राजनैतिक नारों के बीच दबा
एक आम भारतीय
रवि अजितसरिया
इस समय देश के सामने एक नया
नारा है, ‘नया भारत’ l अभी कुछ ही दिनों पहले, पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हों के
पश्चात, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में यह नारा देश को दिया है l देश
में रोजाना कुछ नया घट रहा है l चाहे वह राजनीति हो या आम लोगों के सरोकार से जुडी
चीजें हो, लगातार हर क्षेत्र में बदलाव देखने को मिल रहें है l मसलन, बेंकिंग
सेक्टर में तो भरी तबाही मची हुई है l कुछ भी निश्चित नहीं है l अभी व्हात्सप्प पर
एक मेसेज चल रहा है कि 1 अप्रैल से स्टेट बैंक तीन या चार नगद फेरे के बाद लेनदेन
के लिए, लेनदेन चार्ज लगाने जा रही है l इससे लोगों में भारी आक्रोश है l एक अन्य
मेसेज वायरल हो रहा है कि फलाने दिन बैंक से कोई लेनदेन ना करें, जिससे बैंकों को
भारी नुकसान भोगना पड़ेगा, और वह लेनदेन चार्ज नहीं लगाएगा l कहने का र्तात्पर्य एक
ही है कि लोग अपने ही पैसे निकालने के लिए फ़ीस क्यों दे l जब 8 नवम्बर को नोटबंदी
का फैसला आया, तब पुरे देश में हड़कंप मच गया था, जिससे आम आदमी को कुछ दिनों तक
भारी तकलीफ हुई l छोटे गावों और कसबे में लोगों ने भारी मुसीबतों का सामना करना
पड़ा था l पर धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गयी है l लोगों को प्लास्टिक मनी के
प्रयोग के लिए प्रोत्साहन दिया जाने लगा l उनके लिए पुरस्कारों की घोषणा भी की
जाने लगी l पर कडवी सच्चाई है कि देश की अभी भी आधी जनसँख्या नगद में लेनदेन करती
है l करोड़ों लोगों के पास अभी भी बैंक अकाउंट भी नहीं है l ऐसे में पल्स्टिक मनी
का उपयोग, भीम या अन्य पेमेंट गेटवे के सहारे लेनदेन करना आम आदमी के लिए असुविधा
का कारण भी बना है l फिर भी आज के दिन नोटबंदी का कोई असर भारत में तो दिखाई नहीं
दे रहा है l नए भारत के नारे के साथ भारतीयता या देशप्रेम की भावना प्रबल रूप से
उभर कर आई है l प्रधानमंत्री के इस नारे में कुछ नयी बातें निकल कर आयी है, जैसे गरीबों
के लिए नए संसाधन बनाने के अलावा, उन्हें भी सभी क्षेत्रों में अवसर प्रदान किये
जाए, जिससे वे आने वाले कुछ वर्षों में देश के विकास में भागिदार हो जाये l किसी
भी राज्य, समाज या सिर्फ समूह के गतिशील बने रहने के लिए कुछ घोषित या अघोषित नियम
बने रहेतें है, या फिर एक अंतिम निर्देशिका पुस्तक रहती है, जिससे राज्य संचालित
होता है l भारत में संविधान, वह निर्देशिका है, जिसमे हर तरह के अंतिम निर्देश दिए
हुए है l परम्पराओं और रीतियों को भी समाज और कानूनन मान्यता प्राप्त है, जिसका
शासन में एक अहम् रोले है l ऐसे दस्तावेज में हर तबके के लिए पर्याप्त जगह बनाई
गयी है, जिससे समाज में एक सामंजस्य बना रहे l नए भारत के लिए सपने हर कोई देखता
है l पर सवाल यह है कि इस नए भारत में गरीबों के लिए कितना स्थान होगा l क्या सिर्फ
सुदर सड़क, बड़े-बड़े मकान और यातातात के नियंत्रण के लिए स्वचालित बत्तियां ही एक नए
भारत का द्धवोतक होगा ?
