Friday, August 2, 2019

वी जी सिद्धार्थ की मौत के बहाने


वी जी सिद्धार्थ की मौत के बहाने
केफे कॉफ़ी डे रिटेल चैन के मालिक वी जी सिद्धार्थ के आत्महत्या कर लेने के बाद, आर्थिक जगत में हलचल सी मच गयी हैं l 1996 में सिर्फ पांच लाख रुपये से उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया था, जो 1 अरब डॉलर तक पहुच गया था l उनका कुल लोन अमाउंट करीब 5000 करोड़ रूपए का था, जिनको नहीं देने की स्थिति में वे अपने आप से हार गए थे, और नदी में कूद कर आत्महत्या कर ली l भारत में पिछले कई वर्षों में ऋण नहीं चूका पाने की स्थिति में सन 1996 से अब तक करीब तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की हैं l वी जी सिद्धार्थ के साथ इन वर्षों में कई व्यवसाइयों ने, नौकरीपेशा लोगों ने आत्महत्या, ऋण नहीं चूका पाने के कारण की हैं l अब सवाल यह हैं कि देश के क्या आर्थिक हालात ऐसे बन गए हैं कि आम आदमी को रोजाना अपने आप से जूझना पड़ रहा हैं ? व्यापार में आई घोर मंदी में आर्थिक विशलेषकों को सोचने पर मजबूर कर दिया हैं कि क्या सचमुच जो आंकड़े सामने आ रहें हैं, वें सचमुच वास्तविक स्थिति को बयां कर रहें हैं ? अगर हम कुछ मुट्ठी भर छोटे-बड़े व्यापारियों से ही पूछे कि उनका व्यापार कैसा चल रहा हैं, तब एक ही जबाब मिलेगा की बाजार से ग्राहक लगभग गायब हैं, और वे घोर मुसीबत में अपना समय किसी तरह निकाल रहें हैं l व्यापारियों और उद्योगपतियों के लिए यह समय बेहद कठिन भरा हैं, जिसको पार लगाना बैतरनी पार करना जैसा हैं l देश में अभी भी लालफितासाही मौजूद होने के कारण व्यवसाय करना अब और भी मुश्किल हो चला हैं l पर अपने हुनर, बुद्धिमत्ता और हिम्मत की वजह से एक व्यापारी ना सिर्फ अपने परिवार का भरण पोषण करता हैं, पर अपने यहाँ रखे गए कर्मचारियों का भी ख्याल रखता हैं, उन्हें रोजगार देता हैं l वह सरकारी राजस्व में अपना भरपूर योगदान दे कर देश के प्रति अपना कर्तव्य भी निभाता हैं l कॉर्पोरेट सोसिअल रेस्पोसिबिलिती के तहत समाज सेवा कर के वह समाज के प्रति भी अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करता हैं l फिर भी उसको शोषक की संज्ञा दी जाती हैं l उसके लिए अब्शब्द कहे जाते हैं l कमोवेश पुरे भारतवर्ष में व्यापारियों के लिए यही भावना व्याप्त हैं l  
भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं l यहाँ जनता हर पांच वर्षों में एक नई सरकार को चुनती हैं l चुनी हुई सरकार संविधान में वर्णित और जनता को प्रदत अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए, जिसमे जानमाल की सुरक्षा, रोजगार और आम लोगों के हितों की रक्षा करने का वचन मुख्य रूप से रहता हैं, सत्ता सँभालते समय वह यह शपथ लेती हैं l यह क्रिया पिछले सत्तर वर्षों से आजाद भारत में चल रही हैं l भारत की जीवनधारा को सँभालने के लिए, नौकरशाहों की एक बड़ी फौज देश के कौने-कौने में कार्यरत हैं l देश में कानून और न्याय का राज हो, इसके लिए देश में एक पूरी व्यवस्था बनी हुई हैं, जो देश के हर नागरिक को शासन के प्रति आस्था का अनुभव करवाता हैं l पिछले कुछ वर्षों में