Friday, August 4, 2017

जीएसटी के लागु होने के एक महीने बाद का परिदृश्य
रवि अजितसरिया
                               वीरान पड़ी थोक मंडिया

भारत में इस समय आम आदमी, खास करके देश के मंझले और खुदरा व्यापरियों के मुश्किल भरें दिन चल रहें है l यह बात हम इसलिए कह रहे है क्योंकि व्यापरियों के माथे पर चिंता की लकीरे साफ़ दिखाई दे रही है l उन्हें चिंता है अपने भविष्य की, जो इस समय उन्हें चुनौती दे रहा है l हम बात कर रहे है जीएसटी के एक महीने के बाद के परिदृश्य की, जो भयावह हो कर व्यापारियों की रातों की नींद हराम कर रहा है l लागू होने के एक महीने बाद से अब तक जीएसटी पर सब कुछ साफ़ नहीं है l बाज़ार जाने वाले लोगों को अबतक यह समझ नहीं आ पा रहा है कि इसके लागू होने से क्या सस्ता हुआ है और क्या महंगा l थोक मंडियां वीरान पड़ी हुई हैं l खुदरा विक्रेता अभी जीएसटी का सॉफ्टवेयर लगाने में व्यस्त हैं l खरीदारी करने वाले लोग भी अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं कि जीएसटी के आने से उनके बज़ट पर क्या फर्क़ पड़ा है l जीएसटी लागू होने के एक महीने बाद बाजारों में पहले जैसी अफरातफरी तो नहीं, लेकिन व्यापार अब भी पटरी पर नहीं लौटा है। खासकर फेस्टिव सीजन की सप्लाइ के मद्देनजर हालात खराब बताए जा रहे हैं। रक्षा बंधन, दुर्गा पूजा, दशहरा और दिवाली जैसे त्योहारों के नजदीक आने पर हर वर्ष इस समय बाजारों में गहमा-गहमी बढ़ आती है, जो इस वर्ष दिखाई नहीं दे रही है l इस ख़राब हालात के लिए जीएसटी को जिम्मेवार बताया जा रहा है l सेल्स पिछली सीजन के मुकाबले 50% से भी कम हो गई है और त्योहारी सीजन की सप्लाइ को लेकर चिंता बढ़ रही है। हालांकि अधिकांश रजिस्टर्ड डीलर जीएसटी में माइग्रेट कर चुके हैं, लेकिन रेट, एचएसएन कोड, रिवर्स चार्ज और बिलिंग को लेकर कन्फ्यूजन कायम है। ट्रांसपोर्टेशन में सुधार हुआ है, लेकिन बुकिंग अब भी मई-जून के मुकाबले 30-40 प्रतिशत कम बताई जा रही है। इस पूरी कवायद में एक बात साफ़ है कि आम आदमी भी इस असमंजस में है कि जीएसटी की बात करे, या फिर व्यापारियों के असहजता को समझ कर उनका साथ दे l ग्राहक भी सरकार द्वारा जीएसटी के लागु होने के अत्याधिक विज्ञापन किये जाने से, इस आशा में है कि प्रत्येक वस्तुओं के दाम कम होंगे l व्यापारियों ने जीएसटी में सरकार का साथ दे कर पहले से ही इस नयी प्रणाली को समझने का प्रयास किया है, पर बड़ी बात है कि एक महीने के बाद भी व्यापरियों के पास जीएसटी की पूरी समझ नहीं है l छोटे और माध्यम दर्जे के व्यापारियों का कहना है कि वे मॉल बेचे या जीएसटी को तमिल करने में अपना पूरा वक्त खातों को मेन्टेन करने में लगायें l कुछ व्यापारियों ने पार्ट टाइम अकाउंटेंट भी रख लिए है l पर छोटे व्यापरियों की स्थिति एक तरफ नदी और दूसरी तरफ खाई वाली है l अगर अकाउंटेंट रखते है, तब व्यापार पर भारी दबाब पड़ेगा, और नहीं रखते है, तब पुरे दिन जीएसटी को लेकर माथापच्ची करतें रहो l 

