सुचना तकनीक पर
आधारित व्यापार को लेकर तमाम शंकाएं
शुक्रवार को भारत
में सिंगल रिटेल में 100 प्रतिशत विदेशी निवेश के विरोध में फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया
एवं विभिन्न राज्यों के उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल ने जीएसटी, एफडीआई, मंडी शुल्क, सैंपलिंग, आयकर, ऑनलाइन ट्रेडिंग के विरोध में भारत बंद का आह्वान किया था। असम में भी इसका
प्रभाव देखने को मिला l गुवाहाटी में सायं पांच बजे तक दुकानें और अन्य प्रतिष्ठान
बंद देखे गए l इसे एक व्यापक जन आन्दोलन की तरह देख जा रहा है l विश्व में अब तक
जितने भी बड़े जन आन्दोलन सफल हुए हैं, उसके कारण को अगर ढूंढे, तब पायेंगे कि उन
आंदोलनों में एक विशाल जन भागीदारी थी, जिसकी वजह से ये आन्दोलन सफल हुए और अपने
उद्देश्य तक पहुचें l आन्दोलन के उद्देश्य कोई भी हो, अगर उसमे जन समूह का
स्वतःस्फुर्थ भागीदारी है, तो यह तय हैंकि सरकार को झुकना ही होगा l फ़्रांसिसी
क्रांति जो सन 1789 से 1799 तक दस वर्षों तक चली, आधुनिक युग में जिन
महापरिवर्तनों ने पाश्चात्य सभ्यता को हिला दिया था, उसमें फ्रांस की राज्यक्रांति
सर्वाधिक नाटकीय और जटिल साबित हुई। इस क्रांति ने केवल फ्रांस को ही नहीं अपितु
समस्त यूरोप के जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था । फ्रांसीसी क्रांति को पूरे
विश्व के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। इस क्रान्ति ने अन्य यूरोपीय देशों
में भी स्वतन्त्रता की ललक कायम की और अन्य देश भी राजशाही से मुक्ति के लिए
संघर्ष करने लगे। इसने यूरोपीय राष्ट्रों सहित एशियाई देशों में राजशाही और
निरंकुशता के खिलाफ वातावरण तैयार किया। ऐसे बड़े आंदोलनों में भारत का स्वतंत्रता
आन्दोलन भी था, जिसमे आपार जन भागीदारी थी, जिससे अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर
मजबूर होना पड़ा था l सन 1970 में जेपी आन्दोलन के नाम से मशहूर सम्पूर्ण क्रांति
में सम्पूर्ण क्रान्ति जयप्रकाश नारायण का विचार व नारा था जिसका आह्वान उन्होने
इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिये किया था।लोकनायक नें कहा कि
सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल हैं- राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण
क्रान्ति होती है।पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण
क्रांति का आहवान किया था। मैदान में उपस्थित लाखों लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेद-भाव छोड़ने का संकल्प लिया था। सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी
भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। बिहार से उठी
सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। यह एक
सामाजिक क्रांति और हसियाग्रस्त लोगों का शासन के प्रति जन आक्रोश था, जो एक
क्रांति बन कर उभरी थी l हालाँकि जेपी आन्दोलन सफल होने के बावजूद भी भारत में आज
भी जातिगत राजनीति की जाती हैंl
भारत में खुदरा
बिक्री का प्रारूप को अगर हम देखे, तब पायेंगे कि ज्यादातर उत्पाद हॉकर/सड़क
