Friday, August 16, 2019

लाल किले की प्राचीर से भाषण अच्छा लगता हैं


लाल किले की प्राचीर से भाषण अच्छा लगता हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वंतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से दिए गए राष्ट्र के नाम संबोधन में कई चीजे नई और अहसास कराने वाली भी थी l मेरे हिसाब से इनमे सबसे मुख्य बात थी, ‘इज ऑफ़ लिविंग’ l ख़ुशी की बात यह रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इज ऑफ़ लिविंग की बड़ी वकालत की हैं l भारत एक लोकतांत्रिक देश हैं l यहाँ जनता हर पांच वर्षों में एक नई सरकार को चुनती हैं l चुनी हुई सरकार संविधान में वर्णित और जनता को प्रदत अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए, जिसमे जानमाल की सुरक्षा, रोजगार और आम लोगों के हितों की रक्षा करने का वचन मुख्य रूप से रहता है, सत्ता सँभालने के समय शपथ लेती हैं l यह क्रिया पिछले बहत्तर वर्षों से आजाद भारत में चल रही हैं l भारत की जीवनधारा को सँभालने के लिए, नौकरशाहों की एक बड़ी फौज देश के कौने-कौने में कार्यरत हैं l देश में कानून और न्याय का राज हो, इसके लिए देश में एक पूरी व्यवस्था बनी हुई है, जो देश के हर नागरिक को शासन के प्रति आस्था का अनुभव करवाता हैं l यह एक आम और स्थाई चीजें है, जिसको हम दशकों से देख रहें हैं l सुविधाजनक तरीके से जीवन-यापन संबंधी बुनियादी सुविधाएं बेहतर करने लिए सरकार ने पहल तो की है, और इसका मकसद सभी शहरों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नागरिक सुविधाएं बहाल करना है। पर गौर से अगर हम देंखे, तो पाएंगे कि अभी भी आम लोग मुश्किल से जीवन यापन कर रहें हैं l अभी भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है, लोग l सरकारी नौकरी पेशा आबादी, जो एक बड़ी राशि आय कर के रूप में देतें है, हो सकता हैं कि वें आराम से अपना जीवन यापन कर रहें हो, पर निजी क्षेत्र में कार्य करने वालें माध्यम और निम्न माध्यम श्रेणी के लोग वे सबसे अधिक परेशान है, जिनको अपने परिवार की शिक्षा और स्वास्थ को लेकर सबसे अधिक चिंता हैं l ये दोनों सरकारी सेवाएं चिंताजनक अवस्था में हैं l हो सकता हैं कि इन वर्षों में स्कूल की बिल्डिंग रंग हो कर नई सी दिखने लगी हो, यह भी हो सकता हैं कि मेडिकल कॉलेजों और सरकारी चिकित्सालयों में साफ़ सफाई पहले से ज्यादा होने लगी हो, पर दोनों सेवाओं में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव अभी भी दिखाई दे रहा हैं l  विचलित करने वाली ख़बरें अक्सर टेलीविजन के परदे पर दिखाई पड़ जाती हैं l आम लोगों की रिहायस का ख्याल कौन रखेगा, इसका जबाब सरकार के पास नहीं हैं l या यूँ कहें कि आम लोग ही सरकार का ख्याल रखे-उसके मंत्रियों का, उसके विधयाकों का, उसके डिएम का, उसके ना जाने किनाका..