Thursday, August 23, 2018

असम में एन आर सी को लेकर बवाल


एन आर सी पर सामाजिक संस्थाए क्या कर रही है
लोकतंत्र में दबाब की राजनीति का बड़ा महत्व है, चाहे वह सामने आ कर हो या फिर नेप्पथ्य में हो कर की जाए l ऐसे दबाब समूह होते है, जो सत्ता को निर्णय बदलने में बाध्य कर देतें है l जब भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तब, कुछ ऐसा नहीं हुवा कि अंग्रेज रातो-रात दिल्ली छोड़ कर चले गए l सामने से दबाब के लिए स्वतंत्रता आन्दोलन और पीछे से राजनैतिक तरीके से दबाब डाला गया, जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने भारत छोड़ने का निर्णय लिया l जब असम आन्दोलन हुवा, तब वह छह वर्ष चला, खूब प्रदर्शन और हड़तालें हुई, पर दबाब की राजनीति भी खूब चली l तब जा कर एक समझोता हुवा, जिसे हम असम समझोता के नाम से जानते है l दबाव समूह ऐसे हित समूह होतें है, जो सार्वजनिक नीतियों को प्रभावित करके कुछ विशेष हितों को सुरक्षित करने के लिये काम करते हैं। वे किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं करते तथा अप्रत्यक्ष रूप से काम करते हैं, परंतु ये बड़े शक्तिशाली समूह होते हैं, जो निर्णय को प्रभावित करने की क्षमता रखतें है । लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिये और सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य को प्राप्त करने में दबाव समूह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दबाव समूहों के माध्यम से नीति-निर्माताओं को यह पता चलता है कि कैसे कुछ विशेष मुद्दों पर जनता क्या अनुभव करती है। तमाम आलोचनाओं के बावजूद भी दबाव समूहों का अस्तित्व लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये अनिवार्य है। दबाव समूह राष्ट्रीय और विशेष हितों को बढ़ावा देते हैं तथा नागरिकों एवं सरकार के बीच संवाद का एक ज़रिया बनते हैं। इस समय राज्य में हिंदी भाषियों की संस्थाओं को एक मजबूत दबाब समूह बनना होगा, जो बाहर से और अंदर से, दोनों, और से केंद्र पर दबाब बनाये, जिससे बड़ी संख्या में एन आर सी में छुटे हुए नामों को वापस डाला जा सके l वर्षों से हिंदी भाषियों ने कभी भी इस तरह से कोई मांग नहीं रखी है l ना तो कभी अपने लिए आरक्षण की मांग की है ना ही आंदोलन, प्रदर्शन, तालाबंदी आदि के द्वारा अपनी मांग मनवाने का प्रयत्न किया है l अब समय आ गया है कि हिंदी भाषियों के संगठन एन आर सी को लेकर सगज हो जाए, जिससे उनकी आने वाली पीढ़ी गर्व से सिर ऊँचा करके असम में रह सके l हिंदी भाषी लोगों की सामाजिक संस्थाएं किस तरह से अपने लोगों के नाम अंतिम एन आर सी में डलवाने के लिए क्या क्या प्रयास कर रही है, इसकी सुचना लोगों तक जरुर पहुचनी चाहिये l यह बात एक इनफार्मेशन और सहायता सेंटर खोल कर भी कही जा सकती है l इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इन वर्षों में बहुत सी नई संस्थाए अपने लोगों के हितों की रक्षार्थ कार्य कर रही है है, पर वे कार्य सिर्फ आयोजनों तक ही सीमित रहते है l गावं, शहर और कसबे के नाम से बनी हुई संस्थाओं को क्या एन आर सी से कोई मतलब नहीं है ? क्या उनको आगे आ कर बड़ी अम्ब्रेला आर्गेनाईजेशन के हाथ मजबूत नहीं करने चाहिये ? धर्म-कर्म करने वाली कई बड़ी संस्थाओं को क्या इस महत कार्य में हाथ नहीं बंटाना चाहिये ? इस बड़े अभियान में हर तरह की निति को अपनाना होगा, नहीं तो वांछित परिणाम की आशा नहीं की जा सकती l यह भी समझी जानी चाहिये कि आंदोलनों में धन की बहुत आवश्यकता होती है, कई बार धन के अभाव में उचित प्रबंधन नहीं होता, जिससे आंदोलनों की आगे की रणनीति बाधित होती है l इस समय हिंदी भाषियों के लिए असम आन्दोलन के पश्चात अस्तित्व का प्रश्न दुबारा आया है, जिसको पार लगाना आवश्यक है l कई दबाब समूहों ने आबादी के शोषण के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई की है और सरकार को निर्णय बदलने पर विवश किया है l इन दबाव समूहों को हितैषी समूह भी कहा जाता है l इनकी इच्छा सरकार में प्रभाव बनाकर अपने सदस्यों की रक्षा व हितों को बढ़ाना होता है l दबाव समूह विधिक और तर्कसंगत तरीकों द्वारा सरकार की नीति निर्माण व निर्धारण को प्रभावित करते हैं l जैसे कि सभाएं करना, पत्राचार,जन-प्रचार,जन वाद-विवाद आदि l हालांकि ये कभी-कभी लोकहितों और प्रशासनिक एकता को नष्ट करने वाले अतर्कसंगत और गैर-विधिक तरीकों का आश्रय लेते हैं, जैसे कि हड़ताल और हिंसक गतिविधियां,भ्रष्टाचार आदि l लेकिन फिर भी इन्हें किसी व्यवस्था का एक अभिन्न अंग माना जाता है! लोकतंत्र में भीड़ का भी बहुत महत्त्व है l नहीं तो एक बड़े नेता के एक शहर में भाषण के आयोजन पर पर गावं-गावं से लोगों को बसों में भर कर, खाना और पानी के प्रलोभन पर, शहर नहीं लाया जाता, यह जानते हुए भी उन लोगों को नेता के भाषण से कोई मतलब नहीं l फिर भी भीड़ इकट्ठी करनी बहुत जरुरी है l भीड़ यह बता देती है कि आयोजक कितना सक्रिय है l असम आन्दोलन के समय तब डिप्टी कमिश्नर के कार्यलय के सामने छात्रों के प्रदर्शन होतें थे, और कानून उलंघन कर छात्र गिरफ्तारी देतें थे, तब छात्र यह जानते थे, कि इस प्रदर्शन से कोई मसला तुरंत हासिल नहीं होने वाला, पर एक बड़ी भीड़ एसी कमरे में बैठे उस बड़े बाबु के माथे पर पसीने जरुर ले आती थी l कोई भी कल्पना कर सकता है कि एक ही समय जब सभी जिला और मंडल कार्यालयों के सामने प्रदर्शन हो रहें होते थें, तब सरकार पर कितना दबाब बनता था l ठीक इसी तरह से एन आर सी के मुद्दे पर सरकार पर दबाब बनाना उतना ही जरुरी है, जितना एक शांत नदी में एक मछुवारे द्वारा मछली पकड़ने के लिए जाल बिछाना, और फिर चुप-चाप नाव में इन्तेजार करना l इस समय असम के लिए और खास करके हिंदी भाषियों के लिए भी एक परीक्षा का समय है, जिसको मिड-टर्म या छमाही तो बिलकुल भी नहीं समझा जाना चाहिये l
असम में एन आर सी को लेकर इस समय हिंदी भाषियों के पास समय बहुत कम है, क्योंकि आगामी 28 तारीख से क्लेम, इत्यादि, के फॉर्म लिए जायेंगे l जिनके पास दस्तावेज नहीं है, उनके फॉर्म नहीं लिए जायेंगे l अब लोग दस्तावेज कैसे संग्रह करेंगे, यह एक लाख टेक का प्रश्न है l फिलहाल, 1971 के पहले की वोटर लिस्ट के लिए लोगो मारे-मारे फिर रहें है l क्या ऐसी कोई व्यवस्था हो सकेगी कि लोगों को 1971 की मतदाता सूची में नाम देखने की सहूलियत मिल जाए, जिसको टंकित करके लोगो क्लेम फॉर्म जमा दे सके l    

