Friday, November 26, 2021

यहाँ रोटी-बेटी के संबंध बन चुके हैं

 

यहाँ रोटी-बेटी के संबंध बन चुके हैं

जब से हिंदी भाषियों का आगमन असम तथा पूर्वोत्तर के विभिन्न क्षेत्रों में होने लगा था, एक नई वृहत्तर असमिया जाति के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी l यह सिलसिला आज से 300 वर्षों पहले से शुरू हो चूका था l इस बात के तथ्य है कि राम सिंह के साथ जो मुग़ल सैनिक आये थे,उनमे राजपुताना से हिन्दू लड़ाके भी असम आये थे, खासकरके असम में राजपुताना से आये हुए बहुत से राजपूत लड़ाके वापस अपने मूल स्थान नहीं लौटे और असम में ही बस गए थे l इसके पुख्ता सबूत है l उनके वंशज धीरे धीरे असमिया समाज जीवन में घुल मिल कर असमिया मुख्यधारा में शामिल हो गए l ना जाने कितने हिंदी भाषियों खास करके मारवाड़ियों ने यहाँ रह कर स्थानीय समाज के साथ रोटी बेटी के संबंध स्थापित किये और यही वास करने लगे l असम तथा पूर्वोत्तर के अनेकों भाग में 1671 के सराईघाट के युद्ध के पश्चात हिंदी भाषियों की बसावट शुरू हो गई थी l लगातार आवागमन होता रहा l कोई कल्पना कर सकता है कि राजपुताना(आज का राजस्थान) से असम आने में कितने दिन लग जाते होंगे l पर आवागमन लगातार होता रहा l जो लोग असम आयेवें असम में ही बस गए l असम में अंगेजों के आने के पश्चात, जब रेल और सड़क संपर्क कुछ हद तक सुलभ हो गयातब राजस्थान से लोग रोजगार और व्यापार के सिलसिले में यहाँ आने लगे थे l ज्योतिप्रसाद अगरवाला के परदादा नौरंगलाल अगरवाला ने सन 1811 में सबसे पहले अविभाजित ग्वालपाड़ा में एक मारवाड़ी फर्म में नौकरी कर, अपना असम का सफ़र शुरू किया था l उस समय बंगाल उत्तरी बंगाल के सूबों में रहने वाले मारवाड़ी व्यापारियों ने तब तक असम में व्यापार करना शुरू कर दिया था l जगत सेठ का एक प्रसिद्द नाम इतिहास में आता है l सन 1700 से 1800 के बीच जगत सेठ का नाम  मुर्शिदाबाद में बेंकिंग और साहूकारी के लिए प्रसिद्द था l उस समय से ही असम में बड़ी संख्या में राजस्थानी मूल के लोग यहाँ बसना शुरू कर दिए थे l उनमे से बहुत से लोगों का स्थानीय लोगों के साथ रोटी-बेटी के संबंध बन चुके थे l उल्लेखनीय है कि रोटी-बेटी के संबंध की परिभाषा इस तरह है कि जिससे रोटी खा सकते है या जिसे रोटी खिला सकेवह रोटी का संबंध है और जिसके यहाँ बेटी दे सके या जिसकी बेटी ला सकेउसे बेटी का संबंध कहते है l बेटियों का संबंध अपनी ही जातियों में होता है और रोटी का संबंध मित्र और बधुओं में पनपता हैं l असम में रोटी बेटी के संबंध उस समय से बनने शुरू हो गए थेजब बड़ी संख्या में बाहर से आये हुए लगों ने यहाँ स्थानीय भाषा संस्कृति को अपना कर यहाँ लोगों के बीच रहना शुरू कर दिया था l कई परिवार तो उस समय से ही असमिया मुख्यधारा में रच बस गए थे l ज्योति प्रसाद के परदादा ने गमेरी स्थान पर असमिया परिवार में शादी कर असमिया भाषा संस्कृति को अपना लिया था l इस बात का बखान करने की जरुरत नहीं कि उनके बाद उनके पुत्रो और पोतों ने किस तरह से अपनी प्रतिभा से असमिया कला और संस्कृति को समृद्ध किया l उसी तरह से ऐसे हजारों परिवार हैजिन्होंने असमिया परिवार में रिश्ते स्थापित किये और असमिया संस्कृति के साथ पूरी तरह से रच बस गए l उपरी असम के गावों और कस्बों में इस तरह के हजारों उदहारण खोजने से मिल जायेंगे l आज भी सैकड़ों ऐसे मारवाड़ी परिवार है, जिनमे असमिया लड़की बहु बन कर गयी हैं l व्यवसाय और रोजगार के उद्देश्य से आने वाले मारवाड़ी लोगों ने छोटे छोटे गावों और कस्बों में दुकाने खोल कर स्थानीय समाज के साथ मित्रता पूर्ण संबंध बनाए और प्रेम पूर्वक यहाँ रहने लगे l उनमे से सैकड़ों ऐसे भी हैजिन्होंने राजस्थान से नाता ही तोड़ दिया हैं l ऐसे लोगों ने असम को ही अपनी भूमि माना है l

