Friday, July 29, 2016

परिवर्तन के सूक्ष्म आनंद और बढती जिम्मेवारियां
रवि अजितसरिया

स्वतंत्रता के पश्चात भारत में सामाजिक क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने सन 1975 में छात्रों की एक विशाल रैली में कहा था, “भ्रष्टाचार मिटाना, बरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना, कुछ ऐसी चीजें है जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती, क्योंकि वे इस व्यस्था की ही उपज है l वे तभी पूरी हो सकती है, जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए l सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए सम्पूर्ण क्रांति आवश्यक है” l इन विचारों की पीठ पर चढ़ कर भारत में ना जाने कितने ही सामाजिक आंदोलनों ने भारत में जन्म लिया और व्यस्वस्था को बदलने में कामयाब हुए l बिहार और उत्तर प्रदेश में आज भी ‘जेपी’ के नाम को लोग भुना रहें है l उनके नाम को सम्मान से लेतें है, सभाओं में जयघोष करवातें है l जेपी और लोहिया के नाम की शपथ लेतें है l असम में भी 1979 से 1985 तक चले असम आन्दोलन एक प्रमुख और सफल छात्र आन्दोलन था, जिसमे बाद में सत्ता आन्दोलनकारियों के हाथ में आ गयी, जब उन्होंने एक राजनैतिक दल बना कर चुनाव लड़ा था l जब नरेन्द्र मोदी सरकार भारत में आई, तब भी लोकनायक आन्दोलन के दौरान प्रयोग हुई राष्ट्रिय कवि रामधारी सिंह दिनकर की विचारोत्तक कविता ‘सिंहासन खली करों कि जनता आती है’ का उपयोग बारम-बार हुवा, जिससे एकाएक जनता में यह विश्वास घर कर गया कि वाकई में देश में सन 1975 जैसा माहोल है l देश की जनता बदलाव चाहती है l चुनाव में लोगों ने सरकार बदल दी और भारी मतों से एक नई भाजपा सरकार शासन में आई lअसम के सन्दर्भ में भी एक परिवर्तन की लहर देखने को मिली l लोकनायक के अनुयाइयों ने सामाजिक त्रासदी और आर्थिक भ्रष्टाचार होने का खूब प्रखर प्रचार किया l नतीजा हमारे सामने है l कहने का तात्पर्य यह है कि सत्ता एक स्थाई वस्तु नहीं है, जिसका सुख हर समय एक ही पार्टी भोगे l बदलाव अवश्यंभावी है l बदलाव के संकेत तब तक नहीं मिलते, जब तक जनता को एक नेता नहीं मिलता, चाहे वो कोई भी समाज हो l लोकनायक एक नेता के रूप में उभरे, जिनमे जनता को विश्वास दिखाई देने लगा था l असम आन्दोलन भी इसलिए ही सफल हुवा था कि लोगों को प्रफुल्ल कुमार महंत, भिर्गु फुकन, अतुल बोरा जैसें नेता दिखाई देने लगे थें l अभी असम में सर्वानन्द सरकार ने अपने दो महीने सात दिन पुरे किये है, कोई निर्णय करना जल्दबाजी होगी l ज्यादातर लोगों का मानना है कि भाजपा के शासन में बदलाव दिखाई देना चाहिये, ना कि सिर्फ घोषणाओं तक ही सीमित रह जाए l निति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री ने कहा कि वे प्रयोग करने से नहीं घबराते, उनमे हिम्मत है l केंद्र सरकार में गरीबों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए हिम्मत है l यही बात असम के मुख्यमंत्री भी बार-बार कह रहे है l फैंसी बाज़ार की एक सभा में उन्होंने कहा था कि कर बढ़ाने के उनके निर्णय पर उनको व्यापारियों का साथ चाहिये l  
इधर व्यापारियों का कहना है कि राज्य के राजस्व को बढ़ाने के लिए जो निर्णय लिए गएँ है, उससे लोगों को कोई अप्पति नहीं है, पर राज्य में इंस्पेक्टर राज के उत्पीड़न से लोग बेहद परेशान है l छोटें-छोटें गावों तक में फुटकर व्यवसाइयों को कागज के नाम पर परेशान किया जा रहा है, जिससे लोगों में आक्रोश है l अच्छे दिनों की बात भी लोग दबी जुबान से कर रहें है l ज्यादातर व्यापारियों का कहना है कि व्यापारियों को दोहम दर्जे के व्यक्ति ना समझा जाएँ, चूँकि, वे सरकार को कर उगाही कर के देतें है, उनको भी सत्ता और सरकार का एक अहम् हिस्सा माना जाना चाहिये l इस बात में दम इसलिए भी है. क्योंकि एक तरह से वे कर उगाही के सिस्टम के एक हिस्सेदार है, जो हर महीने सरकार के खजाने में बढ़ोतरी करतें है l इतना ही नहीं, एनारसी के तैयारी में जिस तरह से नए तथ्य सामने आयें है, हिंदी भाषी संगठनों ने ‘मूल और अमूल’ के मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी शुरू कर दी है l उनको एकाएक लगने लगा है कि एक जप्त योजना के तहत उनका लोकतांत्रिक अधिकार उनसे छिना जा रहा है l इधर सरकार ने बजट में लोक-लुभावन योजनाओं की झड़ी लगा दी गयी है l असम आन्दोलन के शहीदों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने सरकार ने उनके लिए एक मुश्त 5 लाख की सहायता की घोषणा की है l   
अभी राज्य बाढ़ की विभिषिका से जूझ रहा है l इस समय लोगों को सहायता की जरुरत है l ख़ुशी की बात यह है कि राज्य का बजट सत्र में विधयाकों ने एकमत हो कर सदन की कार्यवाही दो दिनों के लिए स्थगित कर के, बाढ़ पीड़ितों की खोज-खबर लेने का निर्णय लिया है l खुद मुख्यमंत्री पुरे असम का दौरा कर रहे है l इस समय राज्य की जनता को आगे आ कर बाढ़ पीड़ितों की सहायता करनी चाहिये, यही समय की मांग है l  



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