भई, हिंदी भाषियों
को ग़ुस्सा क्यों नहीं आयेगा ?
स्वतंत्रता के
पश्चात, असम में रहने वाले हिंदी भाषियों के, एक खास सामाजिक रहन-सहन के वजह से,
वे हमेशा से पहचाने जातें रहें है l यूँ तो असम में जाति को लेकर यहाँ कभी भी
विशेष समस्या नहीं थी, पर हिंदी भाषियों पर हमेशा से ही इसलिए नजर थी, क्योंकि यह
कौम अपनी भाषा, रीति रिवाजों और स्टेटस की वजह से चिन्हित होती रही है l वर्ग
संघर्ष होने की एक मुख्य वजह यह भी रही कि असम में चारो दिशा से सदियों से लोग
बसते चले गए, जिससे एक जाति का यहाँ कभी कोई वर्चश्व नहीं रहा, जिससे जातियों में
संघर्ष वैचारिक रूप से विद्यमान बना रहा, कभी सतह पर तो कभी अंतर्मन में l विभाजन
की स्थिति तब बनी जब, बोडोलैंड के आन्दोलन का सूत्रपात हुवा l उस समय असम के
बुद्धिजीवियों ने ह्रदय पर पत्थर रख कर यह समझोता होने दिया, क्योंकि इससे इलाके
में शांति हो रही थी l असम में रहने वाली विभिन्न जनजातियों को संविधानिक दर्जा
देने के लिए लगातार आन्दोलन होते रहें है, जिससे हिंदी भाषियों के लिए संघर्ष की
स्थितियां और कठिन होती गयी है l यह इस लिए कहा जा रहा है कि यह समुदाय हमेशा से
ही सॉफ्ट टारगेट बना रहा है l एनआरसी की सूची जारी होने के बाद जिन लोगों के के
नाम एन आर सी में नहीं आयें है, उनको इस बात का खतरा लग रहा है कि कड़े कानून,उनको
कई सुविधाओं से वंचित नहीं कर दे l दबी जुबान में यह भी कहा जा रहा है कि जो लोग
दशकों से असम में रह रहे थे, वे न तो पहले की तरह वोट दे सकेंगे, न इन्हें किसी कल्याणकारी योजना का लाभ मिलेगा। बड़ी संख्या में बंगला भाषियों
के नाम एन आर सी सूची से काटे गएँ है, जिससे पूर्वी बगाल से अवैध रूप से आये लोगों
पर स्टेटलेस होने का खतरा मंडराने लगा है l वहीं चुनाव आयोग ने भी स्पष्ट किया है
कि एनआरसी से नाम हटने का मतलब यह नहीं है कि मतदाता सूची से भी ये नाम हट जायेंगे
l उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून
1950 के तहत मतदाता के पंजीकरण के लिए तीन जरूरी अनिवार्यताओं में आवेदक का भारत
का नागरिक होना, न्यूनतम आयु 18 साल
होना और संबद्ध विधानसभा क्षेत्र का निवासी होना शामिल है l यह बात हिंदी भाषियों
पर भी लागू नहीं होती, जो देश के दुसरे भाग से असम में व्यापार और रोजगार के सिलसिले में आये है अब
बड़ी संख्या में हिंदी भाषियों के नाम राष्ट्रीय नागरिक पंजी से काटे गए है, जिनके
दस्तावेज या तो सत्यापित हो कर नहीं आयें है, या फिर जिनके दस्तावेज साधारण
नियमानुसार नहीं है l l पर हिंदी भाषियों को लेकर एक बड़ी राजनीति यहाँ पर शुरू हो
गयी है l यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि आजादी के बाद से बदस्तूर जारी है l 1947 में
जब भारत-पाकिस्तान का बँटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी ज़मीन असम में थी और लोगों का
दोनों ओर से आना-जाना बँटवारे के बाद भी जारी रहा। जिसके चलते वर्ष 1951 में
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार किया गया था। वर्ष 1971 में बांग्लादेश बनने के
बाद भी असम में भारी संख्या में शरणार्थियों का आना जारी रहा जिसके चलते राज्य की
आबादी का स्वरूप बदलने लगा। 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ (आसू) ने अवैध तरीके से असम में रहने वाले लोगों की पहचान करने तथा उन्हें वापस
भेजने के लिये एक आंदोलन शुरू किया। आसू के छह साल के संघर्ष के बाद वर्ष 1985 में
असम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे। गया। साथ ही यह फैसला भी किया गया कि असमिया
भाषी लोगों के सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषायी पहचान की सुरक्षा के लिये विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय
किये जाएंगे। असम समझौते के आधार पर मतदाता सूची में संशोधन किया गया। यह पूरी
प्रक्रिया असम समझोते के तहत शुरू की गयी है, जिससे असम में रहने वाले मूल
निवासियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके l
दशकों से रहने वाले
हिंदी भाषियों के लिए यह अचानक आने वाली समस्या नहीं है, पहले भी उन्होंने यहाँ
रहने की एक बड़ी कीमत चुकाई है l पर इस बात का खतरा उन्हें कभी भी नहीं था कि उनको
असम से निष्कासित कर दिया जायेगा l आज भी उनको असम में रह कर रहवास और व्यापार
करने की पूरी आजादी है, जैसा कि यहाँ के मूल निवासियों को है l वैचारिक स्वतंत्रता
के अलावा, धार्मिक आस्था प्रकट करने के उचित माहोल है, यहाँ l व्यापार वाणिज्य में
फैलाव इन्ही हिंदी भाषियों ने कठिन परिस्थितियों में किया ही है l इन सबके बावजूद
भी, उन लोगों के लिए अब यह एक चुनौती है, जिनके नाम एन आर सी के अंतिम मसौदे से
नाम छुट गए है, कि कैसे अंतिम एन आर सी में डाले जाए l इस बात में सभी एकमत है कि
बड़ी संख्या में छुटे हुए लोगों को इस स्थिति से डट कर मुकाबला करना चाहिये l
उन्हें एन आर सी सेवा केंद्र से सबसे पहले फॉर्म संग्रह करना चाहिये, और ‘नाम
किसलिए नहीं आये’ के आधार पर दुबारा से क्लेम फॉर्म दाखिल करना चाहिये l फिलहाल,
यह आरोप भी है कि अभी तक लाखों लोगों को अभी तक यह नहीं बताया गया है कि उनके नाम
एन आर सी में क्यों नहीं आया है l उनके लिए स्थिति बड़ी विकट है l
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