Saturday, February 18, 2017

माँ माटी और मानुष
रवि अजितसरिया

सन 2000 में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने स्वास्थ कारण से मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था, तब ममता बनर्जी माँ, माटी और मानुष के नारे के साथ एक नायिका बन कर उदय हुई थी, और यह नारा तेजी से उस समय उभरा जब पश्चिम बंगाल सरकार ने सिंगुर में टाटा के लिए जबदस्ती जमीन अधिग्रहण करनी शुरू कर दी थी l ममता बनर्जी ने उग्र आन्दोलन करके, समूचे बंगाल में माँ, माटी, मानुष का नारा लोगों को दे दिया, जिससे सन 2011 के विधान सभा चुनाव में 34 वर्षों पुरानी वाम दलों की सरकार के शासन का अंत हो गया और ममता बनर्जी, तृणमूल कोंग्रेस पार्टी से राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी l माँ, माटी और मानुष के नारे ने मानता बनर्जी को भारी कामयाबी दिलवाई l जब उच्चतम न्यायलय ने उनकी पिछले दस वर्षों की सिंगुर जमीन अधिग्रहण की लडाई में उनके पक्ष में फैसला सुना दिया, और किसानों को लगभग 1000 एकड़ जमीन वापस देने का फैसला दिया, तब वे पश्चिम बंगाल और पुरे देश में उनका कद एकाएक बड़ा हो गया l उनके इस नारे की अहमियत लोगों को समझ में आ गयी l आज भी कोलकाता की गलियों में होने वाली राजनैतिक रेलियों में इस नारे की गूंज सुनाई देती है l राजनैतिक नारों की पहले भी अहमियत थी और आज भी है l किसी भी आन्दोलन में नारों का प्रभाव इतना अधिक है कि सोयें हुए लोग भी एकाएक जाग कर नारे लगाने लागतें है l मातृभूमि और माँ के साथ किये गए जयघोष के नारें, अभी तक प्रभाव डाल रहें है l कालिदास, गाँधी, हिटलर, मुसोलोनी, स्टेलिन और नीत्से जैसे लोगों के पास भी लोगों को देने के लिए बहुत कुछ था l दृढ शक्ति और दृढ कल्पना, जिसके बलबूते पर वे समूचे विश्व पर राज करने की असीम क्षमता बटोरतें थे l ममता बनर्जी और प्रफुल्ल महंत में यही एक समानता है, जिन्होंने सडक पर संघर्ष करके राज्य की सत्ता हासिल की है l मार्टिन लूथर किंग(जू) का एतिहासिक भाषण ‘मेरा भी एक सपना है’ अमेरिका के इतिहास में मानव अधिकार के पक्ष में अनुकरणीय भाषण है, जिसे हमेशा याद किया जाता है l जब सन 2008 में अमेरिका के पहले अफ्रीकन-अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा चुन कर आये, तब उन्होंने अपने पहले भाषण में एक स्लोगन दिया ’यस वी केन’(हम कर सकते है) l अमेरिका में रंगभेदी लड़ाई का यह पटाक्षेप था, जब एक अफ्रीकी मूल के व्यक्ति को विश्व के सबसे ताकतवर राष्ट्र का राष्ट्रपति बनाया गया l यह बेहद अप्रत्याशित था l वर्षों से काले और गोरे लोगों में चल रहे संघर्ष ने अमेरिका सहित कई अन्य देशों में मानव अधिकार के उपर जब चर्चा तेज हो गयी, तब ऐसे समय में अमेरिका को एक कला व्यक्ति राष्ट्रपति के रूप में मिला, जिसका असर पुरे विश्व पर पड़ा l ‘जय जवान जय किसान’ के लाल बहादुर शास्त्री के नारे से सन 1967 में कांग्रेस की दुबारा सत्ता में वापसी हुई l  