Wednesday, August 22, 2018

दिल्ली हो या गुवाहाटी, एक देश एक माटी


दिल्ली हो या गुवाहाटी, एक देश एक माटी

राष्ट्रीयता से ओतप्रोत, उपरोक्त नारा, एक राष्ट्र की अवधारना को तो महामंडित करता ही है, साथ ही देश में रहने वालें विभिन्न भाषाभाषी के अंदर सद्भाव और भाईचारे के भाव भी प्रदशित करता है l कहने का मतलब यह है कि दिल्ली में रहने वालें भी भारतीय है और असम में रहने वाले भी उसी देश के नागरिक है l उनको भी वही समान अधिकार है, जो दिल्ली के नागरिक को है l असम पूर्वोत्तर में एक बड़ा प्रदेश है, जहाँ सर्व-धर्म/भाषा-भाषी के लोगो वास करतें है, जो नौकरी और व्यवसाय के कारणों से असम आये थे l इनमे यहाँ की कई मूल असमिया जातियां भी शामिल है, जो सदियों पहले अलग-अलग जगहों से असम आई थें l महाभारत काल से लेकर सातवीं सदी के मध्य में भास्करवर्मन के शासनकाल तक यहाँ पर एक ही राजवंश का शासन रहा था। इस राजवंश के शिलालेखों में दावा किया गया है कि राजा भागदत्त और उसके उत्तराधिकारियों ने कामरूप में लगभग ३००० वर्षों तक शासन किया । नालंदा की मुद्रा में पुष्यवर्मन को प्रग्ज्योतिष का स्वामी कहा गया है। इन्ही स्रोतों से हमें पुष्यवर्मन के १२ परवर्ती शासकों का भी विवरण मिलता है। आठवे राजा भाष्कर्वर्मन के अधीन कामरूप एक शक्तिशाली राज्य बन गया। भास्कर वर्मन राजा हर्षवर्धन का साथी था। हर्ष की बाणभट्ट द्वारा रचित जीवनी हर्षचरित में उसका उल्लेख मिलता है। मध्यकाल में सन् १२२८ में बर्मा के एक चीनी विजेता चाउलुंग सुकाफा ने इसपर अधिकार कर लिया। वह अहोम वंश का था जिसने अहोम वंश की सत्ता यहां कायम की। अहोम वंश का शासन १८२९ तक बना रहा, जब तक अंग्रेजों ने उन्हे हरा नहीं दिया। कहा जाता है कि अहोम राजाओं के कारण ही इस प्रदेश का नाम असम पड़ा। असम में वे लोग भी आये जिन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए आये थे l अंग्रेजों द्वारा भारतीय श्रमिकों को भी असम लाया गया, जिन्हें हम टी ट्राइब के नाम के जानते है l साथ ही हुंडियों के निबटारे के लिए उसी समय सेठ-साहूकारों को भी यहाँ बसाया गया l उर्वर माटी ने सुदूर राजस्थान, हरयाणा, मालवा, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्यत्र स्थानों से लोगों को असम की और आने के लिए आकर्षित किया l यहाँ की आबोहवा लोगों को इतनी रास आई कि यहाँ जो भी आया वह यही बस गया l अथिति देवो भव की परंपरा को यहाँ बड़ी तन्मयता से निभाया जाता है l स्वतंत्रता के बाद से तो बस लोगों का आने का और हमेशा के लिए बसने का यहाँ तांता लग गया l यही से यहाँ समस्याएँ शुरू हो गयी l जनसांख्यिकी में भारी बदलाव देखने को मिल रहें थे l सबसे पहले भाषा आन्दोलन और फिर असम आन्दोलन, दोनों की बस एक मुहीम थी, कि असम से विदेशियों को खदेड़ा जाए l इसके लिए यह जरुरी था कि असम में राष्ट्रिय नागरिक पंजी का नवीनीकरण हो l असम समझोते में भी यह मांग थी, जिसका पालन करने को केंद्र वचनबद्ध था l
