Friday, October 19, 2018

शादी विवाह में फिजूल खर्ची क्यों ?


कौन बनेगा इस बदलाव का ध्वजधारक
अल्लामा इक़बाल इस एक प्रसिद्द शायरी इस मौके पर याद आ रही है -ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है l लिखने के पीछे मकसद यह है कि पिछले अंक में शादी विवाह पर फिजूल खर्च, आडम्बर और दिखावे पर एक चर्चा करने का जो मैंने प्रयास किया था, उसका नतीजा यह निकला कि कई लोगों ने इसका समर्थन तो किया पर यह कह रहें है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे l हम माध्यम वर्ग की समस्या यह है कि वह एक डरपोक वर्ग है l वह सामजिक वर्जनाओं या फिर घिसी-पिटी परम्पराओं को तोड़ने से घबराता है l  अगर सभी करने लगे तब, वह कर सकता है l उच्च वर्ग, जब वही कार्य बड़ी आसानी से कर देता है, तब मध्यम वर्ग भी इसे कर डालता है, बिना किसी घबराहट के, क्योंकि अनुसरण करना यह वर्ग बखूबी जानता है l यहाँ भी कुछ ऐसा ही मामला है l एक प्रस्ताव आया है कि वर और वधु, दोनों पक्षों की आपसी सहमती से, शादी की एक ही पार्टी होनी चाहिये l इस प्रस्ताव में इसलिए दम है , क्योंकि शादी के पहले दिन लड़के वाले के यहाँ पार्टी होती है, जिसमे वे ही मेहमान रहते है, जिन्हें अगले दिन दिन बुलाया जाना है l लड़के वाले अपने मेहमान को भी अगले दिन होने वाली शादी में निमंत्रित करतें है, जिससे लड़की वाले के यहाँ अनावश्यक रूप से दबाब बढ़ जाता है l इसको ख़त्म करने के लिए शादी के रेसप्सन का खर्च दोनों पक्ष मिल कर उठायें, जिससे अनावश्यक खर्चे में रोक लगेगी l तब लड़केवाले बेतुकी मांग नहीं रख पाएंगे, क्योंकि आधा खर्च तो उन्ही को देना है l भारत में शादियां बड़ी ख़ुशी का अवसर होती हैं l समारोह कभी-कभी कई दिनों तक चलता है और इसकी तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती हैं l इन समारोहों में लाखों और करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जाते हैं l हज़ारों लोगों के खाने का इंतज़ाम किया जाता है l मजे कि बात यह होती है कि इसमें शान दिखाने के अलावा किसी के कुछ हाथ नहीं आता l बेहिसाब खर्चे ने शादी के बजट को कहाँ से कहाँ तक पंहुचा दिया है l अगर रिसेप्सन दोनों पक्ष मिल कर करें, तब खर्च की सीमा पर लगाम लग सकती है l दूसरा प्रस्ताव यह है कि शादी दिन में संपन्न हो, जिससे एक ही दिन में सभी मंगल कार्य संपन्न हो सके, और खर्च पर भी रोक लगाईं जा सके l अब दिन के समय में शादी किये जाने को लेकर बात हुई, तब मुहरत और समय की बात होने लगी, इस विषय में पंडितों और जानकारों से राय लेनी भी उचित रहेगी l दिन में शादी अगर हो सकती है, तब यह सोने में सुहागा होगा l एक प्रस्ताव यह है कि शादी एक निजी मामला है, इसलिए अपनी सहूलियत के हिसाब से शादी की जाये, ना कि मुहरत और लगन के हिसाब से l क्यों समय और मुहरत देख कर ही शादियाँ हमेशा की जाती है, जबकि मुहरत वैगरह को कड़ाई से कौन मानता है l प्रस्तावक कहता है कि ऐसी हजारों शादियाँ मुहरत और समय देख कर होती है और कुछ दिन तक भी नहीं चलती l