मोदी है तो मुमकिन है
नरेंद्र मोदी की शानदार सफलता
के पश्चात यह तो तय हो गया है कि वें एक अपने आप में के मजबूत किरदार है, जिसको इस
समय भारत के लोग पसंद कर रहें है l भारत के लोग एक मजबूत नेता चाहते है, जिसकी वजह
से लोगों ने जाति और क्षेत्रीयता से उपर उठ कर एक अकेले नेता के पक्ष में वोट किया
है l उन्होंने सारे ओपिनियन पोल्स को धराशाई करके, 1971 के पश्चात एक अकेले ऐसे
नेता बने है, जिनको भारत की जनता ने दुबारा सत्तासीन किया और वह भी पहले से ज्यादा
प्रचंड बहुमत से l राजनीतिक पंडितों और वज्ञानिकों के सभी अंदाज और कयास धरे के
धरे रह गए l गठबंधन और परिवार राजनीति का प्रभाव नाकामयाब रहा, एक मजबूत विपक्ष की
योजना विफल रही, सभी जुमले जिनको विपक्ष ने लपक कर हथियार बनाने की कौशिश की, वें
भी धराशाई हो गए l दरअसल में, भारत में हमेशा से ही पिछड़ों और दलितों की राजनीति
की जाती रही है l यहाँ कास्ट फैक्टर हमेशा से ही दिल्ली दरबार में हावी रहा है l नरेंद्र
मोदी ने इस पुरे प्रसंग को ही बदल कर रख दिया है l उत्तर प्रदेश और बिहार में
स्थानीय नेताओं ने जाति आधारित राजीनीति से हमेशा से ही नंबर बनाये थे l उन्होंने
दलित और मुसलमानों के बल पर एक मजबूत बेड़ा खड़ा कर के इस बार भी एक सपोर्ट बेस
बनाने की चेष्टा की थी, जिसको नरेन्द्र मोदी जैसे सुनामी ने, इस किले को ध्वंश
करके यह सन्देश दिया है कि देश में एक मजबूत नेता, उसके विकास और दायित्व के लिए
जरुरी है l बिहार में आरजेडी, जो हमेशा से ही पिछड़ो की राजनीति करती है, एक भी सीट
नहीं जीत पाई और उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा है l नरेन्द्र मोदी की
वाक्पटुता, चरिश्माय-व्यक्तित्व , निर्णयक्षमता, इच्छाशक्ति, राष्ट्रवाद और
अनिश्चित उर्चा ने कई उदास लोगों के चहरों को भी प्रफुल्लित कर दिया, और एक करारा
तमाचा है उनलोगों पर जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में नरेंद्र मोदी पर कई आरोप लगाये
और भारत को चरम हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रणेता बता रहें थे l उन सभी को अब एक हकदार
राजनेता नहीं बल्कि एक पात्र नेता के रूप में नरेंद्र मोदी मिले है, जिन्होंने दल,
जाति और पार्टी से उपर उठ कर देश हित में कुछ कड़े निर्णय लिए, और दुबारा चुन कर आ
गए है l इस तरह से देश में दल गत राजनीति का एक नया प्रारूप सामने आया है कि जो
पार्टी कार्य करेगी वह रहेगी, और जो गठबंधन करके जाति आधारित राजनीति करेगी, वह
समाप्ति की कगार पर रहेगी(परफॉर्म और पेरिश) l नरेंद्र मोदी ने लीडरशिप के नई
परिभाषा गाढ़ी है, जिसमे आम आदमी को आधार बनाया है l उन्होंने जनता के मर्म को समझ
कर, उन बिन्दुओं पर कार्य करना शुरू किया, जिसको जनता चाहती है l स्वच्छ भारत
अभियान, उज्जवला योजना, जनधन योजना और स्वास्थ योजनायें कुछ एक ऐसी योजनायें थी,
जिन पर उन्होंने 2014 में शासन सँभालते ही कार्य करना शुरू कर दिया था l उनकी यह
क्षमता का कही भी कोई तोड़ अभी तक तो नहीं है l जब भारत ने पुलवामा हमले का बदला बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक करके ले लिया,
तब पुरे भारतवर्ष में आम जनता में प्रधानमंत्री मोदी के साहस और निर्णय क्षमता की
तारीफ की थी l भारत पर पहले भी अंतकी हमले हुए थे, पर उस समय की सरकारों ने किसी
तरह की कार्यवाई ना कर के, बस लोगों को दिलासा देती रही, पर प्रधानमंत्री मोदी में
पुलवामा हमले का बखूबी बदला लिया और पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक करवा कर एक
मजबूत नेता की छवि बनाई है l पंडित जवाहर लाल
नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के लोकतांत्रिक
इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है l नेहरू और इंदिरा के बाद मोदी पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता के
शिखर पर पहुंचने वाले तीसरे प्रधानमंत्री बन गए हैं l 2014 में हुए आम चुनाव में भाजपा ने लोकसभा की कुल 543
सीटों में से 282 सीटों पर जीत हासिल की थी l देश में आजादी के बाद 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव
में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू करीब तीन चौथाई सीटें जीते थे l इसके बाद 1957 और 1962 में हुए आम चुनाव में भी
उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ जीत दर्ज की थी l चूंकि देश में आजादी के बाद 1951में पहली बार आम चुनाव हुए
थे l उस चुनाव में कांग्रेस ने
489 सीटों में से 364 सीटों पर जीत हासिल की थी और उस समय पार्टी के पक्ष में करीब
45 फीसदी मत पड़े थे l
1962 के आम चुनाव
में भी नेहरू ने लोकसभा की कुल 494 सीटों में से 361 सीटों पर शानदार विजय हासिल
की l आजाद भारत के 20 साल के
राजनीतिक इतिहास में आखिरकार कांग्रेस पार्टी का जलवा बेरंग होना शुरू हुआ और वह
छह राज्यों में विधानसभा चुनाव हार गई l इन छह राज्यों में से तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस सबसे पहले हारी
थी l लेकिन 1967 में इंदिरा
गांधी लोकसभा की कुल 520 सीटों में से 283 सीटें जीतने में कामयाब रहीं l आम चुनाव में इंदिरा गांधी की यह पहली जीत थी l
इसी दौर में इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ' का नारा दिया जिसने भारतीय मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर
असर किया l इसी का नतीजा रहा कि
इंदिरा गांधी 1971 के आम चुनाव में 352 सीटें जीत गईं l 2010 और 2014 के दौर की बात करें, जब संप्रग सरकार विभिन्न मामलों में भ्रष्टाचार के आरोपों
से जूझ रही थी l देशभर में विकास के वादे के साथ नरेन्द्र मोदी 2014में 282
सीटों पर जीत के साथ अपना पहला आम चुनाव पूर्ण बहुमत के साथ जीतने में सफल रहे l अभी 2019 में प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का कड़ा
विरोध होने के वावजूद भी भाजपा ने अकेले 303 सीटें जीत कर एक इतिहास रच दिया l उसका
कुल वोट शेयर रहा 42 प्रतिशत l वही एनडीए ने कुल 350 सीटें अपने खाते में ले ली है
l
भारतीय लोकतंत्र में एक
मजबूत विपक्ष ने हमेशा से ही एक मजबूत भूमिका निभाई है l इस दफा भी 2014 की तरह
एनडीए ने 65 फीसदी सीटें जीत कर विपक्ष की भूमिका को सिमित कर दिया है l पर जैसा
की नरेंद्र मोदी ने अपने धन्यवाद भाषण में कहा है कि ‘हमें सभी को एक साथ ले कर एक
साथ मिल कर चलना होगा’, ये वाक्य ब्रह्म वाक्य साबित होने वाले है l उन्होंने कहा
कि वोट किसी भी देश के लिए लोगों का आदेश हो सकता है, पर एक देश सभी को ले कर ही
चल सकता है l निश्चित रूप से उनका इशारा
उन कार्यकर्ताओं पर है, जो गाए-बगाहे, अहंकार और अति राष्ट्रवाद का प्रदर्शन करतें
है l भारतीय राजनीति में यह एक सुअवसर है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ एक आम सहमती
के तहत कार्य करे, जिससे पुरे सिस्टम को सुनयोजित करके स्लो पड़ने लगी इकोनोमी को
दुबारा ट्रैक पर लाया जा सके l
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