Monday, April 6, 2009

लक्ष्य समाज सुधार का, क्यों नही.

हमारें बदले बदले माहोल में हम अपने आप को आधुनिकता की कसौटी पर अगर कसते है, तब पातें है की, हम बाहर से तो आधुनिकता का चोंगा ओढ़ रखे है, पर हम कही न कही अपने दिल के किसी कोनें में पिछडेपन के नये पौधों से घिरे हुवें है, जो हमें बराबर हमें उन जड़ो की और इशारे करवाती है, जो रुढिवादी और मर्यादाविहीन प्रभाव से ग्रस्थ रहती है। शायद येही हमे बार बार नयेपन में असामान्य हरकते करने पर मजबूर कर देती है। हम उन लोगो की निंदा करते है, जो मानसिक रूप से विकृत हो कर स्त्री अस्मिता को तार करने में लगें है। मजे की बात यह है, कि हम ठीक से उन असामाजिक तत्वों का विरोध भी नही कर सकते। ना जाने हममे हिम्मत कब आयेंगी। ?
रवि अजितसरिया