Friday, March 24, 2017

यह है लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार
रवि अजितसरिया

किसी भी शहर की कुछ खासियत, कुछ विशेषताएं होती है, जिनसे वह शहर जाना जाता है l खास करके  फल, मिठाइयाँ और स्मारकों को ले कर ही शहर के नाम याद आतें है l कोलकाता शहर जिस तरह से मिठाइयों के लिए प्रसिद्द है, उसी तरह से गुवाहाटी में एस आर सी बी रोड पर स्थित लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार एक जाना पहचाना नाम है, जिसकी प्रसिद्धि समूचे पूर्वोत्तर में है l बात सन 1954-1955 की है, जब यहाँ रामकुमार महाराज के नाम से खाने का बासा(मारवाड़ी भोजनालय) चलता था l यह भोजनालय इसलिए भी प्रसिद्द था, क्योंकि यहाँ पर गावं से आने वालों, जिनको यहाँ पर नौकरी नहीं मिलती थी, उनके लिए निशुल्क भोजन की व्यवस्था थी l यही से लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार की स्थापना हुई थी l सन 1995 तक यहाँ चाय और मिठाई ग्राहकों को बैठा कर परोसी जाती थी l स्व. रामकुमार महाराज के पर पोते दिनेश शर्मा बतातें है कि उन दिनों गुवाहाटी का फैंसी बाज़ार एकमात्र बजार ही था, जहाँ बड़ी सुबह से ही नाव और बसों से फैंसी बाज़ार लोग उतरतें थे, और वे सीधे लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार की और रुख करतें थे और छक कर पूरी, सब्जी खातें थें l उस ज़माने से ही उनकी दूकान का बड़ा नाम है l अब एल एम बी नाम से प्रसिद्ध यह मिठाई की दूकान आज उच्च स्तर की मिठाइयाँ और नमकीन के लिए जानी जाती है l स्वादिष्ट राजभोग के लिए एल एम् बी का एक नाम है l दिनेश शर्मा बताते है कि कैसे उन दिनों गुवाहाटी शहर में उनके प्रतिष्ठान ने गुवाहाटी में सबसे पहले राजभोग को लोगों के सामने पेश किया था l राजभोग के लिए, आज भी शादियों के समय उनके पास भारी आर्डर रहतें है l उनका प्रतिष्ठान सिर्फ एक मिठाई दुकान ही नहीं थी, बल्कि उनके पिता स्व. मदनलाल मंगलिहरा के समय से ही एक सामाजिक उठ-बैठ, विचार-विमर्श का केंद्र भी था l स्व. मदनलाल मंगलिहरा के मित्रों में स्व.भगवती प्रसाद सराफ, स्व. मुरलीधर सुरेका, स्व.बेनीप्रसाद शर्मा, स्व.जी के जोशी, स्व.विश्वनाथ तिवाड़ी, प्रभुदयाल जालान आदि लोगो थे, जिन्होंने एक अच्छे मित्रों की न सिर्फ भूमिका निभाई, बल्कि लोक-व्यवहार के चरित्र को अपने वार्तालाप के जरिये लाकर, इस प्रतिष्ठान के चार-चाँद लगा दिए l होली के मौके पर ये सभी महानुभाव, जिनमे अधिकतर दिवंगत हो गएँ, उनके प्रतिष्ठान में चंग बजा कर आनंद और भाईचारे का प्रदर्शन किया करतें थें l आज भी दिनेश अपने पिता की मित्र मंडली को याद करके भावुक हो उठते है l सामजिक कार्यकर्ता और दिनेश के पारिवारिक मित्र प्रभुदयाल जालान बताते है कि स्व. मदनलाल मंगलिहरा उनके सहपाठी थे और उन्होंने एक लम्बा समय एक साथ गुजारा है l एल एम् बी की मिठाइयों का जिक्र करतें हुए वे कहते है कि चाहे कितनी भी नई मिठाई की दुकाने खुल जाये, पर एल एम् बी की मिठाइयों की गुणवत्ता के सामने सभी दुकानों की मिठाइयाँ फ़ैल है l  
इनके पांच भाई के परिवार में खुद मदनलाल मंगलिहरा, राधेश्याम, प्रभुदयाल, राजेंद्रप्रसाद और बजरंगलाल ने सभी के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार किया और लक्ष्मी मिष्ठान भंडार को नयी ऊँचाइयों तक ले गएँ l खास करके त्यौहार के मौके पर एल एम् बी की मिठाइयों की भरी मांग रहती है l वार्ड नंबर 9 के पार्षद राज कुमार तिवाड़ी, जो उनके पड़ोसी रहे है, कहते है कि मलाई घेवर के लिए प्रसिद्ध एल एम् बी अब एक ब्रांड बन चूका है, और अपनी मिठाइयों की गुणवत्ता को संजों कर रखे हुए है l बर्फी, लड्डू, बालूशाही हो या फिर ग्राहक के पसंद की कोई मिठाई ही, खुद दिनेश त्यौहार के मौके पर, खड़े हो कर, सभी आर्डर पूरा करतें है l वे कहतें है कि हो सकता है कि उनकी दूकान का कोई आधुनिक परिवेश नहीं है, कोई सजावट नहीं है, पर गुणमान के मामले में एल एम् बी ने सभी मानदंड उच्चकोटि का बनाये है l उनके पैक किये हुए मिठाइयों के डब्बे, गुणवत्ता की दृष्टि से शुद्ध और ताजी ही बताई जाती है  l इनके यहाँ बीस से भी ज्यादा तरह की मिठाइयाँ हर समय उपलब्ध रहती है l दिनेश शर्मा बतातें है कि गुवाहाटी शहर के पुराने और प्रतिष्ठित गद्दियों और गोलों में हमेशा से ही उनके परिवार के अच्छे सम्बन्ध रहें है, और इसी वजह से शुरू से ही उनके उपर मिठाइयों की गुणवत्ता को लेकर हर समय एक दबाब बना हुवा रहता है, जिससे वे क्वालिटी के मामले में हर समय सगज रहतें है l पकवानों के निर्माण और सामाजिकता के मामले में खरा उतारते हुए दिनेश, रामकुमार महाराज की विरासत को भली-भाँती आगे ले जा रहे है l समय के साथ भले ही ज़माने ने नई करवट ले ली है, पर दिनेश का जरुरतमंदों की मदद करने का जज्बा आज भी जीवित है l पारिवारिक संस्कारों और सामाजिक सरोकारों ने दिनेश को जीवन के मूल्यबोध को समझने में एक बड़ी भूमिका निभाई है l एक भोजनालय से मिठाई दूकान का लम्बा सफ़र आसन नहीं था, कई चुनौतियाँ भी आई, जिनको पार करके, आज लक्ष्मी मिष्ठान भण्डार एल एम् बी के नाम से एक ब्रांड बन गयी है l

