Friday, March 12, 2021

हिंदी भाषी एक बार अपनी शक्ति पहचाने

 

हिंदी भाषी एक बार अपनी शक्ति पहचाने

एक बार फिर इस बात को दोहराना जरुरी है कि इस बार असम के चुनाव में हिंदी भाषियों की प्रमुख भूमिका रहेगी l भले ही ज्यादातर राजनितिक पार्टियों ने हिंदी भाषियों को टिकट नहीं दिए हैं(एक दो को छोड़ कर), पर बात जब वोट देने की आएगी, हिंदी भाषी के वोट निर्णायक भूमिका निभाएंगे l मैं यह बात इस लिए कह रहा हूँ, कि कई सारे विधान सभा क्षेत्र में त्रिकोणीय मुकाबला देखा जा रहा है l कई क्षेत्रों में तो चार चार दमदार प्रत्याशी मैदान में है l ऐसे में मतों का विभाजन होना तय हैं l यह इसलिए हम कह रहे है क्योंकि इस बार का चुनाव कई मुद्दों पर लड़ा जायेगा, जिनमे विगत दिनों आयोजित हुए आंदोलनों का प्रभाव भी चुनावों पर पड़ने की उम्मीद हैं l क्षेत्रीयतावाद का मुद्दा असम में हमेशा से ही एक प्रमुख मुद्दा रहा है, उपर से कई नई पार्टियाँ के गठित होने से लोगों ने भ्रम की स्थित पैदा हो गयी है l हालाँकि, कुछ चुनाव विशेषज्ञ यह भी कहते है कि चुनाव के वक्त अक्सर ऐसा ही होता है कि कुछ नई पार्टियाँ उभर कर आती है, और कुछ पुरानी पार्टियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है l पर इस बार जो समीकरण दिखाई पड़ रहे है, उससे तो यही प्रतीत होता है कि जातिवाद और धर्म दो ऐसे मुद्दे है, जिन पर चुनाव मुख्य रूप से लड़े जा सकते है lऐसी सूरत में हर क्षेत्र में मौजूद हिंदी भाषी मतों की उपयोगिता अधिक दिखाई दे रही हैं l अगर ऐसा नहीं होता तब, राजनितिक पार्टियों को अचानक हिंदी भाषी के प्रति प्रेम नहीं उमड़ता l कुछ एक ने तो हिंदी भाषियों के लिए योजनाओं और वादों की झड़ी लगा दी हैं l उल्लेखनीय है कि राज्ये में करीब अठारह से बीस लाख हिंदी भाषी मतदाता हैं, जो राज्य के 126 विधान सभा क्षेत्र में सर्वत्र फैले हुए हैं l उपर से हिंदी भाषी मतदाता बहुत पहले से ही मतदान करने में उदासीन है, जिसका मुख्य कारण रहा है, उनकी अवहेलना और उनके प्रति एक रुखा नजरिया l मारवाड़ी, बिहारी और उत्तर प्रदेश के लोग असम में स्थानीय लोगों की तरह ही रह कर, राज्य के उतरोतर विकास में शामिल हैं l अब तक ना जाने कितने इत्तर भाषी लोग असमिया बन कर असमिया की तरह जीवन यापन करने लगे हैं l यह सिलसिला पिछली शताब्दी से लेकर अब तक चल रहा हैं l कईयों की उपाधि भले ही अगरवाला है, कनोई, साहू, है, पर वे शुद्ध असमिया है, असमिया बोलते भी ही और आचार-व्यवहार से भी असमिया हैं l  यह सब इसलिए संभव हुवा है, क्योंकि असमिया जातिय जीवन में सर्व धर्म-सर्व जाति समभाव के लिए पर्याप्त व्यवस्था हैं l ऐसे कुछ गुण गुण असमिया जाति में उसके उदय से ही निहित हैं l तभी तो यह संभव हो सका कि लाखों भिन्न भाषा-भाषी लोग असम और उसके आसपास एक राज्यों में वर्षों से रह रहें हैंl विविध संस्कृति से आनेवाले लोगों ने अपना वास स्थान असम को बनाया और उसको अपना घर बनाया l भाषा, संस्कृति और यहाँ तक कि रीति रिवाजों को भी अपनाया l इसके बावजूद भी उनको उचित सम्मान अभी भी प्राप्त नहीं हैं l इस बार असम के चुनाव कई मायने से महत्वपूर्ण हैं l धर्म के प्रमुख मुद्दा रहेगा, साथ ही सत्ताधारी पार्टी विकास के नाम पर वोट की मांग करेगी l इधर, अभी अभी उदय हुई कुछ क्षेत्रीय पार्टियाँ जातिय मुद्दों पर लोगों के पास जाएगी l इसके अलावा कांग्रेस ने पांच बड़े वादे लोगों से कर दिए है l इन दिनों राजनितिक पार्टियाँ लोगों को रिझाने के लिए उनके घरों तक दस्तक दे रही है l हिंदी भाषियों के पैरोकार बन कर तमाम तरह के वादे कर रही हैं l दरअसल में हिंदी भाषियों में भी आपस में मतभेद हैं, वें कभी भी एकजुट हो कर किसी एक मुद्दे पर सहमत नहीं हो पाते l हिंदी भाषियों के संगठनों की अपनी डफली अपना राग हैं l अलग अलग भाषा-भाषियों के अपने प्रतिनिधि संगठनों के अजेंडे में आपसी संवाद जैसे विषय कभी भी नहीं रहे हैं l इसका फायदा राजनितिक पार्टियाँ बड़े आराम से उठाती हैं l वें सभी को अलग अलग नजरिये से देखती हैं l इस समय भी कुछ ऐसा ही हुवा हैं l बड़े संगठनों के पदाधिकारियों को ऐसा लगता है कि राजनितिक पार्टियाँ उनका सुनती है, इसलिए वें उनको गाये-बघाये ज्ञापन सौप कर इतिश्री कर लेती हैं l इन ज्ञापनों का कोई नतीजा नहीं निकलता l उपर से, इतने बिखराव की स्थिति में, वें किसी भी किस्म की सौदेबाजी भी नहीं कर सकते l जब तक राजनितिक पार्टियाँ, हिंदी भाषियों के प्रति अपना नजरिया नहीं बदलती, राज्य में हिंदी भाषियों की स्थिति भी नहीं बदलेगी l और, हिंदी भाषियों को यह लड़ाई खुद से लड़नी होगी l