समाज में तलाक के मामले इन दिनों बेहिसाब बढ़े है l यह एक क्रांतिकारी प्रस्ताव हो सकता है l ऑफ-सीजन में शादी के वेन्यू को बुक करने का खर्चा भी नवंबर-फरवरी के वेडिंग सीजन के मुकाबले कम होगा l ऑफ-सीजन में शादी करने से आपके खर्चों में कमी आएगी l आपको कैटरर्स को न तो मुंहमांगी रकम ही देनी पड़ेगी और न ही वे आपकी शादी में किसी और की शादी का बचा हुआ खाना ही परोसेंगे l कई बार यह देखा गया है कि अगले छह महीने तक लगन और मुहरत नहीं होने की बात होती रहती है, पर उसके बावजूद भी शादियाँ उन्ही दिनों में होती है, जिसमे मुहरत नहीं रहतें है l मसलन, कोई एक वर्ष में 11 नवंबर को देव उठनी एकादशी से भगवान के जागने के साथ ही विवाह के मुहूर्त फिर एक महीने तक बनेंगे, इस अवधि में लोग सिर्फ भगवान के भजन-कीर्तन कर सकेंगे. चातुर्मास में शादी-ब्याह, उपनयन संस्कार, मुंडन संस्कार आदि सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं l इस तरह की कई घोषणाएं प्राय: होती रहती है, पर होता है, बिलकुल उल्टा l उन्ही वर्जित दिनों में शादियाँ करवाई जाती है l इस विषय पर क्या कोई बात हो सकती है? पिछले वर्षों में कई ऐसी शादियाँ हुई, जिनके वास्तविक निमंत्रण नहीं आये थे, बस व्हात्सप्प पर इ-कार्ड ही आये थे, एक प्रस्ताव यह भी है कि पारंपरिक निमंत्रणों से तौबा कीजिए और कोरियर वगैरह का खर्चा बचाया जाय l अपने दोस्तों को ईमेल करिए या फिर वॉट्सऐप पर ही शादी का निमंत्रण दे डालिए l आखिरकार हम एक डिजिटल युग में रह रहे हैं l शादी के मौके पर एक खर्च विडियो फोटोग्राफी और स्टील फोटोग्राफी होने लगा है l ज्यादातर वेडिंग फोटोग्राफर एक अच्छी-खासी फीस की डिमांड करते हैं l जो लोग इतने महंगे फोटोग्राफर अफॉर्ड नहीं कर सकते, उन्हें दुसरे का अनुसरण नहीं करके अपने हिसाब से फोटोग्राफी करवानी चाहिये, ताकि अनावश्यक खर्च बचाया जा सके l और समय की कमी की वजह से कितने लोग अपनी शादी के विडियो दुबारा देखतें है l ऐसे कई लोग भी सामने आये जो कुछ नया करना तो चाहतें है, पर सामजिक वर्जनाओं की वजह से अपना नाम उल्लेख नहीं करना चाहतें है l ऐसे लोग अपने प्रस्ताव गुमनाम रहकर दे सकते है l
शादी विवाह पर इस चर्चा को करने के पीछे उद्देश्य यह है कि एक नई पहल आजकल के पढ़े-लिखे शिक्षित लोग करना चाहतें है l यह चर्चा इस लिए भी जरुरी है क्योंकि, पानी अब सिर से उपर चला गया है l माध्यम वर्ग अब त्रस्त हो कर बदलाव की उम्मीद कर रहा है l पर समस्या यह है कि कैसे संभव हो पायेगा, यह कार्य l कौन बनेगा ध्वजधारक, कौन बनेगा इस बदलाव का झंडाबरदार l  


Tuesday, October 2, 2018

टूटते सपनों के बीच विकास की परियोजनाएं


टूटते सपनों के बीच विकास की परियोजनाएं
रवि अजितसरिया