किनका l एक आम आदमी यही सब तो कर रहा है, पिछले 72 वर्षों से l सरकारी औधे पर बैठे हुए अधिकारीयों की आव भगत, जिससे उसके रहन-सहन में थोड़ी सोलिहत होने लगे l कई बार तो हद हो जाती है, जब सरकारी मशीनरी साधारण से साधारण कार्य करने में फ़ैल हो जाती हैं l जैसे गावों में होने वाले विकास कार्य, जिसको संपन्न होने में वर्षों लग जातें हैं l प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब बिजली के खम्भों का जिक्र किया, तब अनायास ही उन्होंने भारत के गावों में होने वाली स्थितियों का जिक्र भी कर दिया, और एक बड़ा खांचा खींचने का प्रयास किया हैं l गावों में जहाँ बिजली, पानी, सड़क और सामान्य जन सेवा के कार्य बस भगवान भरोसे रहता हैं l किसी गावं में अगर बिजली का ट्रांसफार्मर ख़राब हो जाता है, तब हफ्ते तक वह ठीक नहीं होता है, सड़क अगर टूटी हुई है, तब वह वर्षों तक दुबारा नहीं बनती l मसलन एक सड़क टूटी हुई है, आम आदमी उसको ठीक करवाने के लिए मांग करता रहता है, फिर भी वर्षों तक सड़क ठीक नहीं होती हैं l एक दिन सड़क पर ठेकदार काम करने के लिए आतें हैं और घटिया सड़क बना कर चले जातें है, जो कुछ ही दिनों में दुबारा टूट जाती हैं l असम में जब तटबंध बने थे, तब यह आशा की जा रही थी कि इस बार कार्य अच्छा हुवा है, पर हाल ही में आई बाढ़ ने सभी तटबंधों को अपने में समा लिया हैं l जब शासन में बैठे लोग ही अपनी ड्यूटी ठीक से नहीं निभाते, तब आम आदमी तो बहकेगा ही l एक चुनी हुई सरकार के लिए क्या जिम्मेवारियां है, यह उसे बताने की आवश्यकता नहीं है, .. उसे पहले से ही पता हैं कि उसे क्या करना चाहिये l  अपने आप संपन्न होने वाली तमाम प्रशासनिक गतिविधियाँ, जिसमे शिकायतों का निबटारा, विकासमूलक कार्य, इत्यादि, मानों रुक सी गयी है, नहीं तो एक शिकायतकर्ता को मुख्यमंत्री या पीएमओ तक शिकायत पहुचाने की जरुरत क्यों पड़ रही हैं l उनके नीचे बने हुए तंत्र, जब शिकायतकर्ताओं की शिकायतों का निबटारा करने में असक्षम रहतें है, तब आम आदमी के पास उपर के अधिकारीयों के समक्ष गुहार लगाने के अलावा कोई और रास्ता नजर नहीं आता l रोजाना हजारों शिकायतें पीएमओ तक पहुचती है, क्योंकि लोगों को न्याय नहीं मिलता l   क्यों वह सिस्टम को बदलने के लिए आन्दोलन करता हैं l क्या आम आदमी का एक मात्र रोल हर पांच वर्षों में वोट देना ही हैं ?
यह तो पिछले कुछ वर्षों में देश में विद्वेष, विरोध और टांग खिंचाई की राजनीति और सत्ताधारियों में आपस में संघर्ष ने आम आदमी का ना सिर्फ विश्वास तोडा है, बल्कि उसका उन तमाम चीजों से विश्वास उठाने लगा है, जिन्हें वह लोकतंत्र का स्तम्भ मानता था l lदेश में एक निर्णायक व्यवस्था अभी भी कायम हैं l न्यायलय, जिसके पास जाने के अलावा अब आम आदमी के पास कोई चारा नहीं हैं l  जब समस्त शक्तियां जनता में निहित है, तब फिर यह कैसा असंतोष , फिर यह कैसा रोना-पीटना l वर्तमान लोकतंत्र में सरकारी सिस्टम किस तरह कार्य करता है, देश के आम नागरिक पूरी तरह से समझ चुके है, पर दमघोंटू परिस्थितियों और बदले की तुच्छ राजनीति होने के कारण, आम जनता चुप रहने पर विवश हैं l अब यह देखना हैं कि देश के अंतिम व्यक्ति को इज्जत से दो जून की रोटी कब नसीब होगी l 
  

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