बाल साहित्य लेखक भगवती प्रसाद बाजपेयी की मिठाईवाला नामक कहानी की बरबस याद आ जाती है, जिसमे एक मिठाईवाला, बच्चों को लाल, पीली, और हरे रंगों की मीठी गोलियां इतने प्रेम से देता है कि खरीदने वाले की आँखों में आंसू आ जाएँ l प्रेम, सृजन और संवेदनाये, मिठाई के व्यवसाय में उतनी ही जरुरी है, जितनी जलेबी के लिए चाशनी l  

Friday, March 17, 2017

राजनैतिक नारों के बीच दबा एक आम भारतीय
रवि अजितसरिया

इस समय देश के सामने एक नया नारा है, ‘नया भारत’ l अभी कुछ ही दिनों पहले, पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हों के पश्चात, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में यह नारा देश को दिया है l देश में रोजाना कुछ नया घट रहा है l चाहे वह राजनीति हो या आम लोगों के सरोकार से जुडी चीजें हो, लगातार हर क्षेत्र में बदलाव देखने को मिल रहें है l मसलन, बेंकिंग सेक्टर में तो भरी तबाही मची हुई है l कुछ भी निश्चित नहीं है l अभी व्हात्सप्प पर एक मेसेज चल रहा है कि 1 अप्रैल से स्टेट बैंक तीन या चार नगद फेरे के बाद लेनदेन के लिए, लेनदेन चार्ज लगाने जा रही है l इससे लोगों में भारी आक्रोश है l एक अन्य मेसेज वायरल हो रहा है कि फलाने दिन बैंक से कोई लेनदेन ना करें, जिससे बैंकों को भारी नुकसान भोगना पड़ेगा, और वह लेनदेन चार्ज नहीं लगाएगा l कहने का र्तात्पर्य एक ही है कि लोग अपने ही पैसे निकालने के लिए फ़ीस क्यों दे l जब 8 नवम्बर को नोटबंदी का फैसला आया, तब पुरे देश में हड़कंप मच गया था, जिससे आम आदमी को कुछ दिनों तक भारी तकलीफ हुई l छोटे गावों और कसबे में लोगों ने भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था l पर धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गयी है l लोगों को प्लास्टिक मनी के प्रयोग के लिए प्रोत्साहन दिया जाने लगा l उनके लिए पुरस्कारों की घोषणा भी की जाने लगी l पर कडवी सच्चाई है कि देश की अभी भी आधी जनसँख्या नगद में लेनदेन करती है l करोड़ों लोगों के पास अभी भी बैंक अकाउंट भी नहीं है l ऐसे में पल्स्टिक मनी का उपयोग, भीम या अन्य पेमेंट गेटवे के सहारे लेनदेन करना आम आदमी के लिए असुविधा का कारण भी बना है l फिर भी आज के दिन नोटबंदी का कोई असर भारत में तो दिखाई नहीं दे रहा है l नए भारत के नारे के साथ भारतीयता या देशप्रेम की भावना प्रबल रूप से उभर कर आई है l प्रधानमंत्री के इस नारे में कुछ नयी बातें निकल कर आयी है, जैसे गरीबों के लिए नए संसाधन बनाने के अलावा, उन्हें भी सभी क्षेत्रों में अवसर प्रदान किये जाए, जिससे वे आने वाले कुछ वर्षों में देश के विकास में भागिदार हो जाये l किसी भी राज्य, समाज या सिर्फ समूह के गतिशील बने रहने के लिए कुछ घोषित या अघोषित नियम बने रहेतें है, या फिर एक अंतिम निर्देशिका पुस्तक रहती है, जिससे राज्य संचालित होता है l भारत में संविधान, वह निर्देशिका है, जिसमे हर तरह के अंतिम निर्देश दिए हुए है l परम्पराओं और रीतियों को भी समाज और कानूनन मान्यता प्राप्त है, जिसका शासन में एक अहम् रोले है l ऐसे दस्तावेज में हर तबके के लिए पर्याप्त जगह बनाई गयी है, जिससे समाज में एक सामंजस्य बना रहे l नए भारत के लिए सपने हर कोई देखता है l पर सवाल यह है कि इस नए भारत में गरीबों के लिए कितना स्थान होगा l क्या सिर्फ सुदर सड़क, बड़े-बड़े मकान और यातातात के नियंत्रण के लिए स्वचालित बत्तियां ही एक नए भारत का द्धवोतक होगा ?  