एक बार निवर्तमान मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा था कि वे गुवाहाटी को संघाई बना देंगे l उन्होंने यह बात गुवाहाटी के ब्रह्मपुत्र के किनारे को सुन्दर बनाने के सन्दर्भ में कही थी l संघाई, चीन और समूचे एशिया का सबसे बड़ा शहर है, जिसकी आबादी 2 करोड़ 40 लाख है, जो करीब 7 हजार वर्ग किलोमीटर तक फैला हुवा है l चीनी भाषा में संघाई का मतलब होता है नदी या समुद्र के उपर’ l व्यापारिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बंदरगाह है, जो पूरब को पश्चिम से जोड़ता है l यहाँ बंड नामक एक नदी का किनारा है, जिसके किनारे एतिहासिक इमारतों की एक कतार बनी हुई है l यह एक संघाई का बेहद सुंदर इलाका है l गुवाहाटी और उत्तर गुवाहाटी के बीच पुल बनाने की घोषणा पिछले 14 वर्षों में चार बार की गई, पर आज तक यह योजना तिल मात्र भी नहीं घिसकी, जिसका खामियाजा उत्तर गुवाहाटी के लोग अपनी जान दे कर चूका रहें है l पिछली पांच तारीख को उत्तर गुवाहाटी में एक नावं के पलटने से करीब 20 लोगों के डूबने की आशंका व्यक्त की जा रही है, जबकि 12 लोगों को बचा लिया गया था l असम इनलैंड वाटर ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट, जो गुवाहाटी और उत्तर गुवाहाटी के बीच चलने वाली नावं और जहाजों का संचालन करता है, उनके एक अधिकारी के मुताबिक, सिर्फ 22 टिकट बेचे गए थे जबकि लोग ज्यादा सवार थे। विभाग से लाइसेंस लेकर प्राइवेट कंपनियों द्वारा मशीनचालित नावें चलाई जाती है, जिसकी मदद से हजारों यात्री रोज नदी पार करते हैं। इस बड़ी दुर्घटना से लोगों में दुःख भी है तो भरपूर गुस्सा भी है l गुस्सा इसलिए है क्योंकि नावं और जहाज चालन का संचालन सही तरीके से नहीं हो रहा था l जिस पुल बनाने की घोषणा कई सरकारें पिछले 14 वर्षों से कर रही है, वह अभी भी कागजों में ही बन रही थी l गुस्सा इसलिए भी है, क्योंकि सरकार उत्तर गुवाहाटी और गुवाहाटी के बीच चलने वाली इन नावों को लाइसेंसे तो दे रही है, पर उनका रखरखाव कैसा है, इस बात पर ध्यान नहीं दे रही है l गुवाहाटी शहर का लम्बा नदी किनारा पर्यटकों के लिए एक आनंद का स्थान बन सकता हैं l इसके किनारे अभी दो चलता-फिरता रेस्टोरेंट और एक डिस्को चल रहा है l अगर नदी के किनारों को मुंबई के मेरिन ड्राइव की तर्ज पर आगे ले जाया जाय, और फिर तट को सुंदर बनाया जाय, तब यह एक पर्यटकों के आकर्षण का स्थान पबन सकता है l मरीन ड्राइव मुंबई में 1920 में निर्मित हुआ था, जो बारह वर्षों में बन कर तैयार हुवा था । यह अरब सागर के किनारे-किनारे, नरीमन प्वाइंट पर सोसाइटी लाइब्रेरी और मुंबई राज्य सेंट्रल लाइब्रेरी से लेकर चौपाटी से होते हुए मालाबार हिल तक के क्षेत्र में स्थित है। मरीन ड्राइव के शानदार घुमाव पर लगी स्ट्रीट-लाइटें रात्रि के समय इस प्रकार जगमाती हैं कि इसे क्वीन्स नैकलेस का नाम दिया गया है। उपर से अगर सिंगापूर की हेंडरसोन वेव नामक पुल की तर्ज पर उत्तर गुवाहाटी और गुवाहाटी के बीच एक पुल बनाया जाय, तब तो सोने पर सुहागा हो जाएगा l उल्लेखनीय है कि इस सिंगापूर की पुल पर पर्यटक देर रात तक घुमने जातें हैं l गुवाहाटी को संघाई बनाने का गोगोई का सपना साकार होगा या नहीं, इस बारे में तो कहना मुश्किल है, पर नई सरकार के आने के करीब २७ महीने गुजरने के पश्चात भी हम गुवाहाटी के हालात में कोई जबरदस्त सुधार