Friday, September 14, 2018

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत


मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत है।
कहे कबीर गुरु पाइये,
मन ही के प्रतीत।।
संत कबीर के इस दोहे से शुरुआत करते है l जब से मनुष्य में जीने के लिए जद्दोजहेद शुरू की है, उसने मन को सबसे पहले संतुलित किया है l मन यानी दृढ निश्चय l एक बार उसने निश्चय कर लिया, बस फिर विजय उसके कदम चूमती है l सरकारी आदेशों और राजनैतिक घोषणाओं ने भारत में हमेशा से ही अपना प्रभाव तेजी से दिखाया है l असम में इस समय हवा तेजी से बदल रही है l मानो एन आर सी के अलावा लोगों को कुछ सूझ ही नहीं रहा है l जिनके नाम नही आयें है, वे हाथ पर हाथ धर कर बैठें हुए हैं l रोजाना एक नई घोषणा लोगों की दिल की धड़कन तेज कर रही है l अब लोगों को 19 तारीख का इंतेजार है, जब दुबारा से क्लेम फॉर्म एनआरसी केंद्र में लिए जायेंगे l 15 दस्त्रवेजों पर उच्चतम न्यायलय का निर्णय आने वाला है l इधर राजनीतिक पार्टियाँ यह कह रही है कि किसी भी भारतीय का नाम बाद नहीं जायेगा l पर यह कैसे होगा, यह कोई नहीं कह रहा है l एन आर सी केन्द्रों में क्लेम फॉर्म रिसीव नहीं कर रहें है l कह रहें है कि उचित दस्तावेज नहीं है l कितना विरोधभास है l राजनैतिक घोषणाओं की तरह, जिसको धरातल के तराजू में अगर टोला जाए, तब घोषणा की हवा अक्सर निकल जाती है l आम आदमी की छटपटाहट इसी बात से दिखाई दे रही है कि लोग अपने पुरखों के नाम अपने मूल स्थानों में खोजने में लगें हुए है l किसी तरह से कोई दस्तावेज हाथ लग जाए l 1971 के पहले के दस्तावेज निकलना भी एक टेढ़ी खीर है, वह भी 47 वर्षों बाद l असम में जिस एन आर सी की मूल साईट से लिगेसी डाटा निकलते थे, वह इस समय किसी कारण से बंद कर दी गयी है, जिसकी वजह से लोग अपने नाम दुबारा से ढूंढ नहीं पा रहें है और वे सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगा रहें है l इसी तरह से इस समय प्रत्येक राजनेता एक ही भाषण दे रहा हैं कि किसी भी भारतीय का नाम नहीं छुटेगा l पर आगे आ कर वही नेता किसी भी भारतीय को यह समझा नहीं पा रहा कि कैसे उसका नाम अंतर्भुक्त हो पायेगा l कुछ लोग मानसिक रूप से टूटने की कगार पर है l कारण साफ़ है, लाख कौशिश करने पर भी वे दस्तावेज जुगाड़ नहीं कर पाए l उन्हें भय है कि उनको कई भारत के बाहर नहीं खदेड़ा जाय, या विदेशी अधिनियम के तहत कही मामला नहीं दर्ज किये जाय l चार्टर्ड अकाउंटेंट ओमप्रकाश अगरवाला कहते है कि भारतीय नागरिकता कानून, 1955 लोगों की सहायक बन सकती है l उनका कहना है कि 26 जनवरी 1950 के बाद परन्तु 1 जुलाई 1947 से पहले भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति जन्म के द्वारा भारत का नागरिक है।1 जुलाई 1987 इसमें संशोधन हुवा और इसमें यह जोड़ा गया कि 1 जुलाई 1987 के बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके जन्म के समय उसका कोई एक अभिभावक भारत का नागरिक था। 7 जनवरी 2004 के बाद भारत में पैदा हुआ वह कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाता है, यदि उसके दोनों अभिभावक भारत के नागरिक हों अथवा यदि एक अभिभावक भारतीय हो और दूसरा अभिभावक उसके जन्म के समय पर गैर कानूनी अप्रवासी न हो, तो वह नागरिक भारतीय या विदेशी हो सकता  हैं l यहाँ वे कहने का प्रयास कर रहें है कि 1 जुलाई 1987 तक भारत में जन्मे किसी भी व्यक्ति विदेशी करार नहीं दिया जा सकता है, अगर वह भारत में पैदा होने का प्रमाण दे सके l सन 2004 में एक अन्य संशोधन में घोषित किया गया कि जन्म के अधिकार से कोई भी नागरिक भारतीय हो सकता है, अगर उसके दोनों अभिभावक भारतीय हो l सन 1985 में एक नई धरा 6ए भी अंतर्भूत की गयी है, जो बांग्लादेशियों से डील करने के लिए बनाई गई है l अगर मोटे तौर पर देखे तो पाएंगे कि जिन भारतियों के पास एन आर सी बनवाने के पास दस्तावेज नहीं भी है, और उनके पास भारत में जन्म होने का प्रमाण पत्र मौजूद है, तब कम से कम उनको भारत से कोई भी निकाल नहीं पायेगा, यह तय है l इसलिए जितनी भी अफवाहे जो निकल कर आ रही है, वे निर्मूल और बेबुनियाद है l इस समय एन आर सी को लेकर भयंकर राजनीति हो रही है l हर कोई हिंदीभाषियों, बांग्लाभाषियों का रहनुमा बन रहा है l भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 इसमें लोगों की सहायक बन सकती है l हालंकि ओमप्रकाश अगरवाल भी कहते है कि इस संशोधन के उपर उच्चतम न्यायालय के बहुत सारे निर्णय भी है, जो इस अधिनियम को अपने मूल स्वरुप में लागु होने से रोकता है l उपर से असम में असम समझोता के साए में किये गए संसोधन 6ए भी अपने आप में एक कानून है l  
तेजी से बदलते दौर में, विचारों का बदलना भी एक स्वाभाविक सी प्रक्रिया है l अब रोटी-कपड़ा-मकान से जीवन नहीं चलता, बल्कि उन तमाम जरूरतों को जुटाते हुए जीवन को जीने की एक कला है, जिसको हर मनुष्य आज ढूँढ़ रहा है l कुछ लोग जो जीवन भर संघर्ष भरा जीवन जी रहें होतें है, उनके लिए मात्र समृद्धि ही सुखी होने की निशानी है l आसुओं से कुश्ती लड़ कर कुछ लोग, एक नई जिंदगी जीने के लिए जीवन से ही प्रेरणा प्राप्त कर लेतें है l खिड़की के झरोखे से दिखाई देने वाला एक छोटा सा दृश्य भी, उन्हें एक नए जीवन की और ले जाने में सक्षम है l परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन सकारात्मक व नकारात्मक दोनों ही हो सकते हैं। तकनीक और सुचना प्रसारण अपने विकास के चरम पर है l मानव चाँद और अन्य ग्रहों पर घर बनाने की और अग्रसर है l न्याय संगत और विचार आधारित धरातल की सृजनशीलता ने मानवजाति के कद तो अब बहुत बड़ा बना दिया है l सन 1985 में बनी हिंदी फिल्म मेरी जंग का यह गीत इस समय याद आया रहा है.. ‘जीत जायेंगे हम-जीत जायेंगे$$ हम, तुम अगर संग हो.., जिंदगी हर समय एक नई जंग है...l
        

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