अभी कुछ दिनों पहले पटरी पर
दूकान लगाने वाले दुकानदार को एक पुलिसवाला इसलिए पीट रहा था, क्योंकि उसने
पुलिसवाले को हफ्ता नहीं दिया था l क्या नए भारत में इस तरह से रोजगार कर रहें करोड़ों
लोगों के लिए कुछ नया होगा, या नया भारत मात्र के चुनावी नारा बन कर रह जायेया ? गौर
से देखें, तब पायेंगे कि उत्तर प्रदेश में शासन की निरंकुशता उस समय देखने को
मिली, जब चुनाव जीतते ही एक विधायक ने एक पुलिस अधिकारी को धमकी दे डाली, जिसका
ओडियों वायरल हो गया था l अभी भी हमारे देश में हजारों वर्ष पहले वाली निरंकुश
शासन वाली परंपरा चल रही है, जहाँ ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाली कहावत की तर्ज पर
साम्राज्य चलता था l जिसमे तानाशाही के लिए पर्याप्त जगह थी l हिटलर, मुसलोनी,
फ्रैन्कों जैसे तानाशाह अट्ठारहवीं शताब्दी में ही जन्म लिया था l सामंतवाद की जड़े
अभी भी भारत जैसे देश में दिखाई देती है l आज के भारत में भले ही कृषि दासों का अस्त्तिव
हमें दिखाई नहीं देता, पर भूमिहीनों के रूप में शोषित जनता हमें हर जगह दिखाई दे
जायेगी l नागरिक अधिकारों की अगर बातें करें, तब पाएंगे कि दो जून की रोटी के लिए
जुंझ रहें लोगों के लिए ऐसे अधिकार बेमानी है, जो आम जनों के जीने का कोई साधन
मुहय्या नहीं करवा सकें l ऐसी दबी हुई, कुचली हुई जनता के लिए नया भारत क्या लेकर
आएगा, यह एक लाख टेक का प्रश्न है l जनता के प्रति उत्तरदायी होने वाली सरकार, जब
अपनी ही जनता को दो जून की रोटी मुहय्या नहीं करवा सकती, तब संविधान, सरकार,
अधिकार और शक्ति जैसे शब्द किसी हिंदी फिल्म के डायलोग जैसे लगते है l लोगों के
सेवक बनते फिरते नौकरशाह, लोगों की पहुच से बहुत दूर हो गएँ है l एक प्रजातांत्रिक
देश भारत में शासन के सभी अधिकार जनता में निहित है, फिर भी जनता सामंतवाद की
शक्तियों के नीचे दबी हुई है l हो सकता है कि एक आजाद देश की सीमाएं सुरक्षित हो,
हो सकता है कि यहाँ कानून का राज चलता हो और यह भी हो सकता है कि संविधान ने सभी
नागरिकों के लिए सामान अधिकार प्रदत कियें हों, पर बड़ी बात यह है कि धरातल पर वह
स्थितियां बिलकुल उलटी दिखाई देती है l यह एक कटु सत्य है कि आप का नौकरशाह आम आदमी
को कोई महत्व नहीं देता, उसकी समस्या, उसके रोजगार और उसके सुख-दुःख के लिए कभी
चिंतित नहीं रहता l ऐसे में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, जो एक
प्रजातंत्र के तीन मजबूत स्तम्भ है, एक मजबूत देश को तो चल रही है, पर उसके नागरिकों
के लिए उचित अवसर उपलब्ध करवाने में कही पिछड़ रही है l ऐसे में नए भारत का स्वप्न
कैसे पूरा होगा l ख़ुशी की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीतने वाले
विधायकों और पार्टी के लोगों को जीत की खुमार से निकल कर जनता के लिए काम करने का
निर्देश दिया है l यह तो तय है कि अभी जनत अको एक नई आशा की किरण दिखाई दे रही है
l
विकास में लोगों की
भागीदारी सुनिश्चित करने की लिए प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने अपनी साईट और मोबइल
एप्प डेवेलोप किये है, ट्विटर और फेसबुक के जरिये लोगों से संवाद स्थापित किये है,
जहाँ आम लोगो भी अपनी आवाज प्रखर कर सकते है l
देश के युवाओं के लिए रोजगार
के नए साधन, स्किल डेवलपमेंट और सामाजिक सुरक्षा आधारित नीतियाँ ही आगामी दिनों की
लोगों की नई मांग है l ग्रामीण भारत को मजबूती प्रदान किये जाने से, गावों से शहरों
की तरफ पलायन अगर कम होता है, तब सही मायने में भारत के लोगों की उन्नति हो सकेगी
l फिर चाहे वह नया भारत का नारा हो या फिर सबका साथ सबका विकास का नारा हो l कोई
फर्क नहीं पड़ता l
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