राष्ट्रीय नागरिक पंजी के नवीनीकरण से अब लोग परेशान है l भारतीय नागरिक भी और तारों के नीचे से आए लोग भी l भारतीय नागरिक इसलिए परेशान है क्योंकि एक बड़ी तादाद में हिंदी भाषियों और बंगला भाषियों के नाम अंतिम मौसेदे में शामिल नहीं हुए है l अभी तक यह किसी को नहीं पता कि उनके नाम कैसे आयेंगे l कौन सा तरीका अपनाया जायेगे कि उनके नाम फ़ाइनल एन आर सी में अंतर्भुक्त हो जाए l अभी हिंदी भाषी लोगों के संगठनों ने ज्ञापन और गुहार के जरिये अपनी बात केंद्र तक पहुचाई है, जिसके अलावा हिंदी भाषियों के पास और कोई चारा नहीं है l पर एक बात तय है कि इस पंजी में सिर्फ भारतीय नागरिकों के नाम ही शामिल होंगे l जिनके नाम नहीं आयें है, सरकार को उनके नाम शामिल करने की बाध्यता है, क्योंकि वे शत-प्रतिशत भारतीय है l जब पंजी ही भारतीय लोगों की है, तब फिर इसमें भारतीय लोगों के नाम क्यों नहीं आएंगे l यह सवाल यहाँ लोग एक दुसरे से पूछ रहें है l जिन लोगों ने पहले 2015 में पंजीयन फॉर्म नहीं भरें है, उनके लिए भी प्रावधान होने चाहेये l वर्षों से यहाँ रहने वाले भारतीय नागरिकों का मानना है कि उनको भी एक दुबारा चांस दिया जाना चाहेये, जिससे वे भी गर्व से बिना कोई भय के असम में रह सके l कईयों की समस्या यह है कि उनके पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं है और अगर है भी तो वे पीछे रह गए, उन लोगों के पास है, जो इस भय में है कि कही दस्तावेज उनके हाथ से निकल नहीं जाए l ऐसे में उनकी हालत घर से बाहर निकाले हुए जैसी हो गयी है l अपनी ही भूमि में अगर कोई व्यक्ति विदेशी कहलाये और उन सभी सुविधाओं का लाभ नहीं ले सके, जो आमतोर पर देशवासियों के लिए उपलब्ध रहती है, तब उसके होने का क्या मतलब ?  
अब इस बात को सभी को समझना होगा कि जिन लोगों के नाम नहीं आये है, और वे 24 मार्च 1971 के बाद असम में चले आए थे, उनके वंशज समेत सभी भारतीय नागरिक। (उन्हें 24 मार्च 1971 को दूसरे किसी हिस्से में रहने का सबूत पेश करना होगा।) अगर इस सूची में किसी का नाम शामिल नहीं है, तो उसे प्रशासनिक, कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है l अभी उन लोगों को अपने मूल स्थानों से अपने पूर्वजों के नाम पर होने वाले जमीन के कागज, इत्यादि, संग्रह करना होगा, तभी जा कर उनका नाम अंतिम सूची में आ पायेगा l यह कोई बहुत मुश्किल भरा कार्य नहीं है, थोड़ी सी जागरूकता, थोड़ी सी जानकारी, इस कार्य को सहज बना देगी l



