एक लम्बी जिंदगी
और छोटी दुनिया के तरानें
दुनिया भर में इस बात पर
चर्चा जोरों से है कि कैसे किसी एक क्षेत्र में परिपूर्णता को हासिल की जाय l समाज
शास्त्री से लेकर वैज्ञानिकों ने अपने अपने तर्क दिए है और कहा है कि प्रगति,
विकास जैसे नियमित आयाम समयोचित तरीके से अपने आप स्थापित होते रहें हैं और इन्ही
को धुरी बना कर ही सभी कार्य सम्पादित किये जाते रहें हैं l पर ऐसे लोगों की जमात
भी है जो परिपूर्णता हासिल करेने के लिए लगातार जद्दोजहेद कर रहें हैं l नव वर्ष 2020
के शुरू के साथ एक सुकुन भारी जिंदगी जीने के लिए एक नए सफ़र पर मानव निकल पड़ता है
l नए संकल्प और नई चेष्टा के साथ l इसमें परिपूर्णता कही भी आड़े नहीं आती l जिनके
लिए जीवन नई उम्मीदों का नाम है, उनके लिए रोजाना एक परीक्षा की घडी रहती है, रोज
बैठना है उसमे और रोज कुछ प्रश्नों के जबाब देने है l इसमें वें लोग भी शामिल
होतें है, जिनको जरुरत से ज्यादा महत्वाकांक्षा रहती है l जिनको किसी भी वस्तु से
अधिक उम्मीद रहती है l जिनको पाने के लिए वें हर वर्ष नए संकल्प लेतें रहतें है l
इसको हम परिपूर्णता को हासिल करने की जद्दोजहेद तो नहीं कह सकते पर महवपूर्ण बात
यह है कि एक बड़े गंतव्य के लिए छोटी छोटी कोशिशें भी उतनी जरुरी है, जितनी के आसन
चीज हासिल करने में होती है l नए वर्ष में इस बात पर तो जोर दिया ही जा सकता है कि
अपने आप को सुकून देने के लिए कुछ नया किया जाय l इसमें आत्मनिरक्षण एक तैयारी हो
सकती है l इसमें जनसंपर्क एक उपादान हो सकता है l पर बड़ी बात यह है कि नए सपने और
नई उम्मीदों के घरोंदे बनाने का प्रयास लगातार होते रहना चाहिये l कुछ ऐसे संकल्प करें, जिससे कि आपके शारीरिक,
मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक एवं
धार्मिक एवं धार्मिक क्रियाकलाप व्यवस्थित रूप से चल सकें। जो कि वर्तमान समय के
लिए अति आवश्यक हैं। इसमें परिपूर्णता कही भी आड़े नहीं आएगी l असम में वनजीवन के
संरक्षण के कार्य में जुटें हुए लोगों से अगर हम पूछे कि नए वर्ष के संकल्प क्या
हो सकते हैं, तब वें कहेंगे, कि जंगले को बचने के लिए जितना वें कर सकतें है, वें
करेंगे l इसमें हाथियों को तेज गति से आने वाली ट्रेनों से बचाना एक बेहद मुश्किल
और जोखिम भरा कार्य है l क्योंकि एक तेज गति से आने वाला इंजन सही समय पर ब्रेक
लगाने में असफल भी हो सकता है, जिसके फलस्वरूप निरीह वन्यप्राणी ट्रेनों से कुचल
कर मारे जातें है l हाथी-मनुष्य संघर्ष को कैसे रोका जाए, इसके लिए अभी तक उपाय
ढूंढे जाने बाकी है l
हमें हमारे देश
और हमारी संस्कृति पर हमेशा गर्व रहा है | हजारों वर्षों से हमारे
देश ने किसी दूसरे देश पर आक्रमण नहीं किया | हम शांतिप्रिय रहे हैं | जिन लोगों को दुनिया में कहीं स्थान नहीं मिला, चाहे यहूदी हो या पारसी, उन्हें भारत ने गले लगाया |
ऐसी महान सांस्कृतिक
विरासत होने के बावजूद हमारे समाज में एक ऐसी बुराई है जो आज पूरे संसार के सामने
हमें हमारी नजरें नीची करने के लिए मजबूर कर देती हैं | वो बुराई है पुरुषों की तुलना में स्त्री को दोयम दर्जे का स्थान देना | हमारा समाज इतना ज्यादा पुरुषप्रधान हो गया है कि आज देश की जनसँख्या का बड़ा
हिस्सा बेटी पैदा ही नहीं करना चाहता | हमारी बेटियों ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति
की है और एक सम्मानीय जीवन बसर कर रही है l अब हमें इस बात का गर्व होना चाहिये l
कहते है कि इंसान
की जीवन लगभग सौ वर्षों का है l
इस जीवन में वह हर तरह के
आनंद, उन्माद और दुःख, के सागर में डूब कर
निकलता है l शायद यही उसकी नियति हो l एक जीवन में वह कई जीवन जी लेता है l यह भी कहते है कि दुनिया
गोल है, और हर इंसान अपने जानने वाले एक दुसरे इंसान से इसी दुनिया
में रूबरू जरुर होता है l अब तो दुनिया और छोटी हो गयी है l उतरी ध्रुव हमारी पृथ्वी का आखरी छोर है, वहां पर भी पहुचने में
महज 15 घंटे ही लगते है l फिर इंसान दूर रह कर क्यों इतना इतराता है ? वह क्यों अपने आप से भागने लगता है और किसी खोल में छुप जाना चाहता है, जबकि वह जनता है कि उसके रिश्ते, नातेदार, दोस्त सभी इसी दुनिया में रहतें है और एक दिन उनका सामना जरुर होगा l छोटी दुनिया का हम वासिंदे अभी भी अपने आप को सीमाओं के अंदर बांधे हुए है l
इस आशा के साथ की
वर्ष 2020 सभी के लिए खुशियों का एक नया संसार लेकर आएगा, जिसमे सभी के लिए अपनी
जगह होगी, सभी के लिए अपना क्षितिज होगा और सभी के लिए सम्मान होगा l नव वर्ष की
हार्दिक शुभकामनाएं l