अभी कुछ दिनों पहले पटरी पर दूकान लगाने वाले दुकानदार को एक पुलिसवाला इसलिए पीट रहा था, क्योंकि उसने पुलिसवाले को हफ्ता नहीं दिया था l क्या नए भारत में इस तरह से रोजगार कर रहें करोड़ों लोगों के लिए कुछ नया होगा, या नया भारत मात्र के चुनावी नारा बन कर रह जायेया ? गौर से देखें, तब पायेंगे कि उत्तर प्रदेश में शासन की निरंकुशता उस समय देखने को मिली, जब चुनाव जीतते ही एक विधायक ने एक पुलिस अधिकारी को धमकी दे डाली, जिसका ओडियों वायरल हो गया था l अभी भी हमारे देश में हजारों वर्ष पहले वाली निरंकुश शासन वाली परंपरा चल रही है, जहाँ ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत की तर्ज पर साम्राज्य चलता था l जिसमे तानाशाही के लिए पर्याप्त जगह थी l हिटलर, मुसलोनी, फ्रैन्कों जैसे तानाशाह अट्ठारहवीं शताब्दी में ही जन्म लिया था l सामंतवाद की जड़े अभी भी भारत जैसे देश में दिखाई देती है l आज के भारत में भले ही कृषि दासों का अस्त्तिव हमें दिखाई नहीं देता, पर भूमिहीनों के रूप में शोषित जनता हमें हर जगह दिखाई दे जायेगी l नागरिक अधिकारों की अगर बातें करें, तब पाएंगे कि दो जून की रोटी के लिए जुंझ रहें लोगों के लिए ऐसे अधिकार बेमानी है, जो आम जनों के जीने का कोई साधन मुहय्या नहीं करवा सकें l ऐसी दबी हुई, कुचली हुई जनता के लिए नया भारत क्या लेकर आएगा, यह एक लाख टेक का प्रश्न है l जनता के प्रति उत्तरदायी होने वाली सरकार, जब अपनी ही जनता को दो जून की रोटी मुहय्या नहीं करवा सकती, तब संविधान, सरकार, अधिकार और शक्ति जैसे शब्द किसी हिंदी फिल्म के डायलोग जैसे लगते है l लोगों के सेवक बनते फिरते नौकरशाह, लोगों की पहुच से बहुत दूर हो गएँ है l एक प्रजातांत्रिक देश भारत में शासन के सभी अधिकार जनता में निहित है, फिर भी जनता सामंतवाद की शक्तियों के नीचे दबी हुई है l हो सकता है कि एक आजाद देश की सीमाएं सुरक्षित हो, हो सकता है कि यहाँ कानून का राज चलता हो और यह भी हो सकता है कि संविधान ने सभी नागरिकों के लिए सामान अधिकार प्रदत कियें हों, पर बड़ी बात यह है कि धरातल पर वह स्थितियां बिलकुल उलटी दिखाई देती है l यह एक कटु सत्य है कि आप का नौकरशाह आम आदमी को कोई महत्व नहीं देता, उसकी समस्या, उसके रोजगार और उसके सुख-दुःख के लिए कभी चिंतित नहीं रहता l ऐसे में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, जो एक प्रजातंत्र के तीन मजबूत स्तम्भ है, एक मजबूत देश को तो चल रही है, पर उसके नागरिकों के लिए उचित अवसर उपलब्ध करवाने में कही पिछड़ रही है l ऐसे में नए भारत का स्वप्न कैसे पूरा होगा l ख़ुशी की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीतने वाले विधायकों और पार्टी के लोगों को जीत की खुमार से निकल कर जनता के लिए काम करने का निर्देश दिया है l यह तो तय है कि अभी जनत अको एक नई आशा की किरण दिखाई दे रही है l  
 