कुछ व्यापरियों का कहना है कि जीएसटी के नए पंजीकरण करने के लिए और बैंक अकाउंट की जरुरत रहती है, और उसे खुलवाने के लिए ट्रेड लाइसेंस लेने की आवश्यकता रहती है l जिन व्यापारियों के पास ट्रेड लाइसेंस नहीं थे, उन्होंने जब अपना आवेदन किया, तब उनको एक महीने का समय दिया है l इस टालमटोल रवैये ने व्यापरियों को परेशान कर रखा है, और उनकों घूस दे कर जल्दी लाइसेंस बनवाने को मजबूर भी किया जा रहा है l एक भुगत भोगी व्यापारी जब अपना लाइसेंस नवीनीकरण करवाने निगम दफ्तर पंहुचा, और सात दिनों तक चक्कर लगाने के बावजूद भी उनका लाइसेंस नवीनीकरण नहीं किया गया l यह तो सिर्फ एक बानगी भर है, ऐसे मामले अभी सामने आ रहें है, कि पूरी जीएसटी प्रणाली को ही अपने होने पर शर्म आ जाये l पुरे भारत वर्ष में एक कर प्रणाली लागु करने के वादे के साथ आने वाली सरकार ने जीएसटी को तो लागू कर दिया पर उसके साथ, वर्षों से लकड़ी के घुन की तरह लगे हुए भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए विभिन्न विभागों से इन्स्पक्टोर्राज को ख़त्म करने में असफल रही है, जिसका खामियाजा आज व्यापारी भुगत रहें है l मोदी सरकार आने के पश्चात केंद्र सरकारों के दफ्तरों में वर्क-कल्चर शुरू हो कर तेजी से दिखाई देने लगा है l यह स्थिति असम में क्यों नहीं दिखाई देती l भाजपा सरकार आने के अभी एक वर्ष से ज्यादा हो चुके है, पर अभी भी असम सरकार के कार्यालयों में कर्मचारी पुराने तरीकों से ही कार्यालय चला रहें है l मजे की बात है कि राजस्व उत्पत्ति करने वाले कार्यालयों में भी कार्यों में तेजी दिखाई नहीं दे रही है l ऐसे में एक कर एक प्रणाली की बारीकियों को व्यापारियों को कौन समझाएं l राहत की बात यह रही कि सरकार ने व्यापारियों को दो महीने की रियायत दे दी, वर्ना तो देश भर में उथल-पुतल मच जाती l

इधर खबर यह है कि देश भर में 20 अगस्त तक करीब 71 लाख व्यापारी जीएसटी में माइग्रेट कर चुके होंगे l यह संख्या इस माह के अंत तक 1 करोड़ तक पहुचने की उम्मीद है l कहने को तो जीएसटी में माइग्रेट करना आसान है, पर जब व्यापारी एक बेंक अकाउंट खोलने जाता है, तब उसको ट्रेड लाइसेंस नहीं होने के लिए लौटा दिया जाता है l इसी तरह से, जब व्यापारी ट्रेड लाइसेंस के लिए निगम के दफ्तर जाता है, तब उसका वहां स्वागत नहीं किया जाता है, बल्कि एक गैर-जरुरी आगंतुक की तरह व्यवहार किया जाता है l उसके लिए उस कार्यालय में कोई बैठने तक की भी व्यवस्था नहीं है l वहां से हताश हो कर व्यापारी किसी दलाल की शरण में चला जाता है और अपना काम करवाता है l भारतवर्ष में अभी भी हर सरकारी कार्यालय में एक दलाल चक्र मौजूद रहता है, जो कार्य की सुगमता के आड़े आता है l जीएसटी और शासन द्वारा घोषित की गई अन्य महावाकंक्षी योजनाओं की सफलता के लिए भ्रष्टाचार के इस नेटवर्क को ताड़ना नितांत आवश्यक है l    

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