Saturday, November 24, 2018

संघर्ष के नए रूप और स्वरुप


संघर्ष के नए रूप और स्वरुप
उत्तरपूर्वीय राज्य कई जातीय समूहों की गृहभूमि हैं, जहाँ विभिन्न जातियां अपने स्व-रक्षण में लगी हुई रहती हैं। सभी जाति-जनजातियां अपने अस्तित्व की रक्षा कर रही है l जातियों के वर्स्चस्व की ना जाने कितनी लड़ाइयां अब तक हो चुकी है, सशस्त्र भी शांतिप्रिय भी l अभी भी पूर्वोत्तर में स्थाई शांति नहीं है l समय समय पर उग्रवादी अपनी बन्दुक कर मुहं बेकसूर लोगों की तरफ कर देतें है , जबकि यह अब तक प्रमाण हो चूका है कि बेकसूर व्यक्तियों की हत्या करने से किसी को कुछ हासिल नहीं होगा l दहशत और संदेह का वातावरण फैलने के अलावा शायद कुछ भी नहीं l अगर हम मिजोराम की तरफ देंखे तब पाएंगे कि आज मिजोराम एक शांतिप्रिय प्रदेश है और हर क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है l वहां उग्रवादियों को यह समझ में आ चूका था, कि हिंसा से किसी समस्या का समाधान नहीं है l जब उद्ध्यमशील मिज़ो औरतें गुवाहाटी में अकेले बाज़ार करतें हुए दिखाई पड़ती है, तब एक सुखद अहसास होता है कि कैसे वहां के लोगों ने ही वहां का कायापलट कर दिया है l उल्लेखनीय है कि इस राज्य की साक्षरता दर 92 प्रतिशत है l पूर्वोत्तर में जनजातियों और अन्य सामुदायिक संघर्षों के अनेकों वाक्यें है,जिन्हें इतिहासकारों ने संजो कर रखा है l जब सन 1979 में आसू का आन्दोलन शुरू हुवा था, तब यह आन्दोलन असम के अवेध रूप से रह रहें विदेशियों के खिलाफ था l उसके साथ ही असम के उत्पादित खनिज और चाय के दोहन के खिलाफ भी यह एक सशक्त मुहीम थी l इस मुहीम में किसी भी हिंदी भाषी को ऐसा नहीं लगा कि आसू उनके खिलाफ है, उन्होंने तन-मन-धन से आसू को भरपूर सहयोग किया था l इतना ही नहीं कुछ उत्साहित हिंदी भाषी युवा जिसमे, मारवाड़ी, बिहारी, और अन्य इत्तर भाषी जिसमे पंजाबी लोग मुख्यतः थे, आसू में शामिल हो कर आन्दोलन को समर्थन किया था l छह वर्षों तक चलने वाला यह आन्दोलन असम में रहने वाले स्थाई लोगों, चाहे वे किसी भी भाषा भाषा और धर्म के हो, उनके खिलाफ नहीं था, बल्की बड़ी संख्या में आये लाखों विदेशी लोगों के खिलाफ था, जो बिना कुछ दिए, असम का संसाधन बड़ी आसानी से गटक रहें थे l असम में रहने वाले मारवाड़ी व्यापारियों ने सहजता से इस शांतिप्रिय आन्दोलन को एक तरह से सपोर्ट किया था l आसू के आन्दोलन समाप्त होने के पश्चात जब असम जन परिषद् की सरकार बनी, तब ऐसा लगा कि असम के लोगों की अपनी सरकार बन रही है l क्या उसमे हिंदी भाषियों के कोई योगदान नहीं था ? फिर भी जातिय और सामुदायिक संघर्ष समाप्त नहीं हुए l हिंदी भाषियों को प्रताड़ित किया जाता रहा l एक सहनशील जाति होने की वजह से उसने राज्य के कभी भी अहित नहीं किया, बल्कि आर्थिक संबल ही प्रदान किया है l यह हम इसलिए कह रहें है क्योंकि सन 1985 के बाद राज्य में छोटे और मझले दर्जे के कारखाने और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों स्थापित होने शुरू हो गए थे, जिससे राज्य के राजस्व में भारी बृद्धि होनी शुरू हो गयी थी l आज भी यह सिलसिला जारी है l पर जातिय हिंसा का दौर समाप्त नहीं हुवा l सरकार भले ही लोगों के जान माल की सुरक्षा की जिम्मवारी ले रही है, पर हकीकत यही है कि निर्दोष लोग बेकसूर मरे जा रहें है l दहशत और डर का वातावरण पैदा करने की कौशिश कामयाब हो रही है l अगर गौर से देखा जाये, तब पाएंगे कि हमें शिक्षा के साथ, अच्छे-बुरे में निर्णय करने की क्षमता को हासिल करली है, पर कठिन परिस्थितियों में भी संयम बरतने की क्षमता विकसित नहीं कर पाए है l यहाँ आन्दोलन के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, राज्य में ज्यादातर बहुसंख्यक असमियाभाषी लोग होने के बावजूद भी यहाँ, असमिया हितों की रक्षार्थ निर्णय नहीं लिए जातें, इसका सीधा-साधा जबाब यह है कि शासन में अभी भी पूर्वाग्रह हावी है l हमें फायदा हो न हो, पर दूसरों को फायदा नहीं होना चाहिये l फिर भी असमिया मुख्यधारा में शामिल रह कर असमिया अस्मिता की रक्षा करने के वचन जिन लोगों ने भी लिया है, वे असम के सच्चे हितेषी है l  सदियों से बड़ी संख्या हिंदी भाषियों के लिए यह सबसे बड़ी समस्या थी कि जो लोगो वर्षों से यही रच-बस गए है, उनके लिए देश के दुसरे कौनों में भी कोई स्थान नहीं था l आज भी कामो-वेस यही स्थिति बनी हुई है l हिंदी भाषियों ने यहाँ रहते हुए व्यापार-वाणिज्य का विस्तार किया, राज्य के विकास में भरपूर सहयोग किया, पर कभी भी अपने लिए कोई आरक्षण की मांग नहीं की l अपने लिए कोई राजनैतिक आवरण भी इन्होने कभी भी नहीं बनाया, बस सतारुख पार्टियों के साथ मित्रता करके हमेशा से ही राज्य के उत्तरोतर विकास में सहयोगी रहें है l फिर भी निर्दोष हिंदी भाषियों को इस तरह से मारा जा रहा है, जिससे मानवता शर्मसार हो जाय l
इन सबके बीच, यह कहा जायेगा कि भारतीय समाज की श्रेष्ठम उपलब्धियां अगर गिनी गए, तब उसमे से पाएंगे कि सदियों से यहाँ एक जीवंत सस्कृति वास कर रही है, जिसका आधार एक सामाजिक तानाबाना यहाँ स्थित है l यह तानाबाना हमें एक दुसरे से जोड़े हुए रखता है l असम में रहने वाली जातियां, जन्गोष्ठियाँ और विभिन्न समुदायों के बीच सोहार्द कैसे हो, जिससे सभी को एक सामान विकास के अवसर मिले, यह एक मूल प्रश्न होना चाहिये l  हिंसा को एक सिरे से नकारा जाना चाहेये l         

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