हिंदी को हिंदी ही
रहने दो
हिंदी दिवस हालाँकि
14 सितम्बर को हर वर्ष देश में मनाया जाता है, पर पुरे सितम्बर तक देश भर में हिंदी
को लेकर विभिन्न तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जातें है और सितम्बर तो हिंदी माह
के रूप में ही मनाया जाता है l भारत की संविधान सभा ने घोषणा की थी कि देवनागरी
लिपि में लिखी गई हिंदी भारत की आधिकारिक भाषा है। भारत की संविधान सभा ने 14
सितंबर 1949 को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया था ।
हालांकि, इसे 26 जनवरी 1950
को देश के संविधान द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में उपयोग करने का विचार स्वीकृत
किया गया था l भारत में हिंदी भले ही आधिकारिक भाषा है, पर उसके यह प्रश्न अक्सर
पूछा जाता है कि इसके अपनाने के 70 वर्षों के बीतने के बाद भी, अधिकारिक भाषा होते
हुए भी, देश में हिंदी अभी भी कामकाज की भाषा क्यों नहीं बन पाई l ख़ुशी की बात यह
है कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना काम-काज हिंदी में करते है और भाषण
भी हिंदी में ही रखते है l पर इससे भी हिंदी के विकास में जो काम होना चाहिये, वह
नहीं हो पा रहा है l हिंदी भाषा की जितनी मांग है, इंटरनेट पर उतनी सहज रूप से उपलब्धता नहीं है।
लेकिन जिस रफ़्तार से भारत में इंटरनेट का विकास हुआ है, उसी तरह से हिंदी भी इंटरनेट पर छा रही है।
तकनीक और अनुवाद के रूप में समाचारपत्र से लेकर हिंदी ब्लॉग तक अपनी उपस्थिति दर्ज
करा रहा है। एक बड़ा श्रेय गूगल को भी जाता है जिसने हिंदी में खोज करने के लिए
एप्प और गूगल स्थान उपलब्ध करवाया है l इतना ही नहीं विकिपीडिया ने भी हिंदी की महत्ता
को समझते हुए कई सारी सामग्री का सॉफ्टवेयर अनुवाद हिंदी में प्रदान करना शुरू कर
दिया है, जिससे हिंदी भाषी
में किसी भी विषय पर जानकरी सुलभ हुई है l आजकल हिंदी भी इंटरनेट की एक अहम् लोकप्रिय भाषा बन कर उभरी है। समस्या यह है
कि इन्टरनेट के युजरों में एक बड़ा तबका गैर हिंदी भाषी है, जिनको अंग्रेजी में
कार्य करना अच्छा लग रहा है, उनके लिए बार बार टेब बदलना संभव नहीं रहता है l इसी
झंझट को दूर करने के लिए ज्यादातर कंप्यूटरों में अंगेजी भाषा ही उपयोग में लायी
जा रही है l असम ने हिंदी हो दोनों हाथों से स्वीकार ही नहीं बल्कि गले से भी
लगाया है l अगर ऐसा नहीं होता
तब राज्य के बड़ी संख्या में हिंदी भाषियों द्वारा किये गए कार्यों को सराहा नहीं
जाया होता l आम तोर पर देखा गया
है कि बाहर से कोई आगंतुक अगर असम के किसी गावं में जाता है तब उसके प्रश्नों के
जबाब वह के लोग टूटी फूटी ही में ही सही, पर हिंदी में दे ही देतें है l ठीक इसके विपरीत दक्षिण भारत में अभी भी वहां हिंदी को लेकर लोग भारी विरोध है
l हिंदी देश की एक
संपर्क (लिंगुआ-फ्रांका) बन सकती है l आमतोर पर यह देखा जा रहा है कि अलग अलग प्रदेशों के लोग एक अजीब सी भाषा बोलने
लगें है l इस भाषा में
अंग्रेजी के बहुत सारे शब्द रहतें है l देश के जिन-जिन क्षेत्रों में हिदी का विरोध है, वहां हिंदी भाषा का विरोध है, या फिर हिंदीभाषियों का l एक भाषा जो समूचे भारत की संपर्क भाषा है, उसका क्या सचमुच में विरोध है या फिर उन लोगों
का विरोध है जो हिंदी बोलतें है l कभी कभी ऐसा भी लगने लगता है कि यह विरोध एक राजनीतिक चाल है, जिससे हिंदी का
विरोध करने से विरोध करने वाला अपने आपको स्थानीय स्थपित करने लगता है l यह बात आजादी के बाद से अभी भी समझ में नहीं आई