मारवाड़ी युवा मंच का जब गठन हुवा थातब समाज सेवा ,उसके गठन के पीछे का आधार बना l यह इसलिए हुवा क्योंकि एक मारवाड़ी लोगों को एक शक्तिशाली मंच की जरुरत थीदूसराक्षेत्रीयतावादी राजनीति इतनी जोरो से उफान मार रही थी कि हिंदी भाषियों और खास करके मारवाड़ी लोगों को हाशिये पर धकेल दे रही थी l तीसरा, मारवाड़ी जाति एक सेवा परायण जाति होने की वजह से जन सेवा करने में उसको महारत हासिल थी l मारवाड़ी युवा मंच के जरिये वह यह कार्य बड़ी आसानी से कर सकती थी l असम के बड़े टाउन और छोटे शहरों में युवा मंच शाखाएं खुलने से एक लड़ी बन चुकी थीजिसे समग्र रूप से समाज सेवा की जा सके l सामाजिक जिम्मेवारीस्थानीय समाज से साथ नियमित संवाद और उनके सुख-दुःख में भागीदारी युवा मंच का हमेशा से ध्येय था l उसकी यह स्थिति आज भी बरक़रार बनी हुई है l मारवाड़ी युवा मंच एक अकेली ऐसी प्रतिनिधि  संस्था है, जो स्थानीय लोगों के सुख दुःख की भागिदार है l  यह सब इसलिए संभव हुवा क्योंकि लोगों में सेवा भाव विराजमान था और स्थानीय समाज के साथ मिल जुल कर रहने का एक जज्बा था l इस बात को स्थानीय समाज ने भी समझा है और मारवाड़ी युवा मंच को मान्यता प्रदान की है l

असम में हमेशा से देश के अन्य भागों से अनेकों जाति समुदाय के लोगों का आगमन होता रहा हैं l कौन पहले आया कौन बाद में, इसका आंकलन कभी भी नहीं हुवा हैं l मारवाड़ी जाति के लोग इसलिए नजर में आ जाते है, क्योंकि वें व्यापारी है और असम के सभी गावों- कस्बों और शहरों में दुकानों में माल बेचते हुए दिखाई दे जाते हैं l रही बात असमिया जानने की, तब स्थिति यह है कि असमिया भाषा का ज्ञान अधिकतर लोगों को हैं l असम में वास करने वाली अनेकों ऐसी जातियां जिनमे मिसिंग, दिमासा, बोड़ो आदि, जिन्हें अभी भी असमिया भाषा का तील मात्र भी ज्ञान नहीं हैं l उनकी जनसँख्या असम में रहने वले हिंदी समुदाय के लोगों से भी कम है l मजे की बात यह है कि उनकी पहचान राजनितिक और सामाजिक स्थिति काफी अच्छी हैं l उन्हें भूमि पुत्र की संज्ञा दी जाती हैं l  इधर व्यापार कर रहे मारवाड़ियों के लिए अलंकार भरे हुए शब्दों का उपयोग, उनके लिए अपशब्द और उन्हें समय समय पर प्रताड़ित किये जाने से वर्षों से बना हुवा सामाजिक तानाबाना खंडित होने की कगार पर हैं l जिस वृहत्तर जाति के गठन के लिए दोनों समाज के मनीषियों ने अपना पूरा दमखम लगा दिया था, उसे राज्य की क्षुद्र  राजनीति ने तहस नहस कर दिया हैं  l असमिया पुनर्जागरण के नाम पर समय समय पर मत संग्रह करना और फिर अधिवेशनों और बैठकों के नाम पर चंदा उठाना किसी भी सभ्य समाज के लिए लज्जाजनक बात है l इधर पूर्वी बंग से आये हुए शरणार्थियों ने सत्र और चर इलाकों की भूमि को दखल कर, असम में जनसांख्यिकी में बदलाव के संकेत दे दिए हैं l वर्षों से रह रहे हिंदी भाषियों, खास करके मारवाड़ियों ने कभी भी किसी तरह का आंदोलन नहीं किया और ना ही असमिया जाति के लिए कोई खतरा का कारण बने l उन्होंने तो सत्तारूढ़ पार्टी से मित्रता कर उनके हाथों कमो मजबूत ही किया हैं l

असम अब देश के विकसित राज्यों की फेहरिस्त में शुमार होने की कगार पर l असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा और उनका पूरा मंत्रिमंडल इसके लिए लगातार कोशिश में लगा हुवा है  l इस तरह से एक समृद्ध समुदाय, जिसका एक बड़ा अवदान है, राज्य में, उसको भाषा संस्कृति के नाम पर प्रताड़ित करना, राज्य की विकास यात्रा को धीमी कर देगा l दोनों समुदाय के बुद्धिजीवियों को चाहिये कि सोहार्द का वातावरण कैसे मजबूत हो, इसके लिए प्रयास करे l