विकास में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करने की लिए प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने अपनी साईट और मोबइल एप्प डेवेलोप किये है, ट्विटर और फेसबुक के जरिये लोगों से संवाद स्थापित किये है, जहाँ आम लोगो भी अपनी आवाज प्रखर कर सकते है l

देश के युवाओं के लिए रोजगार के नए साधन, स्किल डेवलपमेंट और सामाजिक सुरक्षा आधारित नीतियाँ ही आगामी दिनों की लोगों की नई मांग है l ग्रामीण भारत को मजबूती प्रदान किये जाने से, गावों से शहरों की तरफ पलायन अगर कम होता है, तब सही मायने में भारत के लोगों की उन्नति हो सकेगी l फिर चाहे वह नया भारत का नारा हो या फिर सबका साथ सबका विकास का नारा हो l कोई फर्क नहीं पड़ता l            

Friday, March 10, 2017

रंगों में प्यार होता है, बड़ी ताकत होती है
रवि अजितसरिया


पूरा देश इस वक्त, होली के रंगों से सराबोर है l सन 2017 की होली, इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गई है, क्योंकि देश भर में पांच राज्यों में चुनाव हाल ही में, जो संपन्न हुए है l होली के अवसर पर क्या- बच्चे, क्या बूढ़े, सभी एक दुसरे पर रंग लगा कर खुशियों का इजहार करतें है l बसंत पंचमी के आगमन से ही शुरू होने वाले इस त्यौहार को मानाने के पीछे धार्मिक मान्यता तो है ही. साथ ही मनोरंजन, हर्ष, उल्लास के साथ एक सामाजिक सरोकार भी छिपा रहता है l यही एक त्यौहार है, जो अकेले नहीं मनाया जा सकता है l इसके लिए एक दल की जरुरत होती है l ऐसा माना जाता है कि रंगों में बड़ी ताकत होती है, वह आपस की कटुता, बेमन्स्यता को समाप्त कर देते है l रंगों में होती है, प्यार को बोली l गुवाहाटी में होली अपनी तरह की एक अलग होली होती है l सामाजिक सरोकार का रंग यहाँ जम कर दिखाई देता है l गुवाहाटी में हमेशा से ही परम्परागत होली ही वर्षों से मनाई जाती रही थी, जब तक की आधुनिकता ने उस परंपरा में सेंध नहीं लगा दी l अब गुवाहाटी में आधुनिक होली के रंग देखें जा सकते है, जहाँ एक और परंपरा है तो दूसरी और नवयुवकों के लिए रैन डांस जैसे नयें उपक्रम भी है l इस मिलेजुलें रंग को गुवाहाटी वासी आनंद के साथ ले कर रहें है l
माघ माह के सरकते ही, मौसम में अजीब सी सरसराहट सी आने लगती है l इस सरसराहट की  पदचाप उस वक्त तेज हो जाती है, जब फागुन माह में तेज हवा मौसम को असहनीय बना देती है l हवा में अजीब सी मादकता भर जाती है l चारों और का माहोल धुल भरा होने के चलतें, यह स्पष्ट संकेत लोगों को मिलता है, कि होली का त्यौहार करीब ही है l महिलाएं होली के पन्द्रह दिनों पहले से ही गोबर के कंडे बनाना शुरू कर देती है, जिसे होलिका दहन में होलिका माता की पूजा अर्चना करके जलाया जाता हैl  प्रतीक रूप से यह भी माना जता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका, जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है। महिलाएं ठंडाई, मिठाई अन्य पकवान बना कर, होली महोत्सव को खाज और नाच का एक मनमोहक त्यौहार बना देती है. परिवार के बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लेती है l होली के त्यौहार के पालन के