Friday, October 11, 2019

यह पूरी तरह से पश्चिम की कोपी है


यह पूरी तरह से पश्चिम की कोपी है

बदलाव एक अवश्यंभावी भाव है, जो मनुष्य के अंदर हर पल उमड़-उमड़ कर आतें है l हर पल कुछ नया करने की चाह ने मनुष्य को हमेशा से ही नए प्रयोग और आविष्कार करने के लिए प्रेरित किया है l वैचारिक रूप से ही चाहे, नयी सोच और नई आईडिया इस समय बहुत अधिक दामों में बिकती है l किसे पता था कि एक समय में हम अपने घरों में बैठ कर मन चाहा समान मंगवा सकेंगे l खाना आर्डर कर पायेंगे l यह सब नए विचार और तकनिकी शिक्षा के बेहतर उपयोग की वजह से हुवा है l करोड़ो वर्षों से बदलाव के चलते विश्व की बड़ी बड़ी सभ्यताओं का भी अंत हुवा है, जिसके पश्चात एक नई सभ्यता ने जन्म लिया है, और इसी तरह से दुनिया चल रही है l विकसित देश के लोग अब उपभोक्तावादी संस्कृति से उब कर कुछ नया करना चाहतें है l विकास अपने चरमबिन्दु पर जब पहुच जाता है, तब मनुष्य के मानव मूल्यों का र्हास होने लगता है, जो एक मात्र कारण बनती है, सभ्यताओं के समाप्त होने का l किसी भी समाज के अपने दर्शन होते है, अपने विचार होतें है, उनके अंत होने के कई कारणों में एक यह भी है कि उसी समाज के वासिंदे अपने मूल स्वाभाव के विपरीत आचरण करने लागतें है l पाखंड और भौतिक विचारों का जब खुलें रूप से प्रदर्शन होने लगता है, तब यह तय है कि उस संस्कृति का अंत होने वाला है l जब जनता वास्तविक सामाजिक स्थितियों को नजरअंदाज करके, अपने मूल स्वरुप को खोने लगती है, तब नए विचारों को ही वह अपने मूल विचार मानने लगता है l अब भारत में शादियों को ही देख लीजिये, अपने बूते से बाहर लोग खर्च करने में हिचकिचाते नहीं, मानों एक मौका मिला है, खर्च करने का l इस बेहिसाब खर्च की वजह से माध्यम वर्गीय भारतीय को शादी के लिए रिश्तों को खोजने में असुविधा आ रही है l इसकी एक मुख्य वजह मानी जा रही है, शादी से अत्यधिक अपेक्षा, जबकि शादी हिन्दू समाज की एक रश्म है, जिसको पूरा करना अनिवार्य है l इसी रस्म के नाम पर लाखों-करोड़ो रुपये खर्च किये जा रहें है l फ़िज़ूलखर्ची, आडम्बर और दिखावा, तीन ऐसी चीजे है, जिनसे अगर कोई समाज सबसे ज्यादा प्रभावित है तो वह है भारतीय समाज l भारत के लोगों ने शादी-विवाह, तीज-त्यौहार, धर्म और उन सभी मौकों पर जरुरत से ज्यादा दिखावा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है l सम्पदा का इस तरह से दुरूपयोग माध्यम वर्ग के लिए, इतना भारी पड़ रहा है कि वह ना चाहते हुए भी इस आधुनिकता की दौड़ में शामिल हो गया है l आजकल शादियों में हो रही फिजूलखर्ची और बेवजह के दिखावे से, आम आदमी को शादी जैसे पवित्र रस्म को निभाने में भारी दिक्कतें आ रही है l यह सब गड़बड़ हुई है, उपभोक्तावाद संस्कृति के पनपने से l अभी भारत के लोग उपभोक्तावाद संस्कृति का अनुसरण कर रहे है l देश में छोटें से छोटें शहरों में मॉल खुलने लगें है, जिनमे एक ही स्थान पर सभी वस्तु उपलब्ध रहती है l इसके विपरीत गावों में भी एक अपनी दुनिया है l पर जब वें शहरों की चकाचौंध को देखतें है, तब एकाएक उनका मन भी इसी तरह के शहर की कल्पना करने लगता है l भौतिक युग जो ठहरा l वे भी अपने पास के शहरों में जा कर खरीददारी करतें है l समय के साथ उपभोक्ताओं का खरीदादारी के स्वाद बदलने से अब दुकानदारों को भी मार्किट मे नई आने वाली चीजों को विक्रय के लिए उपलब्ध करवाना पड़ता है l तभी जा कर एक उपभोक्ता खरीदारी करके खुश होतें है l भारतीय लोग अपने आप को परखने की कौशिश ज्यादा करतें है कि वे भी पश्चिम के देशों की तरह पेकेट फ़ूड खाए, ठंडा पिए और विंडो शौपिंग करें l देखा-देखी करने की आदत हम भारतियों में कूट कूट कर भरी पड़ी है l दरअसल में यूरोपीय देशों में ठण्ड अधिक रहने के कारण वहां पेक फ़ूड का चलन है l एक ऐसी सभ्यता का अनुसरण, जिसे भारतीयों ने कभी देखा नहीं l यह पूरी तरह से पश्चिम की कोपी है l अर्थ मानो जीवन का सबसे महतवपूर्ण हिस्सा बन गया है l जीवन मूल्य, संस्कृति और प्रेरणा देने वाला हमारा इतिहास l अब इन सब चीजों से भारतियों को कोई मतलब नहीं l उपभोक्तावादी संस्कृति, जिसकी बेल पर चढ़ कर हम अपने आप को ज्यादा मोर्डेन दिखलाने की चेष्टा कर रहें है, वह भारत के कौने-कौने में उग आई है l अब इससे बचा नहीं जा सकता l अनंत संभावनाओं वाला देश भारत एक उपभोक्ता देश है l भारत देश को विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था का खिताब बताया गया है l यह ख़िताब देने वाली वे ही एजेंसियां है, जो उन्ही देशों में ऑपरेट करती है, जहाँ से ये तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता सामान बिकते है l बड़ा भारी गड़बड़झाला है l मजे की बात यह है कि सिर्फ सामानों तक यह संस्कृति सीमित रहती, तब कोई बात नहीं थी, इसने हमारे विचारों और तहजीब तक को रौंद डाला है l शिक्षा, स्वास्थ मिडिया, समाज, सभी l मानो वाइरस घुस गया है l हमारी शादी विवाह अब इस संस्कृति की आंच से मानों झुलस गए है l शादियाँ अब महँगी होने लगी है, क्योंकि उसमे आधुनिकता का तड़का जो लग गया है l
नए विचारों और आईडिया को रोका नहीं जा सकता l तकनीक के उपयोग से जिंदगी को अधिक आरामदायक और उपयोगी बनाया जा सकता है l प्रगतिवादी कहतें है कि शिक्षा और स्वास्थ ने भारी प्रगति की है l लोगों को रोजगार और इलाज़ मिला, जिससे एक आम आदमी के लिए रहन-सहन सहज हो गया l मानवसंसाधन के निर्माण की दिशा में यह एक महवपूर्ण कदम है l रोजगार के सृजन से देश की गरीबी कुछ कम हुई है l प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ी है l ऐसे में इस तरह की अर्थव्यवस्था फिलहाल भारत के लिए लाभदायक है l हमें इसी को पकड़ कर आगे बढ़ना है l महत्वपूर्ण बात यह है कि एक पुरातन सभ्यता के झंडाबरदार होने के नाते, अब यह हमारी जिम्मेवारी है कि हम अपने विचार, संस्कृति और तहजीब को संजोने के लिए उन मूल्यों को जीवित रखे, जिससे हम जिन चीजों से जाने जातें है l बाजारवाद तो मात्र एक छलावा है l           

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