है l जैसे पूर्वोत्तर में
एक-दो राज्यों में हिंदी फिल्मों का विरोध है, पर कई पूर्वोत्तर के राज्यों में हिंदी भाषा का
विरोध नहीं है l जिन राज्यों में
हिंदी का विरोध है, उसमे से एक है
मणिपुर, जहाँ एक समृद्ध
संस्कृति है, वैष्णव धर्म की एक
केंद्रस्थली है l कृष्ण-राधा को
आराध्य मान कर उनकी लीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है l ऐसे राज्य में पिछले 20 वर्षों से हिंदी फिल्मों
के प्रदर्शन पर रोक है l विडम्बना तो देखिये कि मणिपुर की बेटी और प्रसिद्ध मुक्केबाज मेरी कोम पर बनी
हुई फिल्म तक दिखाने की अनुमति वहां पर नहीं मिली l वहां हिंदी का विरोध इसलिए है कि उग्रवादी संगठन
यह सोचते है कि हिंदी मणिपुर की संस्कृति ख़राब कर रही है l हिंदी का विरोध होते-होते अब मणिपुर में हिंदी
भाषियों का भी विरोध है l पूरा देश एक है l किसी भी जाति, धर्म, भाषा, राज्य-क्षेत्र के लोग कहीं भी जाकर अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं, यह उनका संवैधानिक अधिकार है l भारत में डेढ़ दर्जन भाषाओं में फिल्में बनती हैं
और पूरे देश में दिखायी जाती हैं l हिंदी क्षेत्रों में डबिंग की हुई, दक्षिण की भाषाओं की फिल्में भी चलती हैं l हिंदी तो खैर राष्ट्रीय भाषा है और बड़ी संपर्क
भाषा भी है l इसलिए ऐसे विरोधों
का विरोध होना चाहिए l अगर ऐसी ही कहीं हिंदी का, कहीं दक्षिण की भाषाओं का, कहीं पंजाबी-बांग्ला का विरोध होने लगे, तो कैसे देश टूट के कगार पर पहुंच जायेगा l ऐसा भी नहीं है कि हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन
से हिंदी का विकास हो पायेगा l कई जानकार यह भी कहते है कि हिंदी फिल्मों ने हिंदी
का हालत अधिक ख़राब ही की है l उन्होंने उसकी व्याकरण और शब्द गठन में मुम्बैयाँ
तड़का लगा दिया है, जिससे हिंदी फिल्मों को देखने वालें अहिन्दी भाषियों को भी यही
लगता है कि यही असली हिंदी है l यहाँ आ कर हिंदी का विकास रुक सा जाता है l
हिंदी पर संविधान
सभा की भाषा विषयक बहस 12 सितम्बर को शुरू हो कर 14 सितम्बर को शाम चार बजे तक चली
और लगभग 278 पृष्ठों में मुद्रित हुई। इसमें डॉ. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और
श्री गोपाल स्वामी आयंगार की महती भूमिका रही थी। बहस के बाद यह सहमति बनी कि संघ
की भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी, किंतु देवनागरी में लिखे जाने वाले अंकों तथा अंग्रेज़ी को 15 वर्ष या उससे
अधिक अवधि तक प्रयोग करने के लिए तीखी बहस हुई। अन्तत: आयंगर-मुंशी फ़ार्मूला भारी
बहुमत से स्वीकार हुआ। वास्तव में अंकों को छोड़कर संघ की राजभाषा के प्रश्न पर
अधिकतर सदस्य सहमत हो गए। अंकों के बारे में भी यह स्पष्ट था कि अंतर्राष्ट्रीय
अंक भारतीय अंकों का ही एक नया संस्करण है। कुछ सदस्यों ने रोमन लिपि के पक्ष में
प्रस्ताव रखा, लेकिन देवनागरी को
ही अधिकतर सदस्यों ने स्वीकार किया।
स्वतन्त्र भारत की
राजभाषा के प्रश्न पर काफ़ी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया, जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा
343 (1) में इस प्रकार वर्णित है-
संघ की राज भाषा
हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले
अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
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