नहीं देख रहें है l हाल ही गुवाहाटी में भंग की गई नगर निगम काउंसिल के पार्षदों ने सफाई और कचरा निष्पादन का कार्य बड़ी बखूबी से किया, पर जहाँ तक सुन्दरता का सवाल है, अभी भी वही पुरानी गुवाहाटी पसरी पड़ी हुई है l नई सरकार से लोगों ने बड़ी अपेक्षा की हैं  कि सरकार उन योजनाओं पर कार्य करना शुरू करे, जो पिछली सरकार के समय पारित की गयी थी l इस समय  बिजली के तारों को जमीन में केबल के माध्यम से हस्तांतरित करने का कार्य शुरू हुवा है l ख़ुशी की बात यह है कि गुवाहाटी और उत्तर गुवाहाटी के बीच केबल-कार योजना, पुरानी जेल भूमि पर वनस्पति उद्यान बनाना, यातायात व्यवस्था को दुबारा निर्धारित करना, इत्यादि, योजनाओं पर इस समय गुवाहाटी विकास विभाग तेजी से कार्य कर रहा है l गुवाहाटी का फैंसी बाज़ार इलाका, पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी व्यापारिक मंडी है, जहाँ हर वक्त व्यापारिक गतिविधियाँ चलती रहती है l गुवाहाटी और उत्तर गुवाहाटी के बीच हजारों लोग सफ़र करतें है, जो नौकरी और व्यवसाय के लिए गुवाहाटी आतें है l इस पुल के बनाने से गुवाहाटी की सुंदरता बढ़ेगी ही, साथ ही उत्तर गुवाहाटी भी गुवाहाटी का एक अभिन्न अंग बन जायेगा l  अगर गौर से देखा जाये, तब पाएंगे कि स्मार्ट सिटी परियोजना के मसौदे से अभी भी लोग अनजान है l उसका मोड्यूल कौन सा होगा, परियोजना के व्यय धन वाकई में लोगों के काम आ सकेगा l तमाम तरह की शंकाएं अभी भी जीवित है l दरअसल में आमतौर पर देखा जाता है कि इस तरह से आनन-फानन नई योजना पर काम तो शुरू हो जाता है, पर बड़ा प्रश्न यह रहता है कि वाकई में योजना से लोगों की जीवन शैली में कोई उत्थान देखा जा सकता है l विकास के नाम पर जिस तरह से नकारात्मक राजनीति और कारोबार चल रहा है, उससे ये तमाम योजनाओं के सफलतापूर्वक होने में संशय होना लाजमी है, और उपर से नावं दुर्घटना, मुहं का स्वाद एकाएक खट्टा हो जाता है, और हम एक नॉन-रिटर्निंग स्टेज में चलें जातें है, जहाँ से उसका लौटना मुश्किल ही नहीं नामुनकिन हो जाता है l उसे तमाम योजना के सफल होने का दंभ भरतें राजनेतिक नेताओं के ढकोसले एकाएक बेमानी से लगने लागतें है l इतिहास गवाह है कि राजनेतिक खम्भों पर टिकी हुई योजनाओं के मानव सापेक्ष नहीं होने के वजह से उसके सफल होने पर प्रश्न चिन्ह लग जातें है, क्योंकि योजना में निहित उद्देश्य व्यक्तिगत कल्याण के लिए बनें हुए है, जिससे आमजनों का भला होना संभव नहीं हो सकता l अभी सरकार के लिए गुवाहाटी शहर में हो रही कृत्रिम बाढ़ को रोकना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है l
इन्ही तमाम विरोधाभासों के बीच अभी भी यह तय नहीं हो रहा है कि मानवजाति के विकास का कौन सा रास्ता अपनाया जाये, एक, जिसको पाने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है, दूसरी, जिसमे वर्तमान से चिपक कर अर्ध-विकसित तकनीकों के बोझ को ढोतें हुवे, संस्कृति का महाजाप करतें हुवे अप्रासंगिक हो जाये l मुद्दों को लेकर अगर सरकार संवेदनशील है, तब वह बहुत कुछ कर सकती है l               

