है l ऐसे लोगों के लिए जीएसटी एक मुसीबत बन कर आई है l वर्तमान
ढांचे में बिक्री शब्द के मायने अलग है, जबकि जीएसटी कर प्रणाली में बिक्री बोल कर
कोई शब्द ही नहीं है l इसमें सप्लाई शब्द को अंतर्भुक्त किया जाया है, जिसमे एक
जाने से दुसरे के पास सामान ट्रान्सफर होते ही जीएसटी को आमंत्रित करेगी l यह अभी
साफ नहीं है कि इस नयी प्रणाली से उन सभी मध्यस्थकारियों को जीएसटी में पंजीकरण
करवाना होगा और कर देना होगा या नहीं l अगर गौर से देखा जाये, तब पाएंगे कि ऑर्डर
बुकिंग एजेंट, कोई माल बिक्री नहीं करता है, बल्कि एक कंपनी को दुकानदारों से
मिलवा कर दोनों से मामूली कमीशन वसूलता है l इसमें दुकानदारों की पेमेंट की गारंटी
एजेंट की रहती है l यह सिलसिला कपड़ा व्यवसाय में सालों से चल रहा है, जिससे लाखों
परिवारों की रोजी-रोटी चल रही है l
जीएसटी ने बिक्री शब्द को सप्लाई
में बदल कर उसमे कई पेच डाल दिए है l एक जने के पास से सामान दुसरे जाने के पास
क्या गया, जीएसटी लागु हो जाएगी, चाहे वह बेचने के लिए ट्रान्सफर हुवा है, या फिर
आगे सुप्लाई के लिए लिया गया हो l देश भर के लाखों कपड़ा व्यवसाइयों का कहना हिया
कि टेक्सटाइल और कच्चे माल पर कभी भी कोई कर देश भर में नहीं था, और हेंडलूम जैसे
उद्योग को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से केन्द्रीय कर सीएसटी तक भी नहीं लिया जा
रहा था l अब हेंडलूम व्यापारियों नयी प्रणाली में पंजीयन को करवाना ही पड़ेगा, साथ
ही पांच प्रतिशत कर भी अदा करना पड़ेगा l कुछ का मानना है कि दलालों और एजेंटों के
उपर सर्विस कर भी लगाया जा सकता है l इसमें धंधे की कोई सीमा भी नहीं है l इधर शहर
के एक जाने-माने जीएसटी के विशेषज्ञ का मानना है कि दस लाख तक की सीमा एक ऐसी सीमा
है, जिसमे छोटे और निम्न-माध्यम दर्जे के व्यापारी आ जायेंगे और बड़े आराम से
व्यापार कर सकेगे, दस लाख का जो पंजीयन द्वार है, जिसको पार करने से ही जीएसटी का
प्रावधान लागु होंगे l
दस लाख की लिमिट में बुकिंग एजेंट, दलाल और
मध्यथ्कारी भी आ जायेंगे l दस लाख के कमीशन के बाद वे पंजीयन करवाएं और मजे से
क्रेडिट ले और कर का भुगतान करें l सेवा कर और उत्पादन शुल्क कर हटने से देश भर
में आवश्यक वस्तुवों के कम से कम 12 प्रतिशत भाव कम होने का दावा सरकार जता रही है
l इस दावे में कितना दम है, इसके पता तो आने वाले छह महीनों में लग ही जायेगा l
कुछ व्यापारियों का यह भी दावा है कि जीएसटी के लागु किये जाने से सरकार को कुछ
खास फायदा नहीं होगा, और व्यापारियों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा l एक
व्यापारी ने नाम नहीं छपने की शर्त पर बताया कि कला बाजारियों को रोकने के लिए अब
तक सरकार ने जो भी कदम उठायें है, वे सभी बेकार साबित हुए है l इंस्पेक्टर राज बढेगा
और भ्रष्टाचार बढने की भी संभावनाएं है l
जीएसटी पर अभी तक हुए
सेमिनारों और कक्षाओं में व्यापरियों की जिज्ञासाओं का अंत अभी नहीं हुवा है l इसी
डर से कि कही रह गए स्टॉक पर इनपुट ना मिले, व्यापरियों ने अभी बाजार से माल उठाना
लगभग बंद कर दिया है l इधर ग्राहकों को ऐसा लगने लगा है कि जीएसटी के बाद जब भाव
कम हो जायेंगे, तब वे सामान खरीदेंगे, इसलिए उन्होंने भी अपना हाथ खींच लिया है l इसका
प्रमाण हमें तब मिलता है, जब हम कई बड़ी कंपनियों द्वारा ऑफर की और देखतें है, जो
कुछ क्षेत्रों में पच्चास प्रतिशत तक है l
जीएसटी के प्रावधानों की और
देखें, तब पाएंगे कि उत्पादन शुल्क और सेवा कर और राज्यों के विक्री करों को एक
साथ सम्मिश्रित कर देश भर में एक कर लागु करके सरकार ने एक बड़ी छलांग लगाने का
निर्णय लिया है l प्रावधानों के अमल के लिए हो सकता है कि शुरुवाती दौर में कुछ
उलझनें आयें, पर यह तय है कि आवश्यक वस्तुओं के भाव गिरेंगे l अगर व्यापारियों को
प्रथम दौ वर्षों तक प्रावधानों को समझने और अमल में लाने के लिए रियायतें दी जाती
है और इन्सपेक्टोरों और
अधिकारीयों द्वारा परेशान नहीं किया जाता है, तब यह तय है कि यह कानून देश की सूरत
ही बदल देगा l