Wednesday, August 22, 2018

दिल्ली हो या गुवाहाटी, एक देश एक माटी


दिल्ली हो या गुवाहाटी, एक देश एक माटी

राष्ट्रीयता से ओतप्रोत, उपरोक्त नारा, एक राष्ट्र की अवधारना को तो महामंडित करता ही है, साथ ही देश में रहने वालें विभिन्न भाषाभाषी के अंदर सद्भाव और भाईचारे के भाव भी प्रदशित करता है l कहने का मतलब यह है कि दिल्ली में रहने वालें भी भारतीय है और असम में रहने वाले भी उसी देश के नागरिक है l उनको भी वही समान अधिकार है, जो दिल्ली के नागरिक को है l असम पूर्वोत्तर में एक बड़ा प्रदेश है, जहाँ सर्व-धर्म/भाषा-भाषी के लोगो वास करतें है, जो नौकरी और व्यवसाय के कारणों से असम आये थे l इनमे यहाँ की कई मूल असमिया जातियां भी शामिल है, जो सदियों पहले अलग-अलग जगहों से असम आई थें l महाभारत काल से लेकर सातवीं सदी के मध्य में भास्करवर्मन के शासनकाल तक यहाँ पर एक ही राजवंश का शासन रहा था। इस राजवंश के शिलालेखों में दावा किया गया है कि राजा भागदत्त और उसके उत्तराधिकारियों ने कामरूप में लगभग ३००० वर्षों तक शासन किया । नालंदा की मुद्रा में पुष्यवर्मन को प्रग्ज्योतिष का स्वामी कहा गया है। इन्ही स्रोतों से हमें पुष्यवर्मन के १२ परवर्ती शासकों का भी विवरण मिलता है। आठवे राजा भाष्कर्वर्मन के अधीन कामरूप एक शक्तिशाली राज्य बन गया। भास्कर वर्मन राजा हर्षवर्धन का साथी था। हर्ष की बाणभट्ट द्वारा रचित जीवनी हर्षचरित में उसका उल्लेख मिलता है। मध्यकाल में सन् १२२८ में बर्मा के एक चीनी विजेता चाउलुंग सुकाफा ने इसपर अधिकार कर लिया। वह अहोम वंश का था जिसने अहोम वंश की सत्ता यहां कायम की। अहोम वंश का शासन १८२९ तक बना रहा, जब तक अंग्रेजों ने उन्हे हरा नहीं दिया। कहा जाता है कि अहोम राजाओं के कारण ही इस प्रदेश का नाम असम पड़ा। असम में वे लोग भी आये जिन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिए आये थे l अंग्रेजों द्वारा भारतीय श्रमिकों को भी असम लाया गया, जिन्हें हम टी ट्राइब के नाम के जानते है l साथ ही हुंडियों के निबटारे के लिए उसी समय सेठ-साहूकारों को भी यहाँ बसाया गया l उर्वर माटी ने सुदूर राजस्थान, हरयाणा, मालवा, उत्तर प्रदेश, बिहार और अन्यत्र स्थानों से लोगों को असम की और आने के लिए आकर्षित किया l यहाँ की आबोहवा लोगों को इतनी रास आई कि यहाँ जो भी आया वह यही बस गया l अथिति देवो भव की परंपरा को यहाँ बड़ी तन्मयता से निभाया जाता है l स्वतंत्रता के बाद से तो बस लोगों का आने का और हमेशा के लिए बसने का यहाँ तांता लग गया l यही से यहाँ समस्याएँ शुरू हो गयी l जनसांख्यिकी में भारी बदलाव देखने को मिल रहें थे l सबसे पहले भाषा आन्दोलन और फिर असम आन्दोलन, दोनों की बस एक मुहीम थी, कि असम से विदेशियों को खदेड़ा जाए l इसके लिए यह जरुरी था कि असम में राष्ट्रिय नागरिक पंजी का नवीनीकरण हो l असम समझोते में भी यह मांग थी, जिसका पालन करने को केंद्र वचनबद्ध था l
राष्ट्रीय नागरिक पंजी के नवीनीकरण से अब लोग परेशान है l भारतीय नागरिक भी और तारों के नीचे से आए लोग भी l भारतीय नागरिक इसलिए परेशान है क्योंकि एक बड़ी तादाद में हिंदी भाषियों और बंगला भाषियों के नाम अंतिम मौसेदे में शामिल नहीं हुए है l अभी तक यह किसी को नहीं पता कि उनके नाम कैसे आयेंगे l कौन सा तरीका अपनाया जायेगे कि उनके नाम फ़ाइनल एन आर सी में अंतर्भुक्त हो जाए l अभी हिंदी भाषी लोगों के संगठनों ने ज्ञापन और गुहार के जरिये अपनी बात केंद्र तक पहुचाई है, जिसके अलावा हिंदी भाषियों के पास और कोई चारा नहीं है l पर एक बात तय है कि इस पंजी में सिर्फ भारतीय नागरिकों के नाम ही शामिल होंगे l जिनके नाम नहीं आयें है, सरकार को उनके नाम शामिल करने की बाध्यता है, क्योंकि वे शत-प्रतिशत भारतीय है l जब पंजी ही भारतीय लोगों की है, तब फिर इसमें भारतीय लोगों के नाम क्यों नहीं आएंगे l यह सवाल यहाँ लोग एक दुसरे से पूछ रहें है l जिन लोगों ने पहले 2015 में पंजीयन फॉर्म नहीं भरें है, उनके लिए भी प्रावधान होने चाहेये l वर्षों से यहाँ रहने वाले भारतीय नागरिकों का मानना है कि उनको भी एक दुबारा चांस दिया जाना चाहेये, जिससे वे भी गर्व से बिना कोई भय के असम में रह सके l कईयों की समस्या यह है कि उनके पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं है और अगर है भी तो वे पीछे रह गए, उन लोगों के पास है, जो इस भय में है कि कही दस्तावेज उनके हाथ से निकल नहीं जाए l ऐसे में उनकी हालत घर से बाहर निकाले हुए जैसी हो गयी है l अपनी ही भूमि में अगर कोई व्यक्ति विदेशी कहलाये और उन सभी सुविधाओं का लाभ नहीं ले सके, जो आमतोर पर देशवासियों के लिए उपलब्ध रहती है, तब उसके होने का क्या मतलब ?  
अब इस बात को सभी को समझना होगा कि जिन लोगों के नाम नहीं आये है, और वे 24 मार्च 1971 के बाद असम में चले आए थे, उनके वंशज समेत सभी भारतीय नागरिक। (उन्हें 24 मार्च 1971 को दूसरे किसी हिस्से में रहने का सबूत पेश करना होगा।) अगर इस सूची में किसी का नाम शामिल नहीं है, तो उसे प्रशासनिक, कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है l अभी उन लोगों को अपने मूल स्थानों से अपने पूर्वजों के नाम पर होने वाले जमीन के कागज, इत्यादि, संग्रह करना होगा, तभी जा कर उनका नाम अंतिम सूची में आ पायेगा l यह कोई बहुत मुश्किल भरा कार्य नहीं है, थोड़ी सी जागरूकता, थोड़ी सी जानकारी, इस कार्य को सहज बना देगी l



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