बोल बम का नारा है, बाबा एक
सहारा है
भारत
युगों-युगों से श्रद्दा एवं आस्था की भूमि रही है l यहाँ संतों और गुरुओं को आज भी
उच्च दर्जा प्राप्त है l उनके दिखाएँ गएँ रास्तों पर भारतीय दर्शन शास्त्र टिका
हुवा है l भारत ही एक ऐसी भूमि है, जहाँ लोग पत्थर को भी पुजतें है, उसमे भगवान्
को खोजने लागतें है l यही उसकी संस्कृति है l इसी कड़ी में लोग भारतीय समय और
तिथियों अनुसार अपनी श्रद्धा और आस्था का प्रदर्शन कर एक आत्मीय सुख का अनुभव
करतें है l चातुर्मास एक ऐसा समय है जब लोग अपनी आस्था और श्रद्धा का प्रदर्शन
पूरी निष्ठा से करतें है l इसी माह में विभिन्न धर्मालम्बी, तप तपस्या,पछतावा और तीर्थ
यात्रा करतें है, गुरुओं के सानिध्य का लाभ लेतें है, कांवर चढाते है l श्रावन माह
के आगमन के साथ ही वातावरण में ‘बोल-बम’(शिव के नाम) के नारे गूंजने लगतें है l
समस्त फिजा मानो एकाकार हो कर शिव की आराधना करने लग गई हो l कन्धों पर कांवर लिए,
भगवान् भोले के भक्त लम्बी-लम्बी दुरी तय करतें है, बोल-बम के नारे के साथ l भारत
में विद्यमान १२ ज्योर्तिलिंगों की उपासना, यु तो साल भर की जाती है, पर श्रावन
माह में शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है l जत्थे के जत्थे तीर्थ यात्री
सुल्तानगंज जा कर, कंधे पर कांवर लिए, 105 किलोमीटर का सुल्तानगंज से देवघर का सफ़र
पैदल तय करतें है, और भगवान् शंकर पर गंगाजल अर्पित करतें है l गुवाहाटी समेत
पूर्वोत्तर के कई भागों से यात्री दल बना कर चलतें है, जिसमे बच्चे, बूढ़े और जवान.
सभी रहतें है l कई यात्री तो पिछले तीस-चालीस वर्षों से हर वर्ष सुल्तानगंज जातें
है, और पूरी श्रद्धा के साथ कांवर चढाते है l क्या धुप, क्या छांव, यात्री बस
चलतें रहतें है l हिन्दू मायता अनुसार, श्रावण मास में भगवान् शंकर की पूजा का एक
विशेष महत्व माना गया है l कहते है कि भगवान् परशुराम ने सबसे पहले अपने अराध्य
देव शिव के शीश पर श्रावन मास में गंगाजल डाल इस परंपरा की शुरुवात की थी l यह भी
कहा जाता है कि मिथिलांचल में मिथिलावासी ‘पाग’ पहन कर भगवान् शिव के उपर जल चढाते
है, जिसके पीछे यह मान्यता है कि मिथिलांचल के तरहवी सदी के महाकवि विद्यापति
ठाकुर के उपर भगवान् शिव की बड़ी कृपा थी, जिसकी वजह से शिव ने खुद के उगना नाम के चरवाहा
का रूप धर कर विद्यापति के यहाँ नौकरी की थी, जिसका आभास महाकवि को हो गया था l तब
एक प्रसंग का दौरान भगवान् ने अपनी जटा से, बेसुध महाकवि को जल पिला कर जीवनदान
दिया था l चाकर रूपी ‘उगना’ के चले जाने के बाद विद्यापति ने शिव स्तुति में नचारी
और महेशवाणी नामक गीतों की रचना की थी l किंवदंती यह भी है कि जब अमृत मंथन के
दौरान भगवान् शिव ने विष पान किया था, तब उनके उदर में नकारात्त्मक उर्जा स्थान कर
गयी थी l त्रेता युग में, रावण ने कांवर के जरिये, गंगाजल ला कर, भगवान् शिव की इस
अग्नि को शांत किया था l तब से हर वर्ष करोड़ों यात्री हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख,
सुल्तानगंज से लोग नंगें पैर चल कर, कन्धों पर गंगाजल
रख कर भगवान शिव के शीश पर चढाते है l यह संख्या बढ़ कर पुरे देश में 10 करोड़ तक
पहुच गयी है l झारखण्ड सरकार ने इस माह को पवित्र श्रावणी माह के रूप में मानते
हुए, विशेष व्यवस्था भी करती है, जिससे यात्रियों कोकोई असुविधा ना हो l जब
प्रक्रति अपने पुरे योवन पर रहती है, भगवान् के उपर भी हरियाली से पूजन किया जाता
है l श्रद्धालु बड़े प्रेम से प्रत्येक सोमवार को बेलपत्र, भांग, धतूरे दूर्वा,
आक्ह और लाल कनेर के पुष्प से अभिषेक करके, अपने आप को धन्य मानतें है l इसके
अलावा पांच तरह के जो अमृत बताये गए है, जिनसे भगवान् शंकर प्रसन्न होतें है वे है
,दूध, दही, शर्करा, घी और पंचामृत l गुवाहाटी से बारह किलोमीटर दूर स्थित वशिष्ट
आश्रम के जल प्रपात से जल भर कर, श्रावन माह में हजारों श्रद्धालु कांवर उठातें है
और पानबाज़ार स्थित शुक्रेश्वर महादेव पर अर्पित करतें है l वशिष्ट आश्रम स्थान पर
एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिसका निर्माण अहोम राजा राजेश्वर शिंघा ने सन 1764 में
करवाया था l गरभंगा सुरक्षित वन क्षेत्र भी यही पर स्थित है, जहाँ हाथियों का डेरा
है l यही पर मेघालय की पहाड़ियों पर पांच किलोमीटर की दुरी पर एक गुफा में मुनि
वशिष्ट का आश्रम है l
समय के साथ,
लोगों की जीवन शैली में ना जाने कितने ही बदलाव देखने को मिल रहें है, पर श्रद्धा
और आस्था, पहले से प्रबल हुई है l मंदिरों और मजारों पर पहले से भीड़ अधिक हो रही
है, जिसका एक प्रमुख कारण,यह समझा जा रहा है कि आधुनिकता का लबादा ओढ़े हुए मनुष्य,
इस जीवन शैली को अपना तो रहा है, पर उसे मानसिक शांति नहीं मिल रही, जिसकी खोज में
वह मंदिर, मस्जिद, गुरद्वारा या चर्च जाता है l चातुर्मास के दौरान गुरु दर्शन के
लिए जाता है l अपने अप को सर्व-शक्तिशाली कहलाने वाला मनुष्य, इसी स्थान पर आ कर
घुटने टेक देता है l
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