लिए, प्रवासियों के एक बड़ी तादाद अपने मूल प्रदेश को लौट जाते है, और परिवार के बीच होली मानते है l गीत और संगीत का यह पर्व प्रकृति के उत्कर्ष को अंगीकार करते हुवे लोगों को भाईचारे का सन्देश देती है l इसी मादकता के बीच, होली के मनमोहक गीतों की बहार लेकर कुछ मनचले निकल पड़ते है l गुवाहाटी में होली के गीतों को लोगों तक पहुँचाने का श्रेय उन कलाकारों एवं सीडी वितरकों को जाता है, जिन्होंने बड़े जतन करकें स्थानीय कलाकारों के साथ घंटों नींद खराब की और नए नए गीत लोगो तक पहुचाएं है l जारी..2
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रंगों का त्यौहार होली न सिर्फ एक पर्व है, बल्कि मनुष्यों के लिए एक आनंददायक,प्रेरणादायक और उत्साह का पर्व है, जहाँ मनुष्य अपने गम और पीड़ा को भूल कर एकता और मिलन के स्पष्ट सन्देश देता है ll इसका जीता जाता उदहारण हमें गुवाहाटी में दिखाई देता है l यहाँ भारतीय संस्कृति की अमिट छाप बनती है, होली के अवसर पर, जब भिन्न-भिन्न जाति और इकाइयों के लोग एक साथ होली खेलते है l यहाँ होलिका दहन का सफलतापूर्वक आयोजन श्री पंचायती ठाकुरबाड़ी जैसी प्राचीन संस्था करती है l   
गुवाहाटी में गोठ और सांस्कृतिक कार्यक्रम के आयोजन हर वर्ष होतें है l लगभग हर संस्था और समाज का लोग अपने स्तर पर कार्यक्रम आयोजन करतें है, जिसमे समाज के लोगों की तो भागीदारी होती ही है, इत्तर समाज के लोग भी उसमे सिरकत करते है, जो आपसी प्रेम और एकता का सन्देश देती है l यूँ तो चंग और फाग के कार्यक्रम कई जगह होतें है, पर अग्रवाल सम्मलेन और मारवाड़ी सम्मलेन के बड़े सार्वजनिक कार्यक्रमों हर वर्ष आयोजित होतें है, जिसमे हजारों की संख्या में लोग भाग लेतें है l फैसी बाज़ार में तीन जगह पर बड़े कार्यक्रम आयोजित किये जातें है l शनि मंदिर के सामने फ्रेंड्स क्लब  द्वारा, यूनियन बेंक के नीचे होली टोली द्वारा और चाय-गली में एसआरसीबी रोड के वासिंदों द्वारा l होली टोली और फ्रेंड्स क्लब के कार्यक्रमों में बड़ी संख्यां में महिलाओं और बच्चो की मौजूदगी इस बात का प्रमाण है कि कार्यक्रम पारंपरिक दृष्टिकोण से ही आयोजित किये जातें रहें है l इधर होली टोली, जो करीब होली के दस दिनों पहले से ही चायगली में होली के गीतों से माहोल को होलीमय कर देती है l इनके सदस्य मंच पर पारंपरिक वेश-भूषा पहने, ढोल और चंग बजा कर एक पारंपरिक कार्यक्रम पेश करतें है l वही एक गोल घेरे में आम जन नृत्य कर कार्यक्रम का भरपूर आनंद लेतें है l इस पुरे आयोजन में एक बात महत्वपूर्ण है कि लोग अपने परिवाद के साथ बैठ कर होली के मनभावन गीतों का आनंद लेतें है l होली टोली और फ्रेंड्स क्लब के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए पुरे गुवाहाटी से लोग हर वर्ष आते है l फैंसी बाज़ार की होली, पुरे भारत में प्रसिद्द है, इसकी चर्चा जरुर होती है, जिसके पीछे यह कारण है कि इस उत्सव का आयोजन एक सामाजिक और पारिवारिक आयोजन जैसा होना, जिसमे समाज के हर परिवार का भाग लेना l होली महज एक रंगों का त्यौहार नहीं है, बल्कि आपसी भाईचारे और सोहाद्र का प्रतिक है, जिसमे हर तबके के लोग शामिल होतें है l