सुचना तकनीक पर आधारित व्यापार को लेकर तमाम शंकाएं


सुचना तकनीक पर आधारित व्यापार को लेकर तमाम शंकाएं
शुक्रवार को भारत में सिंगल रिटेल में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश के विरोध में फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया एवं विभिन्न राज्यों के उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल ने जीएसटी, एफडीआई, मंडी शुल्क, सैंपलिंग, आयकर, ऑनलाइन ट्रेडिंग के विरोध में भारत बंद का आह्वान किया था। असम में भी इसका प्रभाव देखने को मिला l गुवाहाटी में सायं पांच बजे तक दुकानें और अन्य प्रतिष्ठान बंद देखे गए l इसे एक व्यापक जन आन्दोलन की तरह देख जा रहा है l विश्व में अब तक जितने भी बड़े जन आन्दोलन सफल हुए हैं, उसके कारण को अगर ढूंढे, तब पायेंगे कि उन आंदोलनों में एक विशाल जन भागीदारी थी, जिसकी वजह से ये आन्दोलन सफल हुए और अपने उद्देश्य तक पहुचें l आन्दोलन के उद्देश्य कोई भी हो, अगर उसमे जन समूह का स्वतःस्फुर्थ भागीदारी है, तो यह तय हैंकि सरकार को झुकना ही होगा l फ़्रांसिसी क्रांति जो सन 1789 से 1799 तक दस वर्षों तक चली, आधुनिक युग में जिन महापरिवर्तनों ने पाश्चात्य सभ्यता को हिला दिया था, उसमें फ्रांस की राज्यक्रांति सर्वाधिक नाटकीय और जटिल साबित हुई। इस क्रांति ने केवल फ्रांस को ही नहीं अपितु समस्त यूरोप के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था । फ्रांसीसी क्रांति को पूरे विश्व के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। इस क्रान्ति ने अन्य यूरोपीय देशों में भी स्वतन्त्रता की ललक कायम की और अन्य देश भी राजशाही से मुक्ति के लिए संघर्ष करने लगे। इसने यूरोपीय राष्ट्रों सहित एशियाई देशों में राजशाही और निरंकुशता के खिलाफ वातावरण तैयार किया। ऐसे बड़े आंदोलनों में भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन भी था, जिसमे आपार जन भागीदारी थी, जिससे अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था l सन 1970 में जेपी आन्दोलन के नाम से मशहूर सम्पूर्ण क्रांति में सम्पूर्ण क्रान्ति जयप्रकाश नारायण का विचार व नारा था जिसका आह्वान उन्होने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये किया था।लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल हैं- राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है।पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आहवान किया था। मैदान में उपस्थित लाखों लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेद-भाव छोड़ने का संकल्प लिया था। सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। यह एक सामाजिक क्रांति और हसियाग्रस्त लोगों का शासन के प्रति जन आक्रोश था, जो एक क्रांति बन कर उभरी थी l हालाँकि जेपी आन्दोलन सफल होने के बावजूद भी भारत में आज भी जातिगत राजनीति की जाती हैंl
