Friday, October 19, 2018

शादी विवाह में फिजूल खर्ची क्यों ?


कौन बनेगा इस बदलाव का ध्वजधारक
अल्लामा इक़बाल इस एक प्रसिद्द शायरी इस मौके पर याद आ रही है -ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है l लिखने के पीछे मकसद यह है कि पिछले अंक में शादी विवाह पर फिजूल खर्च, आडम्बर और दिखावे पर एक चर्चा करने का जो मैंने प्रयास किया था, उसका नतीजा यह निकला कि कई लोगों ने इसका समर्थन तो किया पर यह कह रहें है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे l हम माध्यम वर्ग की समस्या यह है कि वह एक डरपोक वर्ग है l वह सामजिक वर्जनाओं या फिर घिसी-पिटी परम्पराओं को तोड़ने से घबराता है l  अगर सभी करने लगे तब, वह कर सकता है l उच्च वर्ग, जब वही कार्य बड़ी आसानी से कर देता है, तब मध्यम वर्ग भी इसे कर डालता है, बिना किसी घबराहट के, क्योंकि अनुसरण करना यह वर्ग बखूबी जानता है l यहाँ भी कुछ ऐसा ही मामला है l एक प्रस्ताव आया है कि वर और वधु, दोनों पक्षों की आपसी सहमती से, शादी की एक ही पार्टी होनी चाहिये l इस प्रस्ताव में इसलिए दम है , क्योंकि शादी के पहले दिन लड़के वाले के यहाँ पार्टी होती है, जिसमे वे ही मेहमान रहते है, जिन्हें अगले दिन दिन बुलाया जाना है l लड़के वाले अपने मेहमान को भी अगले दिन होने वाली शादी में निमंत्रित करतें है, जिससे लड़की वाले के यहाँ अनावश्यक रूप से दबाब बढ़ जाता है l इसको ख़त्म करने के लिए शादी के रेसप्सन का खर्च दोनों पक्ष मिल कर उठायें, जिससे अनावश्यक खर्चे में रोक लगेगी l तब लड़केवाले बेतुकी मांग नहीं रख पाएंगे, क्योंकि आधा खर्च तो उन्ही को देना है l भारत में शादियां बड़ी ख़ुशी का अवसर होती हैं l समारोह कभी-कभी कई दिनों तक चलता है और इसकी तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती हैं l इन समारोहों में लाखों और करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाए जाते हैं l हज़ारों लोगों के खाने का इंतज़ाम किया जाता है l मजे कि बात यह होती है कि इसमें शान दिखाने के अलावा किसी के कुछ हाथ नहीं आता l बेहिसाब खर्चे ने शादी के बजट को कहाँ से कहाँ तक पंहुचा दिया है l अगर रिसेप्सन दोनों पक्ष मिल कर करें, तब खर्च की सीमा पर लगाम लग सकती है l दूसरा प्रस्ताव यह है कि शादी दिन में संपन्न हो, जिससे एक ही दिन में सभी मंगल कार्य संपन्न हो सके, और खर्च पर भी रोक लगाईं जा सके l अब दिन के समय में शादी किये जाने को लेकर बात हुई, तब मुहरत और समय की बात होने लगी, इस विषय में पंडितों और जानकारों से राय लेनी भी उचित रहेगी l दिन में शादी अगर हो सकती है, तब यह सोने में सुहागा होगा l एक प्रस्ताव यह है कि शादी एक निजी मामला है, इसलिए अपनी सहूलियत के हिसाब से शादी की जाये, ना कि मुहरत और लगन के हिसाब से l क्यों समय और मुहरत देख कर ही शादियाँ हमेशा की जाती है, जबकि मुहरत वैगरह को कड़ाई से कौन मानता है l प्रस्तावक कहता है कि ऐसी हजारों शादियाँ मुहरत और समय देख कर होती है और कुछ दिन तक भी नहीं चलती l समाज में तलाक के मामले इन दिनों बेहिसाब बढ़े है l यह एक क्रांतिकारी प्रस्ताव हो सकता है l ऑफ-सीजन में शादी के वेन्यू को बुक करने का खर्चा भी नवंबर-फरवरी के वेडिंग सीजन के मुकाबले कम होगा l ऑफ-सीजन में शादी करने से आपके खर्चों में कमी आएगी l आपको कैटरर्स को न तो मुंहमांगी रकम ही देनी पड़ेगी और न ही वे आपकी शादी में किसी और की शादी का बचा हुआ खाना ही परोसेंगे l कई बार यह देखा गया है कि अगले छह महीने तक लगन और मुहरत नहीं होने की बात होती रहती है, पर उसके बावजूद भी शादियाँ उन्ही दिनों में होती है, जिसमे मुहरत नहीं रहतें है l मसलन, कोई एक वर्ष में 11 नवंबर को देव उठनी एकादशी से भगवान के जागने के साथ ही विवाह के मुहूर्त फिर एक महीने तक बनेंगे, इस अवधि में लोग सिर्फ भगवान के भजन-कीर्तन कर सकेंगे. चातुर्मास में शादी-ब्याह, उपनयन संस्कार, मुंडन संस्कार आदि सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं l इस तरह की कई घोषणाएं प्राय: होती रहती है, पर होता है, बिलकुल उल्टा l उन्ही वर्जित दिनों में शादियाँ करवाई जाती है l इस विषय पर क्या कोई बात हो सकती है? पिछले वर्षों में कई ऐसी शादियाँ हुई, जिनके वास्तविक निमंत्रण नहीं आये थे, बस व्हात्सप्प पर इ-कार्ड ही आये थे, एक प्रस्ताव यह भी है कि पारंपरिक निमंत्रणों से तौबा कीजिए और कोरियर वगैरह का खर्चा बचाया जाय l अपने दोस्तों को ईमेल करिए या फिर वॉट्सऐप पर ही शादी का निमंत्रण दे डालिए l आखिरकार हम एक डिजिटल युग में रह रहे हैं l शादी के मौके पर एक खर्च विडियो फोटोग्राफी और स्टील फोटोग्राफी होने लगा है l ज्यादातर वेडिंग फोटोग्राफर एक अच्छी-खासी फीस की डिमांड करते हैं l जो लोग इतने महंगे फोटोग्राफर अफॉर्ड नहीं कर सकते, उन्हें दुसरे का अनुसरण नहीं करके अपने हिसाब से फोटोग्राफी करवानी चाहिये, ताकि अनावश्यक खर्च बचाया जा सके l और समय की कमी की वजह से कितने लोग अपनी शादी के विडियो दुबारा देखतें है l ऐसे कई लोग भी सामने आये जो कुछ नया करना तो चाहतें है, पर सामजिक वर्जनाओं की वजह से अपना नाम उल्लेख नहीं करना चाहतें है l ऐसे लोग अपने प्रस्ताव गुमनाम रहकर दे सकते है l
शादी विवाह पर इस चर्चा को करने के पीछे उद्देश्य यह है कि एक नई पहल आजकल के पढ़े-लिखे शिक्षित लोग करना चाहतें है l यह चर्चा इस लिए भी जरुरी है क्योंकि, पानी अब सिर से उपर चला गया है l माध्यम वर्ग अब त्रस्त हो कर बदलाव की उम्मीद कर रहा है l पर समस्या यह है कि कैसे संभव हो पायेगा, यह कार्य l कौन बनेगा ध्वजधारक, कौन बनेगा इस बदलाव का झंडाबरदार l  


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