हमारें बदले बदले माहोल में हम अपने आप को आधुनिकता की कसौटी पर अगर कसते है, तब पातें है की, हम बाहर से तो आधुनिकता का चोंगा ओढ़ रखे है, पर हम कही न कही अपने दिल के किसी कोनें में पिछडेपन के नये पौधों से घिरे हुवें है, जो हमें बराबर हमें उन जड़ो की और इशारे करवाती है, जो रुढिवादी और मर्यादाविहीन प्रभाव से ग्रस्थ रहती है। शायद येही हमे बार बार नयेपन में असामान्य हरकते करने पर मजबूर कर देती है। हम उन लोगो की निंदा करते है, जो मानसिक रूप से विकृत हो कर स्त्री अस्मिता को तार करने में लगें है। मजे की बात यह है, कि हम ठीक से उन असामाजिक तत्वों का विरोध भी नही कर सकते। ना जाने हममे हिम्मत कब आयेंगी। ?
रवि अजितसरिया
समाज के पास कई सारी प्राथमिकतायें है,जिन पर समस्त समाज कार्य कर रहा है। उनके प्रति हम कितने प्रतिबद्ध है, यह हमको देखना है।
Monday, April 6, 2009
Sunday, March 29, 2009
बनती बिगड़ती सामाजिक मान्यताये
समय के साथ जैसे जैसे शिक्षा का व्यापक प्रचार हुवा है, वैसे-वैसे समाज में व्याप्त धारणाये, आचार-संहिता में स्वतः ही बदलाव के भारी संकेत देखने को मिल रहें है। अब किसी भी नयी वस्तु या विचार के लिए समाज में पर्याप्त जगह मौजूद है। तीज-त्यौहार और उत्सवों में लोग रूचि लेने लगे है, बशर्ते वे हमे उमंग दे, आनंद दे। लोक गीतों को एक बार उचित स्थान दिया जाने लगा है। यह एक खुशी की बात है। दुःख की बात यह है कि हमारे परिवारों पर टीवी का बुरा प्रभाव पड़ने लगा है, जिससे हमारी विशाल भारतीय संस्कृति विकृत हो कर हमारे सामने एक नए रूप में पेश हो रही है।
Thursday, March 26, 2009
आम चुनाव में हम
अगले आम चुनाव में हम देशवासियों को बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिये , चाहे वह चुनाव में वोट देने की बात हो या फिर अपने उम्मीदवार खड़े करने की बात हो। हर देशवासी को इस समय , जागरूक हो कर अपना कर्तव्य निभाना चाहिये , ताकी देश का भविष्य सुरक्षित रह सके। अब देश के पढ़े-लिखे लोगो को चुनाव की चर्चा करने में परहेज नही करनी चाहेये। अगर वे ऐसा करते है, तब उन पर पलायनवादी का आरोप लग सकता है। देश के लिए कुछ समय निकलना हर देशवासी का कर्तव्य है। सीमा पार से आने वालें अनुप्रवेश्कारियो का मुकाबला करने वालें हमारे जवानों के होसलों को भी बुलंद करने के लिए हमें आगे आने की जरूरत है। यह भी एक सच्ची देश सेवा है।
जय देश ।
रवि अजितसरिया
जय देश ।
रवि अजितसरिया
Saturday, February 7, 2009
जबाबदेही क्यों नही?
अगर गौर से देखें, तब हम पाएंगे कि, सरकारी अमला अपने कार्य पुरी जिम्मेवारी से नही करते, और नतीजा यह होता है, कि एक आम आदमी उसकी सजा भुगतता है। क्या हम अपने सरकारी तंत्र को मजबूत नही बना सकतें । क्या देशवासियों को एक बार फिर आन्दोलन चलाना होगा। इस देश को नोकर्शाहों की गिरफ्त से मुक्ति दिलानें हेतु। देश का बुद्धिजीवी वर्ग अपनी ही चाल में चल रहा है, उसके पास राय देने के आलावा कुछ भी नही है, और एक आम आदमी के पास इतने पावर नही कि, वे भ्रष्टअधिकारियो को हटा सके, क्योंकि, साक्ष्य इतने कमजोर है, कि वे अपनी बात को प्रमाणित नही कर पाते, और वही पुराना ढर्रा चल रहा है। आम आदमी भ्रष्टाचार के दलदल में फँस जा रहा । यह कड़ी कब टूटेगी ?
Tuesday, February 3, 2009
क्यो समाज में बदलाव की जरुरत होती है?
भारत में सदियों से एक सुसँस्कृत समाज विध्यवान रहा है, यहाँ की आबो हवा भारतीयों को सभ्यता, मित्रता के और नजदीक ले जाती है। यहाँ लोग जल्दी बदलाव नही लाना चाहेते, क्योंकि, लोगो को पुराणी आदतों के साथ जीने की आदत पड़ी हुवी है। शायद, इसलिए भारतीय लोगो में जीने की अधिक जीजिविसा है, जिसके साथ एक आम भारतीय अपनी संस्कृति के साथ जीने की आदत डाल लेता है। फिर भी, हम इस आधुनिक ज़माने में बदलाव की आदत डालने पर मजबूर है। इसका मुख्य कारण है, संचार क्रांति का प्रचार प्रसार, जिसका प्रभाव एक आम भारतीय पर पड़ा है। अब परिवारों में इस संचार क्रांति के कदम पड़ चुके है, जिसके उदहारण हमारे सामने है, संयुक्त परिवार का टूटना और एकल परिवार की स्थापना। क्या बदलाव के बीज हमारे मानवीय मूल्यों पर नही पड़ा है। बड़े महानगरों में भागदौड़ की जिंदगी में कहाँ किसे दो मिनट की फुरसत है, मानवता के लिए, मानव मूल्यों के लिए। शायद इसलिए बदलाव की जरुरत होती है, जिससे जीवन सुखद बने.
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