विक्रेता (ज्यादातर ताजा फल और सब्जियाँ ),सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत उचित मूल्य की दुकानें (पीडीएस),परंपरागत खुदरा विक्रेता, मुख्य
उपज, एफएफवी, और मासं के लिए अलग-अलग दुकानें,जनता बाजार, और सैन्य कैंटीन जैसी सहकारी संस्थाएं।लाभ मुक्त
दुकानें, आधुनिक संगठित खाद्य
खुदरा श्रृंखला,छोटी से मध्यम खाद्य
खुदरा दुकानें जैसी मीडियम और छोटी इकाइयों के माध्यम से ही बिकते हैंl बड़े
उत्पादनकर्ता इन दुकानों के माध्यम से अपने उत्पाद बेच्तें हैंl इस समय भारत में
संगठित रिटेल व्यापर करीब 150 अरब अमिरीकी डॉलर का है l भारत में करीब 10 करोड़
छोटे और माध्यम दुकानदार है, जो भारत के तमाम बड़े और मध्यम-वर्गीय शहरों, कस्बों
और गावों में स्थित है, जहाँ बाजार और हाटों में बनी हुई छोटी बड़ी दुकानों में
घी-तेल, दूध-ब्रेड, दाल-आटा, बिस्कुट-नमकीन, शैम्पू-टूथपेस्ट
जैसी तमाम चीज़ें मिलती हैंl किराने की एक छोटी दुकान- काउंटर के उस पार ज़रूरी नहीं कि सामान करीने से लगा
हो लेकिन अक़्सर जो नहीं भी दिख रहा होगा, माँगने पर मिल जाएगा l खुदरा व्यापार में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रस्ताव सरकार ने
ले लिया हैं, और जानकारों के
मुताबिक़ अगर ऐसा हुआ तो उनके घाटे बढ़ जाएंगे, ग्राहक टूटेंगे और फिर वापस शायद ना आएं l गली के नुक्कड़ पर या फिर घर के पास वाली दुकानों
के हो सकता हैंकि ग्राहक एक आध ब्रेड पानी खरीद ले, पर विदेशी चैन में ऑफर की जाने
वाली योजनाओं और केशबेक का सामना ये दुकानें कभी नहीं कर पाएगी l उनका अच्छा व्यवहार, वर्षों का रिश्ता भी ग्राहकों को बड़े स्टोर में
जाने से नहीं रोक पायेगा l भारत का नब्बे फ़ीसदी से ज़्यादा खुदरा उद्योग असंगठित
है l कुछ उपभोक्ताओं के मुताबिक उनकी पसंद घर के नज़दीक की छोटी दुकानें हैं
क्योंकि वैसी विविधता मॉल में नहीं मिलती l वें कहतें हैंकि गाड़ी लेकर जाओ, पार्किंग करो, सामान भी खुद बटोरो, फिर पैसे देने के लिए लंबी लाइन में लगो, घर तक सामान पहुंचाने का भी कोई तरीका नहीं, तो मॉल तक जाने मे ये सब दिक्कतें पेश आती हैंl वही युवाओं की पहली पसंद है, शौपिंग मॉल, वे कहतें हैंकि दोनों बाज़ारों की अपनी अहमियत
है, अगर कुछ ब्रान्डेड
लेना हो, ख़ास लेना हो तो मॉल, लेकिन रोज़मर्रा के कपड़ों और बाक़ी चीज़ों के
लिए पास का बाज़ार काफ़ी होता हैंl
तकनीक विस्तार और
उसके लाभ लेने के लिए सामाजिक स्तर पर एक बदलाव देखने को मिल रहा है, पिज़्ज़ा से
लेकर अन्य प्रोसेस्ड खाने की डिलीवरी के लिए इस समय देश में लाखों युवकों को
रोजगार मिल रहा हैंl ठीक इसी तरह से छोटी और मध्यम इकाइयाँ भी असंगठित क्षेत्र में
रोजगार उपलब्ध करवा कर एक बहुत बड़ा सामाजिक रोल अदा कर रही हैंl कोई कल्पना कर
सकता हैंकि अगर इन दुकानों में ग्राहक नदारद हो जायेंगे, तब किस तरह की परिस्थिति
देश में होगी l बदलाव अवश्यम्भावी है, पर उसकी कीमत अगर रोजगार और मुहं का निवाला हैं,
तब ऐसा बदलाव किस काम का l
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