Friday, August 23, 2019

असम समझोते की धारा 6 पर ब्रेन स्टोर्मिंग


असम समझोते की धारा 6 पर ब्रेन स्टोर्मिंग   

असम समझोते की धारा छह के सन्दर्भ में विचार विमर्श के लिए गठित कमिटी ने पिछले बुधवार को को एक अधिसूचना जारी की हैं जिसमे एक नागरिक अपील की गई है, और सभी हितधारकों, सामाजिक संगठनों और व्यक्तियों से असम समझोते की धारा छह को लागु किये जाने को लेकर सुझाव मांगे हैं l यें सुझाव आगामी 20 सितम्बर तक समित्ति के कार्यालय तक पहुच जाने चाहिये l   असम समझौते के 35 वर्षों के बाद भी समझौते की धारा 6 को पूरी तरह से कार्यान्वित नहीं किया गया है। इसलिए असम मंत्रिमंडल ने एक उच्‍चस्‍तरीय समिति गठित की हैं जो असम समझौते की धारा 6 के आलोक में संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक  सुरक्षात्‍मक उपायों से संबंधित अनुशंसाएं प्रदान करेगी। समिति सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करेगी और असमिया लोगों के लिए असम विधानसभा तथा स्‍थानीय निकायों में आरक्षण के लिए सीटों की संख्‍या का आंकलन करेगी। समि‍ति असमिया और अन्‍य स्‍थानीय भाषाओं को संरक्षित करने, असम सरकार के तहत रोजगार में आरक्षण का प्रतिशत तय करने तथा असमी लोगों की सांस्‍कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान व विरासत को सुरक्षित, संरक्षित तथा प्रोत्‍साहित करने के लिए अन्‍य उपायों की आवश्‍यकता का आंकलन करेगी। उच्च समिती जब असम के सभी हितधारकों से वार्तालाप करगी, तब असम में स्थापित हिंदी और अन्य भाषा-भाषी समुदायों की प्रतिनिधि संस्थाओं को अपना पक्ष जरुर रखना होगा, तभी उनके, असम में गर्व से रहने का मार्ग प्रसस्त होगा l असम समझोते में वर्णित धारा 6 स्पष्ट रूप से कहती हैं कि केंद्र असम के मूल असमिया लोगों को संविधानिक कवच प्रदान करेंगा l कई जानकारों का मानना हैं कि राष्ट्रिय नागरिकता पंजी का अभी जो नवीनीकरण हो रहा है, वह धारा 6 के क्रियान्यवयन की दिशा में चल रहा हैं l हालाँकि धारा 6 असम से बाहरी लोगों के निष्काषित करने की बात नहीं करती, पर असम समझौते की धारा 6 में राज्य के लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक पहचान और विरासत को संरक्षित रखने के लिए जरुरी संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक प्रावधान हैं l इस धारा को पूर्ण रूप से लागु करने के लिए केंद्र को असम के लिए अलग से कानून बनाना होगा, जिसका क्या प्रभाव होगा, अभी यह कहना मुश्किल हैं l आशा की जाती हैं कि समिति के गठन से असम समझौते को अक्षरश: लागू करने का मार्ग प्रशस्‍त होगा और यह असम के लोगों के लम्‍बे समय से चली आ रही आशाओं को पूरा करेगा। इस समिति की अधिसूचना अनुसार, समिति असम की मूल जनजाति, असमिया जाति और असम के अन्यान्य लोगों के लिए विभिन्न तरह के आरक्षण पर विचार करेगी l अब सवाल उठता हैं कि असम की मूल जनजाति या असमिया के मूल निवासी कैसे परिभाषित किये जायेंगे l जब सन 1951 की जनसँख्या रजिस्टर बना था, उसमे यह कहा गया कि जो व्यक्ति असम में बोली जाने वाली प्रचलित भाषा का उपयोग कर रहा है, वह असमिया हैं l हालाँकि इस परिभाषा को बाद में एक समिति ने नकार दिया था l बाद में असम समझोते में क्रमानुसार बार बार असमिया लोगों के हितों की रक्षा की बात हर उपधाराओं में की गयी l असम साहित्य सभा ने भी एक बृहत्तर असमिया जाति के गठन की वकालत की हैं l उसके अनुसार जो व्यक्ति असम में रह कर मूल असमिया भाषा बोलता है, वह असमिया हैं या उसकी दूसरी या तीसरी भाषा असमिया है, उसको असमिया माना जाना चाहिये l आसू ने बाद में इस परिभाषा का विरोध भी किया था l असम आन्दोलन के समय आसू को प्रथम मांग थी कि सन 1951 के बाद असम में दाखिल लोगों को असम से निष्काषित  किया जाये l बाद में समझोते के समय यह तिथि 25 मार्च 1971 कर दी गयी l वर्ष 1950 और वर्ष 1960 के बीच आये लोगों को मतदान का अधिकार दिया गया l सदिया से कोकराझाड़ तक, असम में रहने वाले बड़ी संख्या हिंदी भाषियों के लिए यह सबसे बड़ी समस्या थी कि जो लोगो वर्षों से यही रच-बस गए है, उनके लिए देश के दुसरे कौनों में, (यहाँ तक कि अपने मूल प्रदेश में भी), भी कोई स्थान नहीं था l आज भी कामो-वेस यही स्थिति बनी हुई हैं l अपने लिए कोई राजनैतिक आवरण भी इन्होने कभी भी नहीं बनाया, बस सतारुढ पार्टियों के साथ मित्रता करके, हमेशा से ही राज्य के उत्तरोतर विकास में सहयोगी रहें हैं l असम में ना जाने कितने वर्षों से हिंदी भाषी रह रहे है, इसके कोई पुख्ता सबुत तो नहीं है, पर दस्तावेज बताते हैं कि पंद्रहवी शताब्दी से ही राज्य में हिंदी भाषियों का जमावड़ा शुरू हो गया था l इस बात के भी प्रमाण हैं की अंग्रेजो से पहले कोच राजाओं ने उत्तर भारत के कई राजाओं के साथ संधि भी की थी l पर जब से हिंदी भाषियों ने असम में रहना शुरू किया है, उन्होंने असम को ही अपनी भूमि माना हैं और कभी भी पृथकवादी राजनीति नहीं की असम में कौन पहले आया और कौन बाद में, इस बात पर हमेशा से ही बहस होती रही हैं l किस समुदाय ने असम के विकास में क्या योगदान दिया है, क्या इसका मूल्यांकन कभी हो पायेगा ? पर जब से हिंदी भाषियों ने असम में रहना शुरू किया है, उन्होंने असम को ही अपनी भूमि माना हैं और कभी भी पृथकवादी राजनीति नहीं की l अभी भी हजारों ऐसे लोग है, जिन्होंने कभी भी असम में रह कर, कोई स्थानीय दस्तावेज नहीं बनवाया या जाली दस्तावेज बनवाने की कभी चेष्टा की l बस वर्षों से रह रहें हैं l पर सवाल यह उठता हैं कि धारा 6 को पूर्ण रूप से लागु करने में सभी स्टेकहोल्डरों से क्या कभी बात हुई हैं ? धारा 6 के लागु किये जाने के लिए अब तक जो उपाय किये गए, उनकी सूची बहुत लम्बी हैं l पर मूल बात यह हैं कि राज्य में रह रहे बड़ी संख्या में अवेध बंगलादेशी लोगों ने सब कुछ गड़बड़झाला किया हुवा है, जिससे ऐसा लग रहा हैं कि राज्य के मूल लोगों के लिए रोजगार, भाषा और संस्कृति का संकट उत्पन्न हो गया हैं l
पुरे प्रकरण में उन लोगों पर भी ऊँगली उठ रही हैं जो असमिया माता की संतान तो नहीं है, पर पिछले 7-8 दशकों से असम में असमिया हो कर रह रहें हैं l ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है, जिन्होंने अपने वास स्थान असम को ही बनाया हैं और असम के आर्थिक, सामजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए भरपूर सहयोग दिया है, जिसका वर्णन समय समय पर किया जाता रहा हैं l क्या उन लोगों पर भी धारा 6 लागु होगी l इस प्रश्न के कई जबाब हो सकते हैं l कुछ उत्तर समय के साथ आयेंगे l पर बड़ी बात यह हैं कि असम के आर्थ-सामाजिक विकास में सभी समुदायों ने भरपूर सहयोग दिया है, इसका जिक्र भी होना जरुरी हैं l इस समय, असम में रहने वाले विभिन्न समुदायों की प्रतिनिधि संस्थाओं के समक्ष एक परीक्षा की घड़ी आ गयी है l इस समय उन्हें अपनी जाति और उसके अधिकारों की सुरक्षा को लेकर चिंतित होना पड़ेगा और समुदायों की तरफ से इस उच्च स्तरीय समिति को सुझाव पेश करना होगा जिससे वे अपना पक्ष अपनी जाति और उसके संरक्षण के लिए प्रस्ताव पेश कर सकती हैं l समिती के समक्ष दिए गए प्रस्ताव पर मौखिक रूप से भी प्रतिवेदन दिया जा सकता है l    

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