यह है लक्ष्मी मिष्ठान
भण्डार
रवि अजितसरिया
किसी भी शहर की कुछ खासियत,
कुछ विशेषताएं होती है, जिनसे वह शहर जाना जाता है l खास करके फल, मिठाइयाँ और स्मारकों को ले कर ही शहर के
नाम याद आतें है l कोलकाता शहर जिस तरह से मिठाइयों के लिए प्रसिद्द है, उसी तरह
से गुवाहाटी में एस आर सी बी रोड पर स्थित लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार एक जाना पहचाना
नाम है, जिसकी प्रसिद्धि समूचे पूर्वोत्तर में है l बात सन 1954-1955 की है, जब
यहाँ रामकुमार महाराज के नाम से खाने का बासा(मारवाड़ी भोजनालय) चलता था l यह
भोजनालय इसलिए भी प्रसिद्द था, क्योंकि यहाँ पर गावं से आने वालों, जिनको यहाँ पर
नौकरी नहीं मिलती थी, उनके लिए निशुल्क भोजन की व्यवस्था थी l यही से लक्ष्मी
मिष्ठान भण्डार की स्थापना हुई थी l सन 1995 तक यहाँ चाय और मिठाई ग्राहकों को
बैठा कर परोसी जाती थी l स्व. रामकुमार महाराज के पर पोते दिनेश शर्मा बतातें है
कि उन दिनों गुवाहाटी का फैंसी बाज़ार एकमात्र बजार ही था, जहाँ बड़ी सुबह से ही नाव
और बसों से फैंसी बाज़ार लोग उतरतें थे, और वे सीधे लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार की और
रुख करतें थे और छक कर पूरी, सब्जी खातें थें l उस ज़माने से ही उनकी दूकान का बड़ा
नाम है l अब एल एम बी नाम से प्रसिद्ध यह मिठाई की दूकान आज उच्च स्तर की मिठाइयाँ
और नमकीन के लिए जानी जाती है l स्वादिष्ट राजभोग के लिए एल एम् बी का एक नाम है l
दिनेश शर्मा बताते है कि कैसे उन दिनों गुवाहाटी शहर में उनके प्रतिष्ठान ने
गुवाहाटी में सबसे पहले राजभोग को लोगों के सामने पेश किया था l राजभोग के लिए, आज
भी शादियों के समय उनके पास भारी आर्डर रहतें है l उनका प्रतिष्ठान सिर्फ एक मिठाई
दुकान ही नहीं थी, बल्कि उनके पिता स्व. मदनलाल मंगलिहरा के समय से ही एक सामाजिक
उठ-बैठ, विचार-विमर्श का केंद्र भी था l स्व. मदनलाल मंगलिहरा के मित्रों में स्व.भगवती
प्रसाद सराफ, स्व. मुरलीधर सुरेका, स्व.बेनीप्रसाद शर्मा, स्व.जी के जोशी, स्व.विश्वनाथ
तिवाड़ी, प्रभुदयाल जालान आदि लोगो थे, जिन्होंने एक अच्छे मित्रों की न सिर्फ
भूमिका निभाई, बल्कि लोक-व्यवहार के चरित्र को अपने वार्तालाप के जरिये लाकर, इस
प्रतिष्ठान के चार-चाँद लगा दिए l होली के मौके पर ये सभी महानुभाव, जिनमे अधिकतर
दिवंगत हो गएँ, उनके प्रतिष्ठान में चंग बजा कर आनंद और भाईचारे का प्रदर्शन किया
करतें थें l आज भी दिनेश अपने पिता की मित्र मंडली को याद करके भावुक हो उठते है l
सामजिक कार्यकर्ता और दिनेश के पारिवारिक मित्र प्रभुदयाल जालान बताते है कि स्व.
मदनलाल मंगलिहरा उनके सहपाठी थे और उन्होंने एक लम्बा समय एक साथ गुजारा है l एल
एम् बी की मिठाइयों का जिक्र करतें हुए वे कहते है कि चाहे कितनी भी नई मिठाई की
दुकाने खुल जाये, पर एल एम् बी की मिठाइयों की गुणवत्ता के सामने सभी दुकानों की मिठाइयाँ
फ़ैल है l
इनके पांच भाई के परिवार
में खुद मदनलाल मंगलिहरा, राधेश्याम, प्रभुदयाल, राजेंद्रप्रसाद और बजरंगलाल ने
सभी के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार किया और लक्ष्मी मिष्ठान भंडार को नयी ऊँचाइयों तक
ले गएँ l खास करके त्यौहार के मौके पर एल एम् बी की मिठाइयों की भरी मांग रहती है
l वार्ड नंबर 9 के पार्षद राज कुमार तिवाड़ी, जो उनके पड़ोसी रहे है, कहते है कि मलाई
घेवर के लिए प्रसिद्ध एल एम् बी अब एक ब्रांड बन चूका है, और अपनी मिठाइयों की गुणवत्ता
को संजों कर रखे हुए है l बर्फी, लड्डू, बालूशाही हो या फिर ग्राहक के पसंद की कोई
मिठाई ही, खुद दिनेश त्यौहार के मौके पर, खड़े हो कर, सभी आर्डर पूरा करतें है l वे
कहतें है कि हो सकता है कि उनकी दूकान का कोई आधुनिक परिवेश नहीं है, कोई सजावट
नहीं है, पर गुणमान के मामले में एल एम् बी ने सभी मानदंड उच्चकोटि का बनाये है l उनके
पैक किये हुए मिठाइयों के डब्बे, गुणवत्ता की दृष्टि से शुद्ध और ताजी ही बताई
जाती है l इनके यहाँ बीस से भी ज्यादा तरह
की मिठाइयाँ हर समय उपलब्ध रहती है l दिनेश शर्मा बतातें है कि गुवाहाटी शहर के
पुराने और प्रतिष्ठित गद्दियों और गोलों में हमेशा से ही उनके परिवार के अच्छे
सम्बन्ध रहें है, और इसी वजह से शुरू से ही उनके उपर मिठाइयों की गुणवत्ता को लेकर
हर समय एक दबाब बना हुवा रहता है, जिससे वे क्वालिटी के मामले में हर समय सगज
रहतें है l पकवानों के निर्माण और सामाजिकता के मामले में खरा उतारते हुए दिनेश,
रामकुमार महाराज की विरासत को भली-भाँती आगे ले जा रहे है l समय के साथ भले ही
ज़माने ने नई करवट ले ली है, पर दिनेश का जरुरतमंदों की मदद करने का जज्बा आज भी
जीवित है l पारिवारिक संस्कारों और सामाजिक सरोकारों ने दिनेश को जीवन के मूल्यबोध
को समझने में एक बड़ी भूमिका निभाई है l एक भोजनालय से मिठाई दूकान का लम्बा सफ़र
आसन नहीं था, कई चुनौतियाँ भी आई, जिनको पार करके, आज लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार एल
एम् बी के नाम से एक ब्रांड बन गयी है l
बाल साहित्य लेखक भगवती
प्रसाद बाजपेयी की मिठाईवाला नामक कहानी की बरबस याद आ जाती है, जिसमे एक
मिठाईवाला, बच्चों को लाल, पीली, और हरे रंगों की मीठी गोलियां इतने प्रेम से देता
है कि खरीदने वाले की आँखों में आंसू आ जाएँ l प्रेम, सृजन और संवेदनाये, मिठाई के
व्यवसाय में उतनी ही जरुरी है, जितनी जलेबी के लिए चाशनी l