खाद्य संकट को देखते हुए, किसानों को, देश के लिए अधिक खाद्य उपजाने के लिए लाल बहादुर शस्त्री का यह आह्वान था, जब तक वे प्रधानमंत्री पद पर थे l जय प्रकाश नारायण और लोहिया के दिनों में आपातकाल के समय में, लोकनायक ने रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविता ‘सिंहासन खली करो कि जनता आती है’’ का पाठ दिल्ली के रामलीला मैदान की एक जन सभा में किया था, जिसका इतना असर हुवा कि आज तक भारत की जनता इस कविता और उसके एतिहासिक पाठ को याद कर रही है l स्वंत्रता के पहले भी भारतीय नेताओं और स्वतंत्रता संग्रामियों ने बड़े-बड़े नारे लोगों को दिए थे l सुभाष चन्द्र बोसे के ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा, बाल गंगाधर तिलक का नारा ‘स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है’, आज बच्चा बच्चा जनता है l छह वर्षों तक चले असम आन्दोलन के दौरान मातृभूमि से सम्बद्ध नारों की भरमार रही l ज्योति प्रसाद अगरवाला के विप्लवी गीतों के साथ आन्दोलनकारी अपना आन्दोलन शुरू करतें थे l बांग्लादेश की आज़ादी के पश्चात तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने एक बार कहा था कि ‘इंडिया इज इंदिरा’ और इंदिरा इस इंडिया l इसी तरह से इंदिरा गाँधी ने भी ‘गरीबी हटाओं’ का नारा देश को दिया, और वे बहुत लोकप्रिय हुई थी l जब सन 1996 में भारतीय जनता पार्टी की तेरह दिनों की सरकार थी, तब यह नारा चुनाव के समय उभरा था कि ‘बारी बारी सबकी बारी, अबकी बारी अटल बिहारी’ l हालांकि सन 2014 में नरेंद्र मोदी के लिए भी कुछ इसी तरह का नारा लगा था, ‘इस बार मोदी सरकार ‘ l इस समय असम के मुख्यमंत्री ने ‘जाति, माटी और भेटी’ का नारा, असम के लोगों को दिया है l जाति(देश)माटी(जमीन)भेटी(मकान एवं संसाधन) का नारा असम आन्दोलन से जुड़ा हुवा है l जब सन 1979 में विदेश बहिष्कार के नारे के साथ असम में एक बड़ा छात्र आन्दोलन शुरू हुवा था, तब उस आन्दोलन का मकसद यही था कि असम के लोगों को विदेशी अनुप्रवेश्कारियों से बचाया जाये, जो असम के सामाजिक जीवन में प्रवेश करके, असम की सांख्यकी को बदल कर रख दे रही थी l असम के लोगों को संविधानिक अधिकार दिलाने के उद्देश्य से शुरू किये आन्दोलन के कई रूप असम के लोगों ने देखें, जिसका नतीजा यह हुवा कि सन 1985 में छात्र नेताओं द्वरा गठित की हुई राजनैतिक पार्टी अगप सत्ता में आ गई l इसी तरह से माटी की सुरक्षा के लिए जब जब भी आन्दोलन हुए, वे सफल रहें है l मिजोराम और असम इसके जीते जागते उदहारण है l पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी एक जन आन्दोलनकारी नेता थी, जिसने आम लोगों को अपने साथ हमेशा रखा, जिसकी बदोलत वह एक चहेती नेता के रूप में स्वीकारी गयी l इस समय कोलकाता के हवाई अड्डे से हावड़ा रेल स्टेशन के रस्ते को इस तरह से सजाया गया है कि ऐसा लगता है कि कोई विकसित देश में चल रहें है l रंग-बिरंगी लाइटों से रास्तों और फ्ल्योवेरों को योजना बढ तरीके से सजाया गया है l असम की भाजपा सरकार से भी लोगों की बहुत अपेक्षाएं है, जिसने जाति,माटी, भेटी का नारा लोगों को दिया है l लोकतंत्र में, सत्ता सरकार तक रहने वाली चीज नहीं है, लोगों की उसमे भागीदारी, प्रभाव और अभिब्यक्ति उतनी ही जरुरी है जितनी दूध में शक्कर जरुरी है l इस समय लोगों के नजरे सत्ता संतुलन पर है, जिससे यह पता लग सके कि सत्ता का व्यवहार कैसा रहेगा l लोकतंत्र का असली मतलब तभी निकल कर आयेगा l तब तक लोगों को प्रभावित करने वालें नारों को उपज हर युग में यूँ ही होती रहेगी l            

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