Friday, June 2, 2017

पुरानी जिंदगी पर नई जिंदगी का बसेरा

शिक्षा के प्रचार प्रसार ने आम लोगों के जीवन में एक नई आशा का संचार किया है l अगर ऐसा नहीं होता तब दसवीं और बारहवीं के बोर्ड के परीक्षाओं में गावों और छोटे शहरों के बच्चें अच्छे नंबर ले कर शहर के बच्चो से आगे नहीं जातें l इतना ही नहीं, सर्वभारतीय स्तर की प्रतियोगितामुलक परीक्षा में भी श्रमिकों एवं कामगारों के बच्चों ने कामयाबी दिखा कर यह सिद्ध कर दिया है कि प्रतिभा सिर्फ बड़े शहर से ही निकल कर नहीं आती, बल्कि देश के उन छोटे शहरों में भी बसती है, जिनको अगर मौका दिया जाये, तब वे भी चमक कर सामने आ सकती है l इस बात की भविष्यवाणी पहले से की जा रही थी कि वर्ष 2017 कि परीक्षाओं के परिणाम चौकाने वाले होंगे, जिसमे गावों में रहने वालें दिहाड़ी मजदूरों, श्रमिकों की संताने, शहर में महंगे स्कूलों में पढ़ रहें बच्चों से अधिक अंक लेकर आयेंगे l और हुवा भी वही l जिलों और कस्बों में रहने वाले बच्चों ने दसवी और बारहवी के बोर्ड की परीक्षाओं में प्रथम बीस छात्रों ने स्थान पाया है l अब हर क्षेणी के अभिभावकों ने यह तय कर लिया है कि वे अपना पेट काट कर भी अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवायेंगे l देश की मीडिया इस समय गावों की और दौड़ लगा रही है और रोजाना बच्चों को खोज कर उसके अभिभावकों के जीवन चरित्र टेलीविजन के परदे पर दिखा रही है l लड़कियों ने भी इन दस वर्षों में लडकों से आगे निकल कर यह सिद्ध कर दिया है कि वे भी कुछ कर सकने की माद्दा रखती है l पिछले तीन वर्षों से सिविल सर्विस की परीक्षा में लड़कियों ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है, जो साधारण परिवार से आती है l 2017 के सिविल सर्विसे के परिणाम में कर्नाटक की नंदिनी ने प्रथम स्थान अर्जित किया, जिसने दसवीं की परीक्षा कन्नड़ मीडियम के स्कूल से पूरी की थी l गावों के प्रतिशत शहर से उपर जा रहें है l इस सच से भी कोई नकार नहीं सकता कि अंक लाने की दौड़ में दिनोंदिन भारी प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है l जिनके 700 में से 690 अंक आ रहें है, वे सोचते है कि 10 नंबर कहाँ गए l जिनके कम अंक आ रहें है, वे इस बात से चिंतित है कि उनको कहा दाखिला मिलेगा l परीक्षाओं के परिणाम आते ही बच्चों के लिए ख़ुशी है तो नए दाखिले के लिए टेंशन भी है l इस दमघोंटू प्रतिस्पर्धा ने आजकल के बच्चों को बेहद मुश्किल में डाल दिया है l सौ में सौ अंक कुछ इस तरह से आ रहें है, मानों अंतरिक्ष में उड़ने जैसा आसान हो गया हो l एक समय तीस नंबर पास के नंबर होतें थे, जिसको पाने के लिए भारी जुगत लगनी पड़ती थी, आज सौ नंबर भी कम पड़ रहें है l सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि नब्बे अंक प्राप्त करने वाले छात्र ख़ुशी मनाये या दुःख l क्योंकि उनको देश के अच्छे शैक्षणिक संस्थानों में नब्बे नंबर से दाखिला मिल पाने बेहद मुश्किल वाला कार्य है l देश की शिक्षा व्यवस्था में अंक महत्वपूर्ण रोल अदा करतें है l जिसको जितने ज्यादा अंक, उतने ही बड़ी ख़ुशी, फिर चाहे, छात्र कैसे भी अंक क्यों न अर्जित करें l उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इस समय, ज्यादा से ज्यादा अंक लाने जरुरी है, जिससे छात्र को देश की नामी-गिरामी शैक्षणिक संस्था में दाखिला मिले सके, जिससे उसका भविष्य सुधर सके l इस दमघोंटू प्रतिस्पर्धा में आज का युवा पूरी तरह से उतर गया है,  
