मुझे चाँद चाहिये
अस्सी के दशक में
अब्दुल्लाह नमक फिल्म का एक गाना बहुत लोकप्रिय हुवा था, आनंद बक्षी द्वारा रचित
और मुहम्मद रफ़ी द्वारा गया गया गीत ‘मैंने पूछा चाँद से के देखा है कही, मेरा यार
सा हसीं, चाँद ने कहा, चांदनी की कसम , नहीं नहीं नहीं...’l इस गाने के गाए जाने
तक इंसान ने चाँद पर कदम रख दिया था, भले ही उसने उस समय चाँद पर अपनी हसीन
प्रेमिका को नहीं खोजा होगा l पर 21 जुलाई 1969 के दिन को कोई कैसे भूल सकता है,
जब नील आर्मस्ट्रांग ने चाँद पर अपना पहला कदम रखा था l उस समय से अब तक अनेकों चंद्र
मिशन सफलतापूर्वक कई देशों में हो चुके है l पर इस समय पुरे विश्व की नजरें भारत
पर है l आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से पिछले सोमवार को तड़के लांच किए गए भारतीय
अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट चंद्रयान-2 मिशन अपनी
पूरी सफलता के साथ पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश कर गया है, जहाँ वह अपने मिशन और
बढ़ता हुवा 48 दिनों के बाद चंद्रमा की सतह पर उतरेगा, और चार घंटे प्रज्ञान नामक
मानवरहित यान चाँद पर बीता कर विक्रांत रोवर वापस पृथ्वी पर लौट आएगा l इस तरह से
मनुष्य इन तमाम घटनाओं को पृथ्वी से देख पायेगा, पर उस चांद को छु नहीं पायेगा,
जिसे पाने की उसकी वर्षों की तम्मना है l हो सकता है कि अगले एक सौ वर्षों में
मनुष्य चाँद पर अपनी कॉलोनी बना ले, यह भी हो सकता है कि उस दिन एक प्रेमी अपनी
प्रेमिका से रूठ कर चांद पर चला जाये l फिर चाँद की और ऊँगली उठा कर गीत नहीं भी
गाए जा सकते l चाँद को पाने की तमन्ना किसकी नहीं है l दुसरे शब्दों में कहे कि उन
सपनों के संसार की जन्मस्थली को अगर चाँद कहा जाए, तब कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी l
सन 1993 में सुरेन्द्र वर्मा द्वारा रचित एक पुस्तक ‘मुझे चाँद चाहिये’, जो एक
मजबूत महिला किरदार की कहानी थी, जिसने कई दशक से हिंदी उपन्यास जगत में होने वाली
हलचलों को विराम लग दिया, जिसमे महिला संघर्ष और प्रतिभा के बीच के द्वंद्व को
किरदार के साथ न्यायोचित तरीके से पेश किया और यह एक हमदर्दी, उदासीनता, करुणा और
आक्रोश के दायरे के निकलने वाली एक युवती की संवेदनशील उपलब्धि है l भावना और
स्पंदन के घालमेल और यथार्थ की यात्रा में स्त्री संघर्ष के करुण पल, जिसमे नायिका
पल पल लहूलुहान होती है, और आत्माभिव्यक्ति और क्षमता दिखाने का उचित मंच जरुर
ढूँढ़ लेती है l एक क्रांतिकारी की भूमिका में दिखाई दे रही है, इस उपन्यास की
नायिका l वह इस मिथ को वह तोड़ने में सफल हुई कि इस पुरुष समाज में महिला की भूमिका
सीमित होती है l पुस्तक एक वतर्मान जीवन की कहानी प्रतीत हो कर नायिका केन्द्रित
बनी रही, जिसने ना जाने कितनी बार असमजंस और व्याग्र के घेरों को भलीपूर्वक तोड़ा
था l इस बार चंद्रयान -2 मिशन की बातें भी थोड़ी अलग है l महिला शशक्तिकरण की एक
मिशाल है l इस मिशन की कमान इस बार मिशन डायरेक्टर रितू करिधल और प्रोजेक्ट
डायरेक्टर एम. वनीता संभाल रही हैं। यह पहली बार नहीं है जब इसरो में महिलाओं ने
किसी बड़े अभियान में मुख्य भूमिका निभाने जा रही हों। इससे पहले मंगल मिशन में भी
आठ महिलाओं की बड़ी भूमिका रही है। इसरो में क़रीब 30 प्रतिशत महिलाएं काम करती
हैं। उल्लेखनीय है कि चन्द्रायन
- दो की सफलता पर देश को गर्व होने के साथ-साथ बिहार के भागलपुर और लखीसराय जिले
को भी गर्व है। दरअसल भागलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (बीसीई) के पूर्ववर्ती छात्र
अमरदीप कुमार और लखीसराय के बड़हिया के इन्द टोला निवासी ललन सिंह के पुत्र सोनू
कुमार ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है l
एक युवा ब्लॉगर सूरज
पटेल लिखते है- मंजिलें उन्ही को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है l दुनिया में तमाम ख़बरें जोश और जूनून की आती है,
जिसमे साहस और हिम्मत से कोई कुछ नया करने में सफल हो जाता है l इस समय चाँद पर
उतरने को आतुर है भारत l आइए, इन पलों का आनंद ‘हम किसी से कम नहीं’ के इस खुबसूरत
गीत को गुनगुना कर ले..
चाँद मेरा दिल,
चांदनी हो तुम
चाँद से है दूर,
चांदनी कहाँ
लौट के आना, है यहीं
तुमको
जा रहे हो तुम, जाओ
मेरी जान..l
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