भारत में खुदरा बिक्री का प्रारूप को अगर हम देखे, तब पायेंगे कि ज्यादातर उत्पाद हॉकर/सड़क विक्रेता (ज्यादातर ताजा फल और सब्जियाँ ),सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत उचित मूल्य की दुकानें (पीडीएस),परंपरागत खुदरा विक्रेता, मुख्य  उपज, एफएफवी, और मासं के लिए अलग-अलग दुकानें,जनता बाजार, और सैन्य कैंटीन जैसी सहकारी संस्थाएं।लाभ मुक्त दुकानें, आधुनिक संगठित खाद्य खुदरा श्रृंखला,छोटी से मध्यम खाद्य खुदरा दुकानें जैसी मीडियम और छोटी इकाइयों के माध्यम से ही बिकते हैंl बड़े उत्पादनकर्ता इन दुकानों के माध्यम से अपने उत्पाद बेच्तें हैंl इस समय भारत में संगठित रिटेल व्यापर करीब 150 अरब अमिरीकी डॉलर का है l भारत में करीब 10 करोड़ छोटे और माध्यम दुकानदार है, जो भारत के तमाम बड़े और मध्यम-वर्गीय शहरों, कस्बों और गावों में स्थित है, जहाँ बाजार और हाटों में बनी हुई छोटी बड़ी दुकानों में घी-तेल, दूध-ब्रेड, दाल-आटा, बिस्कुट-नमकीन, शैम्पू-टूथपेस्ट जैसी तमाम चीज़ें मिलती हैंl किराने की एक छोटी दुकान- काउंटर के उस पार ज़रूरी नहीं कि सामान करीने से लगा हो लेकिन अक़्सर जो नहीं भी दिख रहा होगा, माँगने पर मिल जाएगा l खुदरा व्यापार में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रस्ताव सरकार ने ले लिया हैं, और जानकारों के मुताबिक़ अगर ऐसा हुआ तो उनके घाटे बढ़ जाएंगे, ग्राहक टूटेंगे और फिर वापस शायद ना आएं l गली के नुक्कड़ पर या फिर घर के पास वाली दुकानों के हो सकता हैंकि ग्राहक एक आध ब्रेड पानी खरीद ले, पर विदेशी चैन में ऑफर की जाने वाली योजनाओं और केशबेक का सामना ये दुकानें कभी नहीं कर पाएगी l उनका अच्छा व्यवहार, वर्षों का रिश्ता भी ग्राहकों को बड़े स्टोर में जाने से नहीं रोक पायेगा l भारत का नब्बे फ़ीसदी से ज़्यादा खुदरा उद्योग असंगठित है l कुछ उपभोक्ताओं के मुताबिक उनकी पसंद घर के नज़दीक की छोटी दुकानें हैं क्योंकि वैसी विविधता मॉल में नहीं मिलती l वें कहतें हैंकि गाड़ी लेकर जाओ, पार्किंग करो, सामान भी खुद बटोरो, फिर पैसे देने के लिए लंबी लाइन में लगो, घर तक सामान पहुंचाने का भी कोई तरीका नहीं, तो मॉल तक जाने मे ये सब दिक्कतें पेश आती हैंl वही युवाओं की पहली पसंद है, शौपिंग मॉल,  वे कहतें हैंकि दोनों बाज़ारों की अपनी अहमियत है, अगर कुछ ब्रान्डेड लेना हो, ख़ास लेना हो तो मॉल, लेकिन रोज़मर्रा के कपड़ों और बाक़ी चीज़ों के लिए पास का बाज़ार काफ़ी होता हैंl
तकनीक विस्तार और उसके लाभ लेने के लिए सामाजिक स्तर पर एक बदलाव देखने को मिल रहा है, पिज़्ज़ा से लेकर अन्य प्रोसेस्ड खाने की डिलीवरी के लिए इस समय देश में लाखों युवकों को रोजगार मिल रहा हैंl ठीक इसी तरह से छोटी और मध्यम इकाइयाँ भी असंगठित क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध करवा कर एक बहुत बड़ा सामाजिक रोल अदा कर रही हैंl कोई कल्पना कर सकता हैंकि अगर इन दुकानों में ग्राहक नदारद हो जायेंगे, तब किस तरह की परिस्थिति देश में होगी l बदलाव अवश्यम्भावी है, पर उसकी कीमत अगर रोजगार और मुहं का निवाला हैं, तब ऐसा बदलाव किस काम का l