देश में विद्वेष, विरोध और टांग खिंचाई की राजनीति और सत्ताधारियों में आपस में संघर्ष ने व्यापारियों का ना सिर्फ विश्वास तोडा हैं, बल्कि उसका उन तमाम चीजों से विश्वास उठाने लगा हैं, जिन्हें वह लोकतंत्र का स्तम्भ मानता था l जब देश आजाद हुवा था, तब अंग्रेजों ने कठाक्ष किया था कि देश लुटेरों के हाथों में चला जायेगा और चारो और अरज़कता फ़ैल जाएगी l देश आज आज़ादी के सत्तर वर्षों बाद भी एक अराजक स्थिति में हैं l चारों और अविश्वास, अशांति, आरोप, प्रत्यारोप l कौन किस पर विश्वास करे l शासन में रहने वाले लोगों को हम सरकार कहतें हैं l उनके प्रति कृत्यों को हम सूक्षमता से आंकलन करतें हैं l शासन के लोगों का आम लोगों के प्रति नजरिया, उनका तरीका और उनकी मांग, आम आदमी को प्रभावित करती हैं l हम भारतवासी एक ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जहाँ अभी भी सामंतवादी ताकतें, हमें प्रभावित करती हैं l परिवर्तन के नाम पर आने वाली सरकारें, जब अपनी समस्त उर्जा अपने आंतरिक मसलों को सुलझाने में लगा देगी, तब वह आर्थिक विकास के कार्यों में कहाँ ध्यान दे पाएगी l
देश एक संक्रमण काल से गुजर रहा हैं l इस बीच के काल में बहुत कुछ उल्टा-पुल्टा होने की संभावनाएं हैं l पर आर्थिक क्षेत्र के जानकार यह कह रहें हैं कि बड़े मॉल और शोपिंग कॉम्प्लेक्सों में दी जाने वाली आकर्षक छुट और केश बेक एक बड़ी वजह हैं, ग्राहकों का छोटी दुकानों को छोड़ने की l बात इतनी भी नहीं बिगड़ती, पर जीएसटी के आने के पश्चात छोटे और मंझले दुकानदारों को जीएसटी में समाहित होने में कुछ समय लग गया, जिसका फायदा इन बड़े स्टोरों को मिल गया हैं l इस समय ग्राहक भी असंजस में हैं कि किस पर विश्वास करे, क्योंकि एक ही सामान दो अलग अलग जगह पर दो दामों पर मिल रहे हैं, जिनकी एमआरपी एक ही हैं l दरअसल में यह एक माल बेचने की कला हैं, जिसे मॉडर्न ट्रेडकहा जाता हैं l भारत ने जब बहुविदेशी कंपनियों को भारत में माल बेचने के लिए भारी सुविधा देनी शुरू जब से की हैं, उनका उत्पादन भारत के चारों कौनों में होने लगा हैं l बड़े प्लेयर  जरुरत से ज्यादा माल बनाने लगें, जिसको बेचने के लिए काफी जोर लगाना पड़ रहा था l इस समस्या के निदान के लिए उन्होंने बड़े मॉल और चैन स्टोरों को डिस्काउंट पर थोक में माल बेचने शुरू कर दिया, जिससे उनकी यह समस्या ख़त्म हो गयी हैं l कई कम्पनियाँ तो सिर्फ चैन स्टोरों के लिए ही माल बनाती हैं l इतना ही नहीं ऑनलाइन शौपिंग ने भी इस आग में घी का सा काम किया हैं l इलेक्ट्रॉनिक्स और उपभोक्ता सामग्रियों में ऑनलाइन खरीदारी में भारी डिस्काउंट अब लोगों को मिल रहा हैं l  
व्यापार में के कहावत सिद्ध हैं कि यहाँ बड़ी मछली, छोटी मछली को खा जाती हैं l छोटे व्यवसाइयों के हितों के लिए सरकार किस तरह की रेस्क्यू योजनायें लाएगी, यह देखने वाली बात हैं l पर इस समय यह सच हैं की व्यापारी एक दम से डरा हुवा हैं, सरकारी नियम उसे डरा रहें हैं l कौन सी तारीख पर कौन सा फॉर्म भरना हैं, एक व्यापारी इसी काम में लगा हुवा हैं l   

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