Friday, August 3, 2018


राष्ट्रीय नागरिक पंजी के सन्दर्भ में..

इस समय राज्य में एन आर सी को लेकर लोग परशान है l जिनके नाम नहीं है, वे आंतकित है, जिनके परिवार के कुछ सदस्यों के ही नाम है, वे अलग परेशान है, जिनके नाम है, पर अशुद्ध है, उनकों भी कुछ समझ नहीं आ रहा है l जिनके परिवार के सभी सदस्यों के नाम है, उनके लिए ख़ुशी का कारण इसलिए भी नहीं है क्योंकि यह एक अंतिम मसौदा ही है, सम्पूर्ण एन आर सी नहीं है l अंतिम एन आर सी में किस तरह के बदलाव देखने को मिलेंगे, यह कोई कह नहीं सकता l इस एन आर सी के मसौदे के प्रकाशित होने से इस बात इस ख़ुशी सभी को है कि वर्षों से की गयी यह मांग अब पूरी होती दिखाई दे रही है l असम में जाति, भाषा और उपाधि को लेकर पहले से ही कई तरह के दृष्टिकोण है l कई दफा आन्दोलन हो चुकें है l खास करके भाषा को लेकर यहाँ के लोग काफी संवेदनशील है l असम साहित्य सभा जैसी संस्था असमिया को यहाँ के सभी सरकारी कार्यालय में उपयोग करने की मांग वर्षों से कर रही है l इसको असमिया अस्मिता के रूप में देखा जाता रहा है l लगातार प्रवजन होने से यहाँ की जनसांख्यिकी में भारी बदलाव देखने को मिल रहे थे, ऐसे में इस एन आर सी के बहुत बड़े मायने है l अब यह असम की एक हृदयस्थली बन गयी है l चारो और ख़ुशी का वातावरण फ़ैल गया है l जो आशंका जताई जा रही थी, कि कानून व्यवस्था की स्थिति बन सकती है, वह गलत साबित हुई l लोगों ने एक बड़े ह्रदय से एन आर सी के मसौदे का स्वागत किया है l भले ही इसमें लाखों भारतीय लोगों के नाम शामिल नहीं हो पायें है, पर सरकार के आश्वासन पर उनको भरोसा है l लोगों को यह विश्वास है कि उनके नाम अंतिम एन आर सी में जरुर शामिल होंगे l यहाँ एक बात उल्लेख करना अत्यंत जरुरी है कि यह एक भारतीय नागरिकों की पंजी है, जिसमे किसी भी राज्य के लोग हो, अगर वे असम में रहते है, तब उनके नाम इसमें जरुर शामिल किये जायेंगे l यह एक क़ानूनी बाध्यता है, जिसको कोई भी अधिकारी नकार नहीं सकता l नाम शामिल नहीं होने की दिशा में इसको क़ानूनी रूप से चेलेंज भी किया जा सकता है l राष्ट्रीय नागरिक पंजी का इसलिए नवीनीकरण किया गया क्योंकि, बड़ी संख्या में अवेध नागरिक असम में इन वर्षों में प्रवेश कर गए थे l इसमें भारतीय नागरिकों को नहीं शामिल किये जाने की बात की कही भी नहीं है l
चालीस लाख एक बहुत बड़ी संख्या है, जिनको एन आर सी से बाहर रखा गया है l हालाँकि शिकायत और आपति के मौका उन लोगों को मिलेगा, पर यह प्रक्रिया कैसी होगी, इसका आभास अभी किसी को नहीं है l जिन लोगों के नाम तकनिकी कारण से नहीं शामिल हुए है, उनके नाम अवश्य ही शामिल किये जायेंगे, यह तो तय है l यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि, इतनी बड़ी प्रक्रिया में कई तरह की भूलें रह गयी है, जिनको सुधारना आवाश्यक है l ऐसे लाखों लोग हो सकते है, जो सौ प्रतिशत भारतीय है, जिनके नाम इस मसौदे में शामिल नहीं है और उन्होंने सत्यापन प्रक्रिया को भी पूरी तन्मयता से पूरा किया था, फिर भी उनके नाम एन आर सी के अंतिम मसौदे में शामिल नहीं है l उनके नाम किस तरह से शामिल हो सकेगे यह एक लाक टेक का प्रश्न है l सरकार की तरफ से यह कहा जा रहा है कि छुटे हुए लोगों के नाम एक मानक संचालन प्रक्रिया के तहत सत्यापन करके एन आर सी में डाले जायेंगे l इधर मारवाड़ी सम्मलेन और अन्य सामाजिक संस्थाओं ने भी अपनी तमाम शाखाओं के पदाधिकारियों से कहा है कि वे अपने अपने स्थान के लोगों के नाम डलवाने की प्रक्रिया में लोगों का सहयोग करें l गुवाहाटी पूर्व विधान सभा क्षेत्र के विधायक और गुवाहाटी विकास विभाग एवं शिक्षा मंत्री सिद्धार्थ भट्टाचार्य को पूछे गए एक सवाल पर कहा कि उनके विधायक क्षेत्र में छूट गए भारतीय नागरिकों के नाम डलवाने की प्रक्रिया में उनके मंडल के कार्यकर्ताओं को आम लोगों के सहयोग के लिए लगाया जायेगा, जिससे, किसी भी भारतीय नागरिक को एन आर सी ने नाम डलवाने में कोई असुविधा ना हो l उन्होंने आगे यह भी कहा कि लोगों को अपने नाम शामिल करवाने का पूरा मौका मिलेगा, और किसी को भी आंतकित होने की आवश्यकता नहीं है l
जिनके नाम इस मौसेदे में शामिल नहीं है, वे आगामी 7 तारीख से मिलने वाले क्लेम/आपत्ति और सुधार फॉर्म जरुर भरे, और अपने अधिकार का उपयोग करे l फॉर्म को समझने के लिए http://nrcassam.nic.in/coc.html देखें, और 7 अगस्त के पश्चात मिलने वाले उन फॉर्म को डाउनलोड करके एन आर सी केंद्र में जमा दे सकते है l यह प्रक्रिया 30 अगस्त से 28 सितम्बर तक चलेगी l अभी तक सरकारी सुचना अनुसार ऑनलाइन क्लेम/आपत्ति/सुधार फॉर्म जमा नहीं किया जा सकते l एन आर सी के सन्दर्भ में सामाजिक संगठनों को एक बार फिर आम लोगों की मदद के लिए आगे आना होगा, जिससे उनका विश्वास डगमगाए नहीं, और वे पूरी तन्मयता से इस प्रक्रिया में भाग ले सके l यह भी अभी तय नहीं हुवा है कि जिनके दस्तावेजों को बाहर के राज्यों में भेजा गया था, और सत्यापन हो कर अभी तक वापस नहीं आए है, उनका भविष्य क्या होगा l पर तमाम तरह की अटकलों और विरोधाभासों के बीच यह तो तय है कि इस एन आर सी में भारतीय नागरिकों के सभी नाम जरुर शामिल होंगे और विदेशियों के नाम शत-प्रतिशत काटेंगे l (शेष अगले अंक में)