जिससे येन केन प्रकरण वाली प्रवृति छात्रों के मन में घर कर गयी है l शायद किसी अनजाने भय ने बच्चों और उनके अभिवावकों, दोनों की रातों की नींद हराम कर रखी है l फिर भी वे इस प्रतिस्पर्धा में भाग लेना चाहतें है l किसी किस्म का चांस नहीं, बस पढाई-पढाई l आज खुशहाली के मायने बदल रहे है, अभिभावक अपने बच्चो को हर क्षेत्र में अव्वल देखने व सामाजिक दिखावे के चलते, उनसे ज्यादा अंक लाने की मांग कर रहें है, जिससे उनका दाखिला किसी अच्छे कालेज में हो सके, और आगे जा कर वे किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पा सके l पर कम अंक पाने वाले छात्रों के साथ यह एक दुविधा है कि वे कहाँ जाये, क्या कम अंक आने से शिक्षा लेने का अधिकार उनके पास से समाप्त हो जाता है ? यह प्रश्न आज एक यक्ष प्रश्न बन कर लोगों के दिल-दिमाग पर हावी हो रहा है l एक मनोवेज्ञानिक दबाब से आज का छात्र परेशान है l पूरी दुनिया में अब युवाओं ने व्यापार, आन्दोलन और राजनीति को बखूबी संभाल लिया है l यह इसलिए संभव हुवा है कि शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार हुवा है, जिससे रोजगार सम्मत शिक्षा व्यवस्था स्थपित हुई और युवाओं को एक नई मंजिल मिल गई l  
वे अब मुक्त मन से शिक्षा ले कर अपने भविष्य की और अग्रसर है l ज्ञान, कुशलता, आत्मविश्वास और व्यक्तित्व में सुधार करती शिक्षा, हमारे जीवन में दूसरों से बात करने की बौद्धिक क्षमता को तो बढ़ाती ही है, साथ ही परिपक्वता भी लाती है और समाज के बदलते परिवेश में रहना सिखाती है। यह सामाजिक विकास, आर्थिक वृद्धि और तकनीकी उन्नति का रास्ता है। इतिहास गवाह है कि उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों ने ना सिर्फ सामाजिक क्रांति की मशाल को संभाला है, बल्कि देश के लोगों के समक्ष आज आदर्श बन कर लोगों को प्रेरित कर रहें है l उच्च स्तर की दिमागी क्षमता रखने वाले युवा पूरी दुनिया में आज भारत का प्रतिनिधित्व कर रहा है l पूर्वोत्तर भारत के बीस युवाओं ने इस बार संघ लोक सेवा आयोग द्वारा संचालित सिविल सर्विस की परीक्षा पास की है l यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि प्राय सभी सफल प्रतियोगी साधारण परिवार से आतें है l इसके बावजूद भी, एक कटु सत्य यह भी है कि पूर्वोत्तर जैसे पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले लोग जीवन में आधारभूत आवश्यकताओं की कमी के कारण अभी भी उचित शिक्षा प्राप्त नही कर पा रहे हैं। वे आज भी अपने दैनिक जीवन की आवश्यकताओं के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में आई जागरूकता ने सभी लोगों को बराबर मौका तो दिया है, पर संसाधनों की कमी ने अभी भी बेहद गरीब बच्चों को इसका लाभ लेने के लिए वांछित कर रखा है l देश में बेहतर वृद्धि और विकास के लिए प्रत्येक क्षेत्र में समान रुप से शिक्षा के बारे में जागरुकता लाने की आवश्यकता है।
लोग अपने जीवन में शिक्षा के महत्व और क्षेत्र के बारे में जागरुक हो रहे हैं और लाभान्वित होने की कोशिश कर रहे हैं। इस पूरी कवायद में समाज शास्त्रियों की एक बड़ी भूमिका है, जो लोगों को हर समय उचित मशविरा देकर उनको किसी अवसाद से बचाए, जिससे कठिन समय में भी वे कोई गलत कदम ना उठाये l  


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