Friday, February 24, 2017

सीख और साख भी दो जरुरी चीजें है
रवि अजितसरिया

किसी भी क्षेत्र में गुणीजनों की सीख, व्यक्ति को अपने डगर से डिगने नहीं देती l यह एक शाश्वत नियम है l जब महाभारत में अर्जुन अपना गांडीव रख देते है, और युद्ध करने से इनकार कर देते है, तब भगवान कृष्ण ने उनको भगवत गीता की सीख देते है, और फिर आगे क्या हुवा, यह हम सभी को पता है l जीवन के गूढ़ रहस्यों के बारे में जानना ही सीख है l बड़े बुजुर्गों द्वारा दी गयी सीख, जीवन में बहुत काम आती है l भारत में अब तक जितने भी गुणीजन, महान लोग पैदा हुए, उन्होंने जीवन के गूढ़ रहस्यों को कठिन साधना के द्वारा जाना और फिर लोगों तक पहुचायां l उनकी सीख से भारत को संस्कार और संस्कृति मिली, जिससे उसने एक आतंरिक शक्ति अर्जित की, जिससे कठिन से कठिन समय में भी देश टिका रहा, उसके लोग, उसकी सोच, दोनों टिके रहें l उसके धर्म, संस्कृति, और इतिहास के तत्वों को आधुनिकता का तड़का दे कर, अब यहाँ के लोग भारत को विश्व पटल पर एक नया भारत बनाने को आतुर है l यही इसकी सीख है, यही इसकी साख है l व्यापार में भी सीख बड़े काम की चीज है l बड़े अपने बच्चों को सीख देतें है, और बच्चें बड़े हो कर अपने बच्चों को वही सीख देतें है l यह सिलसिला चलता रहता है, और व्यापार भी l एक राजस्थानी कथा है, जिसमे एक सेठ मरते वक्त अपने बच्चों को व्यापार की अंतिम सीख देता है कि ‘छावं-छावं जाना और छावं-छावं आना’ l बच्चों ने सेठ की सीख का आदर करतें हुए, अपने घर से दूकान तक के रास्तों पर छावं की व्यवस्था कर दी l नोकर-चाकर हाथों में छातें लेकर चलने लगें l इसका नतीजा यह निकला कि सेठ के बच्चें हंसी के पात्र बन गएँ l उनको यह समझ नहीं आ रहा था कि उन्होंने ने तो अपने पिता की सीख की अक्षरश माना है, फिर भी वे हंसी के पात्र क्यों बन रहें है l जब इसका निदान खोजने, वे किसी ज्ञानी के पास पहुंचे, तब उनको पता चला कि उनके पिता के सीख का आशय यह था कि बड़ी सुबह जब सूरज नहीं निकले, तब दूकान जाना और शाम को जब सूरज डूब जाए, तब वापिस आना l व्यापार की इस महत्वपूर्ण सीख को देश के करोड़ों व्यापारियों ने अपने जहन में उतार ली है, और सफलतापूर्वक व्यापार कर रहें है l व्यापार एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमे सफलता के लिए पूरी एकाग्रता, इमानदारी, सतता और समय की अनुशासनता उतनी ही जरुरी है, जितनी कड़क चाय के लिए चाय को ज्यादा समय तक पर्याप्त मात्रा में पत्ती डाल कर पकाना जरुरी है l असम के कौने-कौने क्षेत्रों में व्यापार कर रहें लोग बड़ी सुबह से ही व्यापार वाणिज्य का कार्यों में उतर जातें है, और दिन भर कर्म करतें है, एकाग्रता का प्रदर्शन करतें है l असम के विभिन्न शहरों में स्वतंत्रता के पश्चात खुले ‘गोले’, इस बात के गवाह है कि व्यापार में छावं-छावं जाना और छावं-छावं वापस आना के नियम को कितनी दृढ़ता से अपनाया है l गोलों का एक शहर गोलाघाट का नाम ही व्यापारिक गोलों पर पड़ गया l  
एक अन्य कहावत है कि अच्छी सीख को अमल में लाने से साख बनती है l साख को क़ानूनी रूप में मान्यता प्राप्त है और अंग्रेजी में उसे ‘गुडविल’ कहते है l क़ानूनी तौर पर साख की एक अलग कीमत है l साख शब्द का इस्तेमाल, उस समय किया जाता है, जब किसी व्यक्ति की शुद्ध परिसंपत्तियों के परे कुछ बुद्धिमत्तापूर्ण मान का आंकलन किया जाता है l यही यह उस फर्म की साख, जिसके बल पर एक व्यापारी व्यापारिक खरीदारी करता है, जिसके बल पर उसे माल उधारी मिल जाती है l किसी भी व्यापारिक घराने की साख यूँ ही नहीं बन जाती, वर्षों तक कड़ी मेहनत और इमानदारी से व्यापार के वह साख बनाई जाती है l व्यापारिक साख और निजी साख के बल पर अभी भी भारत में कई ऐसे कार्य अल्पसमय में निपटाएं जातें है, जिनको उपलब्द्ध चेनलों द्वरा अगर किये जाये, तब महीनों लग सकतें है l सामाजिक कार्यों में साख की बड़ी कीमत होती है, जिसे व्यक्ति एक बड़ी मुश्किलों से हासिल करता है l असम में व्यापारियों को कोई कितनी ही गालियाँ दे, लेकिन जब मुसीबत आती है, तब व्यापरियों की साख ही काम आती है l उनके एक फोन से देश के अन्य भागों में पैसे का लेनदेन और अन्य कार्य निपटाएं जातें है l  अच्छी सीख अपना लेने से साख बनाने में कोई समय नहीं लगता l बस शर्त एक ही है कि व्यक्ति उस सीख का पालन ईमानदारी से पालन करे l ब्रिटिश के समय से ही बने हुए गोलों की साख आज भी कायम है, जिसकी वजह से असम में व्यापार, वाणिज्य का विस्तार जल्दी हो सका है l
किसी भी जाति, सम्प्रदाय और जन गोष्ठी के लिए यह एक अहम् मुद्दा रहता है कि वह अपने अस्तितिव की रक्षा कैसे करें, अपनी जीविका को कैसे चलाये l इस पूरी कवायद में यह बात निकल कर आती है कि अमुक जाति का स्वाभाव, चरित्र और वृत्ति क्या है l उसी वृत्ति के आधार पर ही वह अपने रास्तें चुनती है l सीख लेने और साख कमाने के लिए हर जाति और सम्प्रदाय के पास सामान अवसर रहतें है l बस जरुरी है कि उस जाति के लोग सही समय में उस अवसर को पकड़ सकें, और अपनी एक पहचान बन सकें l इस सत्यता से भी कोई नकार नहीं सकता कि हर जाति और समुदाय के पास अपने गुण और साख रहती है, जिसे वह वर्षों तक प्रदर्शित करती रहती है l यह साख वह कड़ी मेहनत, एक चित और लगन से वर्षों तक एक ही कार्य करके हासिल करती है l हम उन्हें सफल मानते है l पूरी दुनिया उनकी बुद्धि, ताकत, सम्पति और प्रभाव का लोहा मानती है l मगर यह सफलता उसे कितनी चुनौतियों को पार करने से हुई है, इस बात को भी समझने की जरुरत होती है l एक स्तर आने के पश्चात व्यक्ति इस बात की चिंता में लग जाता है कि उसकी साख पर बट्टा नहीं लगा जाये, अपनी समस्त उर्जा, उसको बचाने में लगाने लगता है l इस नियम से सभी वाकिफ है कि साख एक बार बिगड़ जाये, तब लाख खर्च करने पर भी दुबारा बनाने में समय लगता है l  

साख सफलता का ही एक रूप है, कोई आमिर नहीं, कोई गरीब नहीं, कोई ऊँचा नहीं, कोई नीचा नहीं..साख तो बस साख है, जबान की कीमत..भाव-भंगिमा की उत्कृष्टता..और महाबाहु ब्रह्मपुत्र की तरह बहाना l        

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