अनुच्छेद 370, 371,
35ए और असम समझोते की धारा 6
भारतीय जनता पार्टी
का पिछले लोकसभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने
संबंधी अनुच्छेद 370 तथा जम्मू कश्मीर के गैर स्थायी निवासियों को परिभाषित करने
वाले अनुच्छेद 35ए को समाप्त करने का वादा था, तथा कश्मीरी पंडितों की घाटी में
वापसी की दिशा में काम करने का संकल्प व्यक्त किया था। भाजपा के संकल्प पत्र में
कहा गया था कि पार्टी राज्य के विकास के मार्ग में आने वाले सभी अवराधों को समाप्त
करने तथा सभी क्षेत्रों के विकास के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधन मुहैया करायेगा।
जब अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर को स्पेशल स्टेटस प्रदान किया गया, तब भारतीय
संविधान का अनुच्छेद 370 एक ऐसा लेख था जो जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता का दर्जा
देता था। अस्थायी, संक्रमणकालीन और
विशेष प्रावधान। जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा को, इसकी स्थापना के बाद, भारतीय संविधान के उन लेखों की सिफारिश करने का
अधिकार दिया गया था जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिए या अनुच्छेद 370 को
पूरी तरह से निरस्त करना चाहिए। बाद में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के
संविधान का निर्माण किया और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना खुद
को भंग कर दिया, इस लेख को भारतीय
संविधान की एक स्थायी विशेषता माना गया। मोदी सरकार ने अपना चुनावी वादा निभाते
हुए 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक संकल्प पेश किया जिसमें जम्मू
कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर
एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया ।
जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना
विधायी वाली केंद्रशासित क्षेत्र होगा।
लोक सभा चनाव के
दौरान भाजपा ने कहा था कि हम धारा 35ए को भी खत्म करने के लिये प्रतिबद्ध हैं, और अनुच्छेद 35ए जम्मू कश्मीर के गैर स्थायी
निवासियों और महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण है।इस प्रस्ताव पर अमल के लिये संसद के
दोनों सदनों के समर्थन की जरूरत थी। अपनी चुनावी जीत के दो महीने बाद, बीजेपी सरकार ने सोमवार को संसद में दो प्रस्ताव
पारित किए, जिनमें अनुच्छेद 370
को भंग नहीं किया और फिर भी राज्य की विशेष स्थिति को प्रभावी ढंग से समाप्त कर
दिया। इसने एक संवैधानिक संशोधन पारित किए बिना ऐसा किया, जिसे अन्यथा दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की
आवश्यकता होती। इसके बजाय, एक साधारण बहुमत पर्याप्त था। मोदी सरकार ने वास्तव में इसे कैसे किया? इसका जवाब वास्तव में कुछ ऐसा हैंजो संसद के
बाहर हुआ और उसके भीतर नहीं। गृह मंत्री अमित शाह के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के
प्रस्ताव के पहले, भारतीय संविधान के
अनुच्छेद 367 में संशोधन के लिए एक राष्ट्रपति आदेश जारी किया गया। अनुच्छेद 367
एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करने के लिए है, यह कुछ कानूनों की व्याख्या में मदद करता है।
यदि आप अनुच्छेद 367 को बदलने में सक्षम हैं, तो किसी मामले में आप सीधे ऐसा करने के बिना अन्य प्रावधानों को बदल सकते हैं, क्योंकि आप बस उनकी व्याख्या को बदलते हैं। इस
अनुच्छेद के अनुसार हैंकि राष्ट्रपति आदेश जम्मू और कश्मीर राज्य पर लागू
प्रावधानों की व्याख्या करने में मदद करने के लिए एक नया खंड जोड़ता है। यह खंड
अनुच्छेद 370 की व्याख्या को बदल देता है, और अनुच्छेद 370 के खंड 3 में "संविधान सभा" के साथ
"विधानसभा" शब्दों को बदल दिया गया है। अनुच्छेद 370 के खंड 3 ने यह
स्पष्ट कर दिया कि यदि राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 के भीतर कुछ भी बदलना चाहते हैं, तो उन्हें जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा की
सिफारिश की आवश्यकता है। लेकिन जम्मू कश्मीर संविधान विधानसभा 1957 में भंग कर दी गई
थी, इसलिए यह संभवतः एक
सिफारिश नहीं दे सकता था।सोमवार के राष्ट्रपति के आदेश ने उस भाषा को संविधान सभा
के बजाय विधान सभा बनाने के लिए बदल दिया है।फिर भी, यह जरुरी हैंकि राष्ट्रपति के कोई भी आदेश को उस
आदेश को जम्मू कश्मीर की विधान सभा में इस प्रस्ताव को पारित करवाना की जरुरत रहती
है, लेकिन जम्मू और कश्मीर विधान सभा के पास अभी एक अधिकार नहीं है, क्योंकि इसे 2018 में भंग कर दिया गया था और
पहले राज्यपाल के नियम और बाद में, राष्ट्रपति के शासन के साथ बदल दिया गया था। जब कोई राज्य राष्ट्रपति शासन के
अधीन होता है, तो राज्य के लिए
कानून बनाने की शक्ति भारतीय संसद में निहित होती है। जम्मू और कश्मीर वर्तमान में
राष्ट्रपति शासन के अधीन है। इतनी प्रभावी रूप से, सरकार का कदम संसद को जम्मू और कश्मीर विधानसभा
की ओर से राज्य के चरित्र को बदलने की अनुमति देता है। यह, हालांकि, संघवाद पर ऐसे संशोधनों के प्रभाव पर, कई सवाल उठतें है।
इधर पूर्वोत्तर में
371ए और 371 की अन्य अनुछेदों को लेकर चर्चा शुरू हो गयी हैंl हालाँकि चर्चा और डर
बेबुनियाद है, क्योंकि सरकार इन अनुछेदों को हटाने नहीं जा रही है, जो पूर्वोत्तर
के कई राज्यों को स्पेशल स्टेट्स देता हैंl इसमें नागालैंड मुख्य राज्य है, जहाँ 371ए
के तहत स्थानीय जनजाति कानूनों को देश के कानून के उपर प्राथमिकता दी गयी हैंl इसके
अलावा भूमि क्रय और स्थानांतरण पर भी रोक हैंl इसके साथ ही असम में असम समझोते की
धारा छह को लेकर भी चर्चा जोरो से हैंl असम समझौते के खंड 6 में कहा गया हैंकि
असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषाई पहचान और
विरासत की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन
के लिए उचित संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा उपाय प्रदान किए जाएंगे।
अनुछेद 370 में हुए
बदलाव से पुरे देश में खास करके असम में अब कई प्रश्न उठ खड़े हुए है- क्या नागरिकता
संशोधन बिल 1955 वापस आयेगा ? क्या केंद्र एक शुद्ध नागरिकता रजिस्टर बना पायेगा
और क्या असम समझोते की धारा छह को लागु किया जा सकेगा ? प्रश्नों के उतर काल के
गाल में समाये हुए हैंl इस समय कश्मीर और असम में एनआरसी देश के सामने मुख्य
मुद्दा हैंl
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