ये जिंदगी ना मिलेगी दुबारा
रवि अजितसरिया
अपने अंतर्मन से प्रेरित हो
कर इस दुनिया में लोगों ने अपनी कठिन जिंदगी को हमेशा से ही सरल और मीनिंगफुल बनाने
की कौशिश की हैं, चाहे वह ध्यान, अध्यात्म और भगवत पूजा के द्वारा हो या फिर
दुनिया की तमाम उपलब्ध वस्तुओं को उपभोग करके हो l पर इंसान ने हमेशा से ही बदलाव
के द्वारा एक खुबसूरत जिंदगी जीने की और रुख किया है l इस समय सबसे बड़ी और कठिन
तपस्या इंसान की, स्वस्थ रहना है l स्वास्थ के लिए जब पूरी दुनिया में अरबों-खरबों
रुपये खर्च हो रहें है, ऐसे में उसका लाभ धीरे-धीरे मानव जाति को मिलने की और
अग्रसर है l तमाम द्वन्द्वों के बीच मुट्ठी भर सुख की प्राप्ति की चाह कर कोई कर
रहा है l पर कहाँ रहता है, यह सुख, कैसा है इसका चहरा, कौन बताता है, सुख की दिशा
l कई सारे प्रश्न हमारे दिमाग में कौध जातें है, जिनके जबाब हमें नहीं मिलतें l
अत्यधिक धन होना, किसी बड़े सुख की अनुभूति नहीं भी दे सकता है, जबकि एक छोटा क्षण
हमें इतना सुख दे सकता है कि जीवन की गति ही बदल जाये l जीवन जीने की कला सिखाने
वाले गुरु रविशंकर, जिन्हें लोग श्री श्री के नाम से जानते है, श्री श्री रविशंकर को मानवातावदी और आध्यात्मिक
गुरु के तौर पर वैश्विक स्तर पर पहचाना जाता है। मानव मूल्यों को बढ़ाकर, हिंसा और तनाव मुक्त समाज स्थापित करने से
संबंधित इनके दृष्टिकोण ने सैकड़ों लोगों को अपने उत्तरदायित्वों को बढ़ाने के लिए
प्रेरित किया है। निश्चित रूप से यह विश्व की बेहतरी के लिए एक बड़ा कदम साबित हुआ। इस संसार में समृद्धि और सुख में हमेशा से एक द्वंद्व रहा
है l समृद्धि के लिए सुख या फिर सुख के लिए समृद्धि, यह प्रश्न लाख टेक का है l
वैभव का प्रदर्शन करके बड़ी-बड़ी शादियाँ आयोजित होती है, उसमे भी जो रीति-कर्म
होतें है, वे बिलकुल वैसे ही होतें है, जैसे कि एक साधारण शादी में होतें है l अब
रोटी-कपड़ा-मकान से जीवन नहीं चलता, बल्कि उन तमाम जरूरतों को जुटाते हुए जीवन को
जीने की एक कला है, जिसको हर मनुष्य आज ढूँढ़ रहा है l कुछ लोग जो जीवन भर सेक
संघर्ष भरा जीवन जी रहें होतें है, उनके लिए मात्र समृद्धि ही सुखी होने की निशानी
है l आसुओं से कुश्ती लड़ कर कुछ लोग, एक नई जिंदगी जीने के लिए जीवन से ही प्रेरणा
प्राप्त कर लेतें है l खिड़की के झरोखे से दिखाई देने वाला एक छोटा सा दृश्य भी,
उन्हें एक नए जीवन की और ले जाने में सक्षम है l ‘लाइफ ऑफ़ पाई’ नामक पुस्तक के
लेखक यान मार्टल है, जिन्हें मेन-बुकर पुरूस्कार भी मिला था l सन 2012 में उनकी पुस्तक पर बनी फिल्म जीवन, साहस और उत्तरजीविता(सर्वाइवल) पर आधारित है l
ढेर सारी परेशानियों के बीच कहानी का मुख्य पात्र पाई जीने की चाह लिए, बच जाता है
l इस रोचक कहानी के विपरीत हर किसी के जीवन में ऐसे कई ऐसे मौके आते है, जब
मुसीबतों के पहाड़ टूट पड़ते है, जिसको झेलना हर किसी के बूते की बात नहीं है l पर
जैसा कि महात्मा बुद्ध कहते है कि आनंद का पहले सूत्र है, दुःख की स्वीकृति, उसके
मनोभाव को समझना, उसके अस्तित्व के अनुभव से संसार के यथार्थ को समझना l मनुष्य जब
सपन देखता है कि एक दिन जब वह सभी बिमारियों पर विजय प्राप्त कर लेगा,
तब दुनिया में सुख के नए
स्त्रोत पैदा होंगे, जिससे सारा का सारा मानव समाज सुखी हो जायेगा l जब दार्शनिक
और भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस, पृथ्वी और समस्त मानवजाति के ख़त्म होने की भविष्यवाणी
कर रहे थे, तब उनको थोड़ी ही पता था कि यही मानव अपनी कठोर प्रतिबद्धता से हर
भविष्यवाणी को उल्टा साबित कर देगा l जब धरती पर इतने संसाधन नहीं थे, तब आबादी भी
इतनी नहीं थी, संघर्ष से भारी जिंदगी में इंसान की वास्तविक खूबियों की अपेक्षा
होती रही, ऐसे में 21वी सदी मानव जाती के लिए वरदान बन कर आई है l तकनीक और सुचना
प्रसारण अपने विकास के चरम पर है l मानव चाँद और अन्य ग्रहों पर घर बनाने की और
अग्रसर है l न्याय संगत और विचार आधारित धरातल की सृजनशीलता ने मानवजाति के कद तो
अब बहुत बड़ा बना दिया है l बोद्ध ग्रंथ ‘मिलिंद प्रश्न’ एक ऐसा ग्रंथ है, जो उपदेशात्मक
है, और सत्य से साथ साक्षात्कार करवाता है l इसमें मूल बात यही है कि जिस चीज का
प्रवाह पहले से चला आता है, वही चीज पैदा होती है l मानवीय वृतियों का सूक्षमता से
समझने से पहले यह समझना जरुरी है कि वे निहित श्रंखलायें क्या है जो एक जीव को
मानव बनता है? उसके सोचने और समझने की शक्ति और जिजीविषा जिसके प्रदर्शन से वह एक
मानव कहलाता है l
इन सबके बावजूद, परिश्रम और
सृजनता कुछ ऐसे गुण है, जिन्हें मनुष्य नकार नहीं सकता l फिल्म आनंद में बीमार
राजेश खन्ना के संवाद थे कि जिंदगी लम्बी नहीं, बड़ी होनी चाहिये, इस बात को बल देता है कि जीवन में मनुष्य कुछ ऐसा कर
जाये कि जीवन में सार्थकता बनी रहें l पेड़ लगाना, उनकी देखभाल, लाइब्रेरी में किताबेंदान,
गरीब बच्चों की शिक्षा का दायित्व और अजनबियों की सहायता, कुछ ऐसे छोटें कार्य है,
जो एक जन कर के मुस्करा सकता है l पश्चिमीकारण की लहर अब समाज के निचले स्तर पर
पहुच रही है, जिससे सामाजिक ढांचा स्वतः ही चकनाचूर होने की कगार पर है l सामाजिक और
मानवीय मूल्यों का जबर्दस्त ह्रास होने से अब यह समझना होगा कि व्यक्ति के अविभाज्य
गुणों को जीवन के साथ दुबारा